भारतीय राजनीति में दल-बदल का क्या तात्पर्य है- भारतीय राजनीति में दल-बदल का तात्पर्य किसी राजनीतिक दल का सदस्य अपने दल छोड़कर दूसरे दल में शामिल होने से है। यह एक ऐसी घटना है जो भारतीय राजनीति में अक्सर देखने को मिलती है। दल-बदल के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि व्यक्तिगत मतभेद, राजनीतिक हित, या व्यक्तिगत लाभ।
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दल-बदल कानून क्या है- What is anti-defection law?
दल-बदल कानून, जिसे दलबदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) भी कहा जाता है, भारत में एक कानून है जो संसद के सदस्यों (सांसदों) और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों (विधायकों) को अपने दल छोड़ने से रोकता है। यह कानून 1985 में पारित किया गया था। दल-बदल कानून के तहत, यदि कोई सांसद या विधायक अपने दल छोड़कर दूसरे दल में शामिल होता है, तो उसे छह महीने के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है। हालांकि, इस कानून के तहत कुछ अपवाद भी हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी राजनीतिक दल द्वारा किसी सांसद या विधायक को स्वयं अपने दल से निष्कासित कर दिया जाता है, तो वह इस कानून के तहत अयोग्य नहीं होगा।
भारतीय राजनीति में दल-बदल का क्या तात्पर्य है- What is the meaning of party defection in Indian politics
दल-बदल की प्रथा भारतीय राजनीति में एक पुरानी समस्या है। इसे पहली बार 1960 के दशक में देखा गया था। उस समय, इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी के कई सदस्य पार्टी छोड़कर अन्य दलों में शामिल हो गए थे। इस घटना के बाद से, दल-बदल की घटनाओं में लगातार वृद्धि हुई है। दल-बदल की कई नकारात्मक प्रभाव हैं। यह राजनीतिक अस्थिरता और अनिश्चितता का कारण बनता है। यह सरकार की कार्यक्षमता को भी प्रभावित करता है। दल-बदल के कारण, सरकार को अक्सर अपना बहुमत खोना पड़ता है, जिससे नए चुनाव कराने पड़ते हैं।
दल-बदल को रोकने के लिए, भारत सरकार ने 1985 में दल-बदल विरोधी कानून बनाया था। इस कानून के तहत, यदि कोई सांसद या विधायक अपने दल छोड़कर दूसरे दल में शामिल होता है, तो उसे छह महीने के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है। हालांकि, इस कानून का भी प्रभावी रूप से कार्यान्वयन नहीं हो पाया है। दल-बदल की समस्या को दूर करने के लिए, राजनीतिक दलों को मजबूत करना आवश्यक है। इसके लिए, राजनीतिक दलों को अधिक लोकतांत्रिक होना चाहिए और अपने सदस्यों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। इसके अलावा, चुनाव आयोग को भी दल-बदल की घटनाओं पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए।
दल-बदल कानून कब लागू हुआ- When did the anti-defection law come into effect?
भारतीय राजनीति में दल-बदल का क्या तात्पर्य है- दल-बदल कानून 18 मार्च 1985 को लागू हुआ। यह कानून भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची में शामिल है। इस कानून को 52वें संशोधन अधिनियम द्वारा सम्मिलित किया गया था। दल-बदल कानून के तहत, यदि कोई सांसद या विधायक अपने दल छोड़कर दूसरे दल में शामिल होता है, तो उसे छह महीने के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है। हालांकि, इस कानून के तहत कुछ अपवाद भी हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी राजनीतिक दल द्वारा किसी सांसद या विधायक को स्वयं अपने दल से निष्कासित कर दिया जाता है, तो वह इस कानून के तहत अयोग्य नहीं होगा। भारतीय राजनीति में दल-बदल का क्या तात्पर्य है
दल-बदल कानून के प्रावधान
- बदल कानून के तहत कुछ अपवाद भी हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी राजनीतिक दल द्वारा किसी सांसद या विधायक को स्वयं अपने दल से निष्कासित कर दिया जाता है
- कानून के तहत अयोग्य नहीं होगा। इसके अलावा, यदि कोई सांसद या विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्र में अपने दल के उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ता है, तो वह भी इस कानून के तहत अयोग्य नहीं होगा।
- दल-बदल कानून के तहत, यदि कोई सांसद या विधायक अपने दल छोड़कर दूसरे दल में शामिल होता है, तो उसे छह महीने के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
Q:- दल-बदल कानून किस अनुसूची में है
दसवीं अनुसूची
Q:- दल बदल कानून कब जोड़ा गया?
18 मार्च 1985
Q:-नौवीं अनुसूची कब जोड़ा गया?
1951
Q:- दल-बदल विरोधी कानून किस प्रधानमंत्री’
राजीव गांधी