Saturday, September 21, 2024
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कहानीकार अमरकान्त का जीवन परिचय Amarkant Biography In Hindi





अमरकान्त का जीवन परिचय-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है। में आज आपको अमरकान्त के बारे में बताने जा रहा हु। अमरकान्त  का जन्म 1 जुलाई, 1925 को नगरा गाँव, तहसील रसड़ा, बलिया ज़िला (उत्तर प्रदेश) के एक कायस्थ परिवार में हुआ था।

अमरकान्त का जीवन परिचय-इनके पिता का नाम सीताराम वर्मा व माता का नाम अनंती देवी था। पहले अमरकांत का नाम ‘श्रीराम’ रखा गया था। इनके खानदान में लोग अपने नाम के साथ ‘लाल’ लगाते थे। अत: अमरकांत का भी नाम ‘श्रीराम लाल’ हो गया। बचपन में ही किसी साधु-महात्मा द्वारा अमरकांत का एक और नाम ‘अमरनाथ’ रखा गया था। यह नाम अधिक प्रचलित तो नहीं हुआ, किंतु स्वयं श्रीराम लाल को इस नाम के प्रति आसक्ति हो गयी। इसलिए उन्होंने कुछ परिवर्तन करके अपना नाम ‘अमरकांत’ रख लिया। उनकी साहित्यिक कृतियाँ भी इसी नाम से प्रसिद्ध हुईं। अपने नामकरण की चर्चा करते हुए स्वयं अमरकांत ने लिखा है

अमरकान्त का जीवन परिचय-मेरे खानदान के लोग अपने नाम के साथ ‘लाल’ लगाते थे। मेरा नाम भी श्रीराम लाल ही था। लेकिन जब हम लोग बलिया शहर में रहने लगे तो चार-पाँच वर्ष बाद वहाँ अनेक कायस्थ परिवारों में ‘लाल’ के स्थान पर ‘वर्मा’ जोड़ दिया गया और मेरा नाम भी ‘श्रीराम वर्मा’ हो गया।

अमरकान्त का परिवार |

अमरकांत जी के परिवार के लोग मध्यम कोटि के काश्तकार थे। इनके बाबा गोपाल लाल मुहर्रिर थे। पिता सीताराम वर्मा ने इलाहाबाद में रहकर पढ़ाई की थी। यहीं की कायस्थ पाठशाला से उन्होंने इन्टरमीडिएट किया था। फिर उन्होंने मुख्तारी की परीक्षा पास की और बलिया कचहरी में प्रैक्टिस करने लगे थे। अमरकांत जी के पिताजी का सनातन धर्म में गहरा विश्वास था किन्तु वे कर्मकांडोंं व धार्मिक रूढ़ियों में विश्वास नहीं करते थे। उनके आराध्य देवता थे राम और शिव। वे उर्दू और फ़ारसी के ज्ञाता थे। उन्हें हिन्दी का कामचलाऊ ज्ञान था। अमरकांत की एक बड़ी बहन गायत्री थीं, जो अमरकांत के बचपन में ही बीमारी से मर गई थींं। अमरकांत को लेकर परिवार में सात भाई और एक बहन थी। जिन्हें पिता सीताराम वर्मा ने योग्य तरीके से पढ़ाया लिखाया था।




अमरकान्त की  शिक्षा |

अमरकान्त का जीवन परिचय-अमरकांत जी का ‘नगरा’ के प्राइमरी स्कूल में ही नाम लिखाया गया था। कुछ दिनों के बाद उनका परिवार बलिया शहर आ गया। यहाँ के तहसीली स्कूल में अमरकांत का नाम कक्षा ‘एक’ में लिखा दिया गया। यहाँ पर वे कक्षा ‘दो’ तक ही पढ़ पाये। बाद में उनका नाम ‘गवर्नमेन्ट हाई स्कूल’ में कक्षा ‘तीन’ में लिखाया लिया गया। यहाँ के प्रधानाध्यापक महावीर प्रसाद जी थे। सन 1938-1939 में अमरकांत कक्षा आठ में थे, और इसी समय उनके विद्यालय में हिन्दी के नए शिक्षक के रूप में बाबू गणेश प्रसाद का आगमन हुआ।

वे साहित्य के अच्छे जानकार थे और कभी-कभी निबंध की जगह कहानी लिखने को कहते थे। बच्चों को हस्तलिखित पत्रिका भी निकालने के लिए प्रेरित किया करते थे। सन 1946 में अमरकांत ने बलिया के ‘सतीशचन्द्र इन्टर कॉलेज’ से इन्टरमीडियेट की पढ़ाई पूरी की और बी.ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से करने लगे।

अमरकान्त का व्यावसायिक जीवन।

अमरकान्त का जीवन परिचय-बी.ए. पास करने के बाद अमरकांत ने पढ़ाई बंद कर नौकरी की तलाश शुरू कर दी। कोई सरकारी नौकरी करने के बदले उन्होंने पत्रकार बनने का निश्चय कर लिया था। उनके अंदर यह विश्वास बैठ गया था कि हिन्दी ही देश सेवा का पर्याय है। वैसे अमरकांत के मन में राजनीति के प्रति एक तरह का निराशा का भाव भी आ गया था। यह भी एक कारण था, जिसकी वजह से अमरकांत पत्रकारिता की तरफ़ मुडे। अमरकांत के चाचा उन दिनों आगरा में रहते थे। उन्हीं के प्रयास से दैनिक ‘सैनिक’ में अमरकांत को नौकरी मिल गयी।

अमरकान्त की सेवा कार्य।

प्रयाग विश्वविद्यालय’ से स्नातक करने के बाद अमरकांत ने निश्चय कर लिया था कि उन्हें हिन्दी साहित्य की सेवा करनी है। मन में पत्रकार बनने की इच्छा थी, और उन्होंने आगरा शहर से निकलने वाले दैनिक पत्र ‘सैनिक’ से अपनी नौकरी की अमरकान्त का जीवन परिचय  शुरूआत की। यहीं पर अमरकांत की मुलाकात विश्वनाथ भटेले से हुई, जो अमरकांत के साथ ‘सैनिक’ में ही कार्यरत थे। विश्वनाथ अमरकांत को अपने साथ आगरा के प्रगतिशील लेखक संघ की बैठक में ले जाने लगे। इन्हीं बैठकों में अमरकांत की मुलाकात डॉ. रामविलास शर्मा, राजेन्द्र यादव, रवी राजेन्द्र व रघुवंशी जैसे साहित्यकारों से हुई। अमरकांत ने अमरकान्त का जीवन परिचयअपनी पहली कहानी ‘इंटरव्यू’ इसी प्रगतिशील लेखक संघ में सुनायी थी, जिसे सभी लोगों ने सराहा। अमरकान्त का जीवन परिचय-




अमरकान्त का आर्थिक समस्या।

अमरकांत जी का अधिकांश समय साहित्यिक गतिविधियों और मित्रों के बीच ही बीतता था। वे एक लापरवाही भरी ज़िंदगी जी रहे थे। उन्हें किसी बात की कोई विशेष चिंता भी नहीं थी। लेकिन उनके चाचा साधुशरण वर्मा को यह बात पसंद नहीं आयी। वे अमरकांत के व्यवहार को लेकर चिंतित रहने लगे।

अमरकान्त का जीवन परिचय-उन्होंने घर वालों को अपनी चिंता से अवगत भी कराया। उन्होंने ही अमरकांत के पिता को सलाह दी की वे उसे आगरा से वापस बुला लें। तीन वर्ष तक आगरा में रहने के बाद अमरकांत इलाहाबाद आ गये। यहाँ आने के बाद अमरकांत ने यहाँ से निकलने वाले ‘अमृत पत्रिका’ में नौकरी पायी। किंतु यहाँ पर भी वेतन बड़ी मामूली था। यहाँ अमरकांत ने गहरी आर्थिक तंगी को महसूस किया। प्रेस में भी उनके साथ अच्छा बर्ताव नहीं हुआ। प्रेस की अपनी आर्थिक समस्याएँ और झगड़े थे। इसी बीच अमरकांत 1954 में हृदय रोग के शिकार हुए और उन्हें लखनऊ जाना पड़ा था।

अमरकान्त का संघर्ष के दिन।

अमरकांत अपने जीवन को निरर्थक समझने लगे। कहीं से कोई भी उम्मीद नजर नहीं आती थी। उनके दिन बड़े ही संघर्षपूर्ण व्यतीत हो रहे थे, किंतु अंत में उन्होंने निश्चय किया कि वे अपना लेखन कार्य जारी रखेंगे। जितना हो सकेगा उतना वे लेखन करेंगे। लेखन ही उनके जीवन का आधार रहा और उन्होंने किया भी यही। लखनऊ में रहते हुए अमरकांत गहरे मानसिक द्वन्द्व से ग्रस्त रहे। उन्हें जीवन से एक तरह से निराशा हो गयी थी।

Amarkant Biography In Hindi उन्हें अब यह लगने लगा कि अब वे किसी काम के नहीं रह गये। साथ ही साथ उन्हें इस बात का पछतावा अमरकान्त का जीवन परिचय भी हुआ कि उन्होंने ज़िंदगी का बहुत सारा समय यूँ ही बर्बाद कर दिया। अब वे अपना एक मिनट भी बर्बाद नहीं करना चाहते थे और लिखने के प्रण के साथ वे इस काम में जुट गये। आय का कोई निश्चित साधन न होने के कारण उनकी माली हालत कोई बहुत अच्छी नहीं रही। स्वतंत्र लेखन के द्वारा ही वे जो अर्जित कर सके उसे ही आजीविका का साधन बनाया। अमरकांत ने अपना जीवन इसी तरह व्यतीत किया।

अमरकान्त का व्यक्तित्व।

अमरकान्त का जीवन परिचयअमरकांत जी के व्यक्तित्व के निर्माण में उनके व्यक्तिगत संघर्ष की अहम भूमिका थी। उन्होंने कभी भी परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेके। हर हाल में वे एक आम व्यक्ति की तरह संघर्ष करते रहे, शोषण का शिकार होते रहे और पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन के लिए हर तरह के कष्ट को गले लगाते रहे। उनका यही भोगा हुआ यथार्थ उनके कथा साहित्य में अपनी पूरी समग्रता के साथ प्रस्तुत हुआ है। उनके व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्ण बात थी ‘ईमानदारी`। अमरकांत ने हमेशा अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ किया।

Amarkant Biography In Hindi  वे कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादन कार्य से जुड़े रहे।अमरकान्त का जीवन परिच  इसके बावजूद वे ‘अवसरवादी` नहीं बने। वे अपने अंदर एक सीमा के निर्धारण के साथ जीते रहे। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने स्वयं भी कभी उस सीमा का उल्लंघन नहीं किया। अमरकांत बाहर से जितने सुलझे व सहज लगते हैं |

वास्तव में अंदर से वे उतने ही उलझे और परेशान रहते। कारण यह था कि वे अपनी परेशानियों को अपने तक रखना पसंद करते थे और बाहर उसकी छाया भी नहीं पड़ने देना चाहते थे। पर यह प्राय: हो नहीं पाता था। उनके मित्र उनकी परिस्थितियों से अच्छी तरह परिचित थे। लेकिन वे यह भी जानते थे कि यह आदमी मर्यादाओं में रहने वाला है। अपने लाभ के लिए अमरकांत दूसरे का नुकसान नहीं कर सकते थे।





अमरकान्त का जीवन परिचय अमरकांत सदैव ही एक संकोची व्यक्ति रहे। आम जनता से जुड़ी हुई कोई भी बात उन्हें साधारण नहीं लगती थी। देश में होने वाली हर महत्त्वपूर्ण घटना पर उनकी बारीक नज़र रहती थी। वे खुद यह कभी भी पसंद नहीं करते थे कि वे चर्चा के केन्द्र में रहें। इन सब बातों में उन्हें एक अलग तरह का संकोच होता था।

सामान्य जनता, उससे जुड़ी हुई परेशानियाँ,  जीवन और साहित्य इन सब में अमरकांत की गहरी संसक्ति थी। अमरकांत न केवल एक अच्छे साहित्यकार हैं, बल्कि उतने ही अच्छे व्यक्ति भी हैं। उनका व्यक्तित्व बिना किसी बनावट के एकदम साफ़ और सहज है। Amarkant Biography In Hindi

अमरकान्त की कृतियाँ।

‘अमरकांत की संपूर्ण कहानियाँ’ दो भागों में प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘जाँच और बच्चे’ कहानी संग्रह में उनकी नवीनत रचनाये हैं। अमरकांत के संपूर्ण कथा साहित्य को निम्नलिखित रूपों में बाँटा जा सकता है।

कहानी संग्रह

  1. ज़िंदगी और जोक
  2. देश के लोग
  3. मौत का नगर
  4. मित्र मिलन
  5. कुहासा
  6. तूफान
  7. कला प्रेमी
  8. प्रतिनिधि कहानियाँ
उपन्यास

  1.  सूखा पत्ता
  2. आकाश पक्षी
  3.  काले उजले दिन
  4.         कँटीली राह के फूल
  5.          ग्राम सेविका
  6.  सुखजीवी
  7. बीच की दीवार
  8.        सुन्नर पांडे की पतोह
प्रकीर्ण साहित्य

  1.   कुछ यादें कुछ बातें
  2. नेउर भाई
  3. बानर सेना
  4.  खूँटा में दाल है
  5.  सुग्गी चाची का गाँव
  6.  झगरूलाल का फैसला
  7.  एक स्त्री का सफर

अमरकान्त की पुरस्कार एवं सम्मान |

  1. साहित्य अकादमी सम्मान- 2007
  2. ज्ञानपीठ पुरस्कार- 2009
  3. व्यास सम्मान- 2009
  4. सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार
  5. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार
  6. मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार
  7. यशपाल पुरस्कार
  8. जन-संस्कृति सम्मान
  9. मध्य प्रदेशका ‘अमरकांत कीर्ति` सम्मान
  10. इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ के हिंदी विभाग का सम्मान।

अमरकान्त का निधन |

17 फ़रवरी 2014, सोमवार यशस्वी साहित्यकार अमरकांत का देहांत हुआ

हिन्दी के यशस्वी कथाकार और प्रेमचंद की परंपरा के महान् रचनाकार अमरकांत का सोमवार 17 फ़रवरी, 2014 को सुबह दस बजे निधन हो गया। अशोक नगर स्थित पंचपुष्प अपार्टमेंट के अपने आवास में स्नान करते वक्त फिसलने के तुरंत बाद उनकी सांसें थम गईं। वह 88 वर्ष के थे। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार अपराह्न 11 बजे रसूलाबाद घाट पर किया गया। वह अपने पीछे बेटे-बेटियों और और नाती-पोतों का भरा पूरा परिवार छोड़कर गए हैं।

अमरकान्त का जीवन परिचयअमरकांत के निधन से साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़े लोग स्तब्ध रह गए। हिन्दी साहित्यकार असग़र वजाहत ने अमरकांत के निधन पर शोक जताते हुए कहा, “अमरकांत अपनी पीढ़ी के एक ऐसे कहानीकार थे जिनसे उस समय के युवा कहानीकारों ने बहुत सीखा। वो कहानीकारों में इस रूप में विशेष माने जाएंगे कि एक पूरी पीढ़ी को उन्होंने सिखाया-बताया।” अमरकांत को साल 2007 में साहित्य अकादमी और साल 2009 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था।




FAQ

Q. अमरकांत की पत्नी का क्या नाम है?

Ans. अमरकांत पत्नी का नाम निर्मला

Q. Samarkant के पुत्र का क्या नाम था?

Ans.अमरकांत अपने पीछे दो पुत्र अरुण वर्धन, अरविंद बिंदु व पुत्री संध्या का भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं

Q. अमरकांत की मौत कब हुई थी?

Ans. 17 फ़रवरी 2014



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