Saturday, April 27, 2024
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Class 12th History Chapter 9 शासक और विभिन्न इतिवृत्त Notes In Hindi

शासक और विभिन्न इतिवृत्त हेलो दोस्तों आज हम शासक और विभिन्न इतिवृत्त के बारे में जानेगे अगर आपको कुछ भी जानकारी नही है तो इस post में आपको पूरी जानकारी मिलेगी और अगर आपको  Notes के बारे में भी जानकारी चाहिए तो आप last तक बने रहे


Textbook NCERT
Class Class 12
Subject HISTORY
Chapter Chapter 9
Chapter Name शासक और विभिन्न इतिवृत्त
Category Class 12 History Notes in Hindi
Medium Hindi

 

मुगल कोन थे ?

मुग़ल साम्राज्य भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण साम्राज्य था, जो 16वीं से 19वीं सदी तक भारत में शासन करता था। मुग़ल साम्राज्य की स्थापना 1526 में बाबर नामक तुर्क-मुघल साम्राज्य के संस्थापक द्वारा हुई थी, जिन्होंने पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम लोदी को हराया था। शासक और विभिन्न इतिवृत्त

मुघल साम्राज्य के कुछ प्रमुख शासकों में बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, और आउरंगजेब शामिल हैं। इस साम्राज्य का काल सुलतानतकाल और दिल्ली सल्तनत के उपांत का एक अहम हिस्सा था।

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मुघल साम्राज्य का सांप्रदायिक सांस्कृतिक साम्राज्य था जिसने विभिन्न धर्मों और सांस्कृतिकों को समाहित किया और विविधता को प्रोत्साहित किया। इसके कला, साहित्य, और विज्ञान में विकास ने भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में एक उच्च स्तर की सांस्कृतिक उत्थान को प्रमोट किया।

बाबर 1526 ई० – 1530 ई०

शासक और विभिन्न इतिवृत्त हाँ, बिल्कुल, बाबर (जन्म: 14 फरवरी 1483, मरण: 26 दिसम्बर 1530) मुघल साम्राज्य के संस्थापक थे और उनका शासनकाल 1526 से 1530 तक रहा। उनका असली नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अखबर था, लेकिन वह खुद को बाबर (बाबरशाह) कहते थे।

बाबर का भारत पर पहला आक्रमण 20 अप्रैल 1526 को पानीपत की लड़ाई में हुआ था, जहां उन्होंने इब्राहीम लोदी को हराया और दिल्ली की सल्तनत को खत्म कर दिया। इससे बाबर ने भारत में मुघल साम्राज्य की नींव रखी।

बाबर का शासन काल छोटा था, लेकिन उन्होंने अपने छोटे शासनकाल में ही मुघल साम्राज्य को मजबूती से स्थापित किया और उसे विभिन्न सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराओं के साथ मिलाकर समृद्धि दिलाई। उनके पुत्र हुमायूँ ने उनके बाद साम्राज्य का विस्तार किया और इसे मजबूती से बनाए रखा।

हुमायूँ

हुमायूँ (जन्म: 6 मार्च 1508, मरण: 27 जनवरी 1556) मुघल साम्राज्य का दूसरा सम्राट था और वह बाबर का पुत्र था। हुमायूँ ने 1530 से 1540 तक और फिर 1555 से 1556 तक मुघल साम्राज्य का शासन किया।

शासक और विभिन्न इतिवृत्त हुमायूँ का शासनकाल कठिनाइयों और अस्थिरताओं से भरा रहा। उन्हें बड़े भू-राजनीतिक और सैन्यिक संघर्षों का सामना करना पड़ा, जिसमें उन्होंने अपनी ताकतों को बनाए रखने के लिए कई बार दिल्ली को हाथीपुर छोड़ना पड़ा।

हुमायूँ का एक महत्वपूर्ण योगदान यह रहा कि उन्होंने अपने बेटे अकबर को साम्राज्य का उत्तराधिकारी बनाया। अकबर के काल में मुघल साम्राज्य ने और भी विकास किया और सुसंगत रूप से संचालित किया गया।

अकबर

अकबर (जन्म: 14 अक्टूबर 1542, मरण: 27 अक्टूबर 1605) मुघल साम्राज्य का तीसरा सम्राट था और उन्हें “अकबर वेली” या “अकबर बदशाह” के नाम से भी जाना जाता है। उनका शासनकाल 1556 से 1605 तक रहा। अकबर के शासनकाल को “सुल्तानत-ए-अकबर” या “अकबरी सम्राट” के रूप में जाना जाता है और यह मुघल साम्राज्य का सबसे सुसंगत और समृद्धिशील काल था।

अकबर ने अपने शासनकाल में भारतीय साम्राज्य को एकजुट किया और उसे विशाल मुघल साम्राज्य में रूपांतरित किया। उन्होंने विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक अनुप्रयोगों को समर्थन दिया और एक सामाजिक समृद्धि और सामरिक विकास की दिशा में कई सुधार किए।

अकबर की सर्वाधिक महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक उनकी नगर निगमन योजना रही, जिससे फतेहपुर सीकरी नामक शहर का निर्माण हुआ। उन्होंने संविधान, शिक्षा, और साहित्य में भी सुधार किया और अपने दरबार को विभिन्न कला, साहित्य, और विज्ञान के लिए एक केंद्र स्थापित किया। अकबर के शासनकाल को भारतीय इतिहास के सोने के युग के रूप में याद किया जाता है।

जहाँगीर

मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुगलों की सेवा स्वीकार की इसके बाद सिक्खों , अहामो और अहमदनगर के खिलाफ अभियान चलाए गए , जो पूर्णत: सफल नही हुए ।

जहाँगीर के शासन के आंतिम वर्षों में राजकुमार खुर्रम जो बाद में सम्राट शाहजहाँ कहलाया , ने विद्रोह किया ।

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शाहजहाँ

  • अफगान अभिजात खान जहान लोदी ने विद्रोह किया और वह पराजित हुआ ।
  • अहमदनगर के विरुद्ध अभियान हुआ , जिसमे बुंदेलों की हार हुई और ओरछा पर कब्जा कर लिया गया ।
  • उत्तर – पश्चिम में बल्ख पर कब्जा करने के लिए उज्बेगो के विरुद्ध अभियान हुआ , जो असफल रहा । परिणामस्वरूप कांधार सफविदों के हाथ मे चला गया ।
  • 1632 ई० में अतः अहमदनगर को मुगलो के राज्य में मिला लिया गया और बीजापुर की सेना ने सुलह के लिए निवेदन किया ।
  • 1657 ई० – 1658 ई० में शाहजहाँ के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार को लेकर झगड़ा शुरू हो गया । इसमे औरंजेब की विजय हुई और दाराशिकोह समेत तीनो भइयो को मौत के घाट उतार दिया गया
  • शाहजहाँ को उसकी शेष जिदंगी के लिए आगरा में कैद कर दिया गया ।

औरंगजेब

1663 ई० में उत्तर – पूर्व में अहोमो की पराजय हुई , परन्तु उन्होंने 1690 ई० में पुनः विद्रोह कर दिया ।

उत्तर -पश्चिम मे यूसफजई और सिक्खों ने विद्रोह किया । इसका कारण था उनकी आंतरिक राजनीति और उत्तराधिकार के मसलों में मुगलो का हस्तक्षेप ।

मराठा सरदार शिवाजी के विरुद्ध मुगल अभियान आरंभ में सफ़ल रहे , परंतु ओरंगजेब ने शिवाजी का अपमान किया और शिवाजी आगरा स्थित मुगल कैदखाने से भाग निकले ।

राजकुमार अकबर ने औरंगजेब के दक्कन के शासको के विरुद्ध विद्रोह किया । जिसमें उसे मराठो और दक्कन की सल्तनत का सहयोग मिला । अतः वह ईरान ( सफविद के पास ) से भाग गया ।

अकबर के विद्रोह के पश्चात औरंगजेब ने दक्कन के शासको के विरुद्ध सेनाये भेजी । 1685 ई० में बीजपुर और 1687 में गोलकुंडा को मुगलो ने आपने राज्य में मिला लिया । 1668 ई० में औरंगजेब ने दक्कन में मराठों ( जो छापामार पद्धति का उपयोग कर रहे थे ) के विरुद्ध अभियान का प्रबध किया ।

मुगल राजधानी

16 वी – 17 वी शताब्दीयो के दौरान मुगलो की राजधानियाँ बड़ी ही तेजी से स्थानांतरित होती रही ।

बाबर ने लोदियो की राजधानी आगरा पर अधिकार किया तथापि उसके शासन काल के दौरान राजसीदरबार भिन्न – भिन्न स्थानों पर लगाये जाते रहे ।

1560 के दशक में अकबर ने लाल बलुये पत्थर से आगरे में किले का निर्माण किया ।

1570 के दशक में अकबर ने फतेहपुर सीकरी को राजधानी बनाया । इसका एक कारण था कि सीकरी अजमेर को जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था जहाँ ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन चुकी थी ।

मुगल बादशाहों के चिश्ती सूफियों के साथ घनिष्ठ सम्बध बने । अकबर ने सीकरी में जमा मस्जिद के बगल में ही शेख सलीम चिश्ती के लिए सगमरमर का मकबरा बनवाया ।

फतेपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा ( विशाल मेहराबी प्रवेश द्वार ) बनवाने का उद्देश्य वहाँ के लोगो को गुजरात मे मुगल विजय की याद दिलाना था ।

1885 ई० में उत्तर – पश्चिम की ओर अधिक नियंत्रण में लाने के लिए राजधानी को लाहौर स्थानांतरित कर दिया गया । इस तरह अकबर ने 13 बर्षो तक ( 1548 ई० ) सीमा पर गहरी चौकसी बनाये रखी ।

1648 ई० में राजधानी शाहजहानाबाद स्थानांतरित हो गयी ।

इतिवृत्त ( इतिहास का वृतांत )

वह लेख जिनसे किसी क्षेत्र के इतिहास के बारे में पता चलता है इतिवृत्त कहलाते हैं । मुग़ल साम्राज्य के सभी इतिवृत पांडुलिपियों के रूप में मिले है ।

पांडुलिपियां

शासक और विभिन्न इतिवृत्त वह सभी लेख जो हाथो से लिखे जाते है पांडुलिपियां कहलाते है । मुगल राजाओं द्वारा कई इतिवृत्त तैयार करवायें गए । इन इतिवृत्तों की रचना मुगल राजाओं द्वारा इसीलिए करवाई गई ताकि आने वाली पीढ़ी को मुग़ल शासन के बारे में जानकारी मिल सके । इन सभी इतिवृत्तों से मुगल साम्राज्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं ।

इतिवृत्त की रचना

मुगल बादशाहो द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्यन के महत्वपूर्ण स्रोत है ।

ये इतिवृत्त साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी लोगो के सामने एक प्रबुद्ध राज्य के दर्शन के उद्देश्य से लाए गए थे ।

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शासक यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए उनके शासक का विवरण उपलब्ध हो ।

मुगल इतिवृत्त के लेखक निरपवाद से दरबारी ही रहे । उन्होंने जो इतिहास लिखे उनके केंद्र बिंदु में थी – शासक पर केंद्रित घटनाए , शासक का परिवार , दरबार व अभिजात , युद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाएं ।

इनके लेखको की निगाह में सम्राज्य व दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था ।

मुगल भारत की सभी पुस्तकें पांडुलिपियों के रूप में थी आर्थात वे हाथ से लिखी होती थी । इन रचनाओं का मुख्य केंद्र शाही कितबखाना था ।

भाषा

मुगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे । चूँकि मुगल चगताई मुल के थे अतः तुर्की उनकी मातृभाषा थी । इनके पहले शासक बाबर ने कविताए और आपने संस्मरण इसी भाषा मे लिखे ।

अकबर ने सोच – समझकर फ़ारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाया ।

फ़ारसी को दरबार की भाषा का ऊँचा स्थान दिया गया तथा उन लोगो को शक्ति व प्रतिष्ठा प्रदान की गई जिनकी इस भाषा पर अच्छी पकड़ थी । यह सभी स्तरों के प्रशासन की भाषा बन गई । जिससे लेखाकारों , लिपिकों तथा अन्य अधिकारियों ने भी इसे शिख लिया ।

फ़ारसी के हिन्दवी के साथ पारस्परिक सम्पर्क से उर्दू के रूप में एक नई भाषा निकल आई ।

अकबरनामा जैसे मुगल इतिहास फ़ारसी में लिखे गए थे । जबकि अन्य जैसे बाबर के संस्मरणों का बाबरनामा के नाम से तुर्की से फ़ारसी में अनुवाद किया गया था ।

मुगल बादशाहों ने महाभारत और रामायण जैसे संस्कृत ग्रथो को फ़ारसी में अनुवादित किए जाने का आदेश दिया ।

महाभारत का अनुवाद रज्मनामा ( युद्धों की पुस्तक ) के रूप में हुआ ।

मुगल चित्रकला

अबुल फजल ने चित्रकारी का एक जादुई कला के रूप में वर्णन किया है । अबुल फजल चित्रकारी को बहुत सम्मान देता था ।

17 वी सदी में मुगल बादशाहों को प्रभामंडल के साथ चित्रित किया जाने लगा । ईश्वर के प्रतीक रूप में इन प्रभामंडल को उन्होंने ईसा और वर्जिन मेरी के यूरोपीय चित्रो से लिया था ।

अकबर को एक चित्र में सफेद पोशाक में दिखाया गया है । यह सफेद रंग सूफी परम्परा की और सकेत करता है ।

बादशाह उसके दरबार तथा उसमें हिस्सा लेने वाले लोगो का चित्रण करने वाले चित्रो की रचना को लेकर शासको और मुसलमान रूढ़िवादी वर्ग के प्रतिनिधियो आर्थात उमला के बीच निरतर तनाव बना रहा ।


शासक और विभिन्न इतिवृत्त उमला ने कुरान के साथ – साथ हदीस , ( जिससे पैगम्मर मुहम्मद के जीवन से एक ऐसा ही प्रसंग वर्जित है ) में प्रतिष्ठिता मानव रूप के चित्रण पर इस्लामी प्रतिबंध का आह्वान किया ।

ईरान के सफावी राजाओं ने दरबार मे स्थापित कार्यशालाओं में प्रशिक्षित उत्कष्ट कलाकारों को सरक्षण दिया , उदहारण – बिहजाद जैसे चित्रकार ।

मीर सैय्यद अली और अब्दुल समद नामक कलाकारों को हुमायूँ ईरान से अपने साथ दिल्ली लाया ।

FAQs

Q मुगल काल में इतिवृत्त क्या था?

साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के लिए मुगल बादशाहों द्वारा शुरू किया गया इतिवृत्त एक महत्वपूर्ण स्रोत है। 

Q भारत में कितने वंश हैं?

प्राचीन भारत में महत्वपूर्ण राजवंशों में हर्यक राजवंश, शिशुनाग राजवंश, नंद राजवंश, मौर्य राजवंश, इंडो-सीथियन साम्राज्य, कुषाण/येउची, शुंग राजवंश, कण्व राजवंश, सातवाहन, इक्ष्वाकु राजवंश, चोल राजवंश, पांडियन राजवंश, चेर राजवंश, पल्लव शामिल हैं। राजवंश, और चालुक्य राजवंश।

Q बाबर की पत्नी कितनी थी?

बाबर का असली नाम जहीरुद्दीन मुहम्मद था. उन्होंने ने कुल 11 शादियां की थीं. इन 11 पत्नियों से उनके 20 बच्चे थे. बाबर की पहली पत्नी का नाम आयशा सुल्तान बेगम था.
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