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शबे बरात का रोजा कैसे रखे
शबे बरात का रोजा कैसे रखे-शबे बरात एक इस्लामिक उत्सव है जो मुसलमानों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन मुसलमान लोग रात को नमाज पढ़ते हैं और अल्लाह से माफी मांगते हैं ताकि उन्हें अगले साल के लिए अधिक बेहतर जीवन मिल सके। शबे बरात के दिन रोजा रखना एक शांत और शुभ विचार है। यहां कुछ विस्तृत निर्देश हैं जो आपको शबे बरात के रोजे रखने में मदद कर सकते हैं:
- सहरी करें: आप शबे बरात के रोजे के लिए सुबह की नमाज के बाद सहरी कर सकते हैं। सहरी करना आपको एक अच्छी तरह से भोजन करने में मदद करेगा और आपको रोजा रखने के लिए शक्ति प्रदान करेगा।
- नमाज पढ़ें: शबे बरात के दिन रात को नमाज पढ़ना बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन नमाज के बाद आप दुआ मांग सकते हैं और अल्लाह से माफी मांग सकते हैं।
- नियत करें: शबे बरात के दिन रोजा रखने से पहले नियत करें कि आप इसे अल्लाह के लिए ही रख रहे हैं। इससे आपका मन शुद्ध होता है।
शब ए बारात की रात में क्या पढ़े
- जियारत
- कुरान पाक की तिलावत
- नफल व तहजुद की नमाज
- रोजा रखना
- कब्रिस्तान में फातिहा पढ़ना
- मगफिरत की दुआ
- सलातुल तस्बीह की नमाज
- कजा़ ए उमरी की नमाज़।
शब-ए-बरात का रोजा कब है?
वर्ष 2024 में 26 फरवरी को है यानी माह शाबान की 15वीं तारीख को रोजा रखा जाएगा। फज़र की अज़ान से पहले, सेहरी खाई जाती है। 15वीं तारीख को कुछ लोग रोजा रखते हैं।
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शबे बरात की रोजा रखने की नियत
शबे बरात का रोजा कैसे रखे-शबे बरात की रोजा रखने की नियत बहुत सरल होती है। आप निम्नलिखित नियत को अपने मन में कर सकते हैं:
- “मैं यह रोजा शबे बरात के मौके पर अल्लाह के लिए रख रहा हूँ। मैं उनकी राह में अपनी तमाम गुनाहों से माफी मांगता हूँ और अल्लाह से दुआ करता हूँ कि वह मुझे अगले साल के लिए अधिक तक़दीर और बेहतर जीवन प्रदान करें।”
- इस नियत को मन में बार बार दोहराते हुए आप शबे बरात की रोजा रख सकते हैं। आप यह नियत सुबह सहरी से पहले भी कर सकते हैं जब आप रोजा रखने जा रहे होते हैं।
शबे बरात रोज़ा खोलने की नियत
- “अल्लाह के नाम से मैं इस रोजे का इफ्तार करता हूं और अल्लाह के लिए उसके रोजे का आदा करने का इंतजाम करता हूं।”
- यह नियत बार बार दोहराकर रोजे को खोला जा सकता है। इसे रोजे खोलने से पहले सुनना बेहतर होगा। इसके अलावा, रोजे को खोलने से पहले अधिकतम आज्ञाकारी और अल्लाह के प्रति समर्पण जरूरी होता है।
शबे बरात रोज़ा खोलने की दुआ
- “अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुमतु व अला रिजा’इ व फित्रि उम्र बियादिक अल्लाहुम्म अन्तस्सलाम व मिन्कस्सलाम तबारक्तयायाथदाल्जलाली व इक्राम”
- इसका मतलब होता है, “अल्लाह हे! मैंने तेरे लिए रोजा रखा है और तेरे लिए उसे खोल रहा हूँ। उम्र की बेशुमार रहमत के साथ। अल्लाह हे! तू ही शांति का मालिक है, शांति तुझसे ही होती है। तू बेशुमार रहमत के साथ भरा हुआ है और तू जलाल और उपकार के हकदार है।”
यह दुआ रोजे खोलने से पहले पढ़ी जाती है। इसके अलावा, रोजे खोलने से पहले अधिकतम आज्ञाकारी और अल्लाह के प्रति समर्पण जरूरी होता है।
शबे बरात रोज़ा रखने की दुआ
- “बिस्मिल्लाहि र-रहमानी र-रहीम, अल्लाहुम्मा बारीक लना फी रजब व शबान व बल्लिग्ना रमदान।”
- इसका मतलब होता है, “अल्लाह हे! रजब और शबान के महीनों में हमारे लिए बरकत दे और हमें रमजान तक पहुँचाए।”
- यह दुआ रोजे रखने से पहले पढ़ी जाती है। इसके अलावा, रोजा रखने से पहले अधिकतम आज्ञाकारी और अल्लाह के प्रति समर्पण जरूरी होता है।