तानाजी ने कैसे कैसे जीता सिंहगढ़ –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको तानाजी के बारे में बताने जा रहा हु। यदि हम इतिहास की बात करें तो हम लोगों को कई ऐसे नाम मुंह जुबानी याद हैं जिन्होंने अपनी वीरता और पराक्रम से इतिहास के पन्नों पर अपना नाम दर्ज किया हुआ है. परंतु दुर्भाग्यवश ऐसे कई वीर और पराक्रमी योद्धा थे जिन्हें आज का भारत कहीं ना कहीं भूल चुका है या फिर याद करना ही नहीं चाहता है . ऐसे वीर पुरुष थे जिन्होंने कई छोटी बड़ी लड़ाइयां लड़ी इतना ही नहीं अपनी वीरता और पराक्रम से अपने साम्राज्य एवं अपनी मातृभूमि की मरते दम तक रक्षा की. ऐसे ही एक योद्धा थे जिनके बारे में आज हम आपको बताने वाले हैं उस वीर योद्धा का नाम तानाजी मालुसरे हैं
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सिंहगढ़ की लड़ाई, युद्ध, किला का इतिहास, (कोंडाणा किल्ला इतिहास
कहा जाता है कि पुणे का सिंहगढ़ का किला तानाजी मालुसरे की वीरता और अपनी मातृभूमि पर वीरगति को प्राप्त हुए तानाजी के लिए प्रसिद्ध है. तानाजी ने कई छोटी बड़ी लड़ाइयां लड़ी थी परंतु 1670 का सिंहगढ़ का युद्ध सबसे महत्वपूर्ण युद्ध था.
आज हम आप को सिंहगढ़ के युद्ध और तानाजी के बलिदान के बारे में इस लेख के माध्यम से बताने वाले हैं . हालांकि भारतीय सिनेमा जगत में तानाजी नाम की मूवी भी आने वाली हैं और इसका भी जिक्र हम आपको इसी लेख में करेंगे और बतायेंगे कि इस फिल्म में कौन तानाजी का किरदार निभा रहा
सिंहगढ़ के किले से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी ?
महाराष्ट्र के पुणे में स्थित यह किला लगभग 6 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित है और समुंद्र तट से लगभग 3 फुट ऊपर है. यह किला पर्यटकों को अपनी ओर खूब आकर्षित करता है . सिंहगढ़ का किला भुनेश्वर राज के सीमा पर स्थित है जो सह्याद्री कि पूर्वी शाखा के साथ फैला हुआ है .
सिंहगढ़ का किला पुणे के किसी भी स्थान से लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है यह किला लगभग पुणे के 30 किलोमीटर दूर स्थित है . इस किले से जैसे पुरंदर, राजगड, तोरणा, लोहगड, विसापूर, तुंग आदि बड़े-बड़े दुर्ग आसानी से दिखाई देते हैं जो वाकई में एक चमत्कारी दृश्य का रूप ले लेते हैं .
कुछ कही सुनी बातें हैं जो यह बताती है कि इस किले का इतिहास लगभग 2000 साल वर्षों पुराना तक का है . इस किले का वास्तविक नाम पहले “कोंडाना ” हुआ करता था . परंतु शिवाजी महाराज ने इस किले का नाम बदल कल सिंहगढ़ रख दिया इसके पीछे का क्या राज है यह भी हम आपको आगे बताने वाले हैं . इतना ही नहीं राष्ट्रीय टीवी प्रसारण दूरदर्शन का टावर सिंहगढ़ पर ही मौजूद है.
एक छोटा सा परिचय
नाम | सिंहगढ़ |
ऊंचाई | 4400 मीटर |
तरह | पहाड़ी किला |
चढ़ाई की रेंज | बीच |
जगह | पुणे जिला, महाराष्ट्र |
निकटतम गाँव | सिंहगढ़ |
सिंहगढ़ का युद्ध किन के बीच और कैसे हुआ
तानाजी ने कैसे कैसे जीता सिंहगढ़-इतिहासकारों के अनुसार 1649 में शिवाजी महाराज ने अपने पिता की रिहाई के लिए इस किले को आदिलशाह को समर्पित कर दिया था . 1665 में शिवाजी ने मुगलों के साथ एक संधि में 22 किलो समेत (जिसमें यह सिंहगढ़ का किला भी था) इसे मुगलों को लौटाना पड़ा था. परंतु शिवाजी महाराज मुगलों के बीच हुई इस संधि से बिल्कुल भी खुश नहीं थे और उन्होंने मराठों की सेना के साथ मिलकर इस किले पर दोबारा कब्जा करने का विचार किया था . इसी जगह से सिंहगढ़ के ऐतिहासिक युद्ध का आरंभ हुआ जो युद्ध वीरता और बलिदान के लिए भी इतिहास के पन्नों में अमर है . इस युद्ध को 4 February 1670 में लड़ा गया था
इतिहासकारों की मानें तो जिस समय यह युद्ध लड़ा जाना था उसी समय तानाजी मालुसरे अपने पुत्र की शादी की तैयारी कर रहे थे . तानाजी मालुसरे और शिवाजी महाराज बचपन के ही मित्र थे और वे शिवाजी महाराज के सेनापति भी थे
युद्ध की खबर मिलते ही तानाजी ने अपने बेटे के विवाह को छोड़ युद्ध की ओर कूच कर दिया . शिवाजी महाराज और तानाजी ने मिलकर युद्ध की रणनीति तुरंत तैयार की और इस तरह तानाजी मराठा सेना का नेतृत्व करते हुए युद्ध की ओर बढ़ गये . कहा जाता है कि यह किला राजनीतिक दृष्टि से और सुरक्षा की दृष्टि से शिवाजी महाराज के लिए जीतना बहुत ही महत्वपूर्ण था .
तानाजी के भाई सूर्या मालदरे भी युद्ध में साथ में थे .तानाजी ने इस युद्ध का समय रात को चुना था . युद्ध की रात को तानाजी और उनके सैनिक किले के नीचे जाकर खड़े हो गए परंतु किले की दीवारें बहुत ही ऊँची ऊँची थी जिन पर चढ़ना असंभव था
जब तानाजी को कोई और विकल्प नहीं नजर आया तो उन्होंने अपने चार-पांच बहादुर सैनिकों के साथ किले के ऊपर चढ़ना आरंभ कर दिया . तानाजी धीरे-धीरे थोड़े समय पश्चात किले के बिल्कुल नजदीक तक पहुंच गए फिर उन्होंने एक पेड़ में रस्सी को बांधकर नीचे की ओर किया जहां से उनके और भी सैनिक किले पर चढ़ाई कर सके . उस समय उस किले की रखवाली का जिम्मा उदय भान राठौड़ के ऊपर था . उदय भान पहले एक राजपूत सेनापति के प्रमुख थे और हिंदू थे .
जब तानाजी किले के ऊपर चल गए तो उनके भाई सूर्य मालुसरे और उनके अन्य सैनिक दूसरी तरफ कल्याण द्वार की तरफ पहुंच गए थे और द्वार के खुलने का इंतजार कर रहे थे . किले में सफलतापूर्वक दाखिल होने के बाद में तानाजी और उदय भान के बीच घमासान युद्ध हुआ . इन दोनों लोगों के बीच युद्ध काफी समय तक चलता रहा, परंतु एक दूसरे ने अपनी अंतिम सांस तक हार नहीं मानी थी . लंबे समय तक युद्ध चलने के पश्चात तानाजी को उदय भान ने मार दिया था और कुछ समय बाद मराठा सैनिक ने उदयभान को मार दिया इस तरह इस युद्ध को मराठा ने जीता
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सिंहगढ़ का किला शिवाजी महाराज के अधीन हो गया और मुगल इस युद्ध में पराजित हुए . जैसे ही किला मराठों के हाथ आया वैसे ही शिवाजी महाराज ने एक वाक्य को बहुत ही तेज आवाज में कहा वह यह था , ‘गढ़ आला पण सिंह गेला’ इस वाक्य का हिंदी अर्थ हैं ‘गढ़ तो आ गया परंतु मेरा शेर शहीद हो गया’. सिंहगढ़ का किला तानाजी मालुसरे के बलिदान के लिए इतिहास में और देशवासियों के दिलों में प्रसिद्ध है
सिंहगढ़ के किले पर चढ़ने को लेकर अफवाह
तानाजी ने कैसे कैसे जीता सिंहगढ़ –इस युद्ध को लेकर कुछ अफवाह भी फैली हुई थी जैसे कि तानाजी ने किले के ऊपर चढ़ाई करने के लिए एक विशालकाय छिपकली का सहारा लिया था . यह छिपकली बड़ी से बड़ी चढ़ाई पर आसानी से चल सकती थी और अनगिनत पुरुषों का भी भार उठा सकती थी . कहा जाता है कि इस छिपकली के ऊपर तानाजी ने रस्सी बांधी और जब यह छिपकली ऊपर चढ़ने लगी तो इसी के सहारे सैनिकों ने भी किले पर चढ़ना शुरू किया था
लेकिन कुछ इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं है . एक लेखक स्टीवर्ड गार्डन ने भी अपनी किताब “द मराठा राज” में लिखा है कि किले पर चढ़ने के लिए तानाजी ने रस्सी का सहारा लिया था और इसी रस्सी के सहारे तानाजी और उनके अन्य सैनिक भी किले पर चढ़ सके थे .
इस किले के कोंडाना पुराने नाम को बदलकर सिंहगढ़ क्यों रखा गया
शिवाजी महाराज के परम मित्र और उनके सेनापति के रूप में कार्य करने वाले तानाजी ने सिंहगढ़ के युद्ध में अपनी वीरता एवं पराक्रम का भली-भांति रूप से परिचय दिया था . शिवाजी महाराज के सपने को और सिंहगढ़ को मुगलों के शासन से मुक्त कराया था . इस युद्ध का पूरा श्रेय सिर्फ और सिर्फ तानाजी मालुसरे जी के ऊपर जाता है
उनकी मातृभूमि के प्रति बलिदान को देख शिवाजी महाराज ने इस किले का नाम बदलकर सिंहगढ़ रख दिया . सिंहगढ़ नाम रखने का केवल सिर्फ तानाजी मालुसरे को श्रद्धांजलि देने के लिए ही रखा गया था . यही कारण है कि कोंडाना के नाम की जगह इस किले का नाम सिंहगढ़ रख दिया गया था
तानाजी: द अनसंग वॉरियर फिल्म के बारे में
तानाजी ने कैसे कैसे जीता सिंहगढ़ –आजकल बॉलीवुड समय-समय पर इतिहास में घटित सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्में बनाता जा रहा है . ऐसे ही सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म तानाजी द अनसंग वॉरियर 10 जनवरी 2020 को भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है . यह फिल्म तानाजी के पूरे जीवन काल पर आधारित है . तानाजी के बलिदान एवं मातृभूमि की रक्षा को भलीभांति इस फिल्म के रूप में दर्शाने की कोशिश की गई है . यह अजय देवगन की 100वीं फिल्म है . इस फिल्म में अजय देवगन और सैफ अली खान मेन रोल में नजर आने वाले हैं . नवंबर 2019 को इस फिल्म के ट्रेलर को रिलीज कर दिया गया था.
इस फिल्म में आपको अजय देवगन तानाजी मालुसरे के किरदार में नजर आने वाले हैं और वहीं पर उदय भान का किरदार सैफ अली खान ने भली-भांति निभाने की कोशिश की है . इस फिल्म में अभिनेत्री काजोल देवगन ने भी अपना किरदार तानाजी की पत्नी सावित्री मालुसरे के रूप में निभाया है .
वहीं पर आपको इस फिल्म में शरद केलकर छत्रपति शिवाजी महाराज का किरदार करते हुए नजर आने वाले हैं . इस फिल्म के ट्रेलर को देखकर ही पता चलता है कि यह फिल्म काफी ज्यादा दर्शकों को लुभाने वाली है . इस फिल्म को 150 करोड़ रुपए के बजट में बनाया गया है . फिल्म के रिलीज होने के बाद पता चलेगा कि इसमें किस तरीके से तानाजी के बलिदान को दर्शाया गया है
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