हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला हुआ उसके बारे में बताने जा रहा हूँ अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद या बाबरी मस्जिद विवाद भारत के कई लम्बे विवादों में एक है. इस विवाद की वजह से देश में कई ऐसी घटनाएँ हुईं, जो लोगों को आज भी शोक में डाल देती हैं. यह मुद्दा एक तरफ तो कोर्ट में चलता रहा, किन्तु दूसरी तरफ़ राजनेताओ ने अपनी तरह से इसका फायदा उठाने की कोशिश की, जिस वजह से देश में कई स्थान पर कई दंगे हुए और हजारों की संख्या में लोग मारे गये. यह केस अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच चूका है. इस विवाद से सम्बंधित सभी आवश्यक जानकारी यहाँ पर दी जा रही है

अयोध्या विवाद, राम मंदिर – बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट –दोस्तों आप लोग ये तो जानते ही होंगे कि कई सालों पहले से राम मंदिर और बाबरी मस्जिद मुद्दे पर विवाद चल रहा है, जिस पर अब तक कोई फैसला नहीं आ पा रहा था. और इसके पीछे कई सारी लड़ाइयाँ एवं दंगे – फसाद भी हुए. यहाँ तक कि मस्जिद के गुम्मद को गिरा कर वहां श्रीराम की मूर्ति भी स्थापित कर दी गई थी. किन्तु अब आपको हम बता दें कि देश की सबसे बड़ी कोर्ट द्वारा इस पर अंतिम फैसला सुना दिया गया है. इसका फैसला यह है कि अब उस जमीन पर राम लला का मंदिर बनाया जायेगा, और मस्जिद के लिए किसी दूसरे स्थान पर जगह दी जाएगी. आइये इस लेख में हम आपको इस फैसले के बारे में पूरी बात बताते हैं.

अयोध्या विवाद का फैसला

अयोध्या राम मंदिर – बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतिम फैसला सुना दिया गया है. फैसले को मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई जी के साथ 5 सदस्यों को अध्यक्षता वाली बैंच द्वारा 5 – 0 की सर्वसम्मति से सुनाया गया है. जोकि इस प्रकार है –



अयोध्या में जिस जमीन पर विवाद चल रहा था वह जमीन 2.77 एकड़ की हैं, जिसे लोग राम जन्म भूमि भी कहते हैं. अब यह जमीन हिन्दुओं के पक्ष में आ गई है. उस स्थान पर अब राम लला का मंदिर बनाया जायेगा.

इसके साथ ही कोर्ट में मुस्लिमों के पक्ष में यह फैसला सुनाया गया है कि केंद्र या राज्य सरकार द्वारा मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन अयोध्या में ही वैकल्पिक स्थान पर दी जानी चाहिए.

अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र एवं राज्य सरकार पर दामोदार डाल दिया है. और कहा हैं कि सरकार 3 महीने के अंदर एक ट्रस्ट बनाये जिसे राम मंदिर के निर्माण का कार्य सौंपा जायेगा. और इसकी देखरेख भी केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा ही की जाएगी.

अयोध्या विवाद के फैसले पर मुख्य बातें

  • अयोध्या विवाद पर हाई कोर्ट में सन 2010 में 3 बराबर पक्ष में जमीन को बांटने का फैसला लिया था.
  • इसके बाद इस पर सुप्रीमकोर्ट में अपील की गई. तब एएसआई को इस पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया था.
  • इस अपील के बाद 40 दिनों में इस पर सुनवाई हुई और अक्टूबर 2019 में इसका फैसला निश्चित कर दिया गया, जिसे 9 नवंबर 2019 को सुनाया गया.
  • इस फैसले के चलते सुप्रीमकोर्ट ने 3 पक्षों में से एक निर्मोही अखाड़ा एवं शिया वक्फ बोर्ड के दावे को समाप्त कर दिया है.
  • सुप्रीमकोर्ट ने इस विवादित जमीन पर एएसआई और पुरातात्विक सबूतों पर विशेष ध्यान दिया है. उनका कहना है कि बाबरी मस्जिद को जिस स्थान पर बनाया गया था वह जमीन खाली नहीं थी. इसका दावा इस बात से किया जा रहा है कि मस्जिद का जो बुनियादी ढांचा था इस्लामिक अंश के रूप में नहीं था.
  • एएसआई की रिपोर्ट के अनुसार इस बुनियादी ढांचे में मंदिर के अंश पाए गये हैं न कि इस्कामिक अंश इसलिए यह कहना गलत होगा कि इस जमीन पर बाबरी मस्जिद बनी हुई थी. बल्कि मंदिर के स्थान पर मस्जिद बनाई गई थी.
  • कोर्ट में जब यह फैसला पढ़ना शुरू किया गया तो उसमें एक मुद्दा यह सामने आया कि मुस्लिम लोग इस जगह पर नमाज पढ़ा करते थे. लेकिन मुस्लिमों द्वारा यहाँ पर पूरी तरह से कब्जा नहीं किया गया था. क्योकि यहाँ पर सन 1856 – 57 में रेल्लिंग लगाई गई थी. जिसके चलते मस्जिद के भीतर नमाज पढ़ी जाती थी एवं बाहर हिन्दुओं द्वारा भगवान राम की आराधना की जाती थी.
  • सन 1992 में इस विवाद ने बहुत विकराल रूप ले लिया था, इस साल हिन्दुओं द्वारा मस्जिद को गिरा दिया था. कोर्ट ने फैसला पढ़ते हुए इस मुद्दे पर भी कहा कि यह कानूनी रूप से गलत था.
  • कोर्ट का कहना है कि राम लला का मंदिर बनाने का पूरा भार सरकार पर हैं वह इसके लिए एक ट्रस्ट बनाएं. और वह चाहे तो निर्मोही अखाड़ा को भी एक प्रतिनिधि के रूप में इसमें शामिल कर सकती है.
  • अयोध्या विवाद को लेकर मुस्लिम पक्ष द्वारा इसके कोई भी सबूत पेश नहीं किये गये कि इस स्थान पर इस्लामिक ढांचा था. जबकि एएसआई की रिपोर्ट के मुताबिक इस स्थान पर खुदाई के बाद मंदिर के अंश दिखाई दिए हैं. इसलिए इससे यह साबित होता हैं कि यह जगह हिन्दुओं की है. और इसके साथ एक तथ्य यह भी हैं कि इस स्थान से हिन्दुओं की आस्था भी जुड़ी हुई हैं क्योकि यह राम जन्म भूमि हैं. इन अभी मुद्दों को मद्देनजर रखते हुए इस पर फैसला सुनाया गया हैं अतः उम्मीद हैं कि आप भी इस फैसले का स्वागत करेंगे और शांति बनाएं रखेंगे. चलिए विस्तार से जानते है कि अयोध्या राम मंदिर, बाबरी मस्जिद मुद्दा क्या है?

रामजन्म भूमि विवाद क्या है

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट –कई हिन्दू धार्मिक पुस्तकों में इस बात का उल्लेख प्राप्त होता है, कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था. भगवान राम हिन्दुओं के पूज्यनीय भगवानों में से एक हैं. उनका जन्म अयोध्या में हुआ और कालान्तर में उन्होंने अयोध्या पर राज भी किया. मध्यकालीन भारत में इस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया. यह मंदिर उस स्थान पर बनाया गया, जहाँ पर भगवान राम का जन्म हुआ था. अतः इसे जन्मभूमि भी कहा जाता है. इसके बाद सन 1528 में यहाँ पर एक मस्जिद बनाई गयी.

यह मस्जिद मीर बाक़ी द्वारा बनाई गयी थी, जो कि बाबर का एक आर्मी जनरल था. ग़ौरतलब है कि बाबर वर्ष 1526 में भारत में आया और उसके साथ मीर बाक़ी भी आया और अवध क्षेत्र को जीत कर वहाँ अपना शासन स्थापित किया. इसी समय मीर बाक़ी ने यहाँ पर एक मस्जिद बनायी, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया. चूँकि मीर बाक़ी बाबर के सेना का था और इस मस्जिद के बनने के पीछे बाबर की अहम भूमिका रही थी. अतः इसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है. आरम्भ में इस मस्जिद को यहाँ की आम भाषा में मस्जिदे जन्मस्थान भी कहा जाता था.

बाबरी मस्जिद विवाद का इतिहास       

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट –बाबरी मस्जिद के विवाद की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के आस पास ही हो गयी थी. यह मस्जिद इस समय यहाँ पर बनी हुई थी. यहाँ के मुस्लिम इस मस्जिद के अन्दर जाकर अपनी इबादत करते थे और इसी के बाहर एक चबूतरा था, जहाँ पर हिन्दू अपनी पूजा अर्चना करते थे. इस वजह से यहाँ पर हिन्दू मुस्लिम विवाद का एक माहौल बनता रहा. सन 1853 के आस पास इस

मस्जिद को लेकर स्थानीय दंगे होने शुरू हो गये. इस समय अंग्रेजों का शासन था. अंग्रेजों ने इस स्थान को फेंसिंग से घेर दिया, ताकि एक तरफ मस्जिद के अन्दर जाकर मुस्लिम सजदे कर सकें और दूसरी तरफ हिन्दू पूजा पाठ आदि कर सकें. वर्ष 1885 में राम चबूतरा के महंत रघुवर दास के फैजाबाद कोर्ट में एक अपील की, कि इस चबूतरे पर मंदिर बनाने दिया जाये. चूँकि चबूतरे पर पूजा अर्चना एक लम्बे समय से की जा रही थी. अतः इस स्थान पर इन्होने एक मंदिर बनाने की मांग की. हालाँकि कोर्ट की तरफ से यह अपील खारिज कर दी गयी. कोर्ट के जज ने कहा, कि इस स्थान पर चूँकि 350 साल से यह मस्जिद खड़ी है, अतः इस स्थान पर अब मंदिर बनाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती.

वर्ष 1949 के घटनाक्रम

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट –वर्ष 1949 में इस मस्जिद से सम्बद्ध कुछ अन्य घटनाएं घटीं. इस वर्ष 22/ 23 दिसम्बर की रात को इस मस्जिद में ज़बरदस्ती घुस कर रामलला (भगवान श्री राम का बाल रूप) की मुर्तियां यहाँ पर रख दीं और बात ये फैलाई गयी, कि मस्जिद के अन्दर रामलला की मूर्ति प्रकट हुई है. इसके उपरान्त यहाँ के स्थानीय प्रशासन द्वारा इस स्थान को अपने देख रेख में ले लिया गया. दरअसल जब मुस्लिमों के यहाँ के स्थानीय ऑफिसर के के नायर को इस स्थान से मूर्ति हटवाने के लिए कहा, (क्योंकि मस्जिद में मुर्तियां नहीं होती) तो उन्होंने कहा कि यदि इस समय यहाँ से मूर्तियाँ हटायीं गयी, तो दंगे हो सकते हैं. अतः यह स्थान प्रशासन के अधीन ही रखा जाएगा.


जनवरी वर्ष 1950 में राम चबूतरे के तात्कालिक महंत रामचंद्र दास ने पुनः कोर्ट में याचिका दायर की और कहा, कि चूँकि मस्जिद के अन्दर मूर्तियाँ भी स्वयं प्रकट हो गयीं हैं, अतः अब वहाँ पर यानि मस्जिद के अन्दर हिन्दुओं को पूजा अर्चना करने की अनुमती दी जाए. हालाँकि कोर्ट ने इस याचिका को पुनः खारिज कर दिया और निर्णय लिया कि इस मस्जिद के अन्दर किसी को भी जाने की अनुमति नहीं होगी. न तो मुश्लिमों को और न ही हिन्दुओं को. मस्जिद में प्रशासन ने ताला लगा दिया और अब न तो मुस्लिम इबादत के लिए अन्दर दाख़िल हो सकते थे और न ही हिन्दू.

वर्ष 1959 के घटनाक्रम                             

चूँकि यह स्थान अब एक विवादित स्थान का रूप ले चूका था, अतः इस स्थान को लेकर अन्य तरह के विवाद भी सामने आने लगे थे. इस समय के विशेष घटनाक्रमों का वर्णन नीचे किया जा रहा है.

वर्ष 1959 में निर्मोही अखाड़ा नामक धार्मिक हिन्दू संस्था, जो कि भगवान राम की भक्ति करती है और स्वयं इस स्थान पर मंदिर बनाने के लिए कई वर्षों से लड़ रही थी, उसने प्रशासन से मांग की, कि इस स्थान की सभी देख रेख की जिम्मेवारियां उनके अधीन कर दी जाएँ. ग़ौरतलब है कि 1853 में हुए दंगों में भी इस संस्था की मुख्य भूमिका थी.

वर्ष 1961 में सुन्नी वक्फ़ बोर्ड ने भी प्रशासन से मांग करते हुए कहा, की यहाँ से मूर्तियाँ हटा दी जाएँ और यहाँ पर हिन्दुओं को पूजा करने नहीं दी जाए.

इसके बाद लगातार 20- 25 वर्ष तक यह मुद्दा कोर्ट में चलता रहा, और इस विवाद में बढ़ोत्तरी नहीं हुई.

1980 का दशक:

1980 के दशक में यह मांग राजनैतिक रूप लेने लगी और यहाँ मांग किया जाने लगा, कि इस स्थान पर मंदिर बनाया जाए. इस समय सन 1984 में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा एक धर्म संसद बुलाया गया और कई धार्मिक लोगों को एक स्थान पर इकठ्ठा किया गया. यहाँ पर यह तय किया गया, कि रामजन्म भूमि मुद्दे को राजनैतिक तौर पर उठाया जाना चाहिए और इस स्थान पर रामजन्मभूमि मंदिर का ही निर्माण किया जाना चाहिए.

वर्ष 1986 में शाहबानो केस:

ऐसा कहा जाता है कि इस समय हिन्दुओं को खुश करने के लिए राजीव गाँधी सरकार ने बाबरी मस्जिद के ताले हिन्दुओं के पूजा पाठ के लिए खुलवा दिए. इस समय हुआ ये था, कि फैज़ाबाद जिला कोर्ट से ये आदेश आया कि यहाँ के ताले खोल दिए जाएँ और आदेश के 1 घंटे के अन्दर ही यहाँ के ताले खोल दिए गये. हालाँकि कोर्ट के अहम् फैसलों के बाद भी सरकार महीनों इस पर अमल नहीं करती, किन्तु यह इस सरकार की एक बहुत बड़ी विडम्बना थी, कि फैसले के 1 घटे के अन्दर यहाँ के ताले खोल दिए गये. इस घटना का दूरदर्शन पर टीवी ब्रॉडकास्टिंग भी की गयी थी. कांग्रेस के इस फैसले से यह लगने लगा, कि इन्होने हिन्दुओं को भी खुश करने की कोशिश की है.

इसके बाद विभिन्न स्थानों पर मुस्लिमों ने इसका विरोध करना शुरू किया और इसी समय ‘बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी’ का गठन किया गया. इसी समय बाबरी मस्जिद के मुद्दे को लेकर कई जगह दंगे होने शुरू हुए और सैकड़ों लोग मारे गये. ग़ौरतलब है कि इस समय से ही भारत में दंगों का दौर शुरू हुआ और लगातार एक लम्बे समय तक चलता रहा. आज भी आये दिन दंगों की खबरें सुनने को मिल ही जाती हैं.

हिंदुत्व की रानजीति का आविर्भाव:

भारत में इसी समय यानि 80 के में हिंदुत्व की राजनीति का आविर्भाव हुआ. इस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इनसे संलग्न अन्य राजनैतिक दल जैसे विश्व हिन्दू परिषद और भाजपा आदि ने इस मुद्दे को और भी जोर शोर से आगे बढ़ाया. जो मुद्दा अब तक एक लीगल केस और धार्मिक मामला था, उसे भारतीय जनता पार्टी ने अब एक राजनैतिक कैंपेन का रूप दे दिया था.

इसी समय विश्व हिन्दू परिषद ने इस मुद्दे को लेकर एक कारसेवा की शुरूआत की. यह एक तरह का कैंपेन था. जिसके अंतर्गत आम हिन्दुओं को ये कहा जाता था, कि वे आगे आयें और मंदिर निर्माण के वालंटियर कार्यों में अपना सहयोग दें. इस कैंपेन के अंतर्गत लोगों को ईंट वगैरह दान करने के लिए भी कहा गया,

जिसका प्रयोग मंदिर बनाने के लिए किया जाना था. ऐसे लोगों को कारसेवक कहा जाता है. इस समय इस मुद्दे को सामाजिक रंग देने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अयोध्या में राम जानकी रथ यात्रा का आरम्भ किया. इसी समय विश्व हिन्दू परिषद के द्वारा युवाओं के लिए बजरंग दल का गठन किया गया. इस समय बजरंग दल का मुख्य कार्य रामजानकी रथयात्रा को सुरक्षा देना था.

इसी समय धार्मिक भावों को और भी सबल बनाने के लिए शिला पूजन का कार्यक्रम भी शुरू किया गया. शिला का अर्थ पत्थर होता है. इसके अंतर्गत देश भर के लोग रामनाम लिखी हुई ईंटें भेजते थे. इन ईंटों को इस आधार पर इकठ्ठा करना शुरू किया गया, कि जब भी राम मंदिर का निर्माण आरम्भ होगा, उसमे इन ईंटों का प्रयोग किया जाएगा.

वर्ष 1989 की घटनाएं :

वर्ष 1989 के अगस्त के महीने में इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच ने बाबरी मस्जिद विवाद से सम्बंधित सभी पेंडिंग केस को एक स्थान पर कर दिया. इस समय कोर्ट की तरफ से ये आदेश था, कि मस्जिद की स्थिति ज्यों की त्यों बनायी रखी जाए अर्थात जब तक फ़ैसला नहीं आ जाता, तब तक यहाँ पर न तो मंदिर बनाया जाए और न ही मस्जिद.




इसी वर्ष नवम्बर के महीने में विश्व हिन्दू परिषद ने इस स्थान पर शिलान्यास का कार्यक्रम रखा. शिलान्यास किसी इमारत के बनने के पहले भूमि पूजन की विधि को कहा जाता है. हिन्दुओं में यह मान्यता है कि किसी भी इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण से पहले वहाँ का शिलान्यास शुभ होता है

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