शुक्राना नमाज़ कब पढ़ना चाहिए- अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि वबरकातुह – शुक्राना नमाज़ कब पढ़ना चाहिए क्या आप जानते है की शुक्राना नमाज क्यों पढ़ते है अगर किसी को अल्लाह तआला को अपना शुक्रया अदा करना चाहता है तो आप इस नमाज को अदा कर सकते है आज के समय हर कोई अल्लाह का शुक्र मानता है और जाहिर सी बात है की हम इतनी अच्छी जिंदगी जी रहे है तो अल्लाह का हर वक़्त शुक्रियादा करना काफी जरूरी है शुक्राना नमाज़ कब पढ़ना चाहिए- Shukrana Namaz Kab Padhna Chahiye
कई बार अपनी जिंदगी में सबसे अच्छे मोकम हासिल कर लेते है और भूल जाते है की पहले हमारे पास कुछ नहीं था परन्तु अब अल्लाह के रेहमो करम से में काफी खुशहाल जिंदगी जी रहा है तो ऐसे में आपके साथ भी अगर ऐसा हुआ तो अल्लाह का शुक्र गुज़ारिश करे शुक्राना नमाज़ कब पढ़ना चाहिए- Shukrana Namaz Kab Padhna Chahiye
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शुक्राना नमाज़ कब पढ़ना चाहिए-
शुक्राना नमाज़ कब पढ़ना चाहिए- शुक्राना नमाज़ किसी भी समय पढ़ी जा सकती है, लेकिन अनवरत नमाज़ के बाद, असर के बाद, या मग़रिब के बाद पढ़ना सबसे अच्छा माना जाता है।
शुक्राना नमाज़ कब पढ़ना चाहिए- Shukrana Namaz Kab Padhna Chahiye – शुक्राना नमाज़, जिसे नमाज़-ए-शुक्र भी कहा जाता है, एक विशेष प्रकार की नमाज़ है जो किसी भी विशेष आशीर्वाद या ख़ुशी के लिए अल्लाह का शुक्रिया अदा करने के लिए पढ़ी जाती है। यह नमाज़ किसी भी समय पढ़ी जा सकती है, लेकिन कुछ खास मौके होते हैं जब इसे पढ़ना ज़्यादा मुस्तहब माना जाता है।
शुकराना नमाज में कितनी रकात होती है?
किस सलाह में 2 रकात होती है?
- फज्र की सलात: इसमें 2 रकात फर्ज और 2 रकात सुन्नत शामिल हैं।
- मगरिब की सलात: इसमें 3 रकात फर्ज और 2 रकात सुन्नत शामिल हैं।
- ईशा की सलात: इसमें 4 रकात फर्ज, 2 रकात सुन्नत और 3 रकात वितर शामिल हैं
शुक्र की नमाज कैसे अदा करें?
शुक्र की नमाज (शुकराना नमाज) एक नफल नमाज है जिसे किसी अहसान या نعمत के मिलने पर शुक्र अदा करने के लिए पढ़ा जाता है। यह नमाज 2 रकात की होती है और किसी भी वक्त पढ़ी जा सकती है।
नमाज में कितनी बातें फर्ज है?
नमाज़ के अंदर के 7 फर्ज
- नियत करना: नमाज़ शुरू करने से पहले, यह निश्चित करना कि आप किस नमाज़ (फجر, ज़ुहर, असर, मग़रिब या ईशा) पढ़ रहे हैं
- तकबीरे तहरीमा: “अल्लाहु अकबर” कहकर नमाज़ शुरू करना
- क़ियाम: खड़े होकर नमाज़ पढ़ना
- क़िरआत: कुरआन की तिलावत करना
- रुकू़: झुककर “सबहाना रब्बी अल-अ’ज़ीम” कहना
- सजदा: सिर झुकाकर “सबहाना रब्बी अल-अ’ला” कहना
- क़ा’दा: बैठकर “अत्तहियात” और “दुरूद” पढ़ना
नमाज़ के बाहर के 6 फर्ज
- पाक होना: नमाज़ से पहले वुज़ू या ग़ुस्ल करके पाक हो जाना
- सतर ढंकना: नमाज़ के लिए औरात और मर्द के लिए अपने सतर को ढंकना ज़रूरी है
- किबला की ओर रुख करना: नमाज़ काबा की दिशा में मुंह करके पढ़ी जाती है
- नमाज़ का वक़्त होना: नमाज़ निर्धारित समय पर ही पढ़ी जा सकती है
- नियत करना: नमाज़ शुरू करने से पहले निश्चित करना कि आप किस नमाज़ (फجر, ज़ुहर, असर, मग़रिब या ईशा) पढ़ रहे हैं
- सलाम फेरना: नमाज़ ख़त्म करने के बाद दाएं और बाएं तरफ़ सलाम फेरना