Shri Krishna Quotes From Bhagavad Gita for life Hindi- भगवद् गीता, जो महाभारत का एक हिस्सा है, को धर्मग्रंथों में से एक माना जाता है। इसमें श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच युद्ध क्षेत्र में हुए संवाद को दर्शाया गया है। यह संवाद न सिर्फ उस समय की परिस्थिति के बारे में बात करता है, बल्कि जीवन के सार्वभौमिक सत्यों और मूल्यों को भी उजागर करता है।
Quick Links
1.कर्म और कर्तव्य: स्वयं को ढूँढना और योगदान देना
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (2:47) – इसका अर्थ है कि कर्म करने का अधिकार है, फल की प्राप्ति में नहीं। हमें कर्म करने के लिए बाध्य किया गया है, लेकिन परिणाम की चिंता न करें। कर्म को कर्तव्य समझ कर करें, स्वार्थी इच्छाओं से प्रेरित होकर नहीं।
लोकासंग्रहमेवाप्यस्य सर्वस्यार्थं कल्पयात।” (3:25) – इसका अर्थ है कि सभी प्राणियों के कल्याण के लिए कार्य करें। जीवन का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करना नहीं है, बल्कि पूरे समाज और दुनिया में सकारात्मक योगदान देना है।
Bhagavad Gita Hindi- कर्म सर्वे भवात्मकः संन्यस्य कर्मण्यहं।” (2:47) – इसका अर्थ है कि सभी कार्यों को त्याग भाव से करें। व्यक्तिगत लाभ की इच्छा को त्यागकर, दूसरों की सेवा के लिए समर्पित होकर कर्म करें।
2. धर्म और संयम: जीवन में आंतरिक शांति का रास्ता
कौशलम्।” (2:50) – इसका अर्थ है कि कर्म को योग के साथ करें, कर्मयोग कौशल है। योग मन और इंद्रियों पर नियंत्रण पाने का अभ्यास है। जब हम अपने इंद्रियों को नियंत्रित करते हैं, तो हमारे कर्म अधिक सार्थक और प्रभावी होते हैं।
“सुखदुःखे समे कृत्वा लभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवस्थितः।” (2:38) – इसका अर्थ है कि सुख और दुःख में समान रहें, लाभ और हानि को समान समझें, जीत और हार को समान समझें। इस तरह कर्म करें, पाप में न फंसें। जीवन में परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, लेकिन हमारी प्रतिक्रियाएँ ही हमारे चरित्र को परिभाषित करती हैं।
Shri Krishna Quotes From Bhagavad Gita for life Hindi- सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।” (2:63) – इसका अर्थ है कि क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति भ्रमित होती है, स्मृति भ्रंश से बुद्धि नष्ट होती है, बुद्धि नष्ट होने से सब कुछ नष्ट हो जाता है। क्रोध और मोह हमारे अंदर अंधकार लाते हैं, इसलिए हमें इनका त्याग करना चाहिए।
3. आत्मज्ञान और आत्मविश्वास: जीवन का वास्तविक उद्देश्य
“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।” (2:23) – इसका अर्थ है कि आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न ही अग्नि जला सकती है, न ही जल गीला कर सकता है, न ही वायु सुखा सकती है। आत्मा अमर है
भगवान कृष्ण के इन श्लोक से मिलेगा जीवन जीने का सार
श्लोक | अर्थ | जीवन जीने का सार |
---|---|---|
धर्मो रक्षति रक्षित | धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति धर्म द्वारा रक्षित होता है। | सदैव धर्म का पालन करें। |
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन | कर्म करने का अधिकार तुम्हारा है, फल की चिंता मत करो। | कर्म पर ध्यान दें, फल की चिंता न करें। |
योग: कर्मसु कौशलम् | योग कर्म में कुशलता है। | कर्म को कुशलता और लगन से करें। |
गतासु गति: पुरुषस्य | मनुष्य की गति पूर्वजन्म के कर्मों द्वारा निर्धारित होती है। | अच्छे कर्मों का संचय करें। |
नास्ति बुद्धिमतां शोक | बुद्धिमान व्यक्ति को शोक नहीं होता। | सदैव सकारात्मक सोच रखें। |
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही। | जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीरों को त्यागकर नए शरीरों को धारण करती है। | मृत्यु से डरें नहीं, यह जीवन का चक्र है। |
अर्जुन उवाच | अर्जुन ने कहा: | |
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। | कर्म करने का अधिकार तुम्हारा है, फल की चिंता मत करो। | |
श्रीभगवानुवाच | भगवान ने कहा: | |
तस्मात् सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च। | इसलिए हर समय मेरा स्मरण करते हुए युद्ध कर। | |
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय। | अपना मन मुझमें लगाओ और अपनी बुद्धि मुझमें स्थापित कर। | |
इवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति कर्म सम्यक् व्यवसितम्। | इस प्रकार तुम्हारे द्वारा कर्म सम्यक् रूप से व्यवस्थित होगा। |
गीता में भगवान कृष्ण का प्रमुख संदेश क्या है?
हर व्यक्ति का अपना कर्तव्य होता है, जिसे उसे ईमानदारी से निभाना चाहिए। कर्तव्य का पालन करते हुए, मनुष्य को सामाजिक न्याय और धर्म का पालन करना चाहिए। कर्म और कर्तव्य का पालन करते हुए, मनुष्य को आत्म-विकास और आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर होना चाहिए।
श्री कृष्ण ने गीता में क्या उपदेश दिया है?
- “कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” – कर्म करते रहना मनुष्य का कर्तव्य है, फल की चिंता किए बिना।
- “योगस्थ: कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।” – कर्म योग का पालन करते हुए, मनुष्य को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।
- “वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।” – आत्मा अमर है, और शरीर नश्वर है।
- “तत्वज्ञानार्थं दर्शनान्निःश्रेयसात्कर्मणो ।” – आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के लिए, मनुष्य को ध्यान, योग और आध्यात्मिक साधना करनी चाहिए Shri Krishna Quotes From Bhagavad Gita for life Hindi