तहज्जुद की नमाज़ की नियत कैसे बने – अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि वबरकातुह तहज्जुद की नमाज पढ़ने का सही तरीका क्या है क्या आप जानते है की तहाज्जुब की नमाज क्यों पढ़ते है कहा जाता है अगर किसी को अपनी मुराद पूरी करनी है तो 12:00 बजे के बाद या फज्र से पहले पढ़ा जाता है तहज्जुद की नमाज़ की नियत कैसे बने – Tahajjud Ki Namaz Ki Niyat Kaise Bane
आज के समय हर किसी की कोई न कोई मुराद या दुआ होती है अगर आपकी भी कोई दुआ है कबूल करवाना चाहते है तो आप मेरे बताये गए तरीको से तहज्जुद की नमाज अदा करे
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तहज्जुद (Tahajjud): रात का विशेष नमाज़ (Night Prayer)
तहज्जुद की नमाज़ की नियत कैसे बने – तहज्जुद (Tahajjud) रात के अंतिम तिहाई हिस्से में अदा की जाने वाली एक विशेष नमाज़ है। इसका शाब्दिक अर्थ “जागरण” या “नींद से जागना” होता है। इस नमाज़ को अक्सर “रात की प्रार्थना” के रूप में जाना जाता है और यह इस्लाम में सबसे ज्यादा फज़ीलत वाली नमाज़ों में से एक मानी जाती है। तहज्जुद की नमाज़ की नियत कैसे बने – Tahajjud Ki Namaz Ki Niyat Kaise Bane
तहज्जुद की नमाज में क्या क्या पढ़ा जाता है?
- सूरह फ़ातिहा: यह क़ुरान की पहली सूरह है और हर रकात में पढ़ी जाती है
- कुलहुवअल्लाह: यह क़ुरान की 113वीं सूरह है
- इखलास: यह क़ुरान की 112वीं सूरह है
- फ़लक: यह क़ुरान की 113वीं सूरह है
- नस: यह क़ुरान की 114वीं सूरह है
- दुआ-ए-क़नूत: यह नमाज़ के आखिर में पढ़ी जाने वाली एक दुआ है
- दुआ-ए-इस्तिग़फ़ार: यह माफ़ी मांगने की दुआ है
- दुआ-ए-हाजत: यह अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए की जाने वाली दुआ है
तहज्जुद की नमाज़ में कितनी रकात होती है?
- दो, चार, छह, या आठ रकातें पढ़ते हैं।
- कुछ लोग 12 या 20 रकातें भी पढ़ते हैं।
तहज्जुद की नमाज़ की नियत कैसे बनते हैं?
नियत की मैंने दो रकअत नमाज़ तहज्जुद नफ़्ल अल्लाह ताआ़ला के वास्ते रुख मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ अल्लाहु अकबर
तहज्जुद की नमाज पढ़ने के फायदे
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अल्लाह के करीब होना (Getting Closer to Allah): रात के सन्नाटे में अकेले इबादत करना अल्लाह के साथ एक खास रिश्ता (rishta) बनाने का ज़रिया है।
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दुआओं की क़बूलीयत (Acceptance of Supplications): माना जाता है कि रात के आखिरी हिस्से में की गई दुआएं ज़्यादा क़बूल होती हैं
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मन की शांति (Peace of Mind): तहज्जुद तनाव (tanav) को कम करने और मन को शांति प्रदान करने में मदद करता है
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गुनाहों की माफ़ी (Forgiveness of Sins): कहा जाता है कि तहज्जुद गुनाहों की माफ़ी का कारण बनता है
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ईमान की मज़बूती (Strengthening of Faith): नियमित रूप से तहज्जुद पढ़ने से ईमान मज़बूत होता है