रामायण में सीता माता की जन्म कथा – Mata Sita Story In Ramayan हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहती आज में आपको सीता माता के बारे में बताने जा रहा हु।
त्रेता युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में जन्म लिया तो माता लक्ष्मी ने के रूप में। माता सीता ने अपने जीवन में उच्च आदर्शों की स्थापना की तथा समाज को कई संदेश दिए। उन्होंने हमेशा धैर्य और संयम से काम लिया व भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए ही निर्णय लिए। आज हम आपको माता सीता के भूमि में निकलने से लेकर उनका पुनः भूमि में समाने तक की कथा का वर्णन करेंगे।
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माता सीता का जन्म
रामायण में सीता माता की जन्म कथारामायण में माता सीता के जन्म को लेकर कुछ स्पष्ट मत नही है लेकिन यह पता चलता हैं कि मिथिला के राजा जनक को वे भूमि में से प्राप्त हुई थी। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार वे रावण व मंदोदरी की पुत्री थी जिसे रावण ने अपशकुन के कारण समुंद्र में फिंकवा दिया था। वहां से बहती हुई माता सीता राजा जनक के राज्य में पहुँच गयी।
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-जब महाराज जनक अपने राज्य को सूखे से बचाने के लिए खेत में हल जोत रहे थे तभी उनको वहां से सीता प्राप्त हुई। चूँकि राजा जनक व उनकी पत्नी सुनैना को कोई संतान नही थी इसलिये उन्होंने सीता को गोद ले लिया।
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-बाद में माता सीता की एक छोटी बहन हुई जिसका नाम उर्मिला था। इसके अलावा उनकी दो चचेरी बहने मांडवी व श्रुतकीर्ति भी थी जो उनके चाचा कुशध्वज की पुत्रियाँ थी।
माता सीता के अन्य नाम
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-माता सीता को कई अन्य नाम से भी जाना जाता है तथा हर नाम से उनकी एक अलग विशेषता दिखाई देती हैं। आइए उनके सभी नाम तथा उनका अर्थ जानते हैं
- जानकी: राजा जनक की पुत्री होने के कारण।
- वैदेही: राजा जनक का एक नाम विदेह भी था क्योंकि वे भगवान की भक्ति में अपनी देह तक का त्याग कर देते थे या उसका आभास भूल जाते थे। इस कारण सीता को वैदेही कहा गया।
- मैथिली/ मिथिलेशकुमारी: मिथिला राज्य की राजकुमारी के कारण।
- जनकात्मजा: राजा जनक की आत्मीय पुत्री होने के कारण।
- भूमिपुत्री/ भूसुता/ भौमि/ भूमिजा: भूमि से प्राप्त होने के कारण।
- जनकनंदिनी: राजा जनक की सबसे प्रिय पुत्री होने के कारण। राजा जनक को अपने परिवार की सभी पुत्रियों में सबसे प्यारी पुत्री माता सीता ही थी।
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-इसके अलावा उनका नाम सीता इसलिये पड़ा क्योंकि जिस हल को राजा जनक जोत रहे थे उसके निचले भाग को सीता कहा जाता है। उसी से टकराकर माता सीता उन्हें प्राप्त हुई थी। इसलिये उनका नाम सीता पड़ा। कई जगह सीता को सिया के नाम से भी जाना जाता है।
माता सीता का स्वयंवर व श्रीराम के साथ विवाह
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-जब सीता विवाह योग्य हो गयी तब उनके पिता राजा जनक ने उनके लिए स्वयंवर का आयोजन किया। उस स्वयंवर में जो भी शिव धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देता उसका विवाह माता सीता से हो जाता। एक-एक करके कई महाबली योद्धाओं ने शिव धनुष को उठाने का प्रयास किया लेकिन सब विफल रहे।
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-उस स्वयंवर में श्रीराम अपने गुरु विश्वामित्र व भाई लक्ष्मण के साथ पधारे थे। अंत में श्रीराम ने उस धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा दी जिसके फलस्वरूप माता सीता का विवाह श्रीराम से हो गया। उनके विवाह के पश्चात उनकी बाकि तीन बहनों का भी विवाह श्रीराम के छोटे भाइयों के साथ हो गया।
माता सीता का श्रीराम के साथ वनवास में जाना
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-विवाह के पश्चात माता सीता श्रीराम के साथ अयोध्या आ गयी। कुछ समय के पश्चात कैकेयी के प्रपंच के द्वारा श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास मिला। तब माता सीता ने भी अपना पत्नी धर्म निभाने के लिए उनके साथ वन में जाने का निर्णय लिया। हालाँकि सभी ने उन्हें बहुत रोका लेकिन पति सेवा के लिए वे उनके साथ ही जाना चाहती थी।
तब माता सीता व लक्ष्मण श्रीराम के साथ चौदह वर्ष के वनवास में चले गए। वहां जाकर उन्होंने एक साधारण वनवासी की भांति अपना जीवनयापन किया। अपने वनवास के अंतिम चरण में माता सीता श्रीराम व लक्ष्मण के साथ पंचवटी के वनों में रह रही थी।
शूर्पनखा का माता सीता पर आक्रमण
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-जब वे पंचवटी के वनों में कुटिया बनाकर रह रही थी तब एक दिन वहां रावण की बहन शूर्पनखा का आगमन हुआ। उसने माता सीता के सामने ही श्रीराम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तथा सीता को भला बुरा कहने लगी लेकिन माता सीता चुप रही।
जब श्रीराम व लक्ष्मण दोनों ने उसके द्वारा दिए गए विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो वह माता सीता पर आक्रमण करने के लिए दौड़ी। यह देखकर लक्ष्मण ने शूर्पनखा पर तलवार से वार किया तथा उसकी नाक व एक कान काट दिया।
माता सीता का हरण
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-शूर्पनखा की नाक काटने के कुछ दिनों के पश्चात माता सीता को अपनी कुटिया के बाहर एक स्वर्ण मृग दिखाई पड़ा। वह देखकर उनका मन आनंदित हो उठा तथा उन्होंने श्रीराम से वह मृग उन्हें लाकर देने की हठ की। श्रीराम वह मृग लेने चले गए लेकिन कुछ समय के पश्चात उनकी लक्ष्मण-लक्ष्मण चिल्लाने की आवाज़ आयी।
यह देखकर माता सीता भयभीत हो गयी तथा उन्होंने लक्ष्मण को अपने भाई की रक्षा करने के लिए भेजा। लक्ष्मण ने माता सीता की सुरक्षा के लिए लक्ष्मण रेखा का निर्माण किया तथा उनके वहां आने तक इसे पार ना करने को कहा।
लक्ष्मण के जाने के बाद वहां एक साधु आया और उनसे भिक्षा मांगने लगा। माता सीता ने उन्हें उसी रेखा के उस पार से भिक्षा लेने को कहा जिस पर वह साधु क्रोधित हो गया तथा उन्हें श्राप देने लगा। श्राप के भय से माता सीता ने लक्ष्मण रेखा को पार कर दिया व साधु को भिक्षा देने लक्ष्मण रेखा से बाहर आ गयी।
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-माता सीता के बाहर आते ही वह साधु एक राक्षस में बदल गया जो कि लंका का राजा रावण था। वह माता सीता को पुष्पक विमान में बिठाकर लंका ले जाने लगा। बीच में माता सीता को बचाने के लिए जटायु पक्षी आये लेकिन रावण ने उनका वध कर दिया।
तब माता सीता पुष्पक विमान से अपने आभूषण उतार कर नीचे फेंकती रही ताकि श्रीराम को उन्हें ढूंढने में परेशानी ना हो। रावण ने उन्हें ले जाकर अशोक वाटिका में त्रिजटा के सरंक्षण में रख दिया। रावण के द्वारा माता सीता के हरण के दो कारण थे पहला अपनी बहन शूर्पनखा के द्वारा बताए गए सीता के रूप के कारण उस पर सम्मोहित होना तथा दूसरा श्रीराम व लक्ष्मण से अपनी बहन के अपमान का बदला लेना।
लंका में माता सीता
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-लंका पहुंचकर माता सीता बहुत विलाप कर रही थी। रावण ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे माता सीता ने ठुकरा दिया। उन्होंने वही पड़े एक तिनके को उठाकर रावण से कहा कि यदि वह उन्हें छूने का प्रयास करेगा तो वह जलकर भस्म हो जायेगा।
अशोक वाटिका में उनकी राक्षसी त्रिजटा से मित्रता हो गयी जो उन्हें ढांढस बंधाया करती थी। इस प्रकार अशोक वाटिका में बंदी बने हुए उन्हें कई समय बीत गया लेकिन श्रीराम की कोई सूचना नही मिली। वे प्रतिदिन विलाप करती, राक्षसियों के ताने व रावण का धमकाना सुनती किंतु माता त्रिजटा के द्वारा ढांढस बंधाने से शांत हो जाती।
माता सीता का हनुमान से भेंट
कई महीने बीत जाने के पश्चात उनकी श्रीराम के दूत हनुमान से भेंट हुई। हनुमान रात्रि में अपना सूक्ष्म रूप लेकर माता सीता से मिलने पहुंचे थे। श्रीराम के दूत द्वारा स्वयं को खोजे जाने से माता सीता को संतोष प्राप्त हुआ तथा उन्होंने हनुमान को कहा कि उन्हें जल्द से जल्द यहाँ से मुक्ति दिलवा दी जाए।
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-पहले तो माता सीता को हनुमान के श्रीराम दूत होने पर विश्वास नही हुआ तब हनुमान ने उन्हें श्रीराम की अंगूठी दिखाई तब जाकर उन्हें हनुमान पर विश्वास हुआ। फिर उन्होंने हनुमान के लघु रूप को देखकर शंका प्रकट की कि ऐसे छोटे-छोटे वानर भयानक राक्षसों से कैसे लड़ेंगे। तब हनुमान ने उन्हें अपने विशाल रूप के दर्शन किये तथा वानर सेना के पराक्रम का बखान किया।
इसके बाद हनुमान ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया और पूरी लंका नगरी में आग लगा दी । लंका में आग लगाने के बाद वे पुनः माता सीता से मिलने आए और उनसे जाने के लिए आशीर्वाद माँगा। माता सीता ने श्रीराम को देने के लिए अपनी चूड़ामणि उतार कर हनुमान को दी ताकि वे श्रीराम को यह विश्वास दिला सके कि उनकी भेंट माता सीता से हुई थी। इसके बाद हनुमान वहां से चले गए।
माता सीता का मुक्त होना व अग्नि परीक्षा
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-इसके बाद उन्हें सब सूचनाएँ त्रिजटा के माध्यम से ही मिलती रही कि किस प्रकार श्रीराम ने वानर सेना सहित लंका पर चढ़ाई कर दी हैं। एक-एक करके रावण के सभी योद्धा व भाई-बंधु मारे गए व अंत में रावण का भी अंत हो गया। तब लंका के नए राजा विभीषण के द्वारा माता सीता को सम्मान सहित मुक्त कर दिया गया। प्रचलित मान्यता के अनुसार माता सीता लंका में एक वर्ष से कुछ ज्यादा समय तक रही थी।
जब माता सीता श्रीराम के पास आयी तो उन्हें अग्नि परीक्षा देने को कहा गया। दरअसल वह सीता असली सीता की केवल परछाई मात्र थी। असली सीता तो रावण के द्वारा हरण किये जाने से पहले ही अग्नि देव के पास चली गयी थी। तब अग्नि परीक्षा के द्वारा माता सीता पुनः वापस आयी व श्रीराम के साथ अयोध्या लौट गयी।
माता सीता का वन जाने का निर्णय
अयोध्या लौटने के पश्चात श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ तथा माता सीता वहां की प्रमुख महारानी बन गयी। सब कुछ हंसी-खुशी चल रहा था कि अचानक उन्होंने देखा कि श्रीराम बहुत उदास रहने लगे हैं। तब उन्होंने अपने गुप्तचरों के माध्यम से पता किया कि वे क्यों उदास हैं।
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-अपने गुप्तचरों के माध्यम से उन्हें पता चला कि प्रजा में उनके चरित्र को लेकर संदेह किया जा रहा है। वे माता सीता के लंका में एक वर्ष तक रहने पर श्रीराम के द्वारा उनका त्याग कर दिए जाने की बात कह रहे है। यह सुनकर माता सीता बहुत निराश हो गयी।
वे श्रीराम के पास गयी तथा स्वयं का त्याग करने को कहा। इस पर श्रीराम विचलित हो गए तथा स्वयं उनके साथ वनवास में जाने का कहने लगे। तब माता सीता ने उन्हें राजधर्म समझाया व अकेले वनवास जाने का निर्णय लिया। माता सीता का वाल्मीकि आश्रम जाना व दो पुत्रों का जन्म देना
माता सीता को वन में छोड़ने का उत्तरदायित्व उनके देवर लक्ष्मण को मिला। लक्ष्मण उन्हें वन में अकेला नही जाने दे रहे थे तथा स्वयं पुत्र की भांति उनकी सेवा करने का हठ कर रहे थे। तब माता सीता ने लक्ष्मण के आगे एक सीता रेखा खिंची तथा उसे लांघने से मना किया।
इसके बाद माता सीता वहां से आगे पैदल चलकर वाल्मीकि के आश्रम में चली गयी। वहां उन्होंने अपना परिचय एक साधारण महिला के रूप में दिया तथा सभी उन्हें वनदेवी के नाम से जानने लगे। जब वे वन में गयी थी तब वे गर्भवती थी तथा वहां जाकर उन्होंने दो पुत्रों लव व कुश (माता सीता के पुत्र लव कुश) को जन्म दिया।
माता सीता का लवकुश पर क्रोध
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-अपने पुत्रों के जन्म के बाद माता सीता ने उनका अच्छे से पालन-पोषण किया। महर्षि वाल्मीकि के द्वारा उनके पुत्रों को शस्त्र व संगीत की शिक्षा दी गयी। उन्होंने गुरु वाल्मीकि के अलावा आश्रम में किसी को भी अपना असली परिचय नही दिया था, यहाँ तक कि अपने पुत्रों को भी नही।
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-एक दिन जब वे पूजा करके लौटी तो उनके पुत्रों ने उन्हें बताया कि उनका श्रीराम की सेना के साथ युद्ध हुआ था। इस युद्ध में उन्होंने श्रीराम की सारी सेना को हरा दिया था। जब उनका श्रीराम से युद्ध होने लगा तब महर्षि वाल्मीकि ने आकर युद्ध रुकवा दिया।
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-यह सुनकर माता सीता जोर-जोर से विलाप करने लगी तथा सभी को सत्य से अवगत करवा दिया। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों व आश्रम में सभी को बता दिया कि (सीता लव कुश संवाद) वे ही अयोध्या की महारानी सीता हैं तथा श्रीराम उनके पति। लवकुश को पता चल चुका था कि जिससे वे युद्ध करने वाले थे वे स्वयं उनके पिता हैं।
माता सीता का भूमि में समाना
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-कुछ दिनों के पश्चात उन्हें यह सूचना मिली कि उनके दोनों पुत्रों ने अयोध्या के राजमहल में श्रीराम व सभी प्रजवासियों के समक्ष रामायण कथा का वर्णन किया हैं। साथ ही लवकुश ने श्रीराम व माता सीता के पुत्र होने की बात सभी को बता दी है।
तब श्रीराम ने माता सीता को राजमहल में आकर सभी के सामने प्रतिज्ञा लेकर यह बात स्वीकारने को कहा कि ये दोनों उनके व श्रीराम के पुत्र है। यह सुनकर माता सीता अत्यधिक क्रोधित हो गयी तथा अयोध्या के राजमहल में जाकर यह घोषणा की कि यदि लवकुश श्रीराम व माता सीता के पुत्र हैं तो इसी समय यह धरती फट जाए तथा वे इसमें समा जाए।
रामायण में सीता माता की जन्म कथा-माता सीता के इतना कहते ही धरती फट पड़ी व उसमे से धरती माता अपने रथ पर प्रकट हुई। माता सीता धरती माता के साथ उनके रथ पर बैठ गयी तथा सभी को प्रणाम करके धरती में समा गयी। इस घटना के पश्चात माता सीता पुनः अपने धाम वैकुण्ठ पहुँच गयी तथा भगवान विष्णु के वहां आने की प्रतीक्षा करने लग।
FAQ
Q. माता सीता की जाति क्या थी?
Q. सीता असल में किसकी बेटी थी?
Q. सीता जी का असली नाम क्या है?
Q. सीता माता किसका अवतार है?
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