Friday, May 3, 2024
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Class 12th History Chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ  Notes In Hindi

Textbook NCERT
Class Class 12
Subject HISTORY
Chapter Chapter 1
Chapter Name ईंटें , मनके तथा अस्थियाँ ( हड़प्पा सभ्यता )
Category Class 12 History Notes in Hindi
Medium Hindi

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परिचय

chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता की ईंटें, मनके और अस्थियाँ तीन महत्वपूर्ण अवशेष हैं जो इस सभ्यता के बारे में बहुत कुछ बताते हैं। इस अध्याय मे हम हड़प्पा सभ्यता / सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में पड़ेगे तथा हड़प्पा बासी लोगो के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन पर चर्चा करेंगे ।

ईंटें

हड़प्पा सभ्यता के लोग ईंटों के निर्माण में माहिर थे। उन्होंने विभिन्न आकारों और आकारों की ईंटें बनाईं, जिन्हें वे अपने घरों, मंदिरों और अन्य इमारतों को बनाने के लिए इस्तेमाल करते थे। हड़प्पा ईंटें अच्छी तरह से बनाई गई थीं और मजबूत थीं। वे आमतौर पर लाल रंग के थे, लेकिन कभी-कभी उन्हें सफेद या पीले रंग में भी रंगा जाता था।

हड़प्पा सभ्यता की ईंटें

मनके

chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता के लोग मनकों के उत्पादन में भी माहिर थे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के मनकों बनाए, जिनमें मिट्टी, पत्थर, धातु और सीप शामिल थे। मनकों का उपयोग आभूषण, कपड़ों की सजावट और अन्य धार्मिक या औपचारिक उद्देश्यों के लिए किया जाता था। हड़प्पा मनकों में अक्सर जटिल डिजाइन और पैटर्न होते थे, जो इस सभ्यता के कलात्मक कौशल को दर्शाते हैं।

हड़प्पा सभ्यता के मनके

अस्थियाँ

हड़प्पा सभ्यता के लोग अपने मृतकों को दफनाते थे। कब्रों में अक्सर मृतकों के साथ दफनाए गए सामान होते थे, जिनमें मिट्टी के बर्तन, गहने और अन्य वस्तुएं शामिल होती थीं। हड़प्पा कब्रों में पाए जाने वाले मनुष्यों और जानवरों की अस्थियां इस सभ्यता के जीवन और संस्कृति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।

हड़प्पा सभ्यता की अस्थियाँ

ये तीन अवशेष हड़प्पा सभ्यता की एक समृद्ध और जटिल सभ्यता के रूप में हमारी समझ को बढ़ाने में मदद करते हैं।

हड़प्पा सभ्यता / सिंधु घाटी सभ्यता :-

🔹 प्राचीन भारत की पहली सभ्यता हड़प्पा सभ्यता है । यह संस्कृति पहली बार हड़प्पा नामक स्थान पर खोजी गई थी इसलिए उसी के नाम पर इस संस्कृति का नाम रखा गया है। हड़प्पा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मोंटगोमरी जिले की रावी नदी के बाएं तट पर स्थित है । लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच इसका काल निर्धरण किया गया है। इस सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है ।

🔹 इस सभ्यता का विस्तार प्रारंभ में 12 लाख 99 हजार 600 वर्ग K.M निर्धारित किया गया था । जो अब 15 – 20 लाख वर्ग K.M के आस – पास संभावित है । सिंधु सभ्यता के लिए सुझाया गया नाम सिंधु सरस्वति संस्कृति एवं सिंधु सभ्यता का उपयुक्त नाम हडप्पा सभय्ता है।

🔹 सिंधु सभ्यता मे महादेवन एवं विश्वनाथ द्वारा किए गए शोध के आधार पर 2467 अभिलेख/ अभिलिखित सबूत मिले हैं । जिसकी संख्या अब 3000 के आसपास हो गई है ।

हड़प्पा संस्कृति काल / सिंधु घाटी सभ्यता :-

🔹 2600 से 1900 ईसा पूर्व

🔹 हड़प्पा संस्कृति के भाग / चरण :

( i ) आरंभिक हड़प्पा संस्कृति

( ii ) विकसित हड़प्पा संस्कृति

( iii ) परवर्ती हड़प्पा संस्कृति

🔹 B . C . ( Before Christ ) – ईसा पूर्व

🔹 A . D ( Ano Dominy ) – ईसा मसीह के जन्म वर्ष

🔹 B . P ( Before Present ) – आज से पहले

हड़प्पा सभ्यता की खोज :-

नोट :- हड़प्पा सभ्यता की खोज 1921-22 में दया राम साहनी , रखालदास बनर्जी और सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में हुई।

1856 में जब कराची और लाहौर के बीच पहली बार रेलवे लाइन का निर्माण किया जा रहा था तो उत्खनन कार्य के दौरान अचानक हड़प्पा पुरास्थल मिला। यह स्थान आधुनिक समय में पाकिस्तान में है। उन कर्मचारियों ने इसे खंडहर समझ लिया और यहां की हजारों ईंट उखाड़ कर यहां से ले गए और ईंटों का इस्तेमाल रेलवे लाइन बिछाने में किया गया लेकिन वह यह नहीं जान सके की यहां कोई सभ्यता थी।

🔹 उस समय जॉन व्रटन और विलियम व्रटन दोनो ने एक महत्वपूर्ण सभ्यता होने का संकेत दिया लेकिन फिर भी कोई उत्खनन नही किया गया।

🔹 1920 – 21 में माधोस्वरूप वत्स व दयाराम साहनी के द्वारा पहली बार हड़प्पा का उत्खनन किया गया।

🔹 1922 में रखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो नामक स्थान का उत्खनन किया जो पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र में लरकाना जिले में सिंधु नदी के दाएं तट पर स्थित है। रखाल दास बनर्जी इस टीले के ऊपर स्थित कुषाण युगीन , बौद्ध स्तुप का उत्खनन कर रहे थे।

नोट :- मोहनजोदडो का शाब्दिक अर्थ :-i ) मृतको का टीला ii ) मुर्दो का टीला iii ) प्रेतो का टीला iv ) सिंध का बाग v ) सिंध ना नक्लस्थान।

🔹 इन दोनों उत्खनन के बाद सन् 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल सर जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के सामने एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। सर जॉन मार्शल ने लंदन वीकली नामक पत्रिका में इसे सिंधु सभ्यता नाम दिया।

हड़प्पा सभ्यता को सिन्धुघाटी सभ्यता क्यों कहा जाता है ? :-

🔹 इस सभ्यता को सिन्धुघाटी सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योकि यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी के आसपास फैली हुई थी । यह इलाका उपजाऊ था , हड़प्यावासी यहाँ पर खेती किया करते थे।

सिंधु सभ्यता की लिपि :-

🔹 सिंधु लिपि को पढ़ने का प्रथम प्रयास 1925 में वेंडेल ने तथा नवीतम प्रयास नटवर झा , घनपत सिंह धान्या , राजाराम ने की थी । लेकिन अभी तक भी सिंधु लिपि को प्रमाणित रूप से पढ़ा नही जा सकता है ।

🔹 लिपि के सबसे ज्यादा अक्षर मोहनजोदड़ो से तथा दूसरे नंबर पर हड़प्पा से मिले हैं । लिपि के सबसे बड़े अक्षर धोलावीरा से मिले हैं । जिन्हें Notice Board का प्रतीक माना गया है ।

🔹 सिंधु लिपि भावचित्रात्मक है । अर्थात चित्रो के माध्यम से भावो को अभिव्यक्त करना । सिंधु लिपि दोनो ओर से लिखी जाती है इसलिए इसे बुस्ट्रोफेदेन कहा गया है ।

🔹 सिंधु सभ्यता के विभिन्न पक्षो को जानने की दृष्टि से विशेष उलेखनीय है : सेलखड़ी प्रस्तर एवं पक्की मिट्टी से निर्मित विभिन्न आकर और प्रकार की मोहरे जिनमे आयताकार और वर्गाकार प्रमुख हैं ।

🔹 आयताकार पर केवल लेख मिलते है जबकि वर्गाकार पर लेख और चित्र दोनो मिलते है । मेसोपोटामिया की 5 बेलनाकार मोहरे मोहनजोदड़ो से मिली है तथा फारस की बनी हुई संगमरमर की मोहरे लोथल से मिली है ।

सिंधु सभ्यता के निर्माता :-

🔹 सिंधु सभ्यता के अंतर्गत उत्खनन में मुख्य 4 प्रकार के अस्ति पंजर मिले हैं

( 1 ) प्रोटो – आस्ट्रोलॉयड

( 2 ) भूमध्य सागरीय

( 3 ) अल्पाइन

( 4 ) मंगोलियन

🔹 इसके आधार पर यह सम्भावना स्वीकार की गई है । इसके निर्माण मे मित्रित प्रजातियों के लोगों का स्थान था वैसे तो इनका संस्थापक द्रविडा को माना गया है। जो बाद में दक्षिण भारत में पलायन कर गये ।

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सिंधु सभ्यता की प्रमुख विशेषता :-

🔹कास्य युगीन सभ्यता थी ।

🔹 भारतीय इतिहास में प्रथम नगरीय क्रंति का प्रतीक जिसकी पुष्टि उत्खनन से प्राप्त कई महत्वपूर्ण नगरो के अवशेषो से होती है ।

🔹 व्यापार व वाणिज्य गतिविधियों में महत्व ।

🔹 जीवन के प्रति शांतिवादी दृष्टिकोण ( उत्खनन में न तो हथियार , औजार न ही रक्षात्मक हथियार जैसे ढाल , कवच आदि । )

🔹 जीवन के प्रति समिष्टवादी दृष्टिकोण ( इसकी पुष्टि मोहनजोदड़ो के विशाल स्नानागार , धोलावीरा एवं जूनीकरण से प्राप्त स्टेडियम , जूनिकरण एव मोहनजोदड़ो से प्राप्त सभा भवन )

🔹 सैन्धव वासी लोग लोहे से परिचित नही थे उलेखनीय है कि लोहे का प्रचीनतम साक्ष्य/सबूत उत्तर प्रदेश के ऐटा जिला अतरंजीखेड़ा से मिला है । जिसका समय 1050 ई० पु० के आस – पास स्वीकार किया गया है ।

🔹 सिंधु वासी लोग पीतल से भी परिचित नही थे ।

हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के प्रमुख स्रोत :-

( i ) आवास

( ii ) मृदभांड

( iii ) आभूषण

( iv ) औजार और

( v ) मुहरें

( vi ) इमारतें और खुदाई से मिले सिक्के ।

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल :-

🔹 हड़प्पा सभ्यता के कुछ स्थल वर्तमान में पाकिस्तान में है और बाकी स्थल भारत में है :-

नागेश्वर ( गुजरात )

बालाकोट ( पाकिस्तान )

चन्हुदड़ो ( पाकिस्तान )

कोटदीजी ( पाकिस्तान )

धौलावीरा ( गुजरात )

लोथल ( गुजरात )

कालीबंगन ( राजस्थान )

बनावली ( हरियाणा )

राखीगढ़ी ( हरियाणा )

हड़प्पा सभ्यता में नगर नियोजन तथा वास्तुकला 

( 1 ) नगर योजना

( 2 ) भवन निर्माण

( 3 ) सार्वजनिक भवन

( 4 ) विशाल स्नानघर

( 5 ) अन्न भंडार

( 6 ) जल निकास प्रणाली

हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना ( बस्तियाँ ) :-

🔹 हड़प्पा सभ्यता की बस्तियाँ दो भागों में विभाजित थी

( i ) दुर्ग :- ये कच्ची इंटों की चबूतरे पर बनी होती थी | दुर्ग को दीवारों से घेरा गया था | दुर्ग पर बनी संरचनाओं का प्रयोग संभवत : विशिष्ट सार्वजानिक प्रयोग के लिए किया जाता था ।

( ii ) निचला शहर :- निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है । निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था । इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे ।

हड़प्पा सभ्यता की सडकों और गलियों की विशेषताएँ :-

🔹 समकोण पर एक – दूसरे को काटती हुई सीधी सड़के जिसके कारण पूरा नगर क्षेत्र विभिन्न आयातकार एव खण्डों मे विभक्त हो गया है । जिसे जाल पद्धति , ऑक्सफोर्ट पद्धति , चैस बोर्ड पद्धति कहते हैं ।

🔹 सड़को का निर्माण मिट्टी से किया जाता था ।

chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ नोट :- बनावली में सड़कों पर गाड़ी के पहियो के निशान मिले हैं ।एवं सड़क को पक्की करने के प्रयास के भी साक्ष्य कालीबंगा से मिले हैं ।

🔹 सड़क के किनारे – किनारे पानी निकासी के लिए नालियाँ बनी होती थी / नालियो को ढकने की व्यवस्या होती थी । नालियो को फर्श से ढका जाता था । नालियो मे थोड़ी दूर पर शोषक कूप होता या जिनमे गंदगी रुकती थी । पक्की ईटो का प्रयोग बहुत अधिक मात्रा मे किया जाता था ।

हड़प्पा सभ्यता में भवन निर्माण :-

🔹 हड़प्पा सभ्यता में माकानो की योजना आगन पर आधारित थी । जिसमें शौचालय , स्नानागार , रसोईघर , सयनकक्ष आदि के अतरिक्त अन्य कमरे भी मिले है ।

🔹 मजबूती के लिये नीव नर्माण की जाती थी । सड़को के किनारे माकान बने थे जिनसे सुविधा हवा , सफाई , प्रकाश की पूर्ण व्यवस्या होती थी ।

🔹 मकान जमीन से ऊँचाई पर बनाये जाते थे । मकानों के दरवाजे सड़को की ओर खुले रहते थे । मकानों के प्रवेश द्वार मुख्य मार्ग की आपेक्षा गली की ओर खुले थे । जिसके कारण बाहरी हलचल , शोरगुल एवं प्रदूषण से सुरक्षित रह होगा

🔹 सड़को के किनारे – किनारे पानी की निकासी के लिए नालियाँ बनी होती थी । नालियो को ढकने की व्यवस्था होती थी ।

🔹 नालियो को फर्श से ढखा जाता था। नालियो में थोड़ी – थोड़ी दूर पर शोषक कूप लगे रहते थे । जिनमें गंदगी रुकी रहती थी । पक्की ईटो का प्रयोग बहुत अधिक मात्रा में किया जाता था ।

हड़प्पा सभ्यता में सार्वजनिक भवन :-

🔹 सिंधु घाटी सभ्यता को दो भागों में विभाजित किया गया । जिसके ऊपरी हिस्से में सार्वजनिक भवन व निचले हिस्से में व्यक्तिगत आवास बने हुए थे ।

🔹 उत्खनन में सावर्जनिक या राज्यकीय भवनों के अवशेष मिले हैं । एक अवशेष मोहनजोदड़ो से मिला है । जो 70 मीटर लम्बा और 24 मीटर चौडा है । यह इस्मार्क उस काल की संपन्नता का परिच्यक है । यहाँ पर ही 71 मीटर लंबा व इतना ही चौड़ा एक वर्गाकार कक्ष का अवशेष प्राप्त हुआ है । जिसमे 20 सतम्भ है ।

🔹 एक अनुमान के अनुसार इस भवन का उपयोग आपसी विचार विमर्श धार्मिक आयोजन , सामाजिक आयोजन के लिए किया जाता होगा ।

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हड़प्पा सभ्यता में विशाल स्नानागार :-

🔹 स्नानागार का जलाशय किले में स्थित था । 11.88 मीटर लंबा 7.01 मीटर चौड़ा 2.43 मीटर गेहरा इसके तल पर सीढ़िया बनी हुई है । यह सीडिया पक्की ईटो से बनाई गई है

🔹 स्नान कुड़ के चारो और कमरे बने हुए है और बराऊनदे भी बनाये गए है । स्नान कुंड के कमरे के समीप एक कुआ बना हुआ है । जिससे पानी कुंड में आता था और कुंड के गन्दे पानी की निकासी एक अन्य दरवाजे ( द्वार ) से की जाती थी । गंदा पानी फिर बड़ी नालियो के माध्यम से शहर से बाहर निकल जाता ।

🔹 स्नानागार की दीवारों के निर्माण में सीलन से बचने के लिए डावर या तारकोल का प्रयोग किया जाता था । पूरे स्नानागार में 6 प्रवेश द्वार होते थे । स्नानागार में गर्म पानी की व्यवस्था भी होती थी ।

नोट :- इस स्नानागार के बारेे में अमेस्ट मैके कहते हैं कि यह स्नानागार प्रोहित के स्नान के लिये होता था ।

अन्न भण्डार :-

🔹 हड़प्पा नगर के उत्खनन में यहाँ के किले के राजमार्ग मे 6-6 पक्तियो वाले अन्न भण्डार मिले है । अन्न भण्डार की लंबाई 18 मीटर चौड़ाई + 7 मीटर लम्बाई ( 18 x 7 ) इसका मुख्य द्वार नदी की और खुलता या क्योकि जो भी सामान जल मार्ग से आता था आन्न भण्डार मे एकत्रित किया जाता था ।

 हड़प्पा सभ्यता में जल निकास प्रणाली 

🔹 हड़प्पा संस्कृति नगरीय थी । इन लोगो का जीवन स्तर उच्च था । घरो का गंदा पानी सड़को के किनारे बनी हुई नालियो से लेकर शहर के बाहर हो जाता था । इन नालियो में पक्की ईटो का प्रयोग किया जाता था । इनका पिलास्टर किया जाता था । जिससे नालियो को कोई नुकसान न पहुंचे इसलिए पिलास्टर के लिए चुना , मिट्टी , जिप्सम का प्रयोग किया जाता था ।

chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ नोट :- प्रोफेसर रामचरण शर्मा की मान्यता है कि कंश युग की किसी भी दूसरी सभ्यता ने सफाई व स्वास्थ को इतना महत्व नही दिया जितना हडप्पा देश के वासियो ने दिया ।

नोट :- बहुतायत सेे पक्की ईटो का प्रयोग मुख्य रूप से चार प्रकार की ईटे प्रयुक्त की जाती थी ।

1️⃣      आयताकार = 4:2:1

2️⃣     L   एल प्रकार की ईटे = इन ईटो का प्रयोग कोने में किया जाता था ।

3️⃣      नोकदार ईटे = इनका प्रयोग कुओ में किया जाता है ।

4️⃣     T टी प्रकार की ईटो = इनका प्रयोग सीढ़ियों में किया जाता था ।

🔹 अलकृत ईटो से निर्मित फर्श कालीबंगा से मिला है ।

🔹 ईटो पर बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पंजे का निशान मिला है । यह चन्हूदड़ों सभ्यता से मिला है ।

हड़प्पा सभ्यता में सामाजिक जीवन 

  • सामाजिक संगठन
  • भोजन
  • वस्त्र
  • आभूषण व सौंदर्य प्रर्दशन
  • मनोरजन
  • प्रौद्योगिकी
  • मृतक कर्म
  • चिकित्सा विज्ञान

हड़प्पा सभ्यता में सामाजिक सगठन :-

🔹इतिहासकार गार्नर चाइल्ड ने समाज को चार भागों में विभाजित किया है :-

1️⃣    शिक्षित वर्ग :- प्रोहित , चिकित्सा , जादूगर , जोतिस

2️⃣    योद्धा / सैनिक :- इनकी पुष्टि दुर्गों में उपस्थिति के अवशेषों से मिले है ।

3️⃣   व्यपारि व दस्तक्षार :- बुनकर , कुमार , सुवर्णकर

4️⃣   श्रमिक एवं कृषक :- टोकरी बनाने वाले , मछली मारने वाले

हड़प्पा सभ्यता में भोजन :-

🔹 गेहूँ , चावल , जौ , तेल , मटर , सब्जियां वह मासाहारी भी थे । कछुआ , गड़ियाल , भेड़ , बकरी , सुअर व मछली का माँस इत्यादि खाते थे ।

🔹 इस काल मे चित्रो में खजूर , अनार , तरबूज , नींबू , नारियल आदि के फलों का चित्रण किया जाता था । वह इन फ़लो का उपयोग भोजन के रूप में करते थे

🔹 इस प्रकार हड़प्पा वासी माँसाहारी व शाकाहारी दोनों ही थे ।

हड़प्पा सभ्यता में वस्त्र :-

🔹 वह भिन्नन – भिन्नन ऋतुओ में अलग – अलग वस्त्र पहनते थे । महिला और पुरुष के वस्त्रों में भिन्नता पाई जाती थी ।

🔹 पुरुषो में धोती , पगड़ी , दशाले ( कुर्ता ) , एव महिलाओं में घागरा में साड़ी पहनती थी ।

नोट :- चन्हूदड़ों से प्राप्त मूर्ति में पगड़ी मिली है ।

हड़प्पा सभ्यता में आभूषण एव सौंदर्य प्रसाधन :-

🔹 स्त्री व पुरुष दोनों ही आभूषण पहनते थे । व दोनों ही सौंदर्य प्रसाधन के सामग्री का प्रयोग करते थे । आँगूठी , कान की बाली , चुडिया , बाजू बंद , हार , धनी लोग हाथो में सोने जैसी कीमती धातू के आभूषण पहनते थे । जबकि सामान्य लोग ताँबे , काँसा तथा हड्ड़ी के बने आभूषण पहनते थे ।

हड़प्पा सभ्यता में मनोरंजन :-

chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ 🔹 मछली पकड़ना , शिकार करना उनका प्रिय मनोरंजन था । जानवरो की दौड़ , जुनझुने , सीटिया तथा शतरंज के खेल उनके मनोरंजन के साधन थे ।

🔹 इसके अलावा पत्थर तथा सीप की गोलियों से खेल खेलते थे । खुदाई में पशुओं की मूर्ति , बेल गाड़िया , दो पहिये वाला तांबे का रथ मिला है । नत्यागना कि मूर्ति भी मिली है । जिसमे पता चलता है कि हड़प्पावासी भी नाच – गाना करते थे ।

प्रौद्योगिकी :-

🔹 वे धातु कर्म का निर्माण करते थे । अयस्कों से धातु अलग करते थे । मिश्रित धातु का भी निर्माण करते थे । ताँवे में चांदी व टिन मिलाकर काँसा बना लेते थे । अश्यक की आपूर्ति राजस्थान प्रान्त के खेड़ी ( झुनझुनू ) व बिहार प्रान्त के हजारी बाग से करते थे । चकमक पत्थर के बॉट व नालिकाकार बम बनाते थे ।

हड़प्पा सभ्यता में म्रतक कर्म ( अंत्योष्टि क्रिया ) :-

🔹 हड़प्पा कालीन नगरो ( मोहनजोदड़ो , बनावली , हडप्पा , कालीबंगा , ) आदि में शमसान के अवशेष मिले हैं।

🔹 सर जॉन मार्शल के अनुसार इसे तीन भागो में विभाजित किया है ।

1 ) पूर्ण समाधिकरण / शवाधान

2 ) आंशिक समाधिकरण / शवाधान

3 ) दाह कर्म / क्लेश शवाधान

पूर्ण शवाधान :-

chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ 🔹 शव को उत्तर से लेकर दक्षिण की ओर दफनाया जाता था ।

नोट :- हडप्पा में एक कब्र ऐसी मिली है जिसे दक्षिण से उत्तर की ओर दफनाया गया है । और सबको दाबूत में रखा गया है । इसकी पहचान विशेष कब्र से की गई हैं ।

नोट :- लोथल में पूर्व से पश्चिम की ओर दफनाने का अवशेष मिला है । तथा शव करवट के रूप में हैं।

नोट :- लोथल से ही युग्म शव ( स्त्री , पुरुष ) मिला है । इससे पता चलता है कि उस समय सती प्रथा प्रचलित थी ।

🔹 सबसे बड़ा कबरिस्तान हडप्पा से मिला है जिसे R37 की संज्ञा दी गई है ।

🔹 हडप्पा संस्कृति में एक ओर कब्रिस्तान मिला है जिसे H कब्रिस्तान की संज्ञा दी गयी है।

आंशिक शवाधान :-

🔹 शव को पशु – पक्षियों द्वारा खाने के बाद बचे हुए अवशेषों को दफना देना ।

क्लेश शवाधान / दाह कर्म :-

🔹 दाह के पश्चात बचे हुए अवशेष को किसी कलश या मंजूषा ( बर्तन ) में रखकर दफना देना ।

हड़प्पा सभ्यता में चिकित्सा विज्ञान :-

🔹 जड़ी – बूटी , फल , वृक्षों के पत्त्ते , विशिष्ट प्रजाति के वृक्षों के फूल , रस का सेवन करते थे । हिरणो के सींगो से चूर्ण बनाया जाता था । समुद्र के फेन ( झांग ) से भी औषधि बनाई जाती थी । शिलाजीत भी पाई जाती थी ।

हड़प्पा सभ्यता में आर्थिक जीवन 

1 ) कृषि

2 ) पशु – पालन

3 ) व्यपार

4 ) कुटीर उद्योग

5 ) माप तोल के बाट

कृषि :-

🔹 जौ , गेहूँ , मटर , खजूर ,कपास , तरबूज , तिल , राई , सरसो जैसे फसले उगाई जाती थी । इनका उत्पादन फावड़े से तो नही मिला। लेकिन हल के अवशेष कालीबंगा से मिले हैं । फसल को पाषण के काटने के लिये हासिये का प्रयोग किया जाता था ।

🔹 आनाज को धोने के लिए दो पाहिये वाली गाड़ी का प्रयोग किया जाता था । बैल सिंधु सभय्ता का सबसे प्रमुख पशु था

पशु – पालन :-

chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ 🔹 बकरी , भेड़ , सुअर , भैस , बैल , पालते थे बैल के रूप में सांड प्रमुख पशु था । इसके अतिरिक्त हाथी ओर पाले जाते थे । किंतु घोड़े से वो परिचित नही थे । वे कुत्तो और बिल्ली पालते थे । साथ ही तोता , मयूर मूंगे , भालू , चीता , खरगोश , बत्तख , हिरण आदि के चित्र उनकी मूर्तियों के चित्रों में अंकित है । परंतु अवशेष नही है ।

व्यपार :-

🔹 हड़प्पा के लोग व्यपार को अधिक महत्व देते थे ।

🔹 नाप के लिए शीशे की पटरी का प्रयोग करते थे ।

🔹 चन्हुदड़ो में उत्खनन से प्राप्त पत्थरों के एक वाट का प्रयोग कारखाना मिला है ।

🔹 समाज मे अनेक व्यापारिक वर्गों के लिए रहते थे । जिनका कार्य केवल व्यपार या व्यवसाय से होता था । इनमे कुमार , बढई , सुनार आदि प्रमुख थे।

🔹 आर्थिक व्यपार के अतरिक्त इनका ईरान , अफगानिस्तान , मेसोपोटामिया , इराक के साथ व्यपारिक सम्बंध थे ।

🔹 अतरिक्त व्यपार वस्तु विलियम के माध्यम से जिनकी बाहरी व्यपार मोहरो से किया जाता था । दूर देशो में जहाज रानी का प्रयोग किया करते थे।

कुटीर उद्योग :-

chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ 🔹 कुमारो के द्वारा चाक से निर्मित मिट्टी की मूर्तियां , खिलोने , बर्तन के अतिरिक्त ईटो का निर्माण भी बड़े पैमाने पर किया जाता था ।

🔹 इस काल मे हाथी दाँत , सीपियों धातु के विभिन्न आभूषण बनाये जाते ।

माप तोल वाट :-

🔹 तोल के लिए तराज़ू व वाट सम्मिलित थे । चिकने पत्थर से वाट का निर्माण किया जाता था ( चर्ट ) नामक पत्थर से वाट का निर्माण किया जाता था । सबसे बड़े वाट का वजन 375 ग्राम था सबसे छोटे का वजन 0.87 ग्राम था।

हड़प्पा सभ्यता में धार्मिक जीवन 

  • मात्र देवी की उपासना ।
  • शिव या परम पुरुष की आराधना ।
  • वृक्ष ओर पशु पूजा ।
  • लिंग पूजा ।

मात्र देवी की पूजा या उपासना :-

🔹 हड़प्पा संस्कृति में मन्दिरो का अभाव था । उत्खनन में ऐसा कोई भवन प्राप्त नही हुआ जिसे देवालय की संज्ञा दी जा सके । इस काल मे मिट्टी तथा धातु की अनेक नग्न नारी की मूर्तियां मिली है

🔹 मात्र देवी के अनेक चित्र ताबीजों में मिट्टी के बर्तनों में तथा मोहरो में अंकित है । इसमें यह पता चलता है कि यहाँ पर मात्र देवी की उपासना की जाती है।

नोट :- प्रो आर एस त्रिपाठी की मान्यता है कि पूजा के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रतिष्ठा मात्र शक्ति की थी । जिसकी अराजना प्रचीन काल से ईरान से लेकर इंजियन सागर तक के सारे देश मे होते थे ।

🔹 मात्र देवी श्रिष्टि की उत्पत्ति व वनस्पति के फैलाव में देवी का योगदान स्वीकार किया गया है ।

🔹 इस समय मात्र देवी को प्रसनन करने के लिए बलि प्रथा का प्रचलन था । पूजा , आराधना , नृत्य , संगीत बली देकर की जाती थी । इस काल मे मन्दिरो के अवशेष नही मिले हैं ।

शिव या परम – पुरुष की उपासना :-

🔹 उत्खनन में अर्नेष्ट मैके को एक ऐसी मुद्रा मिली जिस पर पुरुष के चित्र में शिर के दोनों और सींघ है । इस योगी के तीन मुख है । सांत व गम्भीर मुद्रा में है । इसके वायी ओर जंगली भैसा और गेड़ा जबकि दायीं ओर शेर ओर हाथी है । सामने हिरण है इस ध्यानमग्न योगी के सिर के ऊपर पाँच शब्द लिखे हुए है । जिन्हें अब तक पढ़ा नही जा सका है । ( परम पुरुष के रूप में पशुपति शिव की आराधना )

वृक्ष और पशु पूजा :-

🔹 अनेक मोहोरो में पीपल तथा उसकी पत्तियों के चित्रों का अंकन है । जिसमे ऐसा लगता हैं कि वह लोग वृक्ष पूजा के अंतर्गत पीपल की पूजा करते थे वर्तमान में भी पीपल की वृक्ष पूजा की जाती है । इनके अतिरिक्त अनेक मोहोरो पर सांड औऱ बैल चित्रित अंकित है ।

🔹 वर्तमान में शिव भगवान के साथ सांड ( नन्दी ) की पूजा पूरे भारत वर्ष में कई जाती है ।

लिंग पूजा :-

🔹 उत्खनन में लिंग पूजा प्रस्तर ( पत्थर ) के लिंग मिले है इससे अनुमान लगाया जाता है कि लिंग पूजा का प्रचलन हड़प्पा संस्कृति में था । इनमे से कुछ लिंगो के शीर्ष गोल आकृति नोकदार कुछ लिंग एक या दो इंच के कुछ तो चार फीट के भी मिले है । स्वाष्टिक चिन्ह एव क्रास तथा पिलस हड़प्पा काल के पवित्र चिन्ह है । जो आज भी पवित्र माने जाते हैं ।

हड़प्पा सभ्यता में राजनीति जीवन :-

chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ 🔹यहाँ पर रानीतिक जीवन व राजनीतिक व्यवस्था की जानकारी बहुत कम मिलती है । इतिहासकार हनटर की मान्यता है कि मोहनजोदड़ो में शासन व्यवस्था लोकतंत्रात्मक थी वह राजतंत्रात्मक नही थी ।

🔹 इतिहासकार व्हीलर की मान्यता है कि मोहनजोदड़ो का शासन व्यवस्था पुरोहितो व धर्मगुरु के हाथों में थी।

🔹 वे जनप्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करते थे । नगर निर्माण व भवन निर्माण को देखकर ऐसा लगता है की वहाँ पर नगर पालिका रही होगी ।

हड़प्पा सभ्यता में कला का विकास 

  • मूर्तिकला
  • धातुकला
  • वस्त्र निर्माण कला
  • चित्रकला
  • पात्र निर्माण कला
  • नित्य तथा संगीत कला
  • मुद्रा कला
  • ताम्र निर्माण कला
  • लेखन कला

मूर्तिकला :-

🔹 उत्खनन में प्राप्त पत्थर की मूर्तियां कांसे की मूर्तियां इसमे अंगों की छलक दिखाई गई है । एक नृतकी की मूर्ति बहुत ही सुंदर व आकर्षक है इन मूर्तियों में गाल की हड्ड़ी बहुत ही सुंदर व आकर्षक है आँखे तिरछी व पतली है गर्दन छोटी व पतली है ।

धातुकला :-

🔹 सोना , चाँदी , ताँबा , आदि के आभूषण मिले हैं ।

वस्त्र निर्माण कला :-

🔹 उत्खनन में चरखा मिला है । जिससे पता चलता है की सूत काटने का काम में वहाँ के लोग निपुण थे । सूती , ऊनी , रेशम वस्त्र पहनते थे।

चित्रकला :-

🔹 मोहोरो पर साँड़ के चित्र , भैसे के चित्र , वृक्ष के चित्र इसका मतलब वो लोग चित्रकला में निपुण थे।

पात्र – निर्माण कला :-

🔹 मिट्टी के पात्र बनाने में , पानी भरने के लिए तरह – तरह के घड़े , अनाज रखने के लिए छोटे अनेक प्रकार के भाण्ड , मिट्टी के खिलौने इसका मतलब वो पात्र – निर्माण कला में निपुण थे ।

नृत्य तथा संगीत कला :-

🔹 नृत्यांगना की मूर्ति मिली है पात्रो पर तलवे तथा ढोलक के चित्र मिलते हैं ।

मुद्रा कला :-

🔹 उत्खनन में भिन्न – भिन्न प्रकार के पत्थरो , धातुओं तथा हाथी दाँत व मिट्टी की 600 मोहरे मिली है । जिन पर एक ओर पशुओं के चित्र ओर दूसरी ओर लेख मिले है।

ताम्र निर्माण कला :-

🔹 उत्खनन में अनेक ताम्र पत्र मिले हैं जो वर्गाकार व आयताकार के है । इनमे पशुओं व मनुष्य के चित्र मिले हैं । पशुओं में बैल , भैसा , गेड़ा , सांड , हाथी , शेर आदि मनुष्य में योगी के चित्र मिले हैं ।

लेखन कला :-

🔹 उत्खनन कोई भी लिखित शिलालेख या ताम्रपत्र नही मिला है । लेकिन फिर भी विद्वानों में मतभेद है ( लिपि में के बारे में यह लिपि चित्रतात्मक थी । तथा दाये से बाए व बाए से दाये दोनों ओर लिखी जाती थी

निर्वाह के तरीके ( कृषि , शिल्पकला , व्यापार ) :-

🔹 गुजरात से बाजरे के दाने मिले हैं । चावल के दाने कम मिले है ।

🔹 बनावली ( हरियाणा ) से मिट्टी के हल के खिलौने मिले हैं ।

🔹 कालीबंगा नामक सभ्यता से जूते हुए खेत का साक्ष्य मिला है । इस खेत मे हल रेखाओ के द्वारा एक – दूसरे को समकोण पर काटते हुए दिखाया गया है । इससे यह पता चलता है कि एक साथ दो दो फैसले उगाई जाती थी ।

🔹 आधिकांश हड़प्पा स्थल अर्धशुष्क क्षेत्रों में स्थित थे । जहाँ के लिए सिचाई की आवश्यकता पड़ती होगी ।

🔹हड़प्पा वासी कपास का भी प्रयोग करते थे । मोहनजोदड़ो से कपड़ो के टुकड़ों के अवशेष मिले हैं ।

विलासिता की खोज :-

chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ 🔹 फयान्स ( घिसी हुई रेत , अथवा बालू तथा रंग और चिपचिपे पर्दाथ के मिश्रण को पकाकर बनाया गया पदार्थ ) के छोटे पात्र सम्भवतः कीमती थे । क्योकि इन्हें बनाना कठिन था ।

🔹 सुगंधित प्रदार्थो के रूप में बने लघुपात्र मोहनजोदड़ो ओर हडप्पा से मिले हैं ।

🔹 सोना भी दुर्लभ तथा संभवतः आज की तरह कीमती था । हड़प्पा स्थलो से मिले सभी स्वर्णभूषण संचयो से प्राप्त हुए हैं ।

मोहरो का आदान – प्रदान :-

🔹 सिंधु सभ्यता की मोहरे उर , सुमेर , क्रिश , उम्मा , तेलुअस्मार , बहरीन , आदि से मिली है ।

🔹 मेसोपोटामिया की मोहरे मोहनजोदड़ो तथा फारस की मोहरे लोथल से मिली है । ( वस्तु का आदान प्रदान की पुष्टि )

🔹 जॉन मार्शल को मोहनजोदड़ो से एक ऐसी मोहर मिली है जिस पर एक व्यक्ति को बाघ से लड़ते हुए दिखाया गया है

🔹 जॉन मार्शल के अनुसार यह विचार बेबिलोनिया के महाकव्य गिलगिमेश से लिया गया है ।

🔹 लोथल से प्राप्त गोड़ीबाड़ा के अवशेष मोहर पर जहाज का चित्र तथा मिट्टी के जहाज का नाम नमूना था ।

मृदभाण्ड :-

🔹 यहा के मृदभाण्ड मुख्यतः गाढी लला चिकनी मिट्टी से निर्मित है । जिन पर काले रंग का चित्रण है । मुख्यत : ज्यामितीय चित्रण

🔹 लोथल से एक ऐसा मृदभाण्ड मिला है जिस पर चित्रित चित्र का समीकरण पंचतंत्र की कहानी चालक लोमड़ी से किया गया है

🔹हड़प्पा से प्राप्त एक मृदभाण्ड पर मानव और बच्चे का चित्र मिला है । डिजाइनदार मृदभाण्ड भी मिले हैं । जिसमे अलग – अलग रंगों का भी प्रयोग किया गया है । इनको सजावट के लिए प्रयोग किया जाता था ।

कलात्मक अवशेष :-

  • हड़प्पा से प्राप्त काले पत्थर से निर्मित नृतक की मूर्ति नटराज नृत्य की मुद्रा में ।
  • हड़प्पा से भी प्राप्त सिविहिनी मानव की मूर्ति ।
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त सिरविहिनी मानव मूर्ति ।
  • मोहनजोदड़ो से प्राप्त कास्य नृतकी ।

हड़प्पाई लिपि की विशेषताएँ :-

  • यह लिपि दाईं से बाए ओर लिखी जाती थी |
  • यह लिपि चित्रात्मक लिपि थी |
  • इस लिपि में 375 – 400 चिन्ह थे |
  • इस लिपि को आजतक कोई समझ नहीं पाया
  • यह एक रहस्यमई लिपि है |
  • इसी के कारण हडप्पा सभ्यता के बारे में हमे ज्यादा जानकारी नही मिल सकी क्योकि हडप्पा की लिपि को आजतक विद्वान् समझ नही पाए ।

हडप्पा सभ्यता में शिल्पकला :-

  • शिल्प कार्य का अर्थ होता है शिल्प से जुड़े कार्य करना जैसे :-
  • मनके बनाना ।
  • शंख की कटाई करना ।
  • धातु से जुड़े काम करना ।
  • मुहरे बनाना ।
  • बाट बनाना ।
  • चन्हुदड़ो ऐसी जगह थी जहाँ के लोग लगभग पूरी तरह से शिल्पउत्पादन के कार्य करते थे |
  • चन्हुदड़ो में कुछ ऐसी चीज़े मिली है जिससे पता लगता है की यहाँ पर शिल्प उत्पादन बडे पैमाने पर होता था ।
  • हड़प्पाई मोहरे काफी मात्रा में पाई गई है ।
  • हड़प्पाई लोग कांसे का प्रयोग करते थे ।
  • काँसा तांबा और टिन को मिलाकर बनाई गई एक मिश्रधातु है ।

हडप्पा सभ्यता में मनके कैसे बनाए जाते थे ?

  • मनके सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाये जाते थे ।
  • मनके कर्निलियन नामक पत्थर से भी बनाये जाते थे |
  • मनके जैसपर नमक पत्थर से भी बनाये जाते थे |
  • मनके ताबे के भी बनाये जाते थे ।
  • मनके सोने के भी बनाये जाते थे ।
  • मनके कांसे के भी बनाये जाते थे ।
  • इन मनको का प्रयोग मालाओ में किया जाता था तथा यह बहुत सुंदर होते थे ।

मनके हड़प्पा सभ्यता की एक मुख्य सभ्यता है।

कनिंघम :-

chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ 🔹 कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का पहला डायरेक्टर जनरल था| अलेक्जेंडर कनिंघम को भारतीय पुरातत्व का जनक भी कहा जाता है|

🔹 कनिंघम ने 19वीं शताब्दी के मध्य में पुरातात्विक खनन आरंभ किया| यह लिखित स्रोतों का प्रयोग अधिक पसंद करते थे|

कनिंघम का भ्रम :-

  • कनिंघम ने अपने सर्वेक्षण के दौरान मिले अभिलेखों का संग्रहण पर लेखन तथा अनुवाद भी किया ।
  • हड़प्पा वस्तुएं 19वीं शताब्दी में कभी कभी मिलती थी और कनिंघम तक पहुंची भी ।
  • एक अंग्रेज ने कनिंघम को हड़प्पा में पाई गयी एक मुहर दी ।
  • अलेक्जेंडर कनिंघम को एक अंग्रेज अधिकारी ने जब हड़प्पाई मुहर दिखाई तो कनिंघम यह नहीं समझ पाए कि वह मुहर कितनी पुरानी थी ।
  • कनिंघम ने उस मुहर को उस कालखंड से जोड़कर बताया जिसके बारे में उन्हें जानकारी थी
  • वे उसके महत्व को समझ ही नहीं पाए कि वह मुहर कितनी प्राचीन थी ।
  • कनिंघम ने यह सोचा कि यह मुहर भारतीय इतिहास का प्रारंभ गंगा घाटी में पनपे पहले शहरों से संबंधित है जबकि यह मुहर गंगा घाटी के शहरों से भी पहले की थी ।

हड़प्पा सभय्ता के पतन के कारण :-

  • जल वायु परिवर्तन ।
  • प्राकृतिक आपदा ।
  • भूकंप ।
  • आकाल।
  • महामारी ।
  • बाहरी आक्रमण ( आर्य जाति के आक्रमण ).
  • वनों की कटाई ।
  • नदियों का सूखना ।
  • नदियों का मार्ग बदल जाना ।
  • बाढो का आना ( दामोदर , कोसी , महानदी ) बाढ़ की प्रसिद्ध नदी ।
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