आखिरकार चन्द्रगुप्त मौर्य राजा कैसे बने

भारत में सिकन्दर के आक्रमण के समय और उसके बाद कई यूनानी लेखकों ने भारत की उस समय का राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दशाओं का प्रशंसा किया है।

विशाखदत्त संस्कृत भाषा के उच्चकोटि के विद्वान थे।यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त के दरबार में आकर तत्कालीन भारत की स्थिति का विवरण अपनी ‘इण्डिका’ नामक कृति में किया है।

गुप्त के मंत्री विष्णुगुप्त चाणक्य ने भी ‘अर्थशास्त्र’ नामक ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ में भी मौर्यकालीन इतिहास पर प्रकाश डाला गया है।

प्लूटार्क और जस्टिन चंद्रगुप्त के अनुसार उसके कब्जे में पूरा भारत था। एचसी रॉयचौधरी के अनुसार, “चंद्रगुप्त मौर्य भारत में एक महान साम्राज्य के पहले historical founder हैं।

इन सभी शक्तियों के साथ, राजा सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए एक जाग्रत despot के रूप में काम कर रहा था। मौर्य राजा एक पूर्ण शासक थे।

वह प्रशासन के शीर्ष पर था। राजाओं का उनका आदर्श हितैषी था। प्रशासन का निश्चित  लोगों का कल्याण करना था।

 वह कार्यकारी, कानून देने वाले और सर्वोच्च न्यायाधीश के प्रमुख थे। वह सर्वोच्च कमांडर-इन-चीफ भी थे।

प्रशासन के काम में राजा को मंत्रिपरिषद द्वारा अनुदान दी जाती थी, जिन्हें ज्ञान के लिए जाना जाता था।

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