हुसैन और उसके भाई अली ज़ैनुल आबिदीन सलामुन अलैहिम को याद किया जाता है।
यह जंग उस समय हुई, जब ईस्लामी खिलाफत के शासक यज़ीद बिन मुआविया का राज्य चल रहा था।
इमाम हुसैन और उनके अनुयायी इस्लामी भी विद्वेषी थे, जो यज़ीद के खिलाफ उठ खडे हो गए थे।
सैन को ये मान्यता थी कि खिलाफत को संवार्थ एवं ईमान की रक्षा के लिए हर तरह के धौराधार उठाने की आवश्यकता है, और उन्होंने खुद को ईस्लामी वैल्य में देखा था।
ज़ीद के शासन के खिलाफ हुसैन ने यात्रा की तैयारियों की और कर्बला की जंग के नगर में आगमन किया। हुसैन और उनके साथियों की संख्या काफी कम थी
उन्हे खिलाफत की सेना से मुकाबला करना पड़ा। कर्बला में हुसैन और उनके 72 अनुयायी भयानक रूप से शहीद हो गए,
घटना को ईस्लामी इतिहास में बहुत बड़ा महत्व मिला। यह इमाम हुसैन के संघर्ष और बलिदान को समर्पित है