विद्रोही और राज हेलो दोस्तों आज हम विद्रोही और राज के बारे में जानेगे अगर आपको कुछ भी जानकारी नही है तो इस post में आपको पूरी जानकारी मिलेगी और अगर आपको Notes के बारे में भी जानकारी चाहिए तो आप last तक बने रहे
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | HISTORY |
Chapter | Chapter 11 |
Chapter Name | विद्रोही और राज |
Category | Class 12 History Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
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1857 का विद्रोह
1857 का विद्रोह, जिसे अक्सर “सिपाही मुटिनी” या “Indian स्वतंत्रता संग्राम” के रूप में जाना जाता है, Indian इतिहास में एक Important घटना थी जो 1857 से 1858 तक भारत में फैली। यह घटना ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के Government के खिलाफ हुई एक सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक विरोध का परिचय था।
1857 का विद्रोह का कारण विविध थे, जिसमें सिपाहीयों को उनकी अनदेखी और अन्याय का विरोध, धर्मिक और सांस्कृतिक आंदोलन, और भूमि संबंधित अंधाधुंध नियमों का खिलाफी शामिल था।
मुख्य रूप से, सिपाही मुटिनी की शुरुआत 10 मई 1857 को मीरठ (वर्तमान मुरादाबाद) में हुई थी, जब सिपाही रेजीमेंट के एक हिंदू और मुस्लिम सैनिकों के बीच विरोध बढ़ गया और फिर अगले महीने Delhi में विस्फोटक हो गया। यह विद्रोह फिर और भी कई स्थानों पर फैला, जैसे की लखनऊ, बनारस, जबलपुर, इलाहाबाद और जगह-जगह।
हालांकि, इस विद्रोह को सपूतों की सांगठन और एकजुट होकर विरोध करने की चेष्टा भी दी गई थी, लेकिन आखिरकार ब्रिटिश सेना ने इसे दबा दिया और विद्रोह ने 1858 में समाप्त हो गया। इसके परंपरागत नाम “सिपाही मुटिनी” और “1857 का विद्रोह” Indian इतिहास में एक Important घटना के रूप में जीवित हैं।
मेरठ में बगावत
मेरठ में बगावत एक Important घटना थी जो 10 मई 1857 को आरंभ हुई थी और इसे सिपाही मुटिनी या 1857 का विद्रोह का आदिकालिक संदर्भ माना जाता है। इस घटना का आरंभ Indian सेना के मुस्लिम और हिन्दू सिपाहीयों के बीच हिंदू-मुस्लिम विरोध और साम्राज्यिक असमानता के कारण हुआ था।
मेरठ में, ब्रिटिश सेना के सिपाही मुस्लिम और हिन्दू बीच तनाव बढ़ गया था, जिसकी पीछे कई कारण थे जैसे कि कुछ हिन्दू और मुस्लिम सिपाहीयों को वेतन में अंतर और साम्राज्यिक विवाद। इसके परिणामस्वरूप, सिपाही मुटिनी शुरू हो गई और सिपाही ने आगे के तात्कालिक घटनाओं को प्रभावित करने के लिए Delhi की ओर बढ़ने का निर्णय किया।
इस घटना के बाद, सिपाही मुटिनी ने Delhi, लखनऊ, जबलपुर, बनारस, और अन्य क्षेत्रों में फैलाई गई, जिससे भारत में 1857 का विद्रोह हुआ और इसे Indian स्वतंत्रता संग्राम का आदिकाल माना जाता है। यह घटना Indian इतिहास में एक Important पल है, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लोगों के सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक आंदोलन का प्रतीक बन गया।
Delhi में बगावत
Delhi में 1857 का विद्रोह या सिपाही मुटिनी एक Important घटना थी जो Indian स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत में एक Important क्रियांक है। इसे Indian इतिहास में विद्रोह या विमुक्तिंता सेनानीयों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है।
Delhi में सिपाही मुटिनी का आरंभ मुग़ल सम्राट बहादुरशाह जफ़र के सत्ताबजार रूप में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन के बाद हुआ था। सिपाहीयों ने अपने असंतुष्टि को व्यक्त करते हुए Delhi में विद्रोह की शुरुआत की, जो ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ था। यह विद्रोह मुग़ल सम्राट बहादुरशाह जफ़र के नेतृत्व में हुआ था, लेकिन उस समय मुग़ल साम्राज्य का अधिकांश हिस्सा ब्रिटिशों के कब्जे में था।
विद्रोह के बाद, Delhi क्षेत्र में जलती हुई गरीबी और असंतोष की भावना ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ बढ़ी और लोग सक्रिय रूप से शामिल होने लगे। Delhi के चारों ओर के क्षेत्रों में लोगों ने सामूहिक रूप से Indian स्वतंत्रता संग्राम के लिए साथी बनाए और इस घटना के बाद अन्य क्षेत्रों में भी इस प्रकार के विद्रोह हुए।
हालांकि यह विद्रोह अंततः ब्रिटिश साम्राज्य के पक्ष में समाप्त हुआ, लेकिन इसने Indian स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की और ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ लोगों की भावना को उत्तेजना जारी रखा।
1857 विद्रोह के कारण
1857 का विद्रोह Indian स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत में एक Important क्रियांक था और इसमें कई कारण थे जो लोगों को विद्रोह करने के लिए प्रेरित कर रहे थे:
औपचारिक आर्थिक और सामाजिक असमानता: ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान, औपचारिक आर्थिक और सामाजिक असमानता थी। ब्रिटिश अधिकारीयों के साथ स्थानीय जनता के बीच विभेद था और उच्च जातियों और क्षत्रियों के बीच में भी आर्थिक असमानता बढ़ रही थी।
धार्मिक आस्था की आक्रमणकारी नीतियां:
ब्रिटिश Government ने धार्मिक आस्थाओं की आक्रमणकारी नीतियों को बढ़ावा दिया, जिससे हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव बढ़ा।
जबरदस्ती और अन्याय के प्रति आपत्ति: ब्रिटिश सेना में Indian सिपाहीयों के बीच अनुGovernment में विशेष रूप से बढ़ती हुई जबरदस्ती, शिकारपन, और उन्हें अन्यायपूर्ण तरीके से बर्ताव करने की आवश्यकता की जा रही थी।
हिन्दू और मुस्लिम सिपाहीयों के बीच विभेद:
सिपाही मुटिनी के समय, ब्रिटिश सेना में हिन्दू और मुस्लिम सिपाहीयों के बीच भेदभाव बढ़ गया था।
युद्ध प्रक्रिया की आपसी समझ:
ब्रिटिश सेना में सेपाही भर्ती की Plan को लेकर हिन्दू और मुस्लिम सिपाहीयों के बीच की Plan में बहुतंत्री असमानता थी।
इन कारणों के समूह ने मिलकर विद्रोह की शुरुआत की और इससे Indian स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ हुआ। यह विद्रोह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लोगों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असन्तुष्टि का प्रतीक बना।
विद्रोह के दौरान संचार के तरीके
विद्रोही और राज 1857 के विद्रोह के दौरान, संचार को बहुतंत्री रूप से समर्थन किया गया और लोगों ने अपने आपसी समर्थन और Planओं को साझा करने के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग किया। यहां कुछ संचार के तरीके हैं जो विद्रोह के दौरान इस्तेमाल हुए:
संदेश बुलंदी और ताम्र पत्र:
संदेश बुलंदी, जिसे लोग ढीले स्वर में बुलंदी या ऊँची आवाज में आपसी समर्थन के लिए इस्तेमाल करते थे, विद्रोह के दौरान प्रमुख था। इसके अलावा, लोग ताम्र पत्रों का भी उपयोग करते थे जो लिखित संदेशों को फैलाने के लिए उपयोगी थे।
चिट्ठी और सूचना बूट:
लोग विद्रोह के दौरान एक जगह से दूसरी जगह सूचनाएँ भेजने के लिए चिट्ठीएं और सूचना बूट का उपयोग करते थे।
ढाई अंगूठे तक संदेश: ढाई अंगूठे तक के निशानों का उपयोग भी संचार के लिए किया जाता था। इस तरीके को लोग संदेशों को छिपाने और इसे सुरक्षित रूप से पहुंचाने के लिए इस्तेमाल करते थे।
धार्मिक और सांस्कृतिक सभा:
विभिन्न स्थानों पर सामूहिक धार्मिक और सांस्कृतिक सभाएं होती थीं जहां लोग मिलकर विद्रोह की Planओं को बहुतंत्री रूप से चर्चा करते थे।
popular संगीत और कविता: विद्रोह के दौरान लोग popular संगीत और कविताएं बनाकर समर्थन जाहिर करते थे, जो विभिन्न स्थानों पर प्रसारित होती थीं।
उपद्रव, अद्भुत और बेदाग शब्द:
जब संदेशों को ब्रिटिश Government के खिलाफ भेजा जाता था, तो लोग उपद्रव, अद्भुत और बेदाग शब्दों का उपयोग करते थे ताकि इसे अस्तित्व में रखा जा सके और सुरक्षित रूप से पहुंचा जा सके।
मुख्य सड़कें और समर्थन केंद्र:
विद्रोह के समय ब्रिटिश सेना को कई स्थानों पर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जैसे कि लखनऊ, कानपूर, मेरठ, Delhi आदि। इन स्थानों पर लोग स्वतंत्रता सेनाओं का समर्थन करने के लिए उत्सुक थे।
ये सभी तरीके लोगों ने एक बड़े स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत करने के लिए अपनाए और इस प्रकार विद्रोह की सहायता में योगदान किया।
नेता और अनूयायी
विद्रोही और राज “नेता” और “अनुयायी” दो अलग-अलग भूमिकाएँ हो सकती हैं और इन शब्दों का अर्थ संदर्भ के आधार पर बदल सकता है। ये शब्द विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक संदर्भों में अपना-अपना अर्थ रखते हैं।
नेता (Leader): एक नेता वह व्यक्ति है जो एक समूह को मार्गदर्शन करता है और उसे एक निश्चित लक्ष्य या उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मोबाइलाइज करता है। नेता एक समूह को संगठित रूप से चलाने की जिम्मेदारी लेता है और उसके सदस्यों को प्रेरित करने का कार्य करता है। नेता विभिन्न क्षेत्रों में हो सकते हैं, जैसे कि राजनीति, सामाजिक क्षेत्र, व्यापार, शिक्षा, आदि।
अनुयायी (Follower): अनुयायी वह व्यक्ति है जो किसी नेता की गाइडेंस और नेतृत्व में समर्थ है। अनुयायी एक समूह या संगठन के नेता की दिशा में आत्मसमर्पण करता है और उसके नेतृत्व को मान्यता देता है। अनुयायी नेता के निर्देशन में काम करता है और सामूहिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए योगदान करता है।
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सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक संदर्भ में, नेता और अनुयायी दोनों ही एक समूह के लिए Important होते हैं। एक समूह में सही नेतृत्व और सही अनुयायिता का संतुलन रखना समृद्धि और सफलता की कुंजी हो सकता है।
अफवाएं तथा भविष्यवाणी
मेरठ से Delhi आने वाले सिपाहियों ने बहादुर शाह को उन कारतूसो के बारे में बताया था । जिन पर गाय और सुअर की चर्बी का लेप लगा था ।
सिपाहियो का इशारा एनफील्ड राइफल के उन कारतूसों की तरफ था जो हाल ही में उन्हें दिये गये थे । अंग्रेजो ने सिपाहियो को लाख समझाया कि ऐसा नहीं है लेकिन यह अफवाए उत्तर भारत की छावनियो मे जंगल की आग की तरह फैलती चली गई ।
राइफल इन्स्ट्रक्सन ( डिपो ) के कमांडर कैप्टन राइट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि दमदम स्थित शास्त्रागार मे काम करने वाले नीची जाति के एक खल्लासी ने जनवरी 1857 ई० के तीसरे हफ्ते मेंं एक ब्राह्मण सिपाही से पानी पिलाने के लिए कहा ब्राह्मण सिपाही ने यह कहकर आपने लोटे से पानी पिलाने से इनकार कर दिया कि नीची जाति के छूने से लौटा अपवित्र हो जाएगा ।
रिपोर्ट के मुताबिक इस पर खल्लासी ने जवाब दिया कि वेेसे भी तुम्हारी जाति जल्द ही भ्रष्ट होने वाली है क्योकि अब तुम्हें गाय और सुअर की चर्बी लगे करतूसो को मुँह से खीचना पडेगा । इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता के बारे मे कहना मुश्किल है । लेकिन इसमे कोई शक नही है कि जब एक बार यह अफवाएं फैलना शुरू हुई थी तो अंग्रेज अफसरो के तमाम आरत आश्वासनों के बावजूद इसे खत्म नही किया जा सका और इसने सिपाहियों में एक गहरा गुस्सा पैदा कर दिया ।
अन्य अफवाह
विद्रोही और राज अफवाएं फैलाने वालों का कहना था कि इसी मकसद को हासिल करने के लिए अंग्रेजो ने बाजार में मिलने वाले आटे मे गाय और सुअर की हडियो का चूरा मिलवा दिया सिपाहियो और आम लोगो ने आटे को छूने से भी इन्कार दिया
Notes :- 1857 की क्रांति का प्रतीक चिन्ह कमल का फूल और चपाती थे ।
Notes :- गवर्नर जनरल के तौर पर हाड्रिंग ने साजो समान के आधुनिकीकरण का प्रयास किया । उसने जिन एनफील्ड राइफलो का इस्तेमाल शुरू किया था उनमे चिकने कारतूसों का इस्तेमाल होता था । जिनके खिलाफ सिपाहियों ने विद्रोह किया था ।
Notes :- 1857 के विद्रोह के दौरान ब्रिटिश जनरल कैनिग था ।
अवध में विद्रोह
लॉर्ड डलहौजी ने अवध के साम्राज्य का वर्णन एक चेरी के रूप में किया है जो एक दिन हमारे मुंह में समा जाएगा । ‘ लॉर्ड डलहौजी ने 1801 में अवध में सहायक गठबंधन की शुरुआत की । धीरे – धीरे , अंग्रेजों ने अवध राज्य में अधिक रुचि विकसित की ।
कपास और इंडिगो के निर्माता के रूप में और ऊपरी भारत के प्रमुख बाजार के रूप में भी अवध की भूमिका अंग्रेज देख रहे थे । ।
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1850 तक , सभी प्रमुख क्षेत्रों जैसे मराठा भूमि , दोआब , कर्नाटक , पंजाब और बंगाल को जीत लिया । 1856 में अवध के राज्य-हरण ने क्षेत्रीय विनाश को पूरा किया जो कि बंगाल के राज्य-हरण के साथ एक सदी पहले शुरू हुआ था
डलहौज़ी ने नवाब वाजिद अली शाह को विस्थापित किया और कलकत्ता में निर्वासन के लिए निर्वासित किया कि अवध को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है ।
ब्रिटिश सरकार गलत तरीके से मानती है कि नवाब वाजिद अली एक अpopular शासक थे । इसके विपरीत , वह व्यापक रूप से लोगो को प्यार करता था और लोग नवाब के नुकसान के लिए दुखी थे ।
नवाब को हटाने से अदालतों का विघटन हुआ और संस्कृति में गिरावट आई । संगीतकार , नर्तक , कवि , रसोइया , अनुचर और प्रGovernmentिक अधिकारी , सभी अपनी आजीविका खो देते हैं ।