Class 12th History Chapter 6 भक्ति आंदोलन और सूफी आंदोलन भारतीय और इस्लामी सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों का प्रतीक हैं। इन आंदोलनों के माध्यम से लोगों ने धार्मिक और सामाजिक परिवर्तन का प्रयास किया और अपने आत्मिक अनुभवों और भगवान के प्रति अपने भक्तिभाव को अभिव्यक्त किया।
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | HISTORY |
Chapter | Chapter 6 |
Chapter Name | भक्ति – सूफी पंरपराएँ |
Category | Class 12 History Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
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भारत मे भक्ति व सूफी आंदोलन
भारत में भक्ति और सूफी आंदोलन दोनों ही धार्मिक और सामाजिक परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण थे और ये आंदोलन धार्मिक समरसता और मानवता के सिद्धांतों की प्रमोटिंग में भी योगदान किये।
भक्ति आंदोलन:
संत रहीम:
संत रहीम भागवत भक्ति के प्रमुख प्रतीक रहे हैं। उन्होंने अपनी भगवद भक्ति के लिए प्रसिद्ध हुए और उनकी कविताएँ अपनी सरलता और सीधापन के लिए जानी जाती हैं।
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संत कबीर:
Class 12th History Chapter 6 संत कबीर ने निर्गुण भक्ति को प्रोत्साहित किया और उनकी दोहे लोकप्रिय हैं जिनमें उन्होंने धर्मिक और सामाजिक संदेशों को सरलता से व्यक्त किया।
मीराबाई:
मीराबाई ने अपने ईश्वर श्रद्धा और कृष्ण भक्ति के लिए प्रसिद्ध हुईं और उनकी पदों में आत्मनिर्भरता और ईश्वर के प्रति अपने भक्ति की भावना स्पष्ट है।
नामदेव:
संत नामदेव महाराष्ट्र के विशिष्ट भक्ति संत रहे हैं जिन्होंने वारकरी सम्प्रदाय को प्रमोट किया।
तुलसीदास:
संत तुलसीदास रामायण के अद्वितीय रचनाकार थे और उनके राम-भक्ति काव्यों ने भारतीय समाज में राम चरित्र के प्रति प्रेम बढ़ाया।
सूफी आंदोलन:
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिस्ती:
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिस्ती ने भारत में सूफी आंदोलन को प्रसिद्ध किया और उनकी सिलसिला ने सामाजिक समरसता और धार्मिक समझ को बढ़ावा दिया।
निजामुद्दीन आौलिया:
सूफी संत निजामुद्दीन आौलिया ने भारतीय समाज में सामंजस्य, प्रेम, और ब्रह्मचर्य के सिद्धांतों को प्रसारित किया।
शेख निजामुद्दीन चिस्ती:
शेख निजामुद्दीन चिस्ती ने भी सूफी आंदोलन में अपना योगदान दिया और उनके सिद्धांतों ने भारतीय समाज में सामंजस्य और सहिष्णुता की भावना को बढ़ावा दिया।
रूमी सिलसिला:
रूमी सिलसिला ने भारत में अपने सूफी सिद्धांतों के माध्यम से सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया और उनके तारीकी सूफी कविताएं भी लोकप्रिय हैं।
भारत मे भक्ति आंदोलन
भारत में भक्ति आंदोलन एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था, जिसमें संत, महात्मा, और धार्मिक विचारकों ने भगवान के प्रति उनके आत्मिक अनुभवों और भक्ति भावना को सार्थक बनाने के लिए प्रयास किया। ये आंदोलन मुख्यतः हिन्दू धर्म के अंग में हुआ करते थे, लेकिन इसके प्रभाव अनेक धार्मिक समुदायों और सामाजिक वर्गों में महत्वपूर्ण रहा है। यहां कुछ महत्वपूर्ण भक्ति आंदोलनों का उल्लेख है:
भक्ति आंदोलन का प्रारंभ:
भक्ति आंदोलन का प्रारंभ भारतीय इतिहास में बहुत समय पहले हुआ था। समझाया जाता है कि भक्ति आंदोलन वैदिक युग में ही शुरू हो गया था, लेकिन इसका अधिक प्रचार गुप्त राजवंश के समय से हुआ।
रमानंड सम्प्रदाय:
रमानंद सम्प्रदाय ने 14वीं शताब्दी में अपने अनुयायियों को भक्ति मार्ग पर प्रेरित किया। संत रमानंद और संत कबीर के शिक्षाओं ने जाति व्यवस्था और ब्राह्मण-क्षत्रिय विभाजन के खिलाफ उठाव किया।
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महानुबव सम्प्रदाय:
महानुबव सम्प्रदाय ने कर्णाटक क्षेत्र में भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया। संत बासवेश्वर, आक्का महादेवी, चेन्नबासवन्ना जैसे संत महानुबव सम्प्रदाय के प्रमुख थे।
चैतन्य महाप्रभु:
चैतन्य महाप्रभु ने 15वीं शताब्दी में बंगाल क्षेत्र में भक्ति आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने कृष्ण भक्ति को बढ़ावा दिया और अपने अनुयायियों को सच्चे प्रेम और भक्ति की ओर प्रवृत्त किया।
संत तुलसीदास:
संत तुलसीदास ने रामायण के अद्वितीय रचनाकार होने के साथ-साथ राम-भक्ति के प्रमुख प्रवक्ता भी थे। उनकी कृष्ण भक्ति कविताएं भी प्रसिद्ध हैं।
संत कबीर:
संत कबीर ने निर्गुण भक्ति को प्रमोट किया और उनकी दोहे लोकप्रिय हैं, जिनमें उन्होंने धर्मिक और सामाजिक संदेशों को सरलता से व्यक्त किया।
मीराबाई:
मीराबाई ने अपने ईश्वर श्रद्धा और कृष्ण भक्ति के लिए प्रसिद्ध हुईं और उनकी पदों में आत्मनिर्भरता और ईश्वर के प्रति अपने भक्ति की भावना स्पष्ट है।
Class 12th History Chapter 6 भक्ति आंदोलनों ने जाति व्यवस्था, मूर्ति पूजा, और धार्मिक असमानता के खिलाफ उठे और इसने सामाजिक समरसता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान किया।
भक्ति आंदोलन के कारण
मुस्लिम आक्रमणकारियो के अत्याचार
धर्म व जाति की समाप्ति का भय
इस्लाम का प्रभाव
राजनीतिक संगठन
रूढ़िवादिता
पारंपरिक मतभेद
हिन्दुओ को निराशा
भक्ति आंदोलन की विशेषता
एकेश्वरवाद मे विश्वास
बाहय अंडबरों का विरोध
सन्यासी का विरोध
मानव सेवा पर बल
वर्ण व्यवस्था का विरोध
हिन्दु मुस्लिम एकता पर बल
स्थानीय भाषाओ मे उपदेश
गुरु के महत्व में बृद्धि
समन्यवादी प्रकृति
समर्पण की भावना
समानता पर बल
भक्ति आंदोलन के उद्देश्य
- हिन्दू धर्म व समाज मे सुधार लाना ।
- धर्म मे समन्वय इस्लाम व हिन्दू ।
भारत मे सूफीवाद / सूफी संप्रदाय का विकास ( सूफी आंदोलन )
रहस्यवादी एव उदारवादी विचारों से प्रभावित होकर इस्लाम धर्म में एक संप्रदाय का उदय हुआ जो सूफी संप्रदाय कहा जाता है । सूफीवाद का जन्म इस्लाम के उदय से हुआ है ।
सूफी शब्द की उत्पत्ति सूफी शब्द से हुई है । सूफी का अर्थ होता है बिना रंगा हुआ ऊन / इसका अर्थ होता है चटाई जिसे सन्यासी धारण करते हैं
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सूफीवाद 19वीं शताब्दी में मुद्रित एक अंग्रेजी शब्द है । इस्लाम ग्रंथो में इसको तसव्वुर्फ का प्रयोग किया गया है। कुछ विद्वान इसे सूफ अर्थ ऊन से निकला बताते हैं । यह खुरदरे ऊनी कपड़े को दर्शाता है । जो सूफी पहनते हैं ।
11 वी शताब्दी तक सूफीवाद एक पूर्ण विकसित आंदोलन बना जिसका सूफी ओर कुरान से जुड़ा अपना साहित्य था ।
Class 12th History Chapter 6 संस्थागत दृष्टि से सूफी अपने को एक संगठित समुदाय खानकाह ( जहाँ सूफी यात्री निवास करते हैं ) के इर्द – गिर्द स्थापित करते थे । खानकाह का नियंत्रण गुरु या शेख , पीर अथवा मुर्शिद या चेला के हाथ मे था । वो अनुयायियों ( मुरीदों ) की भर्ती करते थे और वाइस ( खलीफा ) की नियुक्ति करते थे ।
एकेश्वरवादी
एकेश्वरवाद वह सिद्धान्त है जो ‘ईश्वर एक है’ अथवा ‘एक ईश्वर है‘ विचार को सर्वप्रमुख रूप में मान्यता देता है।
भौतिक जीवन का त्याग
शांति एवं अहिंसा में विश्वास
सहिष्णुता ( सभी धर्मों का सम्मान )
प्रेम को महत्व
इस्लाम पर प्रचार
शैतान बाधक
ह्रदय की शुध्दता पर जोर
गुरु एव शिष्य का महत्व
भारी आंडबरो का विरोध
पवित्र जीवन पर बल देना
मुक्ति की प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति और उनके आदर्शों के पालन पर बल दिया । उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद को इंसान – ए – कामिल बताते हुए इनका अनुसरण करने की सीख दी । उन्होंने कुरान की व्यख्या आपने निजी आधार पर की ।
इस्लाम
इस्लाम ‘ एक एकेश्वरवादी धर्म है जो अल्लाह की तरफ़ से अंतिम रसूल और नबी , मुहम्मद द्वारा इंसानों तक पहुंचाई गई अंतिम ईश्वरीय किताब ( कुरआन ) की शिक्षा पर स्थापित है । इस्लाम की स्थापना 7 वीं शताब्दी में पैगंबर मुहम्मद ने अजाबिया में की थी ।
इस्लाम के स्तंभ हैं
सिलसिला का शाब्दिक अर्थ जंजीर जो शेख और मुरीद के बीच निरंतर रिश्ते का भोतक है जिसकी पहली अटूट कड़ी पैगम्बर मोहम्मद से जुड़ी है ।
सूफी और राज्य के साथ उनके संबंध
- चिश्ती सम्प्रदाय की एक और विशेषता सयंम और सादगी का जीवन था । जिसमे सस्ता से दूर रहने पर बल दिया जाता था।
- सत्ताधारी विशिष्ट वर्ग अगर बिन माँगे अनुदान भेट देते थे तो सूफी संत उसे अस्वीकार कर देते थे । सुल्तान ने खानकाहों को कर मुक्त एव भूमि अनुदान में दी और दान संबधी न्यास स्थापित किया ।
- चिश्ती धर्म और सामान के रूप में दान स्वीकार करते थे किंतु इनको सझोने की बजय रहने , कपड़े , खाने की व्यवस्था और अनुष्ठानों जैसे समा की महफ़िलो पर पूरी तरह खर्च कर देते थे और इस तरह आम लोगो को इनकी तरफ झुकाव बढ़ता चला गया ।
- सूफी संतो की धर्म निष्ठा , विध्दता और लोगो द्वारा उनकी चमत्कारिक शक्ति मे विश्वास उनकी लोकप्रियता का कारण बनी । इस वजहों से शासक भी उनका समर्थन हासिल करना चाहते थे ।
- मध्यस्थ के रूप पष्ट भी माना जाता पाफिलिया में से लोगोणी जामनाओ और आध्यात्मिक गाने सुधार लानेन कार्य करते थे । इसलिए शासक लोग अपनी जन सूफी दरगाहो और खानकाहो के नजदीक बनाना चाहते थे ।
- कमी – कभी सूफी शेखो जो आंडबर पुर्ण पदवि/उपाधि से संबोधित किया जाता था । उदाहरण शेख निजामुद्दीन ओलिया के अनुयायी सुल्तान – अल – मशख ( आर्थात शेखो मे सुल्तान ) कहकर सम्बोधित करते थे ।
सूफी भाषा और संपर्क
न केवल समा से चिश्तियों ने स्थानीय भाषा को अपनाया अपितु दिल्ली चिश्ती सिलसिले के लोग हिन्दवी में बातचीत करते थे ।
बाबा फरीद ने भी क्षत्रिय भाषा मे काव्य स्चना की । जो गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है । कुछ और सूफियो ने लबी कविताए लिखी जहाँ ईश्वर के प्रति प्रेम को मानवीय रूप में दर्शाया गाया है ।
सूफी कविता सत्रहवीं अठारहवीं शताब्दियों में बीजापुर कर्नाटक के आस – पास इस क्षेत्र से बसने वाले चिशती संतो के द्वारा लिखि गई ये रचनाएँ सम्भवतः औरतो द्वारा घर का काम जैसे चक्की पीसने , चरखा काटते हुए गई जाती है ।
शारिया
शारिया मुसलमानों को निर्देशित करने वाले कानून है । यह सरीफ कुरान और हदीश पर आधारित है । हदीश का शाब्दिक अर्थ है पैगम्मर से जुड़ी परम्पराए ।
भक्ति
Class 12th History Chapter 6 मोक्ष प्राप्ति के अंतिम उद्देश्य के साथ भगवान की भक्ति को भक्ति कहा जाता है । भक्ति शब्द को मूल ‘ भज ‘ से लिया गया था जिसका अर्थ है आराध्य । भक्त जो अवतार और मूर्ति पूजा के विरोधी थे , संत के रूप में जाने जाते हैं । कबीर , गुरु नानक देव जी और गुरु नानक देव जी के उत्तराधिकारी प्रमुख भक्ति संत हैं । भारतीय समाज पर भक्ति आंदोलन का प्रभाव महत्वपूर्ण और दूरगामी था ।
तांत्रिक साधना | पुराणिक परंपराएं | वैदिक परंपराएं |
तांत्रिक साधना में लगे लोगों ने अक्सर वेदों के अधिकार को नजरअंदाज कर दिया। | इसके अलावा, भक्त अक्सर अपने चुने हुए देवता, या तो | |
विष्णु या शिव को सर्वोच्च के रूप में मानते थे। | वैदिक परंपराओं में प्रमुख देवता अग्नि, इंद्र और सोम हैं, | |
उपमहाद्वीप के कई हिस्सों में तांत्रिक प्रथाएं व्यापक थीं – वे महिलाओं और पुरुषों के लिए खुली थीं , और चिकित्सकों ने अक्सर अनुष्ठान के संदर्भ में जाति और वर्ग के मतभेदों को नजरअंदाज कर दिया। | भक्ति रचनाओं का गायन और जप अक्सर इस तरह की साधना का एक हिस्सा था। यह वैष्णव और शैव वर्गों के लिए विशेष रूप से सच था। | वैदिक परंपरा को महत्व देने वालों ने अक्सर दूसरों की प्रथाओं की निंदा की। |
उन्होंने बलिदानों का पालन किया या मंत्रों का सटीक उच्चारण किया। | अल्वार और नयनार इस परंपरा का हिस्सा थे। | वैदिक प्रथाएं केवल पुरुषों और ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों के लिए थीं । उन्होंने लंबे वैदिक भजन और विस्तृत बलिदान देकर वैदिक परंपरा का अभ्यास किया । |
विभिन्न धार्मिक विश्वास और प्रथाएं
- देवी और देवताओं की एक विस्तृत श्रृंखला मूर्तिकला के साथ – साथ ग्रंथों में भी पाई गई थी । पुराणिक ग्रंथों की रचना और संकलन सरल संस्कृत भाषा में किया गया था जो महिलाओं और शूद्रों के लिए सुलभ हो सकता था , जो आमतौर पर वैदिक शिक्षा से वंचित थे । कई मान्यताओं और प्रथाओं को स्थानीय परंपराओं के साथ पुराणिक परंपराओं के निरंतर मेलिंग के माध्यम से आकार दिया । गया था । ओडिशा का जगन्नाथ पंथ स्थानीय आदिवासी विशेषज्ञों द्वारा लकड़ी से बना स्थानीय देवता था और इसे वि रूप में मान्यता प्राप्त थी ।
- स्थानीय देवताओं को अक्सर पुरातन ढांचे के भीतर शामिल किया गया था , उन्हें प्रमुख देवताओं की पत्नी के रूप में एक पहचान प्रदान करके । उदाहरण के लिए , वे विष्णु की पत्नी लक्ष्मी या शिव की पत्नी पार्वती के साथ समान थे । उप – महाद्वीप के कई हिस्सों में तांत्रिक साधनाएँ व्यापक थीं । इसने शैव धर्म के साथ बौद्ध धर्म को भी प्रभावित किया ।
- वैदिक अग्नि , इंद्र और सोम के प्रमुख देवता पाठ्य या दृश्य अभ्यावेदन में शायद ही कभी दिखाई देते थे । अन्य सभी धार्मिक मान्यताओं , जैसे बौद्ध धर्म , जैन धर्म , तांत्रिक प्रथाओं ने वेदों के अधिकार को अनदेखा कर दिया । भक्ति रचना का गायन और जप वैष्णव और शैव संप्रदायों के लिए विशेष रूप से पूजा का एक तरीका बन गया ।
प्रारंभिक भक्ति परंपरा
इतिहासकारों ने भक्ति परंपराओं को दो व्यापक श्रेणियों अर्थात निर्गुण ( विशेषताओं के बिना ) और सगुण ( विशेषताओं के साथ ) में वर्गीकृत किया है ।
छठी शताब्दी में , भक्ति आंदोलनों का नेतृत्व अल्वार ( विष्णु के भक्त ) और नयनार ( शिव के भक्त ) ने किया था ।
उन्होंने तमिल भक्ति गीत गाते हए जगह जगह यात्रा की । अपनी यात्रा के दौरान , अल्वार और नयनार ने कुछ धार्मिक स्थलों की पहचान की और बाद में इन स्थानों पर बड़े मंदिरों का निर्माण किया गया ।
इतिहासकारों ने सुझाव दिया कि अल्वार और नयनारों ने जाति व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन शुरू किया । अल्वार द्वारा रचित नलयिरा दिव्यप्रबंधम को तमिल वेद के रूप में वर्णित किया गया था ।
स्त्री भक्त
- इस परंपरा की विशेषता थी इसमे स्त्रियों को भी स्थान था । अंडाल , कराईकल अम्मारियार जैसी महिला भक्तों ने भक्ति संगीत की रचना की , जिसने पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती दी ।
- अंडाल नामक अलवार स्त्री के भक्ति गीत गाए जाते । अंडाल खुद को भगवान विष्णु की प्रेयसी मानकर प्रेम भावना छन्दों में व्यक्त करती थी ।
- शिवभक्त स्त्री कराइकाल अम्मइयार ने घोर तपस्या के मार्ग अपनाया ।
- नयनार परम्परा में उनकी रचना को सुरक्षित रखा गया ।
कर्नाटक में वीरशैव परंपरा
- कर्नाटक में 12 वीं शताब्दी में बसवन्ना नाम के एक ब्राह्मण के नेतृत्व में एक नया आंदोलन उभरा । उनके अनुयायियों को वीरशैव ( शिव के नायक ) या लिंगायत ( लिंग के वस्त्र ) के रूप में जाना जाता था । यह शिव की पूजा लिंग के रूप में करते है इस क्षेत्र में लिंगायत आज भी एक महत्वपूर्ण समुदाय बने हुए हैं ।
- लिंगायत ऐसा मानते थे की भक्त मृत्यु के बाद शिव में लीन हो जायेगा इस संसार में दुबारा नहीं लौटेगा । लिंगायतो ने पुनर्जन्म को नहीं माना। लिंगायतो ने जाति प्रथा का विरोध किया । ब्रह्मनीय समाजिक व्यवस्था में जिनके साथ भेदभाव होता था वो लिंगायतो के अनुयायी हो गए । लिंगायतो ने वयस्क विवाह , विधवा पुनर्विवाह को मान्यता दी ।
- लिंगायतों ने जाति , प्रदूषण , पुनर्जन्म के सिद्धांत आदि के विचार को चुनौती दी और युवावस्था के बाद के विवाह और विधवाओं के पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया ।
- वीरशैव परंपरा की हमारी समझ कन्नड़ में वचनों ( शाब्दिक रूप से कही गई ) से ली गई है , जो आंदोलन में शामिल हुई महिलाओं और पुरुषों द्वारा बनाई गई हैं ।
उत्तरी भारत में धार्मिक उफान
Class 12th History Chapter 6 इसी काल में उत्तरी भारत में भगवान शिव और विष्णु की उपासना मंदिरों में की जाती थीं । मंदिर शासको की सहायता से बनाए गए थे । उत्तरी भारत में इस काल में राजपूत राज्यों का उदभव हुआ । इन राज्यों में ब्राह्मणों का वर्चस्व था । ब्राह्मण अनुष्ठानिक कार्य ( पूजा , यज्ञ ) करते थे ।
ब्राह्मण वर्ग को चुनौती शायद ही किसी ने दी हो । इसी समय कुछ ऐसे धार्मिक नेता भी सामने आए जो रूढ़िवादी ब्रह्मनीय परम्परा से बाहर आए । ऐसे नेताओं में नाथ , जोगी सिद्ध शामिल थे ।
अनेक धार्मिक नेताओं ने वेदों की सत्ता को चुनौती दी । अपने विचारों को आम लोगों की भाषा में सबके सामने रखा । इसके बाद तुर्क लोगों का भारत में आगमन हुआ । इसका असर हिन्दू धर्म और संस्कृति पर पड़ा ।
इस्लामी परम्पराएँ
- प्रथम सहस्राब्दी ईसवी में अरब व्यापारी समुन्द्र के रास्ते से पश्चिमी भारत के बंदरगाहों तक आए ।
- इसी समय मध्य एशिया से लोग देश के उत्तर – पश्चिम प्रांतो में आकर बस गए ।
- सातवी शताब्दी में इस्लाम के उद्भव के बाद ये क्षेत्र इस्लामी विश्व कहलाया ।