Wednesday, November 29, 2023
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उत्तरकाशी टनल हादसा रहस्यमय और चौंकाने वाली घटना का खुलासा

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उत्तरकाशी टनल हादसा रहस्यमय

उत्तरकाशी टनल हादसा रहस्यमय –उत्तराखंड राज्य आप लोग तो सभी जानते होंगे जो देवों की नगरी कही जाती हैं और देखा जाये तो उत्तराखंड ज्यादातर पूरा पहाडों से घिरा हुआ हैं और यह पहले उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था सन् 2000 में अलग होकर इसका नाम उत्तराखंड पड़ गया अगर बात किया जाए तो किसी न किसी विषय पर हर साल यह चर्चा पर बना ही रहता हैं कभी बाढ़ आती हैं तो कभी भूकंप से कुछ गिर जाता हैं

या अपनी नायाब प्रकृति का सौंदर्य के रूप में भी यह चर्चा का विषय बना रहता हैं किंतु इस बार जो चर्चा का विषय बना हुआ हैं वह कुछ अलग प्रकार से हैं यहाँ पर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जगह पर एक टनल का निर्माण किया जा रहा हैं जहाँ पर उस टनल को धसने की न्यूज़ मिले हैं जिससे हमारे 14 मजदूर उस टनल के अंदर फंसे हुए हैं काफी दिनों से जबकि रेस्क्यू टीम अपना काम लगातार दिन-रात  करके कर रही हैं और उन्हें निकालने की कोशिश मे लगे हुए हैं। आगे हमारे लेख में आपको इसके बारे में विस्तार पूर्वक जनकारी मिलेगी।

उत्तरकाशी टनल कहाँ पर स्थित हैं

उत्तरकाशी टनल हादसा रहस्यमय –उत्तरकाशी टनल उत्तराखंड राज्य में स्थित हैं यह एक खास प्रकार का टनल बनाया जा रहा है। यह टनल  सिल्कियारा- बारकोट में बनाया जा रहा हैं। और यही हिस्सा ढह गया हैं ।यहाँ पर इस टनल के माध्यम से चार धाम की यात्रा आसानी पूर्वक की जा सकती हैं उत्तराखंड का यह टनल पहाडों के नीचे से एक सुरंग के माध्यम से तकरीबन 4.5 किलोमीटर का यह टनल बनाया जा रहा हैं और इस टनल बन जाने के बाद लोगों को आने जाने में काफी सुविधा होंगी।   इस सुरंग का निर्माण राष्ट्रीय राजमार्ग यमुनोत्री के पास किया जा रहा है या टनल चर्चा का विषय तब बना जब यहाँ पर मजदूर लोग टनल का निर्माण दीन कार्य कर रहे थे अंदर जाकर तब उसी समय एकदम से टनल पूरी तरह से ढह गई और टनल धसने से हमारे 41 मजदूर के आसपास कम से कम 200 मीटर की दूरी पर मजदूर फँसे हुए हैं। उत्तराखंड सरकार की तरफ़ से इन मजदूरों को निकालने की पूरी तरह से कोशिश की जा रही हैं।

यह कौन सी परियोजनाओं के तहत बनाया जा रहा हैं?

महामार्ग परियोजनाओं के तहत इस टनल का निर्माण किया जा रहा था और टनल ढह जाने के कारण इसका काम बाधित हो गया हैं और अब देखा जाता हैं कि यह टनल अपने निर्धारित समय पर पूरी हो पाती हैं या नहीं ।

उत्तरकाशी टनल ढहने का संभावित कारण 

टनल का अभी संभावित कारण कुछ भी पता नहीं चला हैं मगर टनल का ढहने का कारण यह हो सकता हैं, कि जब टनल का निर्माण किया जा रहा हो तो उसमें एक कमजोर चट्टान जो रह गई हो वह बाद में गिरने की वजह से टनल को पूरी तरह से ढहा दिया हैं।

उत्तरकाशी टनल की विशेषताएं और लाभ

टनल की मुख्य विशेषताएं यह है कि वह 4.5 किलोमीटर लम्बी और चौडाई में भी काफी बड़ी हैं। जिससे आसानी से अपने वाहनों से आया जा सकता हैं।

टनल बन जाने के बाद चार धामों की यात्रा बिना किसी रुकावट के आसानी से की जा सकती हैं।

उत्तरकाशी में रहने वाले लोगों के लिए भी यह टनल लाभदायक सिद्ध होगा क्योंकि लंबे रास्ते से अच्छा हैं कि वह एक टनल के नीचे से निकलकर अपनी यात्रा को कम समय में पूर्ण हो जायेगी।

इस टनल के निर्माण से बहुत से लोगों को रोजगार भी प्राप्त हुआ जिससे लोगों की दैनिक जिन्दगी अच्छी तरीके से चला सके।

सुरंग के निर्माण के महत्वपूर्ण पहलू क्या हैं

उत्तरकाशी टनल हादसा रहस्यमय –ड्रिल और ब्लास्ट विधि – जो टनल का निर्माण किया जा रहा हैं उसमें ड्रिल और ब्लास्ट विधि के माध्यम से सुरंग का निर्माण कार्य किया जा रहा हैं।

टनल बोरिंग मशीन – इस मशीन के भी माध्यम से टनल का निर्माण किया जा रहा हैं और यह काफी महंगी तकनीक हैं।

टनल के अंदर जो 41 मजदूर फंसे वह कहांकहां से हैं

यह बताया जा रहा है कि टनल के अंदर जो 41 मजदूर फंसे हुए हैं वह ज्यादातर बिहार और उत्तर प्रदेश से हैं वही उस टनल के निर्माण में कार्य कर रहे थे और 41 मजदूर जो फंसे हुए हैं उनके बारे मे उत्तराखंड के CM हाल चाल पूछा करते हैं और वहाँ का दौरा भी कर चुके हैं।

निष्कर्ष

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बन रहे इस टनल के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन हमे ऊपर कर ही दिया था और अब आखिरी में यह कहना चाहेंगे की जो हमारे 41 मजदूर टनल में फंसे हुए हैं वह जल्दी से बाहर निकल आये और इस कार्य को फिर से चालू करके इस कार्य को पूर्ण कर दें और यह आने वाले समय में काफी लाभदायक लोगों के लिए सिद्ध होगा कक्योंकि लंबे रास्ते को कम करके कम समय में अपने destination पर पहुंचा जा सकता हैं।

FAQ

Q : उत्तरकाशी टनल कहाँ पर ढह गया हैं?

Ans : उत्तरकाशी में।

Q : उत्तरकाशी कहाँ पर स्थित हैं?

Ans : उत्तराखंड

Q : यह टनल (Uttarkashi) कितने किलोमीटर लंबी हैं?

Ans : 4.5 किलोमीटर हैं।

Q : उत्तराखंड के CM का क्या नाम हैं?

Ans : पुष्कर सिंह धामी।

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कर्नाटक में हिजाब विवाद चौंकाने वाली तथ्य और हल जानिए सबकुछ

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कर्नाटक में हिजाब विवाद चौंकाने वाली तथ्य

कर्नाटक में हिजाब विवाद चौंकाने वाली –आजकल कर्नाटक का माहौल हिजाब विवाद से तनावपूर्ण हो चुका है। हिजाब विवाद ने धीरे धीरे राजनीति के गलियारों में भी गर्मागर्मी का वातावरण बना दिया है। सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष एक दूसरे के समक्ष अपना अपना पक्ष रख रही है। दोस्तों अब ये मामला हाई कोर्ट तक जा चुका है। आइए इस आर्टिकल के माध्यम से जानते हैं आखिर क्या है ये हिजाब विवाद। साथ ही आपको ये भी बताएंगे कि हिजाब क्या है। तो  इस जानकारी के लिए भी आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

कर्नाटक हिजाब विवाद क्या है

दरअसल कर्नाटक में कुछ लोग मुस्लिम छात्राओं के कॉलेज में हिजाब पहन के जाने का विरोध कर रहे हैं जबकि कुछ का कहना है कि मुस्लिम छात्राओं का हिजाब पहनना वाजिब है। इसी को लेकर कर्नाटक में बहुत अधिक विवाद हो रहा है जोकि अब हाई कोर्ट तक पहुँच चूका है.

कर्नाटक हिजाब विवाद ताज़ा खबर

आपको बता दें कि कर्नाटक के एक कॉलेज में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने से शुरू हुआ विवाद अब सुप्रीमकोर्ट तक पहुँचने की फ़िराक में आ गया है. फिलहाल अभी मामला हाईकोर्ट में हैं. हाईकोर्ट में कल यानि गुरुवार को इस मामले में अंतरिम फैसला सुनाया गया था. जिसमें 3 जजों की बेंच ने यह कहा कि जब तक इस पर एक संतुष्टि से पूर्ण नतीजा नहीं निकलता है तब तक किसी भी स्कूल एवं कॉलेज में धार्मिक पहनावा नहीं पहना जायेगा. यानि कि हाईकोर्ट ने फिलहाल इस पर रोक लगा दी है. फिर इस फैसले के खिलाफ जाकर कुछ याचिकाकर्ताओं ने इस मामले को सुप्रीमकोर्ट में पहुंचा दिया है, इन याचिकर्ताओं में विपक्ष के नेता भी शामिल हैं. और वहां पर इसके खिलाफ सुनवाई की मांग की है. हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने इसकी सुनवाई करने से पहले ही यह कह दिया है कि इस पर सुनवाई तब होगी जब इस मामले में उनके दखल देने का सही वक्त आयेगा. इसका मतलब यह है कि अभी लोगों को हाई कोर्ट के फैसले को ही मानना होगा.

कर्नाटक में हिजाब विवाद चौंकाने वाली –हिजाब विवाद एक तरफ हाई कोर्ट में चल रहा है. लेकिन दूसरी ओर यह राजनिती का रूप भी ले रहा है. यह विवाद कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है. दरअसल बीते 2 दिनों में यह विवाद और भी ज्यादा बढ़ गया है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योकि कर्नाटक के तुमकुर में गर्ल्स एम्प्रेस गवर्नमेंट पीयू कॉलेज के बाहर कॉलेज की ही छात्राओं ने हिजाब विवाद के चलते विरोध प्रदर्शन जारी रखा था. जिसके बाद पुलिस ने इसके खिलाफ की गई एफआईआर को स्वीकार कर लिया और उन महिलाओं पर सीआरपीसी की धारा 144 के तहत जारी जो नियम लागू किये गये थे उसका उल्लंघन करने के आरोप में धारा 143, 145, 188 और 149 के तहत कार्यवाही करते हुए केस कर दिया गया है। इसी के चलते 2 दिनों से लेकर अब तक भी यह विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. पुलिस तहसीलदार सभी लोगों को समझाने एवं उन्हें जानकारी देने की कोशिश में जूटे हुए हैं लेकिन यह विरोध बढ़ता जा रहा है

इसी बीच इसी कॉलेज में पढ़ाने वाली एक मुस्लिम महिला ने भी कॉलेज के प्रिंसिपल को अपना इस्तीफा दे दिया है. उनका कहना है कि वे बीते 3 साल से इस कॉलेज में पढ़ा रही है लेकिन इससे पहले उन्हें कभी भी हिजाब न पहनकर बच्चों को पढ़ाने के लिए नहीं कहा गया था. किन्तु अब उन्हें ऐसा कहा गया है, ये पूरी तरह से गलत है. अब दिखना यह होगा कि यह विवाद कब और किस फैसले के साथ ख़त्म होता है.

हिजाब विवाद पर कोर्ट का फैसला

लगभग 20 दिनों से चल रहे हिजाब विवाद पर आज हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है कि मुस्लिम छात्राओं द्वारा की गई याचिका जोकि यह थी कि हिजाब धर्म का के अनिवार्य हिस्सा है को ख़ारिज कर दिया गया है. जी हां कोर्ट ने कहा है कि हिजाब मुस्लिम धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई पहले ही पूरी कर ली थी, किन्तु अब 3 जजों की पीठ ने मिलकर यह फैसला सुनाया है. इस फैसले के बाद भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन पर गंदी राजनीति करने का आरोप भी लगाया है.

हिजाब का मतलब क्या होता है

इस्लाम में हिजाब का अभिप्राय परदे से है। जानकारों की मानें तो कुरान में हिजाब कपड़े के तौर पर नहीं बल्कि परदे के तौर पर बताया गया है। औरत और मर्द दोनो को ढीले और शालीन कपड़े पहनने के लिए कहा गया है। अक्सर हिजाब और नकाब को एक ही समझा जाता है। पर नकाब चेहरे को ढांकने का कपड़ा होता है। हालाकि इस्लाम में चेहरे को ढांकने की बात नही की गई है। इसमें सर और बाल छुपाने का ज़िक्र आता है। कट्टरपंथी देशों में अक्सर महिलाओं को नकाब डालने के लिए कहा जाता है।

बुर्का क्या है

कर्नाटक में हिजाब विवाद चौंकाने वाली –भारत जैसे देशों में अक्सर मुस्लिम महिलाओं को बुर्के में देखा जा सकता है। बुर्का नकाब का ही एक अलग प्रारूप है। बुर्के में आंखे भी ढंकी होती हैं। आम तौर पर इसका रंग काला होता है। आपको बता दे कि एक बुर्के की बनावट लबादे की तरह होती है। इसे एक ही रंग का रखा जाता है जिससे उस महिला से कोई गैर आकर्षित न हो पाए।

हिजाब विवाद कैसे शुरू हुआ

हिजाब विवाद का जन्म कर्नाटक के उडुपी में हुआ था। इसकी शुरुआत पिछले साल दिसंबर में हुई थी।उडुपी के एक महाविद्यालय में इस घटना की शुरुआत हुई थी। यहां छात्राएं ड्रेसकोड को फॉलो न करके हिजाब में कॉलेज आई थीं। कर्नाटक में ऐसी घटनाएं कुंडापुर, बिंदूर जैसे इलाकों में भी देखने को मिली है। मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहन कर क्लासेज में प्रवेश नहीं मिला जिसके बाद ये सारा विवाद तूल पकड़ने लगा।

जब मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहन कर कॉलेज आने लगीं तो हिंदू छात्राएं भगवा स्कार्फ लिए कॉलेज आने लगे। ऐसी घटना के बाद संस्थानों को सख्त रवैया अपनाना पड़ा। संस्थानों ने हिजाब और स्कार्फ दोनों पर ही अपनी असहमति जताई और इन दोनो पर रोक लगा दिया। यहां स्थिति गंभीर होने पर पुलिस की मदद ली गई।

हिजाब विवाद राजनीति की ओर रुख

कर्नाटक में हिजाब विवाद चौंकाने वाली इस पूरे प्रकरण को हिंदू मुस्लिम विवाद का रंग दिया गया है। विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने छात्राओं के हिजाब पहनने के मंतव्य का समर्थन किया है। बीजेपी पर सांप्रदियकता फैलाने का आरोप भी लगाया गया है। उनका मानना है कि हिजाब की आड़ में बेटियों के शिक्षा के अधिकार को खतरे में डाला गया है। विपक्ष इसे लड़कियों के मौलिक अधिकारों पर संकट भी बता रहा है। वहीं सत्ताधारी बीजेपी का कहना है कि उनकी पार्टी शिक्षा का तालिबानीकरण नहीं होने देगी। उनका मानना है कि स्कूल कॉलेज में ऐसी चीजों का होना ज़रूरी नही। यहां विद्यार्थियों को पढ़ाई लिखाई पर भी केंद्रित होना चाहिए।

इस तरह से ये विवाद काफी अधिक बढ़ गया है जिसके चलते यह मामला हाई कोर्ट तक पहुँच चूका है. अब देखना यह होगा कि यह विवाद किस नतीजे पर पहुँच कर ख़त्म होता है.

FAQ

Q : हिजाब पर विवाद किस राज्य में शुरू हुआ?

Ans : कर्नाटक

Q : हिजाब विवाद कब शुरू हुआ?

Ans : दिसंबर, 2021

Q : अभी मामले की मौजूदा स्थिति क्या है?

Ans : मामला हाई कोर्ट में है।

Q : क्या हिजाब और बुर्का एक ही हैं?

Ans : जी नहीं।

Q : क्या हिजाब और नकाब एक ही हैं?

Ans : जी नहीं।

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जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय | Jagadguru Rambhadracharya of Biography

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जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय –जगद्गुरु रामानंदाचार्य, जिन्हें स्वामी राम भद्राचार्य के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख हिंदू आध्यात्मिक नेता, शिक्षक, संस्कृत विद्वान, बहुभाषाविद्, लेखक, टिप्पणीकार, दार्शनिक, संगीतकार, गायक और नाटककार हैं। राम भद्राचार्य भारत के चार प्रमुख जगद्गुरुओं में से एक हैं और उन्होंने 1988 से यह उपाधि धारण की है। वह संत तुलसीदास के नाम पर चित्रकूट में एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान, तुलसी पीठ के संस्थापक और प्रमुख हैं। राम भद्राचार्य चित्रकूट में विकलांग विश्वविद्यालय (विकलांग विश्वविद्यालय) के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति भी हैं। यह विश्वविद्यालय विशेष रूप से दिव्यांग छात्रों के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रम प्रदान करता है। राम भद्राचार्य दो महीने की उम्र से ही दृष्टिबाधित हो गए थे और सत्रह साल की उम्र तक उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। उन्होंने सीखने या लिखने के लिए कभी ब्रेल या किसी अन्य सहायता का उपयोग नहीं किया।

बिंदु(Points) जानकारी (Information)
नाम (Name) जगद्गुरु रामानंदाचार्य
वास्तविक नाम (Real Name) गिरिधर मिश्रा
जन्म (Birth) 14 जनवरी 1950
जन्म स्थान (Birth Place) जौनपुर जिले (उत्तरप्रदेश)
कार्यक्षेत्र (Profession) जगद्गुरु
पिता का नाम (Father Name) पंडित राजदेव मिश्रा
माता का नाम (Mother Name) शचीदेवी मिश्रा
प्रसिद्दी कारण (Known For) तुलसीपीठ के संस्थापक

 

राम भद्राचार्य संस्कृत, हिंदी, अवधी और मैथिली समेत 22 भाषाएं बोलने में पारंगत हैं। वह चार महाकाव्य कविताओं, 100 से अधिक पुस्तकों और 50 पत्रों के संग्रह के साथ एक विपुल लेखक हैं। संस्कृत व्याकरण, तर्कशास्त्र और वेदांत जैसे विविध क्षेत्रों में अपने ज्ञान के लिए व्यापक रूप से पहचाने जाने वाले राम भद्राचार्य ने रामचरितमानस के एक महत्वपूर्ण संस्करण की संपादकीय प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्हें रामायण और भागवत के प्रमुख कथावाचक के रूप में सम्मानित किया जाता है। उनके कथा कार्यक्रम नियमित रूप से भारत के विभिन्न शहरों और अन्य देशों में आयोजित किए जाते हैं, जिन्हें शुभ टीवी, संस्कार टीवी और सनातन टीवी जैसे टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित किया जाता है। राम भद्राचार्य विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के नेता भी हैं।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म और प्रारंभिक जीवन

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय –जगद्गुरु राम भद्राचार्य का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के शांतिखुर्द गाँव में हुआ था। उनका जन्म 14 जनवरी 1950 को मकर संक्रांति के शुभ दिन पर हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित राजदेव मिश्र और माता शचीदेवी मिश्र थीं। राम भद्राचार्य की चाची, जिन्हें उनकी चाची प्यार से “गिरिधर” कहती थीं, संत मीरा बाई की भक्त थीं, जो अक्सर अपनी रचनाओं में भगवान कृष्ण को संबोधित करने के लिए “गिरिधर” नाम का इस्तेमाल करती थीं।

गिरिधर ने दो महीने की उम्र में, ठीक 24 मार्च, 1950 को ट्रेकोमा संक्रमण के कारण अपनी आँखों की रोशनी खो दी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके दादाजी ने की थी, क्योंकि उनके पिता बंबई में कार्यरत थे। दोपहर के दौरान, गिरिधर के दादाजी रामायण और महाभारत जैसे हिंदू महाकाव्यों के प्रसंग सुनाते थे, और विश्वसागर, सुखसागर, प्रेमसागर और ब्रजविलास जैसे भक्ति कार्यों में संलग्न रहते थे।

तीन साल की उम्र में, गिरिधर ने अपनी प्रारंभिक कविता अवधी में लिखी, जो हिंदी की एक बोली है। उन्होंने यह टुकड़ा अपने दादाजी को सुनाया, जिसमें पालक माँ यशोदा को कृष्ण की रक्षा करते हुए और कृष्ण को नुकसान से बचाने के लिए एक गोपी (दूधिया) के साथ संघर्ष में शामिल करते हुए चित्रित किया गया था।

पांच साल की उम्र में, गिरिधर ने अपने पड़ोसी पंडित मुरलीधर मिश्रा की सहायता से, लगभग 15 दिनों में पूरी भगवद गीता को याद कर लिया, जिसमें अध्याय और श्लोक संख्या के साथ लगभग 700 श्लोक शामिल थे। 1955 में कृष्ण जन्माष्टमी पर उन्होंने संपूर्ण भगवत गीता का पाठ किया। 52 वर्षों की अवधि के बाद, 30 नवंबर, 2007 को, गिरिधर ने मूल संस्कृत छंदों और हिंदी टिप्पणियों के साथ नई दिल्ली में भगवद गीता का पहला ब्रेल संस्करण जारी किया। जब गिरिधर सात साल के थे, तब उन्होंने अपने दादा की मदद से 60 दिनों में तुलसीदास कृत संपूर्ण रामचरितमानस को याद कर लिया, जिसमें लगभग 10,900 श्लोक थे। 1957 में राम नवमी के दिन उन्होंने व्रत रखकर सम्पूर्ण महाकाव्य का पाठ किया। इसके बाद, गिरिधर ने वेदों, उपनिषदों, संस्कृत व्याकरण, भागवत पुराण और तुलसीदास के सभी कार्यों के साथ-साथ संस्कृत और भारतीय साहित्य में कई अन्य कार्यों को याद किया।

जगद्गुरु रामानंदाचार्य की शिक्षा

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय –सत्रह वर्ष की आयु तक, गिरिधर ने कोई औपचारिक स्कूली शिक्षा नहीं ली, फिर भी उन्होंने एक बच्चे की भूमिका निभाते हुए, सुनकर विभिन्न साहित्यिक कार्यों का ज्ञान प्राप्त किया। जबकि उनके परिवार की इच्छा थी कि वे एक कहानीकार बनें, गिरिधर के मन में औपचारिक शिक्षा की इच्छा थी। उनके पिता द्वारा वाराणसी में शिक्षा के विकल्प तलाशने और उन्हें दृष्टिबाधित छात्रों के लिए एक विशेष स्कूल में भेजने पर विचार करने के बावजूद, गिरिधर की माँ ने ऐसे स्कूलों में दृष्टिबाधित बच्चों के इलाज के बारे में आपत्ति व्यक्त की।

7 जुलाई 1967 को गिरिधर ने जौनपुर के निकट अपने गांव सुजानगंज के निकट आदर्श गौरीशंकर संस्कृत महाविद्यालय में दाखिला लिया। उन्होंने संस्कृत व्याकरण, हिंदी, अंग्रेजी, गणित, इतिहास और भूगोल में अध्ययन किया। अपनी आत्मकथा में इस दिन का जिक्र करते हुए वे इसे अपने जीवन की “स्वर्णिम यात्रा” की शुरुआत मानते हैं। विशेष रूप से, गिरिधर के पास केवल एक बार सुनने के बाद सामग्री को याद करने की असाधारण क्षमता थी, और उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए कभी भी ब्रेल या किसी अन्य भाषा की सहायता पर भरोसा नहीं किया।

तीन महीने की अवधि के भीतर, उन्होंने संपूर्ण लघुसिद्धांतकौमुदी को स्मृति में रख लिया और इसे अपने अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया। गिरिधर ने तीन वर्षों तक लगातार अपनी कक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और संस्कृत (इंटरमीडिएट) परीक्षा में विशिष्टता हासिल की।

जब गिरिधर ग्यारह वर्ष के थे, तब उन्हें सपरिवार बारात में भाग लेने से रोक दिया गया। उनके परिवार का मानना ​​था कि उनकी उपस्थिति शादी में दुर्भाग्य लाएगी। इस घटना का गिरिधर पर गहरा प्रभाव पड़ा। अपनी आत्मकथा में इस पर विचार करते हुए उन्होंने कहा है, “मैं वही व्यक्ति हूं जिसका किसी शादी की पार्टी में साथ जाना अशुभ माना जाता था। मैं वही व्यक्ति हूं जो अब सबसे बड़ी शादी पार्टियों या शुभ आयोजनों का उद्घाटन करता है। यह सब क्या है? यह क्या है?” यह सब परमात्मा की कृपा के कारण है, जो घास के तिनके को वज्र में और वज्र को घास के तिनके में बदल देता है।”

1971 में, गिरिधर संस्कृत व्याकरण में उन्नत अध्ययन के लिए वाराणसी में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में शामिल हो गए। उन्होंने 1974 में शास्त्री (बैचलर ऑफ आर्ट्स) की डिग्री के लिए अंतिम परीक्षा में टॉप किया और बाद में आचार्य (मास्टर ऑफ आर्ट्स) की डिग्री के लिए उसी संस्थान में दाखिला लिया। अपनी मास्टर डिग्री की पढ़ाई के दौरान, उन्होंने अखिल भारतीय संस्कृत सम्मेलन में विभिन्न राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए नई दिल्ली का दौरा किया। वहां उन्होंने व्याकरण, सांख्य, न्याय, वेदांत और संस्कृत अंताक्षरी जैसी प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और पांच स्वर्ण पदक जीते। भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें उत्तर प्रदेश के लिए चलवैजयंती ट्रॉफी से सम्मानित किया। संयुक्त राज्य अमेरिका में गिरिधर की आंखों के इलाज को प्रायोजित करने की गांधी की पेशकश के बावजूद, उन्होंने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

1976 में, गिरिधर ने व्याकरण में अंतिम आचार्य परीक्षा में सात स्वर्ण पदक हासिल करते हुए प्रथम रैंक हासिल की। उन्हें कुलाधिपति की उपाधि से सम्मानित किया गया और कुलाधिपति द्वारा उन्हें एक स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। 30 अप्रैल 1976 को, उन्हें आधिकारिक तौर पर विश्वविद्यालय में पढ़ाए जाने वाले सभी विषयों के लिए आचार्य नामित किया गया था।

1976 में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त करने के बाद, गिरिधर ने व्याकरण में अंतिम आचार्य परीक्षाओं में सात स्वर्ण पदक जीतकर शीर्ष स्थान हासिल किया, और उन्हें “कुलाधिपति” की उपाधि से सम्मानित किया गया जो स्वर्ण पदक प्रदान करता है। 30 अप्रैल, 1976 को उन्हें विश्वविद्यालय में पढ़ाये जाने वाले सभी विषयों में आचार्य घोषित किया गया।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय –1971 में, गिरिधर ने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में व्याकरण में उन्नत अध्ययन के लिए दाखिला लिया। उन्होंने 1974 में शास्त्री (बैचलर ऑफ आर्ट्स) की अंतिम परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और सूची में शीर्ष स्थान हासिल किया और बाद में उसी संस्थान से मास्टर डिग्री (आचार्य) हासिल की। अपनी मास्टर डिग्री के दौरान, उन्होंने नई दिल्ली में अखिल भारतीय संस्कृत सम्मेलन में विभिन्न राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया, जहाँ उन्होंने व्याकरण, सांख्य, न्याय, वेदांत और संस्कृत अंताक्षरी में पाँच स्वर्ण पदक जीते। तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने गिरिधर को उत्तर प्रदेश के लिए चलवैजयंती ट्रॉफी में पांच स्वर्ण पदक से सम्मानित किया। उनकी क्षमताओं से प्रभावित होकर गांधी ने उन्हें सरकारी खर्च पर आंखों के इलाज के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका भेजने का प्रस्ताव रखा, जिसे गिरिधर ने अस्वीकार कर दिया।

1976 में, गिरिधर ने स्वामी करपात्रा से रामचरितमानस के बारे में एक कथा सुनी, जिन्होंने उन्हें जीवन भर ब्रह्मचर्य अपनाने और वैष्णव परंपरा में दीक्षा लेने की सलाह दी, जो विष्णु, कृष्ण, राम या भगवान की पूजा करने के लिए समर्पित परंपरा है। इस सलाह के कारण गिरिधर ने विवाह न करने का निर्णय लिया। 19 नवंबर, 1983 को, उन्होंने औपचारिक रूप से कार्तिक पूर्णिमा पर श्री रामचन्द्र दास महाराज फलाहारी से प्रतिज्ञा लेते हुए, रामानंद परंपरा के भीतर एक त्यागी (त्यागी) के जीवन को अपनाया। परिणामस्वरूप, उन्होंने राम भद्र दास नाम अपनाया।

  • 1979 में, गिरिधर ने चित्रकूट में छह महीने का पयोव्रत (केवल दूध और फलों से युक्त आहार पर निर्भर) का व्रत अपनाया।
  • 1983 तक, उन्होंने चित्रकूट में स्फटिक शिला के पास अपना दूसरा पयोव्रत लिया। पयोव्रत राम भद्र दास की जीवनशैली का एक नियमित और अभिन्न पहलू बन गया।
  • 1987 में, राम भद्र दास ने चित्रकूट में तुलसी पीठ (तुलसी की पीठ) नामक एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संगठन की स्थापना की। रामायण के अनुसार, यह स्थान भगवान राम द्वारा अपने चौदह वर्ष के वनवास के बारह वर्ष बिताने से जुड़ा है।

जगद्गुरु रामानंदाचार्य के मुख्य कार्य

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय –1971 में, गिरिधर ने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में व्याकरण में उन्नत अध्ययन के लिए दाखिला लिया। 1974 में, उन्होंने शास्त्री (बैचलर ऑफ आर्ट्स) की डिग्री के लिए अंतिम परीक्षा में टॉप किया और फिर उसी संस्थान में आचार्य (मास्टर ऑफ आर्ट्स) की डिग्री के लिए दाखिला लिया। अपनी मास्टर डिग्री के दौरान, उन्होंने नई दिल्ली में अखिल भारतीय संस्कृत सम्मेलन द्वारा आयोजित विभिन्न राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया और व्याकरण, सांख्य, न्याय, वेदांत और संस्कृत अंताक्षरी में स्वर्ण पदक जीते। भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने चलवैजंती ट्रॉफी में गिरिधर को उत्तर प्रदेश के लिए पांच स्वर्ण पदक से सम्मानित किया।

गिरिधर की क्षमताओं से प्रभावित होकर, गांधी ने उन्हें अपने खर्च पर आंखों के इलाज के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका भेजने का प्रस्ताव रखा, लेकिन गिरिधर ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

बहुमुखी भाषाविद् राम भद्राचार्य 14 भाषाओं में पारंगत हैं और कुल 55 भाषाओं में संवाद करने की क्षमता रखते हैं। उनके भाषाई भंडार में संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच, भोजपुरी, मैथिली, उड़िया, गुजराती, पंजाबी, मराठी, मगही, अवधी और ब्रज शामिल हैं। विशेष रूप से, उन्होंने संस्कृत, हिंदी और अवधी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में कविताएँ और साहित्यिक कृतियाँ तैयार की हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने अपनी कई रचनाओं का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया है। राम भद्राचार्य अन्य भाषाओं के अलावा हिंदी, भोजपुरी और गुजराती में अपनी भाषाई कौशल का प्रदर्शन करते हुए कहानी कहने के कार्यक्रमों में भी शामिल होते हैं।

2015 में, राम भद्राचार्य को भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार, प्रतिष्ठित पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्होंने ए.पी.जे. जैसी उल्लेखनीय हस्तियों से प्रशंसा और मान्यता प्राप्त की है। अब्दुल कलाम, सोमनाथ चटर्जी, शिलेंद्र कुमार सिंह और इंदिरा गांधी। इसके अतिरिक्त, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश सहित कई राज्य सरकारों ने उन्हें सम्मानित करके अपनी प्रशंसा व्यक्त की है।

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मध्यप्रदेश लव जिहाद कानून क्या है

मध्यप्रदेश लव जिहाद कानून क्या है-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको लव जिहाद कानून के बारे में बताने जा रहा हु। मध्य प्रदेश लव जिहाद बिल के बारे में जानकारी

बिल का नाम मध्य प्रदेश लव जिहाद बिल
लांच किया गया मध्य प्रदेश राज्य
बिल की लॉन्च तिथि दिसंबर, 2020
बिल की मंजूरी दिसंबर, 2020

बिल का उद्देश्य प्रदेश में लव जिहाद को रोकना और इसके प्रति कड़े कानून को प्रदेश में लागू करना है

क्या है मध्यप्रदेश लव जिहाद बिल

मध्यप्रदेश लव जिहाद कानून क्या है-मध्य प्रदेश राज्य सरकार की कैबिनेट मीटिंग में लव जिहाद विरोधी विधेयक को माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी के अध्यक्षता में मंजूरी प्रदान कर दी है. यह मंजूरी संपूर्ण रूप से कैबिनेट ने प्रदान कर दी है और इसमें सभी कैबिनेट मंत्रियों की पूरी सहमति के साथ इसे मंजूरी प्रदान किया गया है. मध्य प्रदेश फ्रीडम आफ रिलिजन बिल 2020 में कुल 19 नए कानून तैयार करने का प्रावधान है. इस बिल के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन के मामले को पीड़ित पक्ष के अंतर्गत शिकायत दर्ज करवाता है, तो पुलिस उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी और शीघ्र से शीघ्र कार्यवाही करने के लिए बाध्य होगी. अगर कोई ऐसा अपराधी पाया जाता है जो नाबालिक, अनुसूचित जाति/ जनजाति की प्रदेश की बेटियों को बहला-फुसलाकर शादी करने में दोषी पाया जाएगा तो उसे इस बिल के मुताबिक 10 साल की सजा हो सकती है और अगर कोई ऐसा शख्स धन और संपत्ति के लालच में किसी भी प्रदेश के लड़कियों के साथ धर्म छिपाकर शादी करने का झूठा नाटक करता है, उसकी इस शादी को प्रदेश में किसी भी प्रकार की योग्यता या मान्यता नहीं मानी जाएगी.

क्या है मध्यप्रदेश लव जिहाद कानून-मध्य प्रदेश के स्वयं मुख्यमंत्री जी ने इस बिल के बारे में लोगों को विस्तार पूर्वक जानकारी देते हुए कहा है, कि बिल के आने से पहले प्रदेश में बलपूर्वक और जबरन, प्रलोभन या फिर धोखा देकर लव जिहाद के मामले दिन प्रति दिन सामने आ रहे थे। मगर इस बिल के अंतर्गत नए कानूनों के लागू हो जाने पर यह सभी कार्य प्रदेश में और संभव हो जाएंगे और प्रदेश में लव जिहाद के मामले बिल्कुल कम नजर आएंगे या यूं कहें कि ना के बराबर ही यह हो पाएगा. यदि इस प्रकार के कार्य को प्रदेश में करने की जरूरत की तो दोषी करार पाए जाने पर अपराधी को कानून की तरफ से 10 साल की सजा देने के साथ-साथ 50 हजार रूपये से लेकर एक लाख रुपए के बीच में जुर्माना भी अपराधी से लिया जा सकता है. इस बिल को प्रदेश में लागू करने का मुख्य उद्देश्य है कि प्रदेश में लव जिहाद जैसे जघन्य अपराध को रोका जायें और प्रदेश में शांतिपूर्ण तरीके से लोगों को जीने की अनुमति और आजादी मिल सके खासकर बेटियों और बहनों के लिए योजना लाभकारी है

मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने दी लव जिहाद कानून को मंजूरी

मध्य प्रदेश राज्य के माननीय गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा जी ने इस बिल को प्रदेश का सबसे कठोर कानून और महत्वपूर्ण कानून बताया है. 28 दिसंबर से मध्य प्रदेश राज्य में विधानसभा का सत्र प्रस्तावित होने वाला है और अब इस विधेयक को विधानसभा में भी प्रस्तुत करने की सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा जी से उत्तर प्रदेश के कानून पर तुलनात्मक सवाल किए जाने पर उन्होंने कहा कि यह विधेयक या यह कानून की किसी भी देश के कानून से तुलना नहीं की जा सकती, परंतु यह कानून देश का अब तक का सबसे बड़ा कानून कहलाया जाएगा. इसके अतिरिक्त गृह मंत्री जी ने कहा कि लव जिहाद के अंतर्गत की गई शादियों को टूटने पर संतान को भी संपत्ति का पूरा हक दिलाया जाएगा और इतना ही नहीं मां भी गुजारा भत्ते की हकदार पूरी की पूरी कहलाएगी.

मध्यप्रदेश लव जिहाद कानून क्या है-जुर्माने की रकम इतनी ज्यादा रखे जाने पर एक सवाल पूछे जाने के दौरान उन्होंने जवाब दिया कि इस रकम को इसलिए इतना ज्यादा रखा गया है, ताकि कोई भी व्यक्ति एक बार ऐसा कदम उठाने से पहले अवश्य सौ बार सोचे. मध्यप्रदेश में लव जिहाद के प्रति नए कानून के बारे में लोगों को जानकारी देते हुए नरोत्तम मिश्रा जी ने बताया कि अगर लव जिहाद में किसी भी पंडित या फिर मौलवी का कोई भी किरदार पाया जाएगा, तो उसे भी अपराधी के समान ही दंडित किया जाएगा, इसमें किसी भी प्रकार की किसी को राहत प्रदान करने का प्रावधान नहीं है. इस परिस्थिति में उसे भी पूरी तरीके से आरोपी घोषित किया जाएगा और उस शख्स के साथ-साथ मौलाना या पंडित को भी कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी. मध्य प्रदेश राज्य सरकार का कहना है, कि अब तक का प्रदेश में लव जिहाद रोकने के लिए बड़े कानून व्यवस्था को बनाए जाने का प्रावधान सरकार ने जारी करने का पूरा निर्णय लिया है.

स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करने की परिस्थिति में 1 माह से पूर्व देनी होगी सूचना

बिल में बताया गया है, कि जिस भी शख्स का धर्म परिवर्तन किया जा रहा है, उसके माता-पिता या फिर भाई बहन को अनिवार्य रूप में संबंधित अधिकारी और नजदीकी जिला कानून व्यवस्था में संपर्क करके इसकी सूचना देनी आवश्यक होगी. यदि कोई शख्स अपनी इच्छा से धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तो ऐसी परिस्थिति में आपको अपने नजदीकी धार्मिक नेता से संपर्क करना है और फिर वह आगे की इसकी प्रक्रिया को पूरा करवाएंगे. इतना ही नहीं उस व्यक्ति को अपने नजदीकी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास जाना है और 1 महीने पहले ही इसके बारे में उनको सूचना देना है

क्या है मध्य प्रदेश लव जिहाद बिल में विशेष

इस बिल में धर्म परिवर्तन जबरन या फिर मानसिक प्रताड़ना करने की परिस्थिति में अपराधी को 5 से 10 साल के बीच में कारावास भी हो सकता है एवं इसके अतिरिक्त जुर्माने की राशि 50 हजार से 1 लाख रुपए के बीच में हो सकती है.

अगर प्रदेश में महिला, नाबालिक, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के वर्ग के लोगों में किसी भी परिवार के धर्म परिवर्तन किए जाने पर अपराधी को कम से कम 2 साल से 10 साल का कारावास और 50,000 से अधिक रुपयों का दंड भी दिया जा सकता है.

मध्यप्रदेश लव जिहाद कानून क्या है-अगर कोई अपना धर्म छिपाकर किसी के साथ धोखे से उसका धर्म परिवर्तन कर आता है, तो ऐसी परिस्थिति में अपराधी को कम से कम 3 साल कारावास से लेकर अधिकतम 10 साल तक का कारावास एवं निर्धारित की गई दंड राशि का भी भुगतान करना होगा.

इतना ही नहीं सामूहिक रूप से धर्म परिवर्तन किए जाने के जुर्म में अपराधी व्यक्ति को कम से कम 5 साल और अधिकतम से अधिकतम 10 साल कारावास में गुजारना पड़ सकता है और दंड राशि के रूप में अपराधी को 1 लाख रुपयों का हर्जाना चुकाना पड़ सकता है.

इस बिल में यह भी कानून है, कि एक से अधिक बार धर्म परिवर्तन किए जाने की परिस्थिति में अपराधी को कम से कम 5 से और अधिकतम से अधिकतम 10 साल का कारावास हो सकता है.

इसके अतिरिक्त पैतृक धर्म परिवर्तन होने पर और अपने वास्तविक धर्म में वापस आने पर धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा. पैतृक धर्म केवल उसे माना जाएगा जो व्यक्ति के जन्म से उसके पिता का धर्म होता है.

यदि कोई ऐसा व्यक्ति है, जो स्वेच्छा से अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है और ऐसे में उसे सर्वप्रथम एक महीने पहले ही अपने नजदीकी जिला दंडाधिकारी को इसकी सूचना देनी होगी. यदि व्यक्ति ऐसा नहीं करता है, तो उसे कम से कम 3 साल और अधिकतम 5 साल का कारावास होने के साथ-साथ 50 हजार रुपए का जुर्माना चुकाना पड़ सकता है.

प्रदेश में लव जिहाद के सारे मामले गैर जमानती होंगे और इस पर किसी भी प्रकार कि किसी की पहुंच काम नहीं आएगी.

क्या है मध्यप्रदेश लव जिहाद कानून-मध्यप्रदेश राज्य में इस बिल को लागू हो जाने पर अब लव जिहाद जैसे जघन्य अपराधों को रोका जा सकता है और प्रदेश में इसकी बढ़ती संख्या को इस बिल के आ जाने से भी काफी ज्यादा कमी आएगी. मध्य प्रदेश राज्य सरकार के द्वारा लागू किए जा रहे हैं, लव जिहाद बिल सेमध्य प्रदेश के नागरिकों को और बहू बेटियों को बहुत फायदा होगा

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कैसे करें पानी की बचत के उपाय

कैसे करे पानी की बचत –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको पानी के बारे में बताने जा रहा हु। प्रस्तावना :- जल ही जीवन है और इससे की हमारा जीवन चलता है पर क्या इसे कोई मानता है, नही। आज का जो समय है उस समय मे पानी की एक – एक बूूंद बचाना आवश्यक है। यह भी सत्य है ही अगर आप पानी नही बचायेंगे तो आपे वाली पीढी एक एक बूंद को तरसेगी। जितनी तेजी से धरती पर जल स्तर घट रहा है उस से तो ऐसा ही लग रहा है। शुरूआत मे जहा पृथ्वी पर काफी गहराई मे पानी था तो आज ऐसी स्थिति है की आज यहा 90 से 100 फुट पानी नीचे जा चुका है।

पानी की बर्बादी पर रोक:- जिस प्रकार से पानी की बर्बादी होती है उससे यह सीख जरूर मिलती है ही पानी को आने वाले कल के लिए बचाना चाहिए। आज की पानी की बचत आने वाले समय के लिए जरूरत है। कई बार ऐसा देखा जाता है की खुले नाले, और खराब मशीनरी व पाईप के कारण पानी व्यर्थ जाता है जिस वजह से पानी काफी ज्यादा बर्बाद हो जाता है। आप को भी अपनी ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए और अगर आप कही पब्लिक पैलेस पर जा रहे है और वहा पर से पानी बंद करने की स्वयं की ज़िम्मेदारी समझे। बिना किसी कारण से पानी न बहाये और न ही व्यर्थ जाने दे। आप शायद इस बात से परिचित होंगे ही कई सारे पक्षी बिना पानी के अपना दम तौड देते है।

पानी की बचत के लिए जल संरक्षण एवं संचय:- आज देखा जाये तो पानी ही जीवन का आधार है और अगर पानी को बचाना है तो इसका संरक्षण जरूरी है। पानी की उपलब्धता भी कफी तेजी से घट रही है, और महामारी भी बढ रही है। पानी को बचाना हमारी राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी है एवं यह मुद्दा अन्टराष्ट्रिय लेवल पर भी काफी तेजी से फैल रहा है। पानी के स्त्रोतों मे कमी आ रही है। पानी को सुरक्षित रखना व इसे बचाना हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है। जिस प्रकार पानी के स्रोतों मे कमी आ रही है उस हिसाब से पानी को बचाना एकदम असंभव सा होता जा रहा है। पानी को बचाने के लिए भी हमे कार्य करने चाहिए, हमारी ज़िम्मेदारी को हमे समझना चाहिए।

पानी का महत्व

कैसे करे पानी की बचत –हम सब जानते है कि पानी के बिना हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते. लेकिन फिर भी हम इसे फिजूल में खर्च कर देते है. हमारी प्रथ्वी के 70% भाग जल से डूबा हुआ है लेकिन 1-2 % ही इसमें से उपयोग करने लायक है. हमें जल को बहुत सहेज के रखने की जरुरत है, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हम एक एक बूँद को तरसेंगे. पानी एक ऐसा धन है जिसे हम सहेज कर रखेंगे तभी हमारी आने वाली पीढ़ी उसे उपयोग कर पायेगी. जल है तो कल है.

पानी की बर्बादी को रोकने के लिए हम अपने घर से ही शुरुआत कर सकते है. बस थोड़ीसी समझदारी और एक उठाये हुए कदम के साथ हम अपनी आने वाली पीढ़ी को यह तोहफा दे सकते है.

पानी की बचत कैसे करे और बचाने के तरीके

नल को खुला ना छोड़े – आप जब भी ब्रश करें, दाढ़ी बनायें, सिंक में बर्तन धोएं, तो जरूरत ना होने पर नल बंद रखे, बेकार का पानी ना बहायें. ऐसा करने से हम 6 लीटर हर एक min में पानी बचा सकते है. नहाते समय भी बाल्टी से पानी को व्यर्थ ना बहायें.

नहाने के लिए शावर की जगह बाल्टी का उपयोग करें. अगर शावर उपयोग भी करें तो छोटे वाले लगायें, जिससे पानी की कम खपत हो. शावर का उपयोग ना करके हम 40-45 लीटर पानी हर 1 min में बचा सकते है.

जहाँ कहीं भी नल लीक करे, उसे तुरंत ठीक करवाएं. नहीं तो उसके नीचे बाल्टी या कटोरा रखें और फिर उस पानी का प्रयोग करें.

लो पॉवर वाली वाशिंग मशीन उपयोग करें, इससे पानी की बचत होती है एवं बिजली भी कम लगती है. वाशिंग मशीन में रोज थोड़े थोड़े कपड़े धोने की जगह इक्कठे करके धोएं.

पोधों में पानी पाइप की जगह वाटर कैन से डालें, इससे बहुत कम पानी उपयोग होता है. पाइप से 1 घंटे में 1000 लीटर पानी तक पानी उपयोग हो जाता है, जो पूरी तरह से पानी का नुकसान है. हो सके तो कपड़े धोने वाले पानी को पोधों पर डालें.

घर में पानी का मीटर लगवाएं. आप जितना पानी उपयोग करेंगे, उसके हिसाब से उसका बिल आएगा. बिल देते समय आपको समझ आएगा कि आपने कितना बर्बाद किया है और फिर आगे से ध्यान रखेंगे.

कैसे करे पानी की बचत –गीजर से गर्म पानी निकालते समय उसमें पहले ठंडा पानी आता है जिसे हम फेंक देते है. ऐसा नहीं करें, ठन्डे पानी को अलग बाल्टी में भरें, फिर गर्म पानी को दूसरी में. इस पानी को आप दूसरी जगह उपयोग कर सकते है.

फ्लश में भी बहुत अधिक पानी उपयोग होता है, इसलिए ऐसा फ्लश लगवाएं जिसमें पानी का फ़ोर्स कम हो.

नालियां हमेशा साफ रखें, क्यूंकि जब ये चोक हो जाती है तो साफ करने के लिए बहुत पानी को बहाया जाता है. इसलिए पहले से ही साफ सफाई रखें.

पेड़ पोधे लगायें जिससे अच्छी बारिश हो और नदी नाले भर जाएँ.

पानी को बचाने की जरुरत क्यों है

पैसों की बचत के लिए

बिजली की बचत के लिए

हमारे बचाने से जरूरतमंद के काम आएगा.

कैसे करे पानी की बचत –जल की रक्षा हमेशा करें, और ऐसा करने के लिए दूसरों को भी प्रेरित करें. हम करेंगे तभी हमारे छोटे भी हमसे सीखेंगे. रास्ते में कभी भी कही पर कोई नल खुला हुआ हो, तो उसे बंद करें, पाइप लाइन फूटी हो तो उसकी complaint करें. आजकल तो हमारे घर में पानी आ जाता है, पानी की कीमत वो लोग समझते है जो 4-5 km पैदल चलकर पानी भरने जाते है. 1-2 बाल्टी के लिए उन्हें घंटो लाइन में खड़े होना पड़ता है. हम उनकी मदद सीधे तौर पर तो नहीं कर सकते. लेकिन कम से कम पानी बचायें, जिससे सही हाथों तक ये पहुँच सके. आज से ही यह शुरुआत अपने घर से करे, यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है जो हम सब को साथ मिल कर उठानी चाहिए.

पानी बचाओ कविता

  • माना पानी का नही हैं मोल
  • पर जीवन के लिए हैं ये अनमोल
  • साँसे जहाँ चलती हैं
  • वहीँ पानी से पनपती हैं
  • यह महज़ एक कविता नहीं
  • जीवन की एक सीख हैं
  • पानी बचाओ पानी बचाओ
  • वर्ना दुखदाई अंत हैं
  • जल की कोई सीमा नहीं
  • पर पिने को वो योग्य नहीं
  • जो जल जीवन बनाता हैं
  • वो हर जगह नहीं मिल पाता हैं
  • करो इसका मोल अभी
  • वर्ना पछताओगे
  • पानी बचालो आज सभी
  • वर्ना कठिन समस्या पाओगे
  • पानी की बचत पर नारे
  • पानी नहीं, तो जीवन नहीं ।
  • करोगे पानी की रक्षा, तो होगी जीवन की सुरक्षा ।
  • पानी पानी ही है जीवन सारा , पानी नहीं तो दुर्भाग्य हमारा ।
  • जल है तो जीवन है

कृषि में पानी की बचत आज की जरुरत

कैसे करे पानी की बचत –कृषि पानी के बिना बिलकुल भी नही होती है। क्या आपको पता है की कृषि के लिए भी पानी काफी जरूरी होता है। पानी की बचत आज के समय के हमारी पहली प्राथमिकता हो जानी चाहिए।

इसके लिए कृषि विभाग के साथ -साथ जो भी लाभार्थी है उनको इस बात का ध्यान रखना चाहिए की वै आवश्यकतानुसा ही खेतों व फसलों मे पानी डाले उससे ज्यादा नही जाकि पानी की बचत की जा सके।

जिन फसलों मे कम पानी कीआवश्यकता हो उन फसलों को ज्यादा उगाया जाए ताकि पानी की बचत हो।

अनावश्यक पानी की बर्बादी वाले फसलों को कम उगाया जाए साथ ही ऐसी फसलों को वर्षा के मौसम मे उगाया जाना चाहिए ताकि उन फसलों पर पानी की मांग कम हो।

हमें पानी की बचत क्यों करना चाहिए

क्या आप जानते है की पानी की बचत हमें क्यों करना चाहिए ? इस प्रश्न के उत्तर के लिए सबसे पहले हमें जल के महत्व को हमें समझना होगा, पानी जीवन मे सबसे पहले जीवनदायी चीजों मे से एक है परंतु इसके अलावा ऑक्सीजन और पानी और खाना इसके बिना वह नहीं जी सकता। हमारी पृथ्वी के 71 प्रतिशत भाग पर पानी है जो की धीमे धीमे कम होता जा रहा है। इस 71 प्रतिशत पानी के भाग मे से केवल 2 प्रतिशत पानी ही पीने के लायक है। दूनिया मे लाखों लोग कई टन पानी रोजाना पी जाते है जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है की पानी की कमी काफी ज्यादा हो रहा है। इसके लिए यह जरूरी है ही पानी की बर्बादी को रोकना चाहिए।

पानी का स्वच्छ होना भी पानी की आज की जरूरत है

गंदे व दूषित पानी से कई लोग बिमार हो रहे है जिस वजह से कई सारी बिमारिया फैल रही है इस इसलिए हमेशा पानी का बचाव करे ताकि वह सुरक्षित रहे और अच्छा रहे।

कैसे करे पानी की बचत –आपको पता होगा ही अखबार बनाने के लिए 13 लीटर पानी का उपयोग होता है जिससे पानी काफी व्यर्थ हो जाता है।

हमारे देश की स्थिति तो ऐसी है ही यहा हर 15 सैकेण्ड मे एक बच्च इस ग्रषित पानी से मर जाता है।

इसलिए दूर्षित पानी से बचने के लिए पाना का बचाव व सरक्षण जरूरी है।

पानी की बचत आज की जरूरत

सबसे पहले आपको इस बात का ख्याल रखना चाहिए की पानी कम से कम व्यर्थ हो उसका सरंक्षण हो सके।

एक अनुमान के अनुसार अगर पृथ्वी पर से थोडा थोडा पानी रोजाना बचाया जाए तो काफी पानी बच सकता है।

दैनिक जीवन के उपयोग के पानी का जितना आवश्यक हो उतना ही इस्तेमाल करे ताकि पानी की बचत हो सके ।

नहाते समय जितना हो सके पानी का बचान करे बाल्टी भरने पर नल को बंद कर दे व आवश्यकता होने पर ही जल का उपयोग करे।

नल को बंद करते समय उस टुटी को टाइट बंद करे ताकि बचा हुआ पानी व्यर्थ न हो

पेड पौधो को काटने से रोके ताकि पर्यावरण के नियमों के अनुसार वर्षा का पानी हमे मिल सके।

पानी हमारे जीवन की जरूरत है उसे हमेशा बचाना चाहिए और जितना हो सके उसका सरक्षण करना चाहिए। आज के पानी की बचत कल की कमाई हो सकती है।  जिस प्रकार से पानी की बर्बादी होती है उससे यह सीख जरूर मिलती है ही पानी को आने वाले कल के लिए बचाना चाहिए। आज की पानी की बचत आने वाले समय के लिए जरूरत है। कई बार ऐसा देखा जाता है की खुले नाले, और खराब मशीनरी व पाईप के कारण पानी व्यर्थ जाता है जिस वजह से पानी काफी ज्यादा बर्बाद हो जाता है। उम्मीद करते है आपको यह लेख पसंद आया होगा।

विश्व जल दिवस

कैसे करे पानी की बचत –पानी हमारे जीवन का बहुत अहम हिस्सा होता है। लेकिन आजकल उसी पानी को लोगों द्वारा सबसे ज्यादा बर्बाद किया जाता है। आपको बता दें कि, अब सिर्फ हमारी पृथ्वी पर तीन चौथाई भाग में ही पानी बचा है। इसलिए जितना हो सके इसे बचाए। क्योंकि जल ही जीवन है। इसी के महत्व के समझाने के लिए हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है ताकि लोगों को इसका सही महत्व बताया जा सके। इसकी सबसे पहले शुरूआत 22 मार्च 1993 में सयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी। लेकिन उसके बाद इसकी घोषणा पूरे विश्व में की गई ताकि लोगों को पानी के महत्व, आवश्यकता और संरक्षण के बारे में जागरूक कराया जा सके। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य है लोगों को जल संरक्षण का महत्व बताना। क्योंकि इसको बताने से ही हम आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी बचा पाएगे। इसके लिए हर साल एक थीम तैयार की जाती है। जिसमें पानी के अलग-अलग महत्व बताए जाते हैं। इसमें ये भी समझाया जाता है कि, किस तरह से आप कम पानी से अपना काम कर सकते हैं। इस बार भी इसकी थीम तैयार की जाएगी। उसी के हिसाब से लोगों के सामने पानी को सुरक्षित रखने की जानकारी दी जाएगी।

FAQ

प्रश्न 1 – जल का सरंक्षण कैसे करे ?

उत्तर – जल का सरंक्षण करने के जितना आवश्यकता हो उतना ही जल का इस्तेमाल करे ताकि जल की ज्यादा से ज्यादा बचत हो सके।

प्रश्न 2 – जल के बचाव के उपाय क्या है ?

उत्तर – जन को बचाने के लिए वैसे तो कई उपाय है परन्तु आप आसान भाषा मे समझे तो इसके लिए आप जब भी किसी पब्लिक पैलेस पर जाते है और वहा पानी को व्यर्थ होता देखते है उसे बंद करना लेना चाहिए।

प्रश्न 3 – पृथ्वी पर कितना जल विद्यमान है ?

उत्तर – पृथ्वी पर 71 प्रतिशत जल विद्यमान है जिसमे से 2 प्रतिशत पीने योग्य है।

प्रश्न 4 – पानी का कृषि क्षेत्र मे उपयोग ?

उत्तर – कृषि क्षेत्र मे पानी की काफी ज्यादा जरूरत होती है, इस मे अगर आप जल बचाना चाहते है तो उस फसल को ज्यादा महत्व दे जो कम पानी मे भी फल फूल सकती है।

प्रश्न 5 – पानी का बचाव क्या जरूरी है ?

उत्तर – जिस तेजी से पानी दूनिया से खत्म हो रहा है उस स्थिति मे पानी का आज बचाव करना जरूरी है ताकि आने वाले कल के लिए पानी बचाया जा सके।

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क्रुणाल पंडया जीवन परिचय | Krunal Pandya Biography in detail in Hindi

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क्रुणाल पंडया जीवन परिचय

क्रुणाल पंडया जीवन परिचय | Krunal Pandya Biography in detail in Hindi – हेलो दोस्रो मेरा नाम  मोहित है आज में आपको क्रुणाल पंडया के बारे में बताने जा रहा हु। भारत में क्रिकेट को धर्म की तरह माना जाता है और इसके एक खिलाड़ी को तो उसके फैन्स ने भगवान का दर्जा दे रखा है. भारत के गली-नुक्कड़ से लेकर स्टेडियम की चकाचैंध तक सबसे ज्यादा खेला जाने वाला खेल है क्रिकेट. आज से कुछ साल पहले तक इस खेल के खिलाड़ियों के लिए बड़े ही सीमित अवसर थे. राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनने वाले खिलाड़ी ही स्टार का दर्जा पाते थे और ज्यादातर प्रतिभाएं स्टेट लेवल प्रतियोगिताओं और रणजी ट्राॅफी जैसी प्रतियोगिताओं तक ही सीमित हो जाती थी, लेकिन कुछ समय पहले ही इंडियन प्रीमियर लीग ने इस खेल के ग्लैमर को और ज्यादा बढ़ा दिया है. आईपीएल ने ढेरों खिलाड़ियों को दुनिया में अपनी प्रतिभा से अवगत करवाने का अवसर दिया है. कई खिलाड़ियों ने इस बीस ओवर के नये प्रारूप में स्टारडम हासिल किया और राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनें. इन्हीं उभरते हुए खिलाड़ियों में से एक है-क्रुनाल पंडया

क्रुणाल पंडया जीवन परिचय | Krunal Pandya Biography in Hindi

नाम क्रुणाल पांड्या
जन्म 24 मार्च 1991
जन्म स्थान सूरत, गुजरात
उम्र 31 साल
राष्ट्रीयता भारतीय
जाति ब्राह्मण
पेशा भारतीय क्रिकेटर
भूमिका ऑलराउंडर
पिता का नाम हिमांशु पांड्या
माता का नाम नलिनी पांड्या
भाई का नाम हार्दिक पांड्या
वैवाहिक स्थिति विवाहित
स्कूल एमके बरोदा हाई स्कूल
कॉलेज पता नहीं
शैक्षिक योग्यता पता नहीं
कोच का नाम अजय पवार
रिकॉर्ड सबसे तेज अर्धशतक लगाने का
संपत्ति पता नहीं

कौन हैं क्रुनाल पंडया

क्रुणाल पंडया जीवन परिचय –क्रुनाल हिमांशु पंडया बांये हाथ के बल्लेबाज हैं जो घरेलू क्रिकेट में बड़ौदा की ओर से खेलते हैं. वे धीमी गति के कुशल गेंदबाज भी है. उन्हें भारत के बेहतरीन आल राउंडर क्रिकेटर्स में से एक माना जाता है. उनके पिता हिमांशु पंड्या एक व्यवसायी हैं. क्रुनाल का जन्म 24 मार्च 1991 को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ. उनके छोटे भाई हार्दिक पंडया भारतीय टीम का अहम हिस्सा बन चुके हैं. पहली बार उनकी चर्चा तब हुई जब आईपीएल निलामी के दौरान मुंबई इंडियन्स की टीम ने उन्हें 2 करोड़ की विशाल बोली के बाद अपने टीम का हिस्सा बनाया. अप्रेल 2016 में उन्होंने अपनी टीम मुंबई इंडियन्स की ओर से खेलते हुए गुजरात लायंस के खिलाफ अपने आईपीएल करिअर का शुभारंभ किया

क्रुनाल पंड्या का क्रिकेट करिअर

क्रुणाल पंडया जीवन परिचय –क्रिकेट के आलराउंडर माने जाने वाले क्रुनाल बचपन से ही क्रिकेटर बनना चाहते थे. उन्होंने अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट करिअर की शुरूआत 2012 में बड़ौदा से की. अपने टीम से खेलते हुए उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में अपने प्रदर्शन से सभी को बहुत प्रभावित किया. इसी प्रदर्शन के आधार पर उन्हें आईपीएल, इंडिया ए की टी-20 और इंडिया ए के लिए खेलने के का अवसर मिला. उन्होंने अपने अंतराष्ट्रीय टी-20 करिअर की शुरूआत 26 जनवरी, 2016 को आॅस्ट्रेलिया के खिलाफ एडिलेड में की. उन्हें किरण मोरे और जितेन्द्र सिह की कोचिंग में क्रिकेट के गुर सीखने का मौका मिला.

आईपीएल ने बनाया सबका चहेता

क्रुणाल पंडया जीवन परिचय –क्रुनाल को क्रिकेट का चमकता हुआ सितारा बनाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह है आईपीएल. इस खेल प्रतियोगिता से इन्हें वह मुकाम हासिल हुआ है जिसकी तमन्ना हरेक क्रिकेटर करता है. अप्रैल 2016 में अपने पहले ही आईपीएल मैच से क्रुनाल ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाई. गेंदबाजी करते हुए उन्होंने गुजरात लायन्स के सबसे खतरनाक बल्लेबाज दिनेश कार्तिक को डीप में हरभजन सिंह के हाथों कैच करवाया. वानखेड़े स्टेडियम में हुए इस मैच में उन्होंने चार ओवर्स में किफायती गेंदबाजी करते हुए सिर्फ 20 रन दिए और एक विकेट भी चटकाया.

इनकी गेंदबाजी की बदौलत ही गुजरात लायंस बड़ा स्कोर खड़ा नहीं कर पाई. इसी मैच में इन्होंने शानदार बल्लेबाजी करते हुए सिर्फ 11 गेंदों में तीन चौकों की मदद से 20 रन बना डाले. आईपीएल के दौरान क्रुनाल को अपना पहला मैन आॅफ द मैच सम्मान दिल्ली डेयरडेविल्स के खिलाफ खेलते हुए मिला. विशाखापट्टनम स्टेडियम में हुए मैच के दौरान इस धांसू बल्लेबाज ने सिर्फ 37 गेंदों में 86 रन की धमाकेदार पारी खेल डाली. उनकी इस आतिशी पारी की बदौलत मुंबई इंडियन्स ने मैच जीता और क्रुनाल ने दर्शकों का दिल जीत लिया. इसी मैच में उन्होंने आल राउंडर प्रदर्शन करते हुए दिल्ली डेयरडेविल्स के सबसे खतरनाक बल्लेबाजों क्विंटन डी काॅक का विकेट लिया और जहीर खान को भी पवेलियन का रास्ता दिखाया.

बेहतरीन प्रदर्शन के बाद भी क्रुनाल पंडया को अभी बहुत कुछ साबित करना बाकि है. उनके छोटे भाई ने बतौर आलराउंडर भारतीय टीम में जगह बना ली है लेकिन अभी क्रुनाल के लिए लंबा सफर बाकि है. आने वाले आईपीएल टूर्नामेंट्स में उनके प्रदर्शन पर ही यह निर्भर करेगा कि वे भी पठान बंधुओं की तरह राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बन कर नाम कमाते हैं या फिर इस टूर्नामेंट के वंडर ब्वाय बन कर रह जाते हैं. भारतीय टीम का हिस्सा बनना उनका सबसे बड़ा सपना है और समय बताएगा कि यह वंडर ब्वाय अपने करिअर में कितना कमाल दिखा पाता है.

क्रुनाल का निजी जीवन

क्रुणाल पंडया जीवन परिचय –फिलहाल यह गुडलुकिंग क्रिकेटर एकदम सिंगल है और अपने खेल पर ध्यान दे रहे है. मिड विकेट पर हिट शाॅट खेलने में माहिर इस क्रिकेटर को किताबें पढ़ना बहुत पसंद है. राहुल द्रविड़, विराट कोहली, ए बी डिविलियर्स, केविन पीटरसन और मैथ्यु हेडन इनके पसंदीदा बल्लेबाज हैं. क्रुनाल को गेंदबाजों में ब्रेट ली और जेम्स एंडरसन पसंद है. गुजराती खाना उनका पसंदीदा भोजन है. क्रिकेट के अलावा उन्हें सिनेमा से भी लगाव है. ढेरों और यंगस्टर्स की तरह जाॅन अब्राहम उनके पसंदीदा अभिनेता है और अभिनेत्रियों में यामी गौतम उन्हें खासी पसंद आती है. फिल्मों की बात की जाए तो हाॅलीवुड सिनेमा उनकी सूची में पहले आता है और फोर पिलर्स आॅफ बेसमेंट तथा फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स उनकी पसंदीदा फिल्में हैं. चेतन भगत की लिखी हुई 3 मिस्टेक्स आॅफ माई लाइफ उनकी पसंदीदा किताब है. विराट कोहली का जीवन परिचय यहाँ पढ़े.

क्रुनाल पंडया के बारे में कुछ बातें जो आप नहीं जानते

  • क्रुनाल पंडया हार्दिक पंडया के बड़े भाई हैं.
  • ये दोनों पहले भाई हैं जो किसी भी आईपीएल में एक ही टीम से खेलें हैं. आईपीएल 9 के दौरान दोनों भाई मुंबई इंडियन्स से खेलें हैं.
  • ये दोनों भाई पठान बंधुओं (इरफान पठान और युसूफ पठान) के अच्छे दोस्त हैं.
  • मुंबई इंडियन्स ने हार्दिक पंडया को सिर्फ 10 लाख रूपये में खरीदा था जबकि क्रुनाल की उन्होंने 20 गुना ज्यादा रकम चुकाई.
  • उनके पिता ने अपने बेटों के क्रिकेट करिअर को ध्यान में रखते हुए अपने बिजनेस की परवाह किए बिना अपना सारा व्यवसाय सूरत से बड़ौदा शिफ्ट कर लिया.
  • किरण मोरे ने उनकी बहुत सहायता की और उन्होंने दोनों भाइयों को 3 साल तक बिना किसी शुल्क के अपनी एकेडमी में प्रशिक्षण दिया.
  • क्रुनाल पंडया की राशि मीन है.
  • वे आईपीएल और घरेलू टूर्नामेंट के दौरान 25 नंबर की जर्सी पहनते हैं.

FAQ

Q-क्रुणाल पांड्या का जन्म कब और कहां हुआ?

Ans- क्रुणाल पांड्या का जन्म 24 मार्च 1991 को सूरत में हुआ।

Q-क्रुणाल पांड्या की फैमली में कौन कौन है?

Ans- क्रुणाल पांड्या की फैमली में उनके पिता, माता, पत्नी, भाई, भाई की पत्नी और बेटा है।

Q- क्रुणाल पांड्या कितने साल के हैं?

Ans- क्रुणाल पांड्या इस समय 31 साल के हैं।

Q- क्रुणाल पांड्या ने क्रिकेट करियर की शुरूआत कब की थी?

Ans- क्रुणाल पांड्या ने क्रिकेटर करियर की शुरूआत 2012 में की थी।

Q- क्रुणाल पांड्या को सबसे पहले क्या खेलने का मौका मिला?

Ans- क्रुणाल पांड्या को सबसे पहले आईपीएल खेलने का मौका मिला।

कैसे मिलेगी नरेगा (मनरेगा) जॉब कार्ड सूची 2023 में How to get NREGA (MNREGA) job card list in hindi

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कैसे मिलेगी नरेगा (मनरेगा) जॉब कार्ड सूची 2023 में

नरेगा (मनरेगा) जॉब कार्ड सूची –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको नरेगा (मनरेगा) के बारे में बताने जा रहा हूँ भारत के ग्रामीण विकास मंत्रालय ने नरेगा जॉब कार्ड की शुरूआत की. इससे देश के गरीब नागरिकों को नौकरियों की सुविधा प्रदान की गई है. हर साल इसमें शामिल होने वाले श्रमिकों की सूची जारी की जाती हैं. हालही में संबंधित विभाग द्वारा प्रत्येक राज्य के अनुसार नरेगा जॉब कार्ड सूची 2020 को भी जारी किया गया है. इस सूची में किन  – किन लोगों के नाम शामिल हैं देखने के लिए आप हमारे इस लेख को अंत तक पढियें. यहाँ आपको मनरेगा जॉब कार्ड की पूरी जानकारी के साथ ही इस सूची में अपना नाम चेक करने की प्रक्रिया भी बताई गई हैं.



नरेगा जॉब कार्ड

नाम नरेगा जॉब कार्ड 2020
पूरा नाम राष्ट्रीय ग्रामीण योजगार गारंटी अधिनियम
लांच की तारीख सन 2005 में
लांच किया गया भारत सरकार द्वारा
संबंधित ग्रामीण विकास मंत्रालय
हेल्पलाइन टोल फ्री नंबर 1800 180 6127

नरेगा जॉब कार्ड की विशेषताएं

नरेगा (मनरेगा) जॉब कार्ड सूची –योजना का उद्देश्य :- केंद्र सरकार द्वारा शुरू किये गए नरेगा कार्ड को शुरू करने के पीछे सरकार का एक मात्र उद्देश्य यह था कि वे ग्रामीण क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले लोगों का स्टैण्डर्ड बढ़ाना चाहती है.

योजना में लाभ :- केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना के तहत विभिन्न राज्यों की सरकार गरीब लोगों को पैसा कमाने का अवसर प्रदान करती हैं. इस योजना के तहत श्रमिकों को 100 दिनों के लिए अकुशल श्रम का कार्य प्रदान किया जाता है.

ऑनलाइन पोर्टल सुविधा :- इस योजना के तहत ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से कहीं से भी नरेगा जॉब कार्ड से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, और साथ ही जॉब कार्ड सूची में आपका नाम चेक करने के लिए डाउनलोड कर सकते हैं.

नरेगा जॉब कार्ड सूची :- यह सूची किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त किये गये कार्य के कार्यकाल से संबंधित जानकारी प्रदान करती हैं.


कार्य का दायरा :- इस योजना में सरकार ने अकुशल श्रमिक को रोजगार देने का वादा किया है, जिसके लिए श्रमिकों को उनके निवास स्थान से 5 किलोमीटर के दायरे तक में कार्य दिया जाता है, और न्यूनतम मजदूरी का भुगतान किया जाता है.

रोजगार भत्ता :- किसी कारण से सरकार आवेदन की तिथि से 15 दिनों के अंदर आवेदक को कार्य प्रदान नहीं करती हैं, तो सरकार को उस आवेदक को रोजगार भत्ता प्रदान करना होगा.

राशि का वितरण :- लाभार्थियों का 100 दिनों का काम पूरा हो जाने के बाद राशि उनके बैंक खाते में सीधे ही स्थानांतरित कर दी जाती है. आवेदक अपने संबंधित बैंक में जाकर भुगतान की सभी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

उत्तरपदेश योगी मजदूर भत्ता योजना में रजिस्टर करने के लिए यहाँ क्लिक करें

नरेगा जॉब कार्ड सूची राज्य के आधार पर

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के तहत पिछले 10 वर्षों से देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के नरेगा जॉब कार्ड की सूची नरेगा के अधिकारिक पोर्टल पर जारी की जा रही है. इस साल 2020 में भी नरेगा जॉब कार्ड सूची जारी की गई हैं, जिसे आप निम्न तालिका के माध्यम से अपने राज्य के अनुसार चेक कर सकते हैं –

क्र. म. राज्य नरेगा जॉब कार्ड सूची
1. अंडमान एवं निकोबार Click Here
2. दमन एवं दिउ Click Here
3. दादरा एवं नगर हवेली Click Here
4. लक्षद्वीप Click Here
5. जम्मू और कश्मीर Click Here
6. लद्दाख
7. आंध्रप्रदेश Click Here
8. हरयाणा Click Here
9.  उत्तराखंड Click Here
10. बिहार Click Here
11. चंडीगढ़ Click Here
12. गोवा Click Here
13. अरुणाचल प्रदेश Click Here
14. केरला Click Here
15. गुजरात Click Here
16. छत्तीसगढ़ Click Here
17. हिमाचल प्रदेश Click Here
18. मध्य प्रदेश Click Here
19. झारखण्ड Click Here
20. कर्नाटका Click Here
21. मेघालय Click Here
22. त्रिपुरा Click Here
23. महाराष्ट्र Click Here
24. मणिपुर Click Here
25. सिक्किम Click Here
26. मिजोरम Click Here
27. नागालैंड Click Here
28. पश्चिम बंगाल Click Here
29. पुडुचेर्री Click Here
30. असम Click Here
31. उत्तरप्रदेश Click Here
32. ओडिशा Click Here
33. राजस्थान Click Here
34. पंजाब Click Here
35. तमिलनाडू Click Here

मनरेगा योजना का इतिहास

नरेगा (मनरेगा) जॉब कार्ड सूची –नरेगा को मनरेगा के नाम से भी जाना जाता है, जिसका पूरा नाम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम है. इसे सन 1991 में तत्कालिक प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव जी की सरकार द्वारा शुरू किया गया था. इसे दोनों संसदों में स्वीकार कर लेने के बाद शुरुआत में 625 जिलों में लागू किया गया, और बाद में इसे पूरे देश में लागू किया गया. इसके माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा उन लोगों को नौकरी प्रदान की गई जिनके पास पैसे कमाने का कोई भी स्त्रोत नहीं था, इस तरह से बेरोजगारी की समस्याओं को खत्म करने की कोशिश कर इस योजना को शुरू किया गया था. फिर तत्कालिक केंद्र सरकार द्वारा इस योजना को नरेगा नाम दिया गया.

नरेगा जॉब कार्ड के लिए पात्रता मापदंड

देश के सभी राज्यों में :- नरेगा जॉब कार्ड के लिए भारत के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के नागरिक लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र हैं.

गरीब नागरिक :- इस योजना का लाभ लेने के लिए देश के ऐसे लोग ही पात्र हैं जिनके परिवार की सालाना आय बहुत ही कम है.

बेरोजगार नागरिक :- इस योजना में 100 दिनों का रोजगार केवल उन लोगों को प्रदान किया जा रहा है जिनके पास आय का कोई भी स्त्रोत नहीं है.

बैंक खाता धारक :- नरेगा में कार्य करने वाले लोगों के बैंक खाते में राशि जमा की जाती हैं, इसलिए बैंक खाता धारक ही इसके लिए पात्र हैं.

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नरेगा जॉब कार्ड 2020 की सूची में अपना नाम चेक कैसे करें

नरेगा (मनरेगा) जॉब कार्ड सूची –नरेगा जॉब कार्ड 2020 की सूची में अपना नाम चेक करने के लिए सबसे पहले आपको अधिकारिक लिंक पर जाना होगा.

यहाँ पहुँचने पर आपको स्क्रॉल करके नीचे आना हैं और बाएँ ओर आपको कुछ विकल्पों की लिंक दिखाई देगी. इसमें से आपको ‘जॉब कार्ड’ की लिंक पर क्लिक करना है.

इसके बाद आपकी स्क्रीन पर जो पेज ओपन होगा उसमें आपके सामने देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की लिंक दिखाई देगी. आपको इसमें से अपने राज्य का चयन कर उसकी लिंक पर क्लिक करना होगा.



इसके बाद यहाँ आपसे कुछ अन्य जानकारी जैसे वित्तीय वर्ष, जिले का नाम, ब्लॉक का नाम और पंचायत का नाम आदि सेलेक्ट करने के लिए कहा जायेगा. उसे सेलेक्ट कर लेने के बाद ‘प्रोसीड’ बटन पर क्लिक करें.

इसके बाद आपकी स्क्रीन पर नरेगा जॉब कार्ड की सूची प्रदर्शित हो जाएगी. जिसमें से आप अपना नाम चेक करके उसकी जॉब कार्ड संख्या पर क्लिक करिये. कार्ड से संबंधित कोई भी जानकारी की आवश्यकता हो तो आप यहाँ से चेक कर सकते हैं.

नरेगा जॉब कार्ड रजिस्ट्रेशन एवं वेरिफिकेशन

नरेगा (मनरेगा) जॉब कार्ड सूची –गाँव के लोगों को जॉब कार्ड प्रदान करने से पहले, ग्राम पंचायत द्वारा उम्मीदवारों की सभी जानकारी जैसे आवेदक उनके ग्रामीण क्षेत्र का है या नहीं, आवेदन में उनके परिवार के जिन लोगों के नाम शामिल हैं केवल वे ही इसमें शामिल हो सकते हैं, और आवेदन फॉर्म में दिए गये परिवार के प्रमाणीकरण आदि की पुष्टि की जाती हैं.

FAQ

Q : क्या मैं अपने खाते में जमा की गई राशि की जाँच कर सकता हूँ ?

Ans : हां, आप अपने बैंक में जाकर खाते की जाँच कर सकते हैं, पासबुक को अपडेट कर सकते हैं, खाते में कितनी राशि उपलब्ध हैं और कितनी नहीं आदि सभी चीजें देख सकते हैं.

Q : मनरेगा योजना को शुरू करने का मुख्य लक्ष्य क्या है ?

Ans : इस योजना को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य देश में गरीब लोगों को रोजगार प्रदान करना है, ऐसे नागरिक इस योजना का उपयोग कर प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों का काम कर राशि प्राप्त कर सकते हैं.

Q : नरेगा जॉब कार्ड का लाभ किसे मिलेगा ?

Ans : देश के नाबालिग और गरीब नागरिकों को इस योजना का लाभ मिलेगा. और वे इसकी मदद से अपनी रोजमर्रा की जरुरत को पूरा कर सकते हैं.

Q : मैं नरेगा जॉब कार्ड कैसे डाउनलोड कर सकता हूँ ?

Ans : सबसे पहले आपको नरेगा की अधिकारिक वेबसाइट में जाना होगा. फिर ‘जॉब कार्ड’ की लिंक पर क्लिक करने के बाद आपसे कुछ जानकारी मांगी जाएगी. जानकारी भरने के बाद ‘प्रोसीड’ बटन पर क्लिक करिये, फिर सामने नरेगा जॉब कार्ड सूची प्रदर्शित हो जाएगी. उसमें अपने नाम की लिंक पर क्लिक करने के बाद इसे डाउनलोड किया जा सकता है. और इसके बाद जॉब कार्ड का प्रिंटआउट निकाल सकते हैं.

Q : नरेगा जॉब कार्ड के क्या लाभ हैं ?

Ans : भारत के विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में रहने वाले जरुरतमंद लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान किये जाने का लाभ प्राप्त होता है.

Q : ग्रामीण क्षेत्र में रहने में वाले लोगों को नरेगा के तहत किस तरह का कार्य दिया जाता है ?

Ans : इस योजना के तहत लाभार्थियों को जो कार्य दिए जाते हैं वह कोई भी अकुशल व्यक्ति कर सकता हैं अर्थात उन्हें अकुशल कार्य दिए जाते हैं.

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एनआरसी में बवाल जानिए क्यों है सबकुछ इस हॉट टॉपिक पर! राज खोलने वाली बड़ी खबरें

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एनआरसी में बवाल जानिए क्यों है

एनआरसी में बवाल जानिए क्यों है –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित  है आज में आपको एनआरसी के बारे मत बताने जा रहा हूँ वर्तमान समय का सबसे ज्यादा अधिक चर्चित मुद्दा है राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर(NRC). जिसे देश में विरोधी गतिविधियां उत्पन्न करने वाले आंदोलन का नाम भी दिया जा रहा है।



सबसे पहले यह कानून 1951 में लागू किया गया था जिसमें सरकार द्वारा भारत में रहने वाले नागरिकों के बारे में, उनके घरों के बारे में, और उनकी संपत्ति आदि के बारे में जानने के लिए इस कानून को तैयार किया गया था। क्योंकि इस कानून को अपडेट करने की मांग ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा सन् 1975 में पहली बार उठाई गई थी। फिलहाल वर्तमान में इसे फिर से अपडेट किया गया है जिसको लेकर पूरे भारत देश में बवाल छिड़ा हुआ है। तो आखिर है क्या यह कानून और क्यों लागू किया जा रहा है आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से….

एनआरसी क्या है?

मुख्य रूप से एनआरसी को असम राज्य के लिए लागू किया गया है. जहां पर बांग्लादेशी, स्वतंत्रता से सिर्फ 1 दिन पहले ही 24 मार्च 1971 के आधी रात के समय राज्य में बांग्लादेशी शरणार्थियों ने प्रवेश कर लिया था, उनके नाम मतदाता सूची से हटाने और उन्हें वापस बांग्लादेश भेजने के लिए यह कानून लागू किया गया था। एनआरसी को अपडेट करने वाला यह पहला राज्य है जिसने साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी थी। आज के समय में असम की जनसंख्या कम से कम 33 मिलियन है।

एनआरसी के मुख्य उद्देश्य

एनआरसी में बवाल जानिए क्यों है –एनआरसी लागू करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि वे लोग इस कानून द्वारा असम में मौजूद विदेशी और भारतीय नागरिकों की पहचान करके उन्हें अलग अलग करना चाहती है जो भी विदेशी बाहर से आकर असम में बस गया है और भारत की नागरिकता प्राप्त करने के हर भरसक प्रयास कर रहा है उसे असम से बाहर निकाल कर वापस उसके देश में पहुंचाया जाएगा।

ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और असम के बहुत से नागरिकों और संगठनों का यह कहना है कि बांग्लादेशी जो उनके असम में गैरकानूनी रूप से रह रहे हैं उन्होंने वहां के रहने वाले नागरिकों के बहुत सारे अधिकारों को उनसे छीन लिया है।

इस कानून का मुख्य उद्देश्य यह भी है कि असम में बढ़ते हुए अपराधों को रोकने के लिए जल्द से जल्द विदेशियों और शरणार्थियों को असम राज्य से निकालना बेहद आवश्यक हो गया है। असम में रहने वाले नागरिकों का कहना है कि उन बांग्लादेशियों की वजह से धीरे-धीरे असम में अपराध बढ़ते जा रहे हैं।

एनआरसी का संपूर्ण ब्यौरा हासिल करने वाला डाटा

एनआरसी में बवाल जानिए क्यों है –क्या आप जानते हैं एनआरसी की इस प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए सरकार ने कितनी कड़ी मेहनत की है और साथ ही पानी की तरह पैसा भी बहाया है तो आइए जानते हैं निम्नलिखित डाटा के जरिए।

सरकार के अनुसार एनआरसी कि इस प्रक्रिया पर सरकार द्वारा लगभग 12 सौ करोड़ रुपए का खर्च किया जा चुका है।

इस प्रक्रिया में बहुत सारे अधिकारी शामिल हैं उन सरकारी अधिकारियों की संख्या लगभग 55000 से भी अधिक है जिन्होंने दिन-रात मिलकर कड़ी मेहनत से इस एनआरसी की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया है।

इस पूरी प्रक्रिया में लगभग4 मिलियन दस्तावेजों की जांच की गई है जिसके बाद इस निर्णय पर आया गया है कि कौन इस देश में रहने लायक है और कौन इस देश का मात्र शरणार्थी है उसे देश से बाहर कर देना चाहिए।

असम का नागरिक कौन है

असम के लोगों को असम की नागरिकता साबित करने के लिए कुछ जरूरी दस्तावेज जमा कराने बेहद आवश्यक है। जिसके लिए सरकार उनसे यह दस्तावेज मांग रही है ताकि असम वहां के मूल लोग असम के नागरिक रह सकें।

असम के नागरिकों से सबसे पहली मांगे की गई है कि वह कोई ऐसा दस्तावेज प्रस्तुत करें जो यह साबित करता हो कि वह 25 मार्च 1971 से पहले समय से असम में रह रहे है।

इसमें दो सूची जारी की गई है जिनके अनुसार जो नागरिक सूची ए में आते हैं उन्हें कुछ आवश्यक दस्तावेजों को जमा कराना होगा इसके अतिरिक्त जो नागरिक सूची भी में आते हैं उन्हें असम के पूर्वजों से संबंधित दस्तावेज जमा कराने होंगे।


एनआरसी में बवाल जानिए क्यों है –जो नागरिक खुद को असम का नागरिक साबित करना चाहते हैं उन्हें अपने पुराने पूर्वजों से जुड़े दस्तावेज सूची के अंतर्गत मौजूद नाम के अनुसार जमा कराने होंगे ताकि यह पुष्टि की जा सके कि वे असम के नागरिक हैं।

डोकलाम विवाद क्या था यहाँ पढ़ें

सूची A में शामिल दस्तावेज

  • सूची ए के अनुसार असम के नागरिकों के पास 25 मार्च 1971 तक का इलेक्ट्रोल रोल मौजूद होना चाहिए।
  • उनके पास 1951 का एनआरसी दस्तावेज भी उपलब्ध होना चाहिए।
  • यदि वे असम के नागरिक हैं और किराए पर रहते हैं तो उसकी किराय का रिकॉर्ड और वहां पर रहने का कोई भी प्रमाण पत्र उन्हें जमा कराना होगा।
  • असम के पुराने नागरिकों को खुद को नागरिक प्रमाणित करने के लिए नागरिकता प्रमाण पत्र दिखाना अति आवश्यक है।
  • जिस पते पर वह रहता है या फिर पहले रहता था उसका स्थाई निवासी प्रमाण पत्र भी उसके पास होना बेहद जरूरी है।
  • कोई ऐसा प्रमाण पत्र जिससे साबित होता है कि वह भारत का मूल निवासी है जैसे कि पासपोर्ट की कॉपी भी उसके पास होनी अति आवश्यक है।
  • इसके अलावा वे अपने बैंक या एलआईजी दस्तावेजों को इकट्ठा करके भी सरकार के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं ताकि वे असम के नागरिक प्रमाणित हो जाए।
  • शैक्षिक प्रमाण पत्र और अदालत के आदेश रिकॉर्ड भी असम के नागरिकों के पास मौजूद होने चाहिए तभी वे असम के नागरिक प्रमाणित हो पाएंगे।
  • वहां पर मौजूद नागरिकों के पास शरणार्थी पंजीकरण प्रमाण पत्र भी उपलब्ध होना चाहिए जिससे यह साबित हो सके कि वे भारत से संबंध रखते हैं या नहीं।

सूची बी में शामिल मुख्य दस्तावेज

  • इस सूची में सबसे पहले भूमि दस्तावेजों को शामिल किया गया है जो असम में रहने वाले नागरिक के पास अवश्य होने चाहिए।
  • उसके बाद बोर्ड स्कूल से पास की गई शिक्षा का प्रमाण पत्र या विश्वविद्यालय का प्रमाण पत्र उस व्यक्ति के पास मौजूद होना चाहिए।
  • एनआरसी की जांच के लिए उसका जन्म प्रमाण पत्र उसके पास होना अति आवश्यक है।
  • किसी भी प्रकार का कानूनी दस्तावेज जैसे बैंक, एलआईजी, पोस्ट ऑफिस रिकॉर्ड आदि उस नागरिक के पास उपलब्ध होना बेहद आवश्यक है।
  • यदि व्यक्ति वहां का मूल निवासी है तो उसके पास राशन कार्ड अवश्य होगा और साथ ही मतदाता सूची में उसका नाम मौजूद होना आवश्यक है।
  • इसके अतिरिक्त वह कोई भी ऐसा दस्तावेज प्रस्तुत कर सकता है जो कानूनी रूप से स्वीकार्य है।
  • जो महिलाएं विवाहित हैं उनके पास एक सर्कल अधिकारी या ग्राम पंचायत सचिव द्वारा प्रमाण पत्र जो उन्हें प्रदान किया जाता है वह उन महिलाओं के पास मौजूद होना चाहिए।

एनआरसी को कैसे अपडेट किया गया है?

असम का कोई भी नागरिक जो अपना नाम एनआरसी की लिस्ट में चयनित पाना चाहता है तो उसे 25 मार्च 1971 से पहले राज्य में अपना निवास और अपनी नागरिकता को साबित करना होगा। इसके लिए उन्हें लिस्ट ए में दिए गए किसी भी दस्तावेज को एनआरसी फॉर्म भर के उसके साथ जमा कराना होगा ताकि सरकार उसकी पुष्टि करके उसे असम का एवं नागरिक मानकर एनआरसी की लिस्ट में शामिल कर सके।

दूसरी तरफ यदि कोई व्यक्ति ऐसा दावा करता है कि उसके पूर्वज कई सालों से असम में रह रहे हैं तो उसके लिए भी उसे सबूतों को इकट्ठा करना पड़ेगा और लिस्ट भी में शामिल किसी भी दस्तावेज के साथ एनआरसी फॉर्म भरकर सरकार के पास जमा कराना होगा।

एनआरसी की वर्तमान लिस्ट

असम में लगातार एनआरसी प्रक्रिया पर कार्यवाही की जा रही है जिसके अनुसार 31 अगस्त 2019 को एक सूची जारी की गई थी और इस सूची में 19,6,657 लोगों को शामिल ही नहीं किया गया है जबकि इसके अतिरिक्त 3.11 करोड़ लोग जो असम के रहने वाले हैं उन्हें इस नागरिकता सूची में शामिल किया गया है और उन नागरिकों ने एनआरसी के अंतर्गत अपना आवेदन भी भर दिया है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार 3.29 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्होंने एनआरसी की सूची के अंतर्गत असम की नागरिकता प्राप्त करने के लिए खुद का आवेदन भर दिया है।

जिन नागरिकों को इस सूची में शामिल नहीं किया गया है उन्हें विदेशी घोषित किया जा चुका है यदि वे किसी अदालत द्वारा विदेशी घोषित कर किए जा चुके हैं, तो सरकार द्वारा पूरी तरह से उनकी गिरफ्तारी के लिए आदेश दिए जा चुके हैं, और उन्हें नजर बंदी केंद्र में रखा जाने का आदेश भी दिया गया है।

क्या सूची से बहिष्करण का मतलब विदेशी घोषित होना है?

ऐसा नहीं है कि सूची से बहिष्करण का मतलब वह व्यक्ति विदेशी घोषित हो गया है। जिनको कोई सूची से बाहर कर दिया गया है वह लोग विदेशी ट्रिब्यूनलो पर आवेदन भर सकते हैं जो अर्ध- नागरिक निकाय के अंतर्गत आवेदन भर सकते हैं जिसे 1964 में लागू किया गया था।

यदि ट्रिब्यूनल द्वारा भी उसे विदेशी घोषित कर दिया गया है तो वह उच्च न्यायालयों की ओर रुख कर सकता है और वहां पर अपने केस को दर्ज कराकर कानून के अनुसार अपनी लड़ाई लड़ सकता है। यदि वह व्यक्ति वहां पर भी खुद को नागरिक घोषित नहीं कर पाता है और सरकार और कानून दोनों के द्वारा ही विदेशी घोषित कर दिया जाता है तो उस व्यक्ति को  गिरफ्तार करके नजरबंद किया जा सकता है।

जुलाई 2019 तक इसी प्रक्रिया के द्वारा 1,17,164 व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान केस लड़ने वाले व्यक्ति जिन्हें विदेशी घोषित किया गया है उनमें से 1,145 व्यक्तियों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। सूत्रों का कहना है कि सरकार इसे 2022 तक पुरे देश में लागु करना चाहती है, ताकि देश वासियों की पहचान हो सके.

एनआरसी में बवाल जानिए क्यों है –अंत में हम इतना ही बताना चाहेंगे कि यह कानून किसी भी भारतीय नागरिक को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं बनाया गया है और ना ही लागू किया गया है। अन्यथा यह कानून उन व्यक्तियों के लिए बनाया गया है जो गैरकानूनी रूप से भारत में घुस आए हैं और बिना नागरिकता के भारत में रह रहे हैं। भारत सरकार का मुख्य उद्देश्य इस कानून को लागू करने का बस यही है कि किसी भी भारतीय नागरिक के अधिकारों का हनन किए बिना विदेशियों को देश से निकाला दे दिया जाए। इस कानून के खिलाफ किसी भी व्यक्ति को विरोध प्रदर्शन करने और हिंसा करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है।

एनआरसी एवं एनपीआर में अंतर (NRC vs NPR)

मोदी सरकार ने एनपीआर को मंजूरी देते हुए ये क्लियर किया है कि इसका एनआरसी से कोई सम्बन्ध नहीं है. एनपीआर में लोगों को दस्तावेज दिखाकर जनगणना करानी होगी, सरकार इस दस्तावेज को सही मानेगी और इस पर कोई कार्यवाही नहीं होगी. जबकि एनआरसी में गलत तरह से, बिना किसी कागजात के रह रहे लोगों को अपनी नागरिकता प्रूफ करनी होगी.




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अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला हुआ विवादित स्थल पर बनेगा मंदिर

हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला हुआ उसके बारे में बताने जा रहा हूँ अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद या बाबरी मस्जिद विवाद भारत के कई लम्बे विवादों में एक है. इस विवाद की वजह से देश में कई ऐसी घटनाएँ हुईं, जो लोगों को आज भी शोक में डाल देती हैं. यह मुद्दा एक तरफ तो कोर्ट में चलता रहा, किन्तु दूसरी तरफ़ राजनेताओ ने अपनी तरह से इसका फायदा उठाने की कोशिश की, जिस वजह से देश में कई स्थान पर कई दंगे हुए और हजारों की संख्या में लोग मारे गये. यह केस अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच चूका है. इस विवाद से सम्बंधित सभी आवश्यक जानकारी यहाँ पर दी जा रही है

अयोध्या विवाद, राम मंदिर – बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट –दोस्तों आप लोग ये तो जानते ही होंगे कि कई सालों पहले से राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मुद्दे पर विवाद चल रहा है, जिस पर अब तक कोई फैसला नहीं आ पा रहा था. और इसके पीछे कई सारी लड़ाइयाँ एवं दंगे – फसाद भी हुए. यहाँ तक कि मस्जिद के गुम्मद को गिरा कर वहां श्रीराम की मूर्ति भी स्थापित कर दी गई थी. किन्तु अब आपको हम बता दें कि देश की सबसे बड़ी कोर्ट द्वारा इस पर अंतिम फैसला सुना दिया गया है. इसका फैसला यह है कि अब उस जमीन पर राम लला का मंदिर बनाया जायेगा, और मस्जिद के लिए किसी दूसरे स्थान पर जगह दी जाएगी. आइये इस लेख में हम आपको इस फैसले के बारे में पूरी बात बताते हैं.

अयोध्या विवाद का फैसला

अयोध्या राम मंदिर – बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतिम फैसला सुना दिया गया है. फैसले को मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई जी के साथ 5 सदस्यों को अध्यक्षता वाली बैंच द्वारा 5 – 0 की सर्वसम्मति से सुनाया गया है. जोकि इस प्रकार है –



अयोध्या में जिस जमीन पर विवाद चल रहा था वह जमीन 2.77 एकड़ की हैं, जिसे लोग राम जन्म भूमि भी कहते हैं. अब यह जमीन हिन्दुओं के पक्ष में आ गई है. उस स्थान पर अब राम लला का मंदिर बनाया जायेगा.

इसके साथ ही कोर्ट में मुस्लिमों के पक्ष में यह फैसला सुनाया गया है कि केंद्र या राज्य सरकार द्वारा मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन अयोध्या में ही वैकल्पिक स्थान पर दी जानी चाहिए.

अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र एवं राज्य सरकार पर दामोदार डाल दिया है. और कहा हैं कि सरकार 3 महीने के अंदर एक ट्रस्ट बनाये जिसे राम मंदिर के निर्माण का कार्य सौंपा जायेगा. और इसकी देखरेख भी केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा ही की जाएगी.

अयोध्या विवाद के फैसले पर मुख्य बातें

  • अयोध्या विवाद पर हाई कोर्ट में सन 2010 में 3 बराबर पक्ष में जमीन को बांटने का फैसला लिया था.
  • इसके बाद इस पर सुप्रीमकोर्ट में अपील की गई. तब एएसआई को इस पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया था.
  • इस अपील के बाद 40 दिनों में इस पर सुनवाई हुई और अक्टूबर 2019 में इसका फैसला निश्चित कर दिया गया, जिसे 9 नवंबर 2019 को सुनाया गया.
  • इस फैसले के चलते सुप्रीमकोर्ट ने 3 पक्षों में से एक निर्मोही अखाड़ा एवं शिया वक्फ बोर्ड के दावे को समाप्त कर दिया है.
  • सुप्रीमकोर्ट ने इस विवादित जमीन पर एएसआई और पुरातात्विक सबूतों पर विशेष ध्यान दिया है. उनका कहना है कि बाबरी मस्जिद को जिस स्थान पर बनाया गया था वह जमीन खाली नहीं थी. इसका दावा इस बात से किया जा रहा है कि मस्जिद का जो बुनियादी ढांचा था इस्लामिक अंश के रूप में नहीं था.
  • एएसआई की रिपोर्ट के अनुसार इस बुनियादी ढांचे में मंदिर के अंश पाए गये हैं न कि इस्कामिक अंश इसलिए यह कहना गलत होगा कि इस जमीन पर बाबरी मस्जिद बनी हुई थी. बल्कि मंदिर के स्थान पर मस्जिद बनाई गई थी.
  • कोर्ट में जब यह फैसला पढ़ना शुरू किया गया तो उसमें एक मुद्दा यह सामने आया कि मुस्लिम लोग इस जगह पर नमाज पढ़ा करते थे. लेकिन मुस्लिमों द्वारा यहाँ पर पूरी तरह से कब्जा नहीं किया गया था. क्योकि यहाँ पर सन 1856 – 57 में रेल्लिंग लगाई गई थी. जिसके चलते मस्जिद के भीतर नमाज पढ़ी जाती थी एवं बाहर हिन्दुओं द्वारा भगवान राम की आराधना की जाती थी.
  • सन 1992 में इस विवाद ने बहुत विकराल रूप ले लिया था, इस साल हिन्दुओं द्वारा मस्जिद को गिरा दिया था. कोर्ट ने फैसला पढ़ते हुए इस मुद्दे पर भी कहा कि यह कानूनी रूप से गलत था.
  • कोर्ट का कहना है कि राम लला का मंदिर बनाने का पूरा भार सरकार पर हैं वह इसके लिए एक ट्रस्ट बनाएं. और वह चाहे तो निर्मोही अखाड़ा को भी एक प्रतिनिधि के रूप में इसमें शामिल कर सकती है.
  • अयोध्या विवाद को लेकर मुस्लिम पक्ष द्वारा इसके कोई भी सबूत पेश नहीं किये गये कि इस स्थान पर इस्लामिक ढांचा था. जबकि एएसआई की रिपोर्ट के मुताबिक इस स्थान पर खुदाई के बाद मंदिर के अंश दिखाई दिए हैं. इसलिए इससे यह साबित होता हैं कि यह जगह हिन्दुओं की है. और इसके साथ एक तथ्य यह भी हैं कि इस स्थान से हिन्दुओं की आस्था भी जुड़ी हुई हैं क्योकि यह राम जन्म भूमि हैं. इन अभी मुद्दों को मद्देनजर रखते हुए इस पर फैसला सुनाया गया हैं अतः उम्मीद हैं कि आप भी इस फैसले का स्वागत करेंगे और शांति बनाएं रखेंगे. चलिए विस्तार से जानते है कि अयोध्या राम मंदिर, बाबरी मस्जिद मुद्दा क्या है?

रामजन्म भूमि विवाद क्या है

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट –कई हिन्दू धार्मिक पुस्तकों में इस बात का उल्लेख प्राप्त होता है, कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था. भगवान राम हिन्दुओं के पूज्यनीय भगवानों में से एक हैं. उनका जन्म अयोध्या में हुआ और कालान्तर में उन्होंने अयोध्या पर राज भी किया. मध्यकालीन भारत में इस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया. यह मंदिर उस स्थान पर बनाया गया, जहाँ पर भगवान राम का जन्म हुआ था. अतः इसे जन्मभूमि भी कहा जाता है. इसके बाद सन 1528 में यहाँ पर एक मस्जिद बनाई गयी.

यह मस्जिद मीर बाक़ी द्वारा बनाई गयी थी, जो कि बाबर का एक आर्मी जनरल था. ग़ौरतलब है कि बाबर वर्ष 1526 में भारत में आया और उसके साथ मीर बाक़ी भी आया और अवध क्षेत्र को जीत कर वहाँ अपना शासन स्थापित किया. इसी समय मीर बाक़ी ने यहाँ पर एक मस्जिद बनायी, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया. चूँकि मीर बाक़ी बाबर के सेना का था और इस मस्जिद के बनने के पीछे बाबर की अहम भूमिका रही थी. अतः इसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है. आरम्भ में इस मस्जिद को यहाँ की आम भाषा में मस्जिदे जन्मस्थान भी कहा जाता था.

बाबरी मस्जिद विवाद का इतिहास       

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट –बाबरी मस्जिद के विवाद की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के आस पास ही हो गयी थी. यह मस्जिद इस समय यहाँ पर बनी हुई थी. यहाँ के मुस्लिम इस मस्जिद के अन्दर जाकर अपनी इबादत करते थे और इसी के बाहर एक चबूतरा था, जहाँ पर हिन्दू अपनी पूजा अर्चना करते थे. इस वजह से यहाँ पर हिन्दू मुस्लिम विवाद का एक माहौल बनता रहा. सन 1853 के आस पास इस

मस्जिद को लेकर स्थानीय दंगे होने शुरू हो गये. इस समय अंग्रेजों का शासन था. अंग्रेजों ने इस स्थान को फेंसिंग से घेर दिया, ताकि एक तरफ मस्जिद के अन्दर जाकर मुस्लिम सजदे कर सकें और दूसरी तरफ हिन्दू पूजा पाठ आदि कर सकें. वर्ष 1885 में राम चबूतरा के महंत रघुवर दास के फैजाबाद कोर्ट में एक अपील की, कि इस चबूतरे पर मंदिर बनाने दिया जाये. चूँकि चबूतरे पर पूजा अर्चना एक लम्बे समय से की जा रही थी. अतः इस स्थान पर इन्होने एक मंदिर बनाने की मांग की. हालाँकि कोर्ट की तरफ से यह अपील खारिज कर दी गयी. कोर्ट के जज ने कहा, कि इस स्थान पर चूँकि 350 साल से यह मस्जिद खड़ी है, अतः इस स्थान पर अब मंदिर बनाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती.

वर्ष 1949 के घटनाक्रम

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट –वर्ष 1949 में इस मस्जिद से सम्बद्ध कुछ अन्य घटनाएं घटीं. इस वर्ष 22/ 23 दिसम्बर की रात को इस मस्जिद में ज़बरदस्ती घुस कर रामलला (भगवान श्री राम का बाल रूप) की मुर्तियां यहाँ पर रख दीं और बात ये फैलाई गयी, कि मस्जिद के अन्दर रामलला की मूर्ति प्रकट हुई है. इसके उपरान्त यहाँ के स्थानीय प्रशासन द्वारा इस स्थान को अपने देख रेख में ले लिया गया. दरअसल जब मुस्लिमों के यहाँ के स्थानीय ऑफिसर के के नायर को इस स्थान से मूर्ति हटवाने के लिए कहा, (क्योंकि मस्जिद में मुर्तियां नहीं होती) तो उन्होंने कहा कि यदि इस समय यहाँ से मूर्तियाँ हटायीं गयी, तो दंगे हो सकते हैं. अतः यह स्थान प्रशासन के अधीन ही रखा जाएगा.


जनवरी वर्ष 1950 में राम चबूतरे के तात्कालिक महंत रामचंद्र दास ने पुनः कोर्ट में याचिका दायर की और कहा, कि चूँकि मस्जिद के अन्दर मूर्तियाँ भी स्वयं प्रकट हो गयीं हैं, अतः अब वहाँ पर यानि मस्जिद के अन्दर हिन्दुओं को पूजा अर्चना करने की अनुमती दी जाए. हालाँकि कोर्ट ने इस याचिका को पुनः खारिज कर दिया और निर्णय लिया कि इस मस्जिद के अन्दर किसी को भी जाने की अनुमति नहीं होगी. न तो मुश्लिमों को और न ही हिन्दुओं को. मस्जिद में प्रशासन ने ताला लगा दिया और अब न तो मुस्लिम इबादत के लिए अन्दर दाख़िल हो सकते थे और न ही हिन्दू.

वर्ष 1959 के घटनाक्रम                             

चूँकि यह स्थान अब एक विवादित स्थान का रूप ले चूका था, अतः इस स्थान को लेकर अन्य तरह के विवाद भी सामने आने लगे थे. इस समय के विशेष घटनाक्रमों का वर्णन नीचे किया जा रहा है.

वर्ष 1959 में निर्मोही अखाड़ा नामक धार्मिक हिन्दू संस्था, जो कि भगवान राम की भक्ति करती है और स्वयं इस स्थान पर मंदिर बनाने के लिए कई वर्षों से लड़ रही थी, उसने प्रशासन से मांग की, कि इस स्थान की सभी देख रेख की जिम्मेवारियां उनके अधीन कर दी जाएँ. ग़ौरतलब है कि 1853 में हुए दंगों में भी इस संस्था की मुख्य भूमिका थी.

वर्ष 1961 में सुन्नी वक्फ़ बोर्ड ने भी प्रशासन से मांग करते हुए कहा, की यहाँ से मूर्तियाँ हटा दी जाएँ और यहाँ पर हिन्दुओं को पूजा करने नहीं दी जाए.

इसके बाद लगातार 20- 25 वर्ष तक यह मुद्दा कोर्ट में चलता रहा, और इस विवाद में बढ़ोत्तरी नहीं हुई.

1980 का दशक:

1980 के दशक में यह मांग राजनैतिक रूप लेने लगी और यहाँ मांग किया जाने लगा, कि इस स्थान पर मंदिर बनाया जाए. इस समय सन 1984 में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा एक धर्म संसद बुलाया गया और कई धार्मिक लोगों को एक स्थान पर इकठ्ठा किया गया. यहाँ पर यह तय किया गया, कि रामजन्म भूमि मुद्दे को राजनैतिक तौर पर उठाया जाना चाहिए और इस स्थान पर रामजन्मभूमि मंदिर का ही निर्माण किया जाना चाहिए.

वर्ष 1986 में शाहबानो केस:

ऐसा कहा जाता है कि इस समय हिन्दुओं को खुश करने के लिए राजीव गाँधी सरकार ने बाबरी मस्जिद के ताले हिन्दुओं के पूजा पाठ के लिए खुलवा दिए. इस समय हुआ ये था, कि फैज़ाबाद जिला कोर्ट से ये आदेश आया कि यहाँ के ताले खोल दिए जाएँ और आदेश के 1 घंटे के अन्दर ही यहाँ के ताले खोल दिए गये. हालाँकि कोर्ट के अहम् फैसलों के बाद भी सरकार महीनों इस पर अमल नहीं करती, किन्तु यह इस सरकार की एक बहुत बड़ी विडम्बना थी, कि फैसले के 1 घटे के अन्दर यहाँ के ताले खोल दिए गये. इस घटना का दूरदर्शन पर टीवी ब्रॉडकास्टिंग भी की गयी थी. कांग्रेस के इस फैसले से यह लगने लगा, कि इन्होने हिन्दुओं को भी खुश करने की कोशिश की है.

इसके बाद विभिन्न स्थानों पर मुस्लिमों ने इसका विरोध करना शुरू किया और इसी समय ‘बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी’ का गठन किया गया. इसी समय बाबरी मस्जिद के मुद्दे को लेकर कई जगह दंगे होने शुरू हुए और सैकड़ों लोग मारे गये. ग़ौरतलब है कि इस समय से ही भारत में दंगों का दौर शुरू हुआ और लगातार एक लम्बे समय तक चलता रहा. आज भी आये दिन दंगों की खबरें सुनने को मिल ही जाती हैं.

हिंदुत्व की रानजीति का आविर्भाव:

भारत में इसी समय यानि 80 के में हिंदुत्व की राजनीति का आविर्भाव हुआ. इस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इनसे संलग्न अन्य राजनैतिक दल जैसे विश्व हिन्दू परिषद और भाजपा आदि ने इस मुद्दे को और भी जोर शोर से आगे बढ़ाया. जो मुद्दा अब तक एक लीगल केस और धार्मिक मामला था, उसे भारतीय जनता पार्टी ने अब एक राजनैतिक कैंपेन का रूप दे दिया था.

इसी समय विश्व हिन्दू परिषद ने इस मुद्दे को लेकर एक कारसेवा की शुरूआत की. यह एक तरह का कैंपेन था. जिसके अंतर्गत आम हिन्दुओं को ये कहा जाता था, कि वे आगे आयें और मंदिर निर्माण के वालंटियर कार्यों में अपना सहयोग दें. इस कैंपेन के अंतर्गत लोगों को ईंट वगैरह दान करने के लिए भी कहा गया,

जिसका प्रयोग मंदिर बनाने के लिए किया जाना था. ऐसे लोगों को कारसेवक कहा जाता है. इस समय इस मुद्दे को सामाजिक रंग देने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अयोध्या में राम जानकी रथ यात्रा का आरम्भ किया. इसी समय विश्व हिन्दू परिषद के द्वारा युवाओं के लिए बजरंग दल का गठन किया गया. इस समय बजरंग दल का मुख्य कार्य रामजानकी रथयात्रा को सुरक्षा देना था.

इसी समय धार्मिक भावों को और भी सबल बनाने के लिए शिला पूजन का कार्यक्रम भी शुरू किया गया. शिला का अर्थ पत्थर होता है. इसके अंतर्गत देश भर के लोग रामनाम लिखी हुई ईंटें भेजते थे. इन ईंटों को इस आधार पर इकठ्ठा करना शुरू किया गया, कि जब भी राम मंदिर का निर्माण आरम्भ होगा, उसमे इन ईंटों का प्रयोग किया जाएगा.

वर्ष 1989 की घटनाएं :

वर्ष 1989 के अगस्त के महीने में इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच ने बाबरी मस्जिद विवाद से सम्बंधित सभी पेंडिंग केस को एक स्थान पर कर दिया. इस समय कोर्ट की तरफ से ये आदेश था, कि मस्जिद की स्थिति ज्यों की त्यों बनायी रखी जाए अर्थात जब तक फ़ैसला नहीं आ जाता, तब तक यहाँ पर न तो मंदिर बनाया जाए और न ही मस्जिद.




इसी वर्ष नवम्बर के महीने में विश्व हिन्दू परिषद ने इस स्थान पर शिलान्यास का कार्यक्रम रखा. शिलान्यास किसी इमारत के बनने के पहले भूमि पूजन की विधि को कहा जाता है. हिन्दुओं में यह मान्यता है कि किसी भी इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण से पहले वहाँ का शिलान्यास शुभ होता है

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