दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्र-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको दक्षिण चीन सागर के बारे में बताने जा रहा हूँ। हर क्षेत्र में चीन देश का दबदबा देखने को मिलता है. चीन को दुनिया में एक ताकतवर देश के तौर पर देखा जाता है. चीन ने अपने आपको हर तरह से मजबूत कर रखा है, चाहें वो उसकी सेना हो या फिर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसका रूतबा. हर तरह से चीन एक मजबूत देश के तौर पर ही नजर आता है. लेकिन चीन के अपने पड़ोसी देशों से काफी तरह से विवाद भी चल रहा हैं और इन विवादों में से एक विवाद है दक्षिण चीन सागर सीमा विवाद. इसके पहले चीन का भारत और चीन के बीच सिक्किम विवाद तथा भारत भूटान और चीन के बीच डोकलाम विवाद के बारे में सुन चुके है.
आखिर क्यों चीन और अन्य देश इस दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा पेश करते हैं और कहां है ये दक्षिण चीन सागर ? इन सभी सवालों के जवाब आपको आज हमारे इस लेख में मिलेंगे.
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कहा है दक्षिण चीन सागर
दक्षिण चीन सागर प्रशांत महासागर का हिस्सा है. दक्षिण चीन सागर में कई सारे एटोल, शॉल, सैंडबार, रीफ्स और 250 से अधिक छोटे-छोटे द्वीप हैं. इतना ही नहीं इनमें से कई सारी चीजे तो पानी के अंदर जलमग्न भी हो गई हैं. दक्षिण चीन सागर करीब 35 लाख वर्ग किलो मीटर जगह तक फैला हुआ है इस समुद्र के आस-पास चीन, ताइवान, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और वियतनाम देश हैं. ये सारे देश दक्षिण चीन सागर पर अपना हक बताते हैं.
दक्षिण चीन सागर का महत्व
दक्षिण चीन सागर में तेल और प्राकृतिक गैस, काफी मात्रा में मौजूद हैं. इसके अलावा दुनिया के मछली व्यापार की 10 प्रतिशत मछलियां भी इस सागर से पकड़ी जाती है. दक्षिण चीन सागर के माध्यम से कई ट्रिलियन की कीमत का सामान कई देशों के बीच आयात और निर्यात भी किया जाता है. यानी व्यापार की नजर से देखा जाए, तो अगर ये सागर किसी देश का हिस्सा होता है, तो उस देश को काफी फायदा होगा और दुनिया में उसका दबदबा और भी बढ़ जाएगा. यही कारण है कि इस सागर पर कई देश अपना दावा पेश कर रहे हैं. ये सागर हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच की कड़ी है. इतना ही नहीं ये सागर मध्य पूर्व, यूरोप और पूर्वी एशिया को शिपिंग लाइनों के साथ जोड़ता है. ऐसे में समुद्री जहाजों द्वारा किए जाने वाले आयात और निर्यात में ये सागर एक अहम भूमिका निभाता है और अगर इस सागर पर किसी देश का हक होता है, तो फिर किसी भी जहाज को इस सागर के गुजरने के लिए उस देश को शुल्क देना होगा
दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्र
दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्र-दक्षिण चीन सागर में स्प्राटल द्वीप समूह, प्राटा द्वीप समूह, मैकस्लेक्सफील्ड बैंक, स्कारबोरो शोल और पैरासेल नामक द्वीप है और इन सभी द्वीपों पर कई देशों की ओर से उनका दावा किया जाता है.
स्प्राटल द्वीप समूह
इस द्वीप समूह पर मलेशिया, ताइवान, चीन, फिलीपींस, ब्रुनेई और वियतनाम जैसे देश अपना हक बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं. इन देशों का कहना है कि ये द्वीप उनके देश का हिस्सा है. वहीं चीन द्वारा इस द्वीप पर कई निर्माण कार्य किए गए हैं और चीन ने इस द्वीप पर एक हवाई पट्टियां भी बना दी है
पैरासेल द्वीप
पैरासेल द्वीप पर इस वक्त चीन के नियंत्रण में है. वहीं इस द्वीप को ताइवान और वियतनाम ने भी इसको अपना हिस्सा बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं. इस द्वीप पर चीन ने कई निर्माण कार्य भी शुरू कर दिए हैं.
प्राटा द्वीप समूह
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी चीन इस द्वीप पर उनका हक होने का दावा करता है. वहीं ताइवान ने इस द्वीप पर कब्जा कर रखा है और इस द्वीप को अपना राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया हुआ है.
मैकक्लेस्फील्ड बैंक
मैकक्लेस्फील्ड बैंक को लेकर चीन और ताइवान के बीच में विवाद चल रहा है. जहां एक तरफ चीन इस पर अपना हक जताने का दावा करता है. वहीं ताइवान का भी कहना है कि मैकक्लेस्फील्ड बैंक पर उनके देश का हक है
स्कारबोरो शोल
स्कारबोरो शोल का आकार त्रिकोण है और ये भित्तियों और चट्टानों की श्रृंखला से बना हुआ है. स्कारबोरो शोल चीन, ताइवान और फिलीपींस के बीच विवादित क्षेत्र है. इस शोल पर इन तीनों देशों द्वारा दावा किया जाता है
क्या है संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून संधि यूएनसीएलओएस
दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्र-बहुत सारे देश दक्षिण चीन सागर के जलमार्ग पर अपना दावा करते हैं. ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सागर को लेकर बनाए गए कानून का पालन किया जाता है. इस कानून के तहत कोई भी देश अपने तट से 370 किलो मीटर की सीमा के भीतर क्षेत्रीय जल को नियंत्रित कर सकते हैं. इस सीमा के बाहर वाले जलमार्ग पर उनका दावा नहीं होगा और नियंत्रित जलमार्ग को विशेष आर्थिक क्षेत्र की श्रेणी में रखा जाता है. इसके अलावा जो भी जलमार्ग विशेष आर्थिक क्षेत्र की श्रेणी में नहीं आते हैं, वो अंतर्राष्ट्रीय जलमार्ग होंगे और हर किसी के द्वारा साझा किए जा सकेंगे और उनमें नेविगेशन के लिए कोई शुल्क किसी भी देश से नहीं लिया जाएगा
यूएनसीएलओएस के अनुसार कोई भी देश जलमग्न हो रखी भूमि पर अपना दावा पेश नहीं करेगा और उस पर कोई भी अवैध निर्माण नहीं किया जा सकेगा. वहीं चीन ने 1982 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में तय किए गए विशेष आर्थिक क्षेत्र के नियम को स्वीकार नहीं किया था. इसलिए वो जलमग्न भूमि को कृत्रिम द्वीप बनाने में लगा हुआ है. इसके अलावा फिलीपींस, वियतनाम और ताइवान जैसे देशों ने भी कुछ द्वीपों पर अपनी सैन्य तैनात कर रखी हैं.
चीन का क्या है दावा
चीन अपने प्राचीन समुद्री रिकॉर्ड को पेश करते हुए दावा करता आ रहा है कि इस सागर पर सन् 1947 से ही उनका कब्जा है. इतना ही नहीं चीन ‘नाइन-डैश लाइन’ के अंदर आने वाले दक्षिण चीन सागर के हिस्से को अपना बताता है. वहीं साल 1947 में चीन ने 11 डैश के माध्यम से तैयार किए गए नक्शे से दावा किया था, कि इस नक्शे के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र पर पहले से ही चीन का कब्जा है. वहीं साल 1950 के आसपास टोंकिन की खाड़ी को 11 डैश से चीन ने निकाल दिया था, जिसके बाद ये नाइन-डैश लाइन बन गई. वहीं अगर चीन के इस ऐतिहासिक दावे को सही मान लिया जाए, तो इस सागर का 95 प्रतिशत क्षेत्रफल उसके पास चला जाएगा. जिससे की उसकी आर्थिक हालत दुनिया में और भी ज्यादा मजबूत हो जाएगी. वहीं अंतरराष्ट्रीय अदालत ने चीन द्वारा ‘नाइन-डैश लाइन’ के आधार पर जो उसका दावा दक्षिण चीन सागर पर किया जा रहा है, उसे सही नहीं माना है
दक्षिण चीन सागर मसले में अमेरिका की भूमिकी
दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्र-अमेरिका की भी दक्षिण चीन सागर में मौजूदा तेल और अन्य प्राकृतिक चीजों और सुरक्षा के लिहाज से इस सागर पर नजर है. इसलिए अमेरिका इस सागर को अंतरराष्ट्रीय जल मानता है और संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून के तहत इस सागर पर नेविगेशन करना नि: शुल्क मानता है. वहीं जापान, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया की सीमा दक्षिण चीन सागर से नहीं लगती है, मगर फिर भी इन देशों ने इस सागर पर अपनी नजर रखी हुई है.
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