Saturday, April 27, 2024
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OSI Model (ओएसआई मॉडल ) क्या है?

OSI Model क्या है – हेलो दोस्तों आप लोगो से उम्मीद करते है की आप को हमारा ये OSI Model (ओएसआई मॉडल ) क्या है? in hindi आप को पसंद आये इस पोस्ट में हमने आप को इसकी पूरी जानकारी दी है इस पोस्ट को पड़ने के बाद आप को इसके बारे में सभी प्रकार की जानकारी हो जाएगी तो चलिए शुरू करते है

OSI Model (ओएसआई मॉडल ) क्या है?

  • ओएसआई मॉडल (OSI Model) एक स्टैंडर्ड नेटवर्क अर्किटेक्चर है जिसे अप्रैल 1984 में ओपन सिस्टम्स इंटरकनेक्ट (OSI) स्टैंडर्ड्स कमिटी ने विकसित किया था। यह मॉडल नेटवर्क संचार के लिए स्थापित किए गए सेवाओं को संरचित करने के लिए एक संरचना प्रदान करता है जिससे नेटवर्क संचार के विभिन्न पहलुओं को अलग-अलग लेयरों में विभाजित किया जा सकता है।
  • इस मॉडल को सात लेयरों में विभाजित किया गया है जो अलग-अलग सेवाएं प्रदान करती हैं जो एक नेटवर्क संचार में संचार करने के लिए उपलब्ध होती हैं। इन सेवाओं के उपयोग से नेटवर्क संचार की गुणवत्ता और सुरक्षा बढ़ती है।
  • इस मॉडल में सबसे निचली लेयर फिजिकल लेयर है, जो नेटवर्क के हार्डवेयर कंपोनेंट जैसे कीबोर्ड, माउस, मॉनिटर और नेटवर्क केबल जैसे संचार के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरणों को शामिल करती है।



7 Layers of OSI MODEL IN HINDI – ओ एस आई मॉडल की लेयर

ओएसआई मॉडल (OSI Model) को सात लेयरों में विभाजित किया गया है, जो नेटवर्क संचार के विभिन्न पहलुओं को अलग-अलग लेयरों में विभाजित करते हुए संरचित करते हैं। निम्नलिखित हैं ओएसआई मॉडल की सभी सात लेयरों के बारे में जानकारी होती है

  • फिजिकल लेयर (Physical Layer): यह ओएसआई मॉडल की सबसे निचली लेयर होती है। इस लेयर में नेटवर्क के हार्डवेयर कंपोनेंट जैसे कीबोर्ड, माउस, मॉनिटर और नेटवर्क केबल जैसे संचार के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरणों को शामिल किया जाता है। इस लेयर में सिग्नलिंग, डिजिटल और एनालॉग डेटा ट्रांसमिशन, प्रोटोकॉल रूल्स और सिग्नल के फॉर्मेटिंग का विवरण होता है।
  • डेटा प्लेन लेयर (Data Link Layer): यह लेयर नेटवर्क को संचालित करने वाले उपकरणों के बीच डेटा ट्रांसमिशन को संभव बनाता है। इस लेयर में डेटा का प्रकार, प्रोटोकॉल विवरण, एक्सेस और एरर डिटेक्शन के बारे में जानकारी होती है।

PHYSICAL LAYER (फिजिकल लेयर)

फिजिकल लेयर (Physical Layer) नेटवर्क के सबसे निचली लेयर होती है और इस लेयर में नेटवर्क के हार्डवेयर कंपोनेंट जैसे कीबोर्ड, माउस, मॉनिटर और नेटवर्क केबल जैसे संचार के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरणों को शामिल किया जाता है।

  • इस लेयर का मुख्य उद्देश्य सिग्नलिंग और फिजिकल डेटा ट्रांसमिशन की सुनिश्चितता होती है। यह लेयर नेटवर्क पर बिना रूटिंग के डेटा के ट्रांसपोर्ट को समर्थित करती है।
  • फिजिकल लेयर में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रोटोकॉल जैसे कि RS-232, Ethernet, ATM, SONET आदि होते हैं।
  • इस लेयर में सिग्नल की ताकत, सिग्नल की रात्रिकरण समय, सिग्नल के फॉर्मेटिंग, विभिन्न फिजिकल टोपोलोजी जैसे कीबोर्ड, माउस, मॉनिटर और नेटवर्क केबल आदि के बारे में जानकारी होती है।

Physical Layer के कार्य

फिजिकल लेयर के प्रमुख कार्य हैं:

  • बिना त्रुटि डेटा ट्रांसमिशन सुनिश्चित करना: फिजिकल लेयर नेटवर्क के हार्डवेयर कंपोनेंट जैसे केबल, रिपीटर, हब, एक्सटेंडर, मॉडेम आदि का इस्तेमाल करते हुए डेटा को संचार करती है। यह लेयर सुनिश्चित करती है कि डेटा त्रुटि मुक्त रूप से पहुँचे या नहीं।
  • डेटा बिट के रूप में पेश करना: फिजिकल लेयर का काम डेटा बिट को अपनी सेटिंग जैसे बाइट या एक बाइट का अंतर विभिन्न फॉर्मेटों में पेश करना होता है। इस लेयर में संचार दो तरीकों से होता है – एक दिशा के संचार और दो दिशा के संचार।
  • सिग्नलिंग का प्रबंधन करना: फिजिकल लेयर में सिग्नलिंग का प्रबंधन भी होता है, जिसमें सिग्नल की ताकत, सिग्नल की रात्रिकरण समय और सिग्नल के फॉर्मेटिंग शामिल होते हैं।
  • नेटवर्क टोपोलोजी का पता लगाना: फिजिकल लेयर नेटवर्क टोपोलोजी के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
Data link layer (डेटा लिंक लेयर)

डेटा लिंक लेयर OSI मॉडल की दूसरी लेयर होती है। इस लेयर का मुख्य कार्य अपनी ऊपरी लेयर से आए डेटा को निश्चित रूप से संचारित करना होता है। यह लेयर नेटवर्क टोपोलोजी के साथ-साथ हार्डवेयर के बीच डेटा के संचार को सुनिश्चित करती है।

डेटा लिंक लेयर के कार्य

डेटा लिंक लेयर के कार्य निम्नलिखित होते हैं:

  • फ्रेम बनाना: डेटा लिंक लेयर में, ऊपरी लेयर से आए डेटा को फ्रेम के रूप में व्यवस्थित किया जाता है। फ्रेम में संदेश के लिए प्रतिनिधित्व करने वाला संदेश शीर्षक (Header) और अंतिम संदेश (Trailer) शामिल होते हैं।
  • एरर की जाँच: यह लेयर एरर को पहचानने में मदद करती है और उन्हें संशोधित करने के लिए प्रेरित करती है। एक फ्रेम में संदेश को जांचा जाता है कि क्या वह त्रुटिहीन है। यदि त्रुटि मिलती है, तो एरर को जाँच करते हुए संदेश को संशोधित कर फिर से भेजा जाता है।
  • फ्लो नियंत्रण: यह लेयर फ्लो नियंत्रण के लिए जिम्मेदार होती है। फ्लो नियंत्रण के द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि एक समय में कितना डेटा बार्त्तव्य नेटवर्क पर भेजा जाएगा। इससे नेटवर्क का ट्रैफिक संचालित रहता है तथा एक समय में अधिक डेटा बार्त्तव्य नहीं भेजा जाता है।

Network layer (नेटवर्क लेयर)

नेटवर्क लेयर OSI मॉडल का तीसरा पर्यावरण होता है। इस लेयर का मुख्य उद्देश्य नेटवर्क पर डेटा पथ निर्धारित करना होता है। नेटवर्क लेयर द्वारा व्यवस्थित डेटा प्रत्येक डेटा पैकेट को सही रूप से भेजा जाता है और विभिन्न नेटवर्क के बीच संचार को संभव बनाता है।

नेटवर्क लेयर के कुछ मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:

  • रूटिंग: नेटवर्क लेयर के जरिए रूटिंग करता है। रूटिंग के द्वारा संदेश को निर्धारित किया जाता है कि एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क तक यात्रा कैसे की जाए।
  • फ्रेमिंग: नेटवर्क लेयर फ्रेमिंग का काम करता है जिससे बड़े संदेश को छोटे फ्रेम में विभाजित किया जाता है।
  • फ्रेगमेंटेशन: यह लेयर बड़े संदेशों को छोटे-छोटे पार्ट में टुकड़ों में टूट जाने से रोकता है। जब बड़े संदेश अन्य नेटवर्क पर भेजा जाता है तो यह लेयर इसे टुकड़ों में विभाजित करता है और प्रत्येक टुकड़े को एक से ज्यादा फ्रेम में विभाजित करता है।

Transport layer (ट्रांसपोर्ट लेयर)

ट्रांसपोर्ट लेयर OSI मॉडल की तीसरी परत होती है, जो की एन्ड टू एंड (end-to-end) कम्युनिकेशन को सुनिश्चित करती है। इस लेयर का उद्देश्य एक प्रोसेस से दूसरे प्रोसेस के बीच सत्यापित कनेक्शन (verified connection) प्रदान करना होता है। यह लेयर सुनिश्चित करती है कि संदेश तथा डेटा सही ढंग से प्राप्त होता है तथा नुकसान के बिना विशाल अंतर से भेजा जाता है।

Transport Layer के कार्य

ट्रांसपोर्ट लेयर के मुख्य कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सत्यापित कनेक्शन (Verified Connection): यह लेयर सत्यापित कनेक्शन (verified connection) स्थापित करती है। जब दो प्रकार के प्रोसेस (process) एक दूसरे से संदेश (message) भेजते हैं, तो सत्यापित कनेक्शन के द्वारा निश्चित किया जाता है कि दोनों प्रकार के प्रोसेस एक दूसरे से कनेक्टेड हैं या नहीं।
  • डेटा सेगमेंटेशन (Data Segmentation): यह लेयर बड़े संदेशों को छोटे-छोटे पार्ट में टुकड़ों में टूट जाने से रोकती है। जब बड़े संदेश अन्य नेटवर्क पर भेजा जाता है तो यह लेयर इसे टुकड़ों में विभाजित करता है और उन टुकड़ों को एक्सेस करने के लिए सिराहना प्रदान करता है।
  • डेटा के फ्लो को सम्बन्धित प्रकार से विनियोजित करना (Flow Control): ट्रांसपोर्ट लेयर डेटा फ्लो को संभालने और सम्बन्धित प्रकार से विनियोजित करने के लिए जिम्मेदार होती है। इसे फ्लो कंट्रोल (flow control) कहा जाता है।
Session layer(सेशन लेयर)

सेशन लेयर OSI मॉडल की तीसरी परत होती है जो दो उपकरणों के बीच सत्यापित और निरंतर संचार को संभव बनाने में मदद करती है। यह लेयर एक सत्यापन (authentication) के माध्यम से दो उपकरणों के बीच सत्यापित कनेक्शन स्थापित करती है और सत्यापित कनेक्शन को बनाए रखती है। इसके अलावा, यह लेयर सत्यापित कनेक्शन में विद्यमान संचार को संभालने के लिए भी जिम्मेदार होती है।

सेशन लेयर का काम निम्नलिखित हैं:

  • सत्यापित कनेक्शन (Verified Connection): सेशन लेयर सत्यापित कनेक्शन स्थापित करती है और उपयोगकर्ता को सत्यापित कनेक्शन को बनाए रखने के लिए जब तक वे संदेशों को भेजते रहते हैं तब तक सत्यापित कनेक्शन को बनाए रखती है।
  • सेशन का निर्धारण (Session Identification): सेशन लेयर दो उपकरणों के बीच सत्यापित कनेक्शन को निर्धारित करने में मदद करती है। यह लेयर सत्यापित कनेक्शन के लिए एक अनुक्रमणिका (sequence) या नंबर का उपयोग करती है जो सत्यापित कनेक्शन को संदेशों के बीच सम्बन्धित रखता है।
Session Layer के कार्य

सेशन लेयर OSI मॉडल की तीसरी परत होती है जो दो उपकरणों के बीच सत्यापित और निरंतर संचार को संभव बनाने में मदद करती है। यह लेयर एक सत्यापन (authentication) के माध्यम से दो उपकरणों के बीच सत्यापित कनेक्शन स्थापित करती है और सत्यापित कनेक्शन को बनाए रखती है। इसके अलावा, यह लेयर सत्यापित कनेक्शन में विद्यमान संचार को संभालने के लिए भी जिम्मेदार होती है।

सेशन लेयर के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सत्यापित कनेक्शन (Verified Connection): सेशन लेयर सत्यापित कनेक्शन स्थापित करती है और उपयोगकर्ता को सत्यापित कनेक्शन को बनाए रखने के लिए जब तक वे संदेशों को भेजते रहते हैं तब तक सत्यापित कनेक्शन को बनाए रखती है।
  • सेशन का निर्धारण (Session Identification): सेशन लेयर दो उपकरणों के बीच सत्यापित कनेक्शन को निर्धारित करने में मदद करती है। यह लेयर सत्यापित कनेक्शन के लिए एक अनुक्रमणिका (sequence) या नंबर का उपयोग करती है

Application layer (एप्लीकेशन लेयर)

एप्लीकेशन लेयर OSI मॉडल की सबसे ऊपरी परत होती है जो उपयोगकर्ता एप्लीकेशनों और नेटवर्क से संबंधित सेवाओं को संचालित करती है। यह लेयर एक अंत श्रृंखला या उपयोगकर्ता-अंतरफलक (User Interface) के साथ उपयोगकर्ता और नेटवर्क के बीच जुड़ाव का प्रबंधन करती है।

एप्लीकेशन लेयर के कुछ महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में निम्नलिखित हैं:

  • उपयोगकर्ता इंटरफेस (User Interface): एप्लीकेशन लेयर उपयोगकर्ता इंटरफेस के रूप में काम करती है और उपयोगकर्ताओं के लिए एक संचार ढांचा प्रदान करती है। उपयोगकर्ता इंटरफेस के माध्यम से उपयोगकर्ता नेटवर्क से संबंधित सेवाओं तक पहुंच प्राप्त करते हैं।
  • प्रोटोकॉल संसाधन (Protocol Resources): एप्लीकेशन लेयर नेटवर्क प्रोटोकॉल संसाधनों को प्रबंधित करती है। उदाहरण के लिए, HTTP (Hypertext Transfer Protocol) एक विशेष प्रोटोकॉल होता है जो वेब संचार के लिए उपयोग किया जाता है।
  • सेवाएं (Services): एप्लीकेशन लेयर उपयोगकर्ता को संचार सेवाओं के लिए प्रदान करती है, जो उपयोगकर्ता के एप्लीकेशन से संबंधित होती हैं। उदाहरण के लिए, ईमेल, फ़ाइल ट्रांसफर, डेटाबेस एक्सेस आदि।
  • प्रोटोकॉल अनुपातित करना (Protocol Interworking): एप्लीकेशन लेयर एक प्रोटोकॉल से दूसरे प्रोटोकॉल परिवर्तित करती है जब एक उपयोगकर्ता एप्लीकेशन दूसरे उपयोगकर्ता एप्लीकेशन से संवाद करना चाहता है जो एक अलग प्रोटोकॉल पर काम करता हो।
  • सत्यापन और विवरण (Authentication and Validation): एप्लीकेशन लेयर उपयोगकर्ता के पहुंच व उपयोगकर्ता द्वारा नेटवर्क से संचार करते समय सत्यापन और विवरण करती है।
  • डेटा एंक्रिप्शन और डेक्रिप्शन (Data Encryption and Decryption): एप्लीकेशन लेयर डेटा को सुरक्षित करने के लिए एक डेटा एंक्रिप्शन प्रोटोकॉल का उपयोग करती है। डेटा एंक्रिप्शन प्रोटोकॉल डेटा को एक सुरक्षित तरीके से संचार करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

एक non-technical बात

एक अनोखी बात है कि अधिकतर लोगों को लगता है कि टेक्नोलॉजी और कंप्यूटर समझना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन यह असल में नहीं है। अगर आप बुनियादी बातों को समझते हैं, तो आप कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी को समझने में सक्षम हो सकते हैं। यह ज्ञान बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि आज के समय में टेक्नोलॉजी हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न अंग बन चुकी है और इसे समझना बहुत जरूरी है।

Advantage of OSI model in Hindi – ओएसआई मॉडल के लाभ

ओएसआई मॉडल के कुछ लाभ हैं:

  • स्टैंडर्डाइजेशन: OSI मॉडल एक स्टैंडर्डाइजेड रूप में विकसित किया गया है, जिससे इसका उपयोग न केवल एक निश्चित समझौते के रूप में किया जा सकता है बल्कि इसे टेक्नोलॉजी के विभिन्न एकांतों में संचार करने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।
  • अधिक सुरक्षा: OSI मॉडल में नेटवर्क के प्रत्येक लेयर के लिए विभिन्न सुरक्षा प्रोटोकॉल होते हैं, जो नेटवर्क को सुरक्षित बनाते हैं।
  • नेटवर्क विश्लेषण: OSI मॉडल की संरचना नेटवर्क विश्लेषण के लिए उपयोगी होती है। नेटवर्क के प्रत्येक लेयर पर आधारित विश्लेषण द्वारा नेटवर्क के समस्याओं का पता लगाया जा सकता है।
  • अंतरोप: OSI मॉडल एक लोगों को एक दूसरे के साथ संचार करने के लिए एक सामान्य भाषा प्रदान करता है, जो अंतरोप (Interoperability) को सुनिश्चित करता है।
  • अधिक लचीला: OSI मॉडल के विभिन्न लेयरों को अलग-अलग विकसित किया जा सकता है,
Disadvantage of OSI model in Hindi

ओएसआई मॉडल का एक नुकसान यह है कि यह एक थ्योरी है और वास्तविक नेटवर्क इम्प्लीमेंटेशन के लिए उपयोग किया जाने वाले नेटवर्किंग प्रोटोकॉल संचालित करने के लिए एक स्टैंडर्ड नहीं है। इसके अलावा, इसमें उपलब्ध सभी स्तरों का अनुपात और कार्य वास्तविक नेटवर्क में बदल सकते हैं, इसलिए एक संगत स्टैंडर्ड का निर्माण करना मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, इसमें से कुछ लेयर उपयोगकर्ता डेटा को प्रोसेस करने के लिए नहीं होते हैं, इसलिए यह अत्यधिक समय लेता है और जटिल हो सकता है।

OSIModel और TCP/IP के बीच अंतर (difference)

OSI और TCP/IP दोनों नेटवर्किंग के लिए प्रोटोकॉल सुविधाओं का एक सेट होते हैं, लेकिन दोनों में कुछ अंतर हैं। निम्नलिखित हैं OSI और TCP/IP में विभिन्नताओं की एक सूची:

  • लेयरों की संख्या: OSI मॉडल में सात लेयर होती हैं, जबकि TCP/IP मॉडल में चार लेयर होती हैं।
  • ट्रांसपोर्ट लेयर: OSI मॉडल में ट्रांसपोर्ट लेयर दो उप-लेयर (Session और Presentation) के बीच स्थित होती है, जबकि TCP/IP मॉडल में ट्रांसपोर्ट लेयर सीधे नेटवर्क लेयर के ऊपर स्थित होती है।
  • संपर्क बनाने का तरीका: OSI मॉडल में, दो डिवाइस एक-दूसरे के साथ कनेक्ट होने के लिए संपर्क स्थापित करते हैं। जबकि TCP/IP मॉडल में, डिवाइस का पता लगाने के लिए एक IP एड्रेस का उपयोग किया जाता है।
  • प्रोटोकॉलों की संख्या: OSI मॉडल में एक लेयर में कई प्रोटोकॉल हो सकते हैं, जबकि TCP/IP मॉडल में एक लेयर में एक ही प्रोटोकॉल होता है।
  • व्यापकता: OSI मॉडल एक व्यापक मॉडल होता है

    Characteristics of OSI model in Hindi – OSI मॉडल की विशेषताएं

    OSI मॉडल की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • स्तर विभाजन (Layered Approach): OSI मॉडल स्तरों में विभाजित होता है जिससे नेटवर्क प्रोटोकॉल के विभिन्न पहलुओं को अलग-अलग स्तरों पर विभाजित करने में मदद मिलती है।
  • प्रोटोकॉल अभिनय (Protocol Specification): OSI मॉडल नेटवर्क प्रोटोकॉल की विशेषताओं के बारे में निर्देशों को प्रदान करता है जिससे प्रोटोकॉल निर्माण और परीक्षण में मदद मिलती है।
  • अभिन्यास (Implementation): OSI मॉडल अनुकूल नहीं होने के बावजूद एक स्टैंडर्ड नेटवर्क अभिनय होता है जो नेटवर्क प्रोटोकॉल के संचालन में मदद करता है।
  • स्वतंत्र पहलु (Modularity): OSI मॉडल में प्रत्येक स्तर स्वतंत्र होता है जिससे नेटवर्क को अलग-अलग पहलुओं में विभाजित करना संभव होता है।
  • संगठित (Structured): OSI मॉडल को संरचित बनाने के लिए नियम और निर्देश होते हैं जिनका पालन करने से संगठित नेटवर्क निर्माण किया जा सकता है

तो दोस्तों आपसे उम्मीद करते है की हमारा ये OSI Model (ओएसआई मॉडल ) क्या है in hind आप को जरूर पसंद आया होगा इस पोस्ट में हमने आप को इसकी पूरी जानकरी दी है को आप आपने दोस्तों के साद भी जरूर शेयर करे

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