Saturday, May 4, 2024
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Class 12th History Chapter 10 colonialism और देहात Notes In Hindi

colonialism और देहात हेलो दोस्तों आज हम colonialism और देहात के बारे में जानेगे अगर आपको कुछ भी जानकारी नही है तो इस post में आपको पूरी जानकारी मिलेगी और अगर आपको  Notes के बारे में भी जानकारी चाहिए तो आप last तक बने रहे colonialism और देहात 


Textbook NCERT
Class Class 12
Subject HISTORY
Chapter Chapter 10
Chapter Name colonialism और देहात
Category Class 12 History Notes in Hindi
Medium Hindi

 

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colonialism और देहात का अर्थ

“colonialism” और “देहात” दोनों ही भूगोल और समाजशास्त्र से जुड़े शब्द हैं जो विभिन्न सांस्कृतिक और आर्थिक परिवर्तनों को संदर्भित करते हैं।

colonialism (Urbanization): colonialism का अर्थ है नगरीयकरण, यानी नगरों की विकासशील और बढ़ती हुई संख्या में वृद्धि को सूचित करने वाली प्रक्रिया। यह एक समाज और अर्थव्यवस्था की रूपरेखा हो सकती है जिसमें population नगरों में बढ़ती है और लोग अधिकांशत: नगरों में बसते हैं। colonialism के साथ, नगरों में और उनके आसपास विभिन्न ढांचों, व्यापारी क्षेत्रों, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं, और सांस्कृतिक क्षेत्रों का विकास होता है।

colonialism और देहात देहात (Rural): देहात का अर्थ है गाँव, जो अकेले या समूह के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों को सूचित करता है। यहां जीवन प्रणाली और आर्थिक गतिविधियों का अधिकांश खेती, पशुपालन, और संबंधित क्षेत्रों पर निर्भर होता है। देहात में अक्सर आधिकारिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं नगरों की तुलना में कम होती हैं। देहाती समृद्धि के क्षेत्रों में अक्सर अर्थव्यवस्था का मुख्यांश कृषि होता है।

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ये दो शब्द भूगोल और समाजशास्त्र में समृद्धि और विकास की प्रक्रियाओं को समझने में मदद करते हैं और समृद्धि के विभिन्न पहलुओं को सूचित करते हैं।

 प्लासी का युद्ध

प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को भारत, बंगाल के प्लासी गाँव (वर्तमान मुर्शिदाबाद जिला, पश्चिम बंगाल) में हुआ था और यह युद्ध ब्रिटिश पूर्व इंडिया company और बंगाल नवाब सिराज-उद-दौला के बीच हुआ था। इस युद्ध को प्लासी के युद्ध के रूप में भी जाना जाता है।

यह युद्ध एक महत्वपूर्ण परिस्थिति में हुआ था जब ब्रिटिश पूर्व इंडिया company ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए बंगाल की धनिकता को अपने अधीन में करने का प्रयास किया और बंगाल नवाब सिराज-उद-दौला इसे रोकने का प्रयास कर रहे थे।

युद्ध का परिणाम था कि ब्रिटिश company ने बंगाल की नियंत्रण को हासिल किया और ब्रिटिश शासन का प्रारंभ हुआ। इसके बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया company ने भारत में अपने शासन का विस्तार किया और इसने भारतीय उपमहाद्वीप में अपना साम्राज्य स्थापित किया। यह घटना भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, जो ब्रिटिश साम्राज्य की शुरुआत का संकेत करती है।

कर व्यवस्था

“कर व्यवस्था” एक आर्थिक प्रणाली है जिसमें Government अपनी आय को संग्रहित करने के लिए निर्धारित करों को लागू करती है और इस राह में अपनी आर्थिक गतिविधियों को संचालित करती है। कर व्यवस्था से Government अपनी विभिन्न सेवाओं और परियोजनाओं को वित्तीय रूप से समर्थन प्रदान करती है ताकि समाज को आवश्यक सुविधाएं और सेवाएं मिल सकें।

कर व्यवस्था में कई प्रकार के कर शामिल हो सकते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कर होते हैं:

आयकर (Income Tax): यह व्यक्तियों और व्यापारों की कमाई पर लगाया जाने वाला कर है। इसका उद्देश्य Government को आवश्यक धन संग्रहित करना है।

करपेशेवरी (Excise Duty): इसे विशेष उत्पादों और सेवाओं पर लगाया जाता है, जैसे कि एल्कोहल, टोबैको, और बाजार में बिकने वाली अन्य विशेष आवश्यकताएं।

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सेवा कर (Service Tax): इसे विशेष सेवाओं पर लगाया जाता है, जैसे कि बैंकिंग सेवाएं, इंटरनेट सेवाएं, और अन्य सेवाएं।

colonialism और देहात  केन्द्रीय विकेन्द्र (Central Sales Tax): यह व्यापार के बाजार में अलग-अलग राज्यों के बीच होने वाले व्यापार पर लगाया जाता है।

कारगिला कर (Goods and Services Tax – GST): भारत में 2017 में लागू हुआ गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स, जिसने अनेक प्रकार के करों को एक समेकित प्लेटफ़ॉर्म पर लेकर आयकर व्यवस्था को सुधारा है।

इन तरीकों से कर व्यवस्था Government को आर्थिक संसाधन प्रदान करने में मदद करती है और समाज को विभिन्न सेवाएं प्रदान करने में सक्षम बनाती है।

इस्तमरारी बंदोबस्त ( जमींदारी व्यवस्था , स्थाई बंदोबस्त )

“इस्तमरारी बंदोबस्त” या “जमींदारी व्यवस्था” एक ऐतिहासिक प्रणाली थी जो मुघल साम्राज्य के दौरान भारत में स्थापित हुई थी। इसे “स्थाई बंदोबस्त” भी कहा जाता है। इस व्यवस्था का आरंभ अकबर के शासनकाल के दौरान हुआ था और इसका पूरा विकास और परिणाम जहाँगीर और उसके बाद के मुघल साम्राज्य के कुछ साम्राज्यकृत राजा ने देखा।

इस व्यवस्था के अंतर्गत, स्थानीय जमींदारों को भूमि और उनसे जुड़े अधिकारों का स्वामित्व प्रदान किया गया था। इस बंदोबस्त में जमींदारों को निर्दिष्ट क्षेत्रों में कुलीन, सामंत, और ठाकुर के रूप में स्थापित किया गया था। इन्हें राजा की सेवा में रखकर और उन्हें निर्दिष्ट क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपकर उन्हें नाजुक सामरिक और प्रशासनिक कार्यों के लिए जिम्मेदार बनाया गया था।

इस्तमरारी बंदोबस्त में जमींदारों को Judiciary का भी कार्य सौंपा गया था, और वे अपने क्षेत्र में कानून और क्रियावली का प्रबंधन करते थे। इस प्रणाली का उद्दीपन बाबर के समय से हुआ और इसकी परंपरा अकबर और उसके उत्तरवर्ती शासकों द्वारा बढ़ाई गई।

इस्तमरारी बंदोबस्त का सिस्टम ब्रिटिश साम्राज्य के आगमन के बाद स्थिति में परिवर्तन होता है, जब उन्होंने अपने दौरे के दौरान इस प्रणाली को बदल दिया और भूमि संबंधित संरचनाओं में परिवर्तन किया।

इस्तमरारी बंदोबस्त को लागू करने के उद्देश्य

ब्रिटिश company ने अपनी कई उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बंगाल के नवाब राजाओं और तालुकदार के साथ इस्तमरारी बंदोबस्त व्यवस्था को लागू किया।

इसके अनुसार company को अस्थाई रूप से राजस्व की राशि नियमित रूप से प्राप्त कर सके।

बंगाल विजय के समय परेशानी को दूर करने के लिए ।


1770 में बंगाल की ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था दयनीय तथा संकट पुर्ण स्थिति का सामना कर रही थी।

अकाल की स्थिति की पूर्ण आवृत्ति होने के कारण कृषि नष्ट हो रही थी और व्यापार पतन की ओर अग्रसर हो रहा था।

कृषि निवेश के अभाव में क्षेत्र में राजस्व संसाधन का भाव हो गया था कृषि निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए।

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company की इस व्यवस्था में जमींदारों को भूस्वामी नहीं बल्कि कर संग्राहक बना दिया। company ने उन्हें अपना वफादार बनने का मौका दिया परंतु इस company ने धीरे-धीरे नियंत्रण कर शासन तथा कार्यप्रणाली को अपने अधीन कर सिमित कर दिया।

कम्पनी ने  ऐसी व्यवस्था को बनाया कि उनके विशेष अधिकार, सैन्य अधिकारी, स्थानीय न्याय अधिकार तथा सीमा शुल्क अधिकारी समाप्त हो गए।

स्थाई बंदोबस्त से जमीदारों को लाभ

colonialism और देहात जमीदार भूमि के वास्तविक स्वामी बन गए और उनका यह अधिकार वंशानुगत बन गया ।

जमीदार अंग्रेजों की जड़ें भारत में मजबूत करने में मदद करने लगे ।

जमीदार जब जमीनों के मालिक बन गए तो वह कृषि में रुचि लेने लगे और भारत में उत्पादन में भारी वृद्धि हुई जिससे अंग्रेजों को राजस्व प्राप्त करने में और अधिक पैसा मिलने लगा जिसका लाभ भारतीय जमीदारों को भी हुआ ।

company को प्रतिवर्ष निश्चित आय की प्राप्ति होने लगी ।

बार – बार लगान की दरें निर्धारित करने का झंझट खत्म हो गया ।

लगान वसूल करने के लिए company को अब अधिकारियों की आवश्यकता नहीं रही और धन स्वयं जमीदार इकट्ठा करके company तक पहुंचाने लगे ।

स्थाई बंदोबस्त के किसानों पर बुरे प्रभाव

किसानों को जमीदारों की दया पर छोड़ दिया गया ।

जमीदार किसानों का बेरहमी से शोषण करने लगे ।

किसानों का जमीन पर कोई हक नहीं रहा वह सिर्फ जमीन पर मजदूर बनकर रह गए ।

लगान की दरें बहुत अधिक थी जिससे वह दिनों दिन गरीब होते चले गए ।

किसानों के पास अपनी जमीन बचाने के लिए कोई कानूनी अधिकार नहीं रह गया ।

समाज में आर्थिक और सामाजिक शोषण बढ़ता गया जिसके कारण किसान गरीब व जमीदार धनवान बनते चले गए ।

जमींदार ठीक समय पर राजस्व क्यों नहीं दे पाते थे ? एव उनकी जमीने क्यों नीलम कर दी जाती ?

उत्तर बंगाल में 1793 में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया गया इस व्यवस्था को लागू करने के बाद बहुत सारी जमीदारियां नीलाम होने लगी इसके निम्नलिखित कारण थे ।

स्थाई बंदोबस्त में लगान की रकम बहुत ज्यादा थी और जो राजा लगान नहीं चुका पाता था उसकी संपत्तियों को नीलाम कर दिया जाता है ।

जमीदारों ने भूमि सुधारों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जिससे वह भू स्वराज जमा करने में लापरवाही करते रहे इससे उनकी बकाया राशि बढ़ती गई । स्वराज को वसूल करने के लिए company के अधिकारी उनकी भूमि को नीलाम कर दिया करते थे ।

राजस्व की दरें और मांगे बहुत रखी गई थी क्योंकि Government सोचती थी कि बाद में राजस्व की मांगों को बढ़ाया नहीं जा सकता था ।

colonialism और देहात राजस्व की राशि तो एक समान रहती थी परंतु कई बार सूखा , अकाल पड़ने या अधिक वर्षा के कारण फसलें बर्बाद हो जाती थी परंतु राजस्व वैसा का वैसा ही बना रहता था । जिसे प्रतिकूल परिस्थितियों में चुकाना काफी कठिन हो जाता था ।

जमींदारों की शक्तियों पर नियंत्रण

जमीदारों की सैन्य टुकड़ियों को भंग कर दिया गया ।

सीमा शुल्क खत्म कर दिया गया जो जमीदार लगाया करते थे जिससे जमीदारों को लाभ हुआ करता था ।

उनकी कचहरीओ को कंपनियों द्वारा चयनित कलेक्टरों की देखरेख में रखा गया ।

स्थानीय पुलिस का अधिकार खत्म कर दिया गया जिसका प्रयोग करके जमीदार शासन व्यवस्था चलाते थे ।

कलेक्टर समय के साथ – साथ सभी प्रशासनिक कार्य करने लगे । यदि जमीदार एक बार अदा नहीं कर पाता था तो कलेक्टर तुरंत समन भेज दिया करता था ।

ईस्ट इंडिया company के समय जमीदार की स्थिति

1793 के स्थाई बंदोबस्त के अनुसार जो जमीदार भूमिकर की निश्चित राशि नहीं जमा करवा सकता था उसकी भूमि नीलाम कर दी जाती थी ।

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नीलामी करने की इस व्यवस्था से 75 % से अधिक जमीदारी अपनी जमीन गवा बैठे थे ।

इसके अनुसार जमीदारों को निश्चित भूमि कर जमा करवाना होता था इस प्रकार जमीदार भूमि कर इकट्ठा करने वाले ही बनकर रह गए ।

जमीदारों की स्थिति में गिरावट के कारण ?

राजस्व की राशि बहुत अधिक थीं जमीदार इसे जमा नहीं  करा पाते थे अतः उनकी जमीन नीलाम कर दी जाती थी जिससे उन्हें हानि उठानी पड़ती थी ।

कृषि की उपज के भाव कम थे जिससे जमीदार किसानों से निर्धारित कर वसूल नहीं कर पाते थे ।

फसल खराब होने पर भी राजस्व जमा करवाना पड़ता था जिससे जमीदारों को या तो घाटा उठाना पड़ता था या उनकी जमीन नीलाम कर दी जाती थी

किसानों से कर ना मिलने पर जमीदार मुकदमा करने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते थे और मुकदमा लंबा चलने से उन्हें घाटा होता था ।

राजस्व राशि के भुगतान में जमीदार क्यों चूक जाया करते थे

1770 का आकाल ।

राजस्व की राशि की दरें Future को ध्यान में रखकर 1793 में निर्धारित की गई थी जो कि बहुत ज्यादा थी ।

राजस्व की दरें स्थाई थी चाहे फसल खराब हो या ठीक हो उनको कभी बदला नहीं जा सकता था ।

लगान की दरें Future को ध्यान में रखकर दर्ज की गई थी ।

राजस्व की दरें काफी ऊंची थी ।

राजस्व चुकाने के लिए समय बहुत पर्याप्त हुआ करता था इसके लिए सूर्य अस्त विधि का प्रयोग किया जाता था ।

कई स्थानों पर स्पष्ट नहीं था कि लगान कौन एकत्रित करेगा अर्थात तालुकदार जमीदार या कलेक्टर और कहीं – कहीं पर तीनों ने ही नहीं होते थे ।

अमीर किसान जमीदारों को लगाना देने के लिए उठाते थे छोटे किसानों को जिससे किसान लगान आगे ना दे पाए ।

सूर्यास्त विधि

इस विधि के अनुसार यदि जमींदार निश्चित तिथि में सूर्यास्त होने तक अपना राजस्व नहीं चुका पाते थे तो कर की कीमत दोगुनी कर दी जाती थी और कई स्थितियों में जमींदारों की संपत्ति को नीलम भी कर दिया जाता था ।

तालुकदार

तालुकदार दो शब्दों से मिलकर बना है पहला तालुका जिसका अर्थ होता है जिला और दार जिसका अर्थ होता है स्वामी इस प्रकार तालुकदार एक ऐसे व्यक्ति को कहते थे जिसका मुख्य कार्य 1 जिले से राजस्व एकत्रित करना होता था ।

रैयत

रैयत का अर्थ किसान होता है इस शब्द का प्रयोग अंग्रेज किया करते थे बंगाल के अंदर रैयत जमीन को खुद नहीं जोता करते थे बल्कि आगे भूमिहीन किसानों को पट्टे पर देकर के भूमिहीन किसानों से जूतवाया करते थे ।

बर्दवान में की गई एक नीलामी की घटना :-

जैसा कि ब्रिटिश company के अनुसार स्त्रियों से संपत्ति नहीं ली जाती थी जिस कारण बर्दवान के राजा ने अपनी जमीन की कुछ हिस्सा अपनी माता जी का नाम कर दिया और राजस्व का भुगतान नहीं किया । फलस्वरूप राजस्व की रकम बढ़ गई company के द्वारा उनकी भूमि की नीलामी आरंभ कर दी गई तो जमींदार के अपने ही लोगों ने ऊंची बोली लगाकर खरीद ली ।

बाद में company के अधिकारी को राशि देने से साफ इनकार कर दिया । विवश होकर अधिकारियों ने पुनः नीलामी की प्रक्रिया आरंभ कर दी जहां राजा के लोगों ने पुन : उक्त प्रक्रिया प्रारंभ कर दी और उनकी पुनरावृत्ति की अंततः जब बोली लगाने वाले थक गए तो उस भूमि को कम कीमत में बर्दमान के राजा को बेचने पड़े।




इस प्रकार 1793-1801 के बीच बंगाल की चार बड़े जमींदारों की नीलामी में से एक बर्दमान के भी जमीन थी जिसमें बहुत बेनामी खरीद हुई । जहां 95% से अधिक फर्जी बिक्री थी ।

FAQs

Q colonialism और देहात का अर्थ क्या है?

किसी एक भौगोलिक क्षेत्र के लोगों द्वारा किसी दूसरे भौगोलिक क्षेत्र में उपनिवेश (कॉलोनी) स्थापित करना और यह मान्यता रखना कि यह एक अच्छा काम है, colonialism (अंग्रेज़ी-Colonialism) कहलाता है

Q colonialism का मतलब क्या होता है?

colonialism एक ऐसा शब्द है जहाँ एक देश अन्य क्षेत्रों पर विजय प्राप्त करता है और शासन करता है

Q colonialism के 4 प्रकार क्या हैं?

colonialism के आधुनिक अध्ययनों ने अक्सर colonialism की विभिन्न अतिव्यापी श्रेणियों के बीच अंतर किया है, जिन्हें मोटे तौर पर चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है: colonialism colonialism, शोषण colonialism, सरोगेट colonialism और आंतरिक colonialism।
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