Monday, April 29, 2024
Homeजानकारियाँभारत का इतिहास | History of India in hindi

भारत का इतिहास | History of India in hindi

भारत का इतिहास- हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है। आज में आपको भारत का इतिहास  के बारे में कुछ जानकारी दूंगा। साल 1817 में लिखी गयी किताब ‘द हिस्ट्री ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया’ में लेखक जेम्स मिल के अनुसार भारतीय इतिहास को तीन पक्षों में बांटा जा सकता है. ये तीन पक्ष हैं: हिन्दू सभ्यता, मुस्लिम सभ्यता और ब्रिटिश सभ्यता. यह हालाँकि एक प्रभावशाली आकलन है, किन्तु इसकी आलोचना भी ख़ूब हुई, क्यों कि यह सभ्यता सम्बंधित कई सवालों का जवाब देने में असक्षम थीं. एक दूसरा महत्त्वपूर्ण वर्गीकरण प्राचीन, क्लासिक, मध्यकाल और आधुनिक काल के रूप से विभक्त कर दिया गया है. कई अन्य तर्कों के आधार पर हिन्दू, मुस्लिम तथा ब्रिटिश पीरियड में न बाँट कर इसे शासक वंश तथा विदेशी आक्रमण के रूप में देखा गया. भारतीय इतिहास के कालक्रम को नीचे प्रदर्शित किया गया है.

भारत का इतिहास | History of India in hindi

भारत का इतिहास- शारीरिक रूप से आधुनिकता लिए हुए मनुष्य का प्रमाण भारतवर्ष के उपमहाद्वीप में 75,000 वर्ष पहले पाया गया. भारतवर्ष के इतिहास में दक्षिण भारत की अन्य सभ्यताओं का भी विवरण प्राप्त होता है. मध्य प्रदेश के भीमबेटका में पाए गये शैल चित्रों का समय काल 40,000 ई पू से 9,000 ई पू के मध्य माना गया है. ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर पहली बार स्थायी रूप से बस्तियों का निर्माण वर्ष 9,000 ई पू के आस पास हुआ था.

भारत का इतिहास- सिन्धु घाटी सभ्यता : भारतवर्ष उपमहाद्वीप में कांस्य युग 3300 ईसा पूर्व के समय आया था और इसी समय से यहाँ पर सिन्धु घाटी सभ्यता का आरम्भ होता है. यह सभ्यता सिन्धु नदी के किनारे विकसित हुई थी अतः इसे सिन्धु घाटी सभ्यता कहा जाता है. सिन्धु घाटी सभ्यता का प्रसार बहुत अधिक क्षेत्रफल में था जिसके अंतर्गत गुजरात का गंगा- यमुना दोआब तथा दक्षिणी पूर्वी अफगानिस्तान भी आता था. सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व के तीन प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है. इसके साथ बाक़ी दो प्राचीनतम सभ्यताएं हैं, मेसोपोटामिया की सभ्यता और मिस्त्र की सभ्यता. यह सभ्यता जनसंख्या के अनुसार भी बहुत बड़ी थी. मुख्य रूप से यह सभ्यता आधुनिक भारत में जैसे गुजरात, हरयाणा, पंजाब और राजस्थान तथा आधुनिक पाकिस्तान जैसे सिंध, पंजाब बलूचिस्तान में स्थापित थी. सिंधुघाटी सभ्यता का काल 2600 ई पू से 1900 ई पू के बीच का है.

द्रविड़ जाति का आविर्भाव : कई भाषाविदों के अनुसार द्रविड़ जाति के लोग भारतवर्ष में आर्यों से पहले स्थापित थे. इनके बाद ही आर्य मूल के लोग यहाँ पर आये. इस आधार पर ये भी माना जाता है कि आरंभिक सिन्धु घाटी सभ्यता में द्रविड़ों का वास था.

भारतीय इतिहास का वैदिक काल

भारत का इतिहास- वैदिक काल का नामकरण आर्य सभ्यता से आया है, जिसका वर्णन वेदों में प्राप्त होता है. वैदिक युग का काल 1750 ईपू से 500 ईपू के आस पास पाया जाता है. इस काल में यहाँ पर आर्यों का प्रभाव था और वेद, उपनिषद आदि की रचना हुई. अथर्व वेद के काल में पीपल और गाय को पवित्रता का प्रतीक माना गया और लोग इन दोनों की दैवी आस्था के साथ पूजा करने लगे. वैदिक का सबसे पहला हिस्सा, अर्थात सबसे पुरातन काल ऋग वेद काल है. ऋग वेद सबसे पुराना वेद है, जिसे 2 सहस्राब्द ईपू के आस पास रचा गया था. ऋग वेद काल की समाप्ति के बाद आर्यों का प्रसार उत्तरी पश्चिमी भारत से पश्चिमी गंगा के मैदानी इलाकों तक हुआ. गंगा के मैदानी इलाकों में आने पर आर्यों ने खेती करनी शुरू की और इस तरह से यहाँ कृषि का विकास हुआ. इस तरह से समाजों का निर्माण होने लगा और धीरे धीरे जनपद तथा महाजनपद का भी निर्माण होने लगा, ताकि समाज व्यवस्थित तरह से चल सके.

भारत का इतिहास- मगध राजवंश: मगध का निर्माण 16 महाजनपदों के सम्मलेन से हुआ था. अतः यह एक बहुत विशाल राज्य था. इस राज्य की प्राचीनतम राजधानी राजगृह थी. जिसे अब राजगीर के नाम से भी जाना जाता है. कालांतर में इसकी राजधानी पाटलिपुत्र कर दी गयी. ऐसा माना जाता है कि मगध में बिहार, बंगाल, अंग, लिच्छवी आदि राज्य शामिल थे, जिसमे तात्कालिक उत्तर प्रदेश और ओड़िसा भी शामिल था. जैन और बौद्ध ग्रंथों में इस मगध साम्राज्य का वर्णन बहुत अच्छे से किया गया है. मगध साम्राज्य में रहने वाले लोगों का सबसे पहला वर्णन अथर्व वेद में प्राप्त होता है, जहाँ पर इनका वर्णन अंग, गांधारी (गंधार नामक स्थान के रहने वाले) आदि के नाम से प्राप्त होता है.

मगध साम्राज्य के अंतर्गत ही जैन और बौद्ध धर्म का विकास हुआ था. इसी के साथ इसी साम्राज्य के अंतर्गत खगोल विद्या, आध्यात्म, दर्शन शास्त्र, आदि का विकास हुआ. यह समय भारत वर्ष के लिए स्वर्ण काल के रूप में जाना जाता है. मगध में गणतंत्र की स्थापना थी, जिसके अंतर्गत सभी गाँव एक स्थानीय व्यक्ति के अधीन होते थे, जिसे ग्रामकास कहा जाता था. यहाँ की शासन व्यवस्था कार्यकारी अधिकारी, न्याय तंत्र, सैन्य सीमा आदि में विभाजित थी. हिन्दू महागाथा महाभारत में लिखित वर्णन के अनुसार बृहद्रथ मगध का पहला शासक था. बौद्ध, जैन और पौराणिक पुस्तकों के अनुसार मगध पर हर्यक वंश का शासन एक लम्बे समय तक रहा. यह समयावधि कम से कम 200 वर्ष की, 600 ईपू से 413 ईपू तक की रही. इस वंश के सबसे उत्तम शासक राजा बिम्बिसार को माना जाता है, जिनके समय में मगध का अत्याधिक विकास हुआ. इनके शासन काल में मगध में राजनीति, दर्शन, कला, विज्ञान आदि काफ़ी उन्नत हुई. इनकी मृत्यु के बाद इनके पुत्र अजातशत्रू यहाँ के शासक हुए. अजातशत्रु के शासन काल के समय बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध ने मगध में अपने जीवनकाल की एक लम्बी अवधि बिताई. इन्होने बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति करके सारनाथ में अपना पहला समागम किया और राजगृह में पहला बुद्धिस्ट कौंसिल मीटिंग की गई.

भारत का इतिहास- मौर्य वंश: मौर्य वंश भारतवर्ष का पहला वंश और मगध का पहला शासक वंश था जिसने अखंड भारत का स्वप्न देखा था. मौर्य वंश के शासन काल में मगध का सर्वाधिक विस्तार उत्तर में हिमालय के प्राकृतिक सीमाओं से पूर्व में तात्कालिक असम, पूर्व में इस साम्राज्य की सीमा तात्कालिक पकिस्तान से हिन्दुकुश पर्वत तक था. इस साम्राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने विख्यात अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य की सहायता से की. चन्द्रगुप्त मौर्य के चाणक्य एक महान राजनेतिज्ञ सलाहकार थे. चन्द्रगुप्त मौर्य मौर्य वंश के पहले शासक थे, जिन्होंने नन्द वंश के राजा घनानंद को हरा कर मगध पर अपना अधिपत्य कायम किया था. चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिन्दुसार ने 297 ईपू में मगध का शासन अपने हाथ में लिया. बिन्दुसार की मृत्य 272 ईपू के आस पास हुई. इस समय तक भारतवर्ष का एक बहुत बड़ा हिस्सा मगध साम्राज्य में शामिल हो गया था, किन्तु कलिंग अब भी मौर्य वंश से बाहर था. बिन्दुसार के बाद मगध के शासक सम्राट अशोक हुए. सम्राट अशोक अपनी मृत्य यानि 232 ईपू तक राज्य किया. इनका शासनकाल 37 वर्ष का रहा. कलिंग पर अधिकार करने के लिए इन्होने 260 ई पू के नजदीक कलिंग से युद्ध किया. हालाँकि इस युद्द में अशोक को विजय प्राप्त हुई, किन्तु इस युद्द में एक भीषण नरसंहार हुआ. इस युद्द के नरसंहार को देख कर अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ और अशोक ने हिंसा त्याग दी. इस युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया. सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य वंश का पतन आरम्भ होता है. मौर्य वंश का अंतिम शासक शतवर्धन के पुत्र बृहद्रथ थे. इन्हें शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने हरा कर शुंग वंश की स्थापना की.

भारत का इतिहास- संगम काल: संगम काल के समय तमिल साहित्य 300 ईपू से 400 ईपू के मध्य खूब विकसित हुआ. इस काल में तमिल वंश को तीन शासक वंशों ने चलाया. यह तीन शासक वंश क्रमशः चेरा वंश, चोल वंश और पंड्या वंश के थे. संगम काल के तमिल साहित्य में इस समय की राजनीति, कला, इतिहास, युद्ध, संस्कृति आदि का विशेष वर्णन प्राप्त होता है. इस समय के स्कॉलर अधिकांश आम आदमी थे. संस्कृत लेखक, जो कि अक्सर ब्राम्हण होते थे, उनसे परे यहाँ के लिखने वालों में किसान, व्यापारी, साधू, सन्यासी, राज कुमार, स्त्रियाँ आदि थी. इनमे से अधिकतर लोग ब्राम्हण नहीं थे.

भातीय इतिहास का शास्त्रीय पीरियड

  • 200 ईपू से 1200 आम युग (CE) तक भारत का शास्त्रीय युग माना जाता है. यह समय काल बहुत अधिक लम्बा होने के कारण इसका अध्ययन समय काल को बाँट कर किया जाता है. आम तौर पर यह माना जाता है कि भारत का शास्त्रीय काल (क्लासिकल पीरियड) मौर्य वंश के पतन से तथा सातवाहन वंश के उदय से आरम्भ होता है. चौथी से छठी सदी के बीच का समय काल गुप्त वंशो का रहा है. इस काल को हिन्दुओं में स्वर्ण युग के नाम से जाना जाता है. इस समय भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी. इस समय यहाँ पर विश्व के कुल धन का एक तिहाई से एक चौथाई हिस्सा मौजूद था.
  • सातवाहन वंश: सातवाहन वंश एक प्रतापी राजवंश था. यह आंध्र प्रदेश, पुणे और महाराष्ट्र में पहले से राज कर रहा था. मगध में इनका प्रसार मौर्य वंश के पतन के साथ देखने मिलता है. इस वंश के समय हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म का खूब प्रसार हुआ. इसी वंश के शासन काल के समय अमरावती में एलोरा की गुफाओं का निर्माण हुआ. भारत में सातवाहन वंश वह पहला वंश हुआ जिसने अपने राज्य में जारी किये गये विनिमय मुद्रा में तात्कालिक राजा का चिन्ह छपवाया. इस वंश के राजाओं की प्रतियोगिता पहले शुंग वंश के शासक फिर कंव वंश के शासकों के साथ थी. इस वंश ने भारत की कई बाहरी शासकों के आक्रमण से जैसे शक, यवन, पहलाव से रक्षा की. इनकी सबसे अधिक लड़ाई पश्चिमी क्षेत्रों से थी. इनसे शातवाहन वंश के राजाओं की लड़ाई एक लम्बे समय तक चली. इन वंश के महान शासकों में गौतमीपुत्र शातकर्णी और श्री यज्ञ शातकर्णी थे.
  • शुंग वंश: शुंग वंश मौर्य वंश को हरा कर शासन में आया. इस वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग थे. इस वंश शासन काल 187 ईपू से 78 ईपू के मध्य रहा. पुष्यमित्र के बाद इस वंश का शासन इनके पुत्र अग्निमित्र के हाथ आया. इस वंश के में कुल 10 शासक हुए, जिन्होने मगध पर अपना शासन चलाया. इन वंश का शासन काल इनके युद्धों के लिए भी जाना जाता है. इन्होने कलिंग, सातवाहन, पंचाल, मित्र आदि वंशों से युद्ध किया. इस वंश के शासन काल में कला, दर्शन, शिक्षा आदि का खूब प्रसार प्रचार हुआ. शुंग वंश के शासकों ने शिक्षा और कला के क्षेत्र में राजकीय छात्रवृत्ति की योजना बनायी थी, ताकि शिक्षा आदि में प्रसार हो सके.
  • कुषाण वंश: कुषाण वंश का शासन काल भी भारत में बहुत प्रभावी रहा है. इनका साम्राज्य इस उपमहाद्वीप के एक बहुत बड़े हिस्से में फैला हुआ था. इस वंश का सबसे महान राजा कनिष्क हुआ. कनिष्क के समय इस साम्राज्य का विस्तार अफ्गानिस्तान से लेकर बनारस तक का था. कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था, किन्तु इसके राज्य में रहने वाले अधिकतर लोग हिन्दू धर्म के थे. कनिष्क ने भारत में बौद्ध धर्मं को स्थापित करने में एक बहुत बड़ी भूमिका निभायी. इसी के साठग कनिष्क ने मध्य एशिया और चीन में भी बौद्ध धर्म का प्रसार किया.
  • गुप्त वंश: गुप्त वंश के शासनकाल को भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है. इस वंश का शासन काल 320 से 550 CE के मध्य रहा. इन वंश के शासनकाल में भारत वर्ष में विज्ञान, तकनीक, अभियन्त्रिक कार्य, कला, साहित्य, गणित, दर्शन, खगोल शास्त्र आदि का खूब विकास हुआ. इस वंश के समय ही नवरत्न हुए. इनमे कालिदास, आर्यभट, वराहमिहिर, विष्णु शर्मा, वात्सयायन आदि थे. इससे पहले संख्या प्रणाली में 1 से लेकर 9 तक की संख्याएं थीं. आर्यभट ने शुन्य का आविष्कार करके इस संख्या प्रणाली को पूर्ण किया. यह उपलब्धि भी गुप्त वंश के शासनकाल की उपलब्धियों में देखी जा सकती है. इस वंश के आरंभिक तीन शासक काह्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय ने यहाँ की सैन्य क्षमता को सुदृढ़ किया.
  • वाकाटक वंश: वाकाटक वंश की उठान 300 CE के आस पास दक्कन में विकसित होते देखा गया है. इनका साम्राज्य मालवा और गुजरात के दक्षिणी हिस्से से दक्षिण में तुंगभद्र नदी और अरब सागर से लेकर छत्तीसगढ़ तक विस्तृत था. दक्कन में ये सातवाहन वंश के बाद एक महत्वपूर्ण शासक वंश थे, जो गुप्त वंश के समकालीन थे. इस वंश के शासन काल में कला साहित्य और दर्शन का खूब विकास हुआ. इस वंश के शासन काल में ही अजंता की गुफाओं का निर्माण किया गया.
  • कामरूप राज्य: समुद्रगुप्त के चौथे इलाहाबाद स्तम्भ में पश्चिमी आसाम का वर्णन कामरूप के नाम से तथा मध्य असाम का वर्णन दवाका के नाम से पाया जाता है. यह दोनों स्थान गुप्त साम्राज्य का सीमान्त प्रदेश थे. दवाका का कालांतर में कामरूप में विलय हो जाता है. यह एक बहुत बड़ा राज्य था जिसके अंतर्गत उत्तरी बंगाल, बांग्लादेश के कुछ प्रदेश तथा ताकालिक पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से शामिल थे. बाद में यहाँ पर वर्मन, म्लेच्छ और कामरूप पलास वंश का शासन रहा.
  • पल्लव वंश: पल्लव वंश का शासन काल 275 से 897 CE के आस पास रहा है. इनका उत्थान सातवाहन वंश के पतन के साथ देखा जाता है. पल्लव वंश के महान शासक महेन्द्रवर्मन थे. इनके शासल काल में पल्लव वंश के साम्राज्य का खूब विकास हुआ. इनके समय में कुछ महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर बनाए गये, जिसके लिए द्रविड़ वास्तु कला का प्रयोग किया गया. नरसिम्हा वर्मन भी इस साम्राज्य के एक अच्छे शासक हुए.
  • कदम्ब वंश: कदम्ब मूल के लोगों की उत्पति कर्नाटक से हुई है. इस वंश की स्थापना मयुराश्रम द्वारा 345 CE में हुई है. राजा मयुराश्रम ने कांचीपुरम के पल्लवों की सेना को हराया. ऐसा माना जाता है कि पल्लवों के विरुद्ध युद्द में मयुराश्रम का साथ कुछ स्थानीय जातियों ने भी दिया था. कदमबा वंश का विस्तार ककुस्थावामा नामक राजा के समय सबसे अधिक हुआ था. ककुस्थावामा इतने बलशाली राजा थे कि गुप्त वंश के राजाओं को भी इनके साथ समझौते करना पड़ा.
  • पुष्यभूति वंश: पुष्यभूति वंश के सबसे महत्वपूर्ण शासक हर्षवर्धन थे. ये इस वंश के अंतिम शासक थे. हर्षवर्धन का शासन काल 606 से 647 CE तक रहा. हर्षवर्धन के साम्राज्य में कामरूप, नर्मदा, कन्नौज, आदि शामिल थे. इनके शासन काल में राज्य में काफ़ी शांति थी. बाणभट्ट के हर्षवर्धन के जीवन काल को ‘हर्षचरित’ नामक किताब में लिखा है. इसी के समय चीन से ह्येंसांग भारत आया था.
  • चालुक्य वंश: 6ठी से 7वीं शताब्दी के मध्य दक्षिणी और मध्य भारत में चालुक्य वंश का शासन रहा. इस वंश के महान शासक पुलकेशिन द्वीतीय को माना जाता है. इन वंश का वर्णन विशेष तौर पर दक्षिण भारत के इतिहास में प्राप्त होता है.
  • राष्ट्रकूट वंश: राष्ट्रकूट वंश का उत्थान 7वीं शताब्दी के आस पास देखा जाता है. इसका प्रसार पश्चिमी भारत में था. इस वंश का उत्थान राजा गोविन्द तृतीय के समय हुआ. इस वंश के शासन काल में हिन्दू धर्म के अंतर्गत शैव, वैष्णव आदि पंथों का खूब प्रसार हुआ और हिन्दू धर्मं का उत्थान हुआ. इस वंश के साम्राज्य को विश्व के चार बड़े साम्राज्यों में स्थान दिया गया है.
  • पाल साम्राज्य: पाल साम्राज्य की स्थापना गोपाल नाम द्वारा की गई है. यह वंश बौद्ध धर्मं का अनुयायी था. हालाँकि ये महायान थे किन्तु इन्होने अपने शासन काल में हिन्दू मान्यताओं का भी प्रसार किया. राजा धरमपाल और देवपाल के समय इस वंश का उत्थान बहुत अधिक हुआ. ऐसा माना जाता है की राजा धरमपाल ने अपने शासन काल मे कन्नौज को हरा कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था. इस वंश के शासक ने तिब्बत के लोगों के साथ अपने सम्बन्ध बनाए.
  • चोल साम्राज्य: चोल साम्राज्य दक्षिण भारत के बड़े साम्राज्यों में से एक था. इस साम्राज्य का मुख्य स्थान कावेरी नदी का मैदानी क्षेत्र था. राजेंद्र चोल और इनके अन्य राजा जैसे राजेंद्र चोल द्वितीय, राजाधिराज चोल, विराराजेंद्र चोल आदि के शासनकाल के समय इनकी आरती शक्ति और सैन्य क्षमता में काफ़ी वृद्धि हुई. 1010 ए 1153 के आस पास इस वंश का साम्राज्य मालदीव आइलैंड तक पहुँच गया था. इस वंश के शासन काल के समय दक्षिण भारत की कला, साहित्य, दर्शन आदि का खूब विकास हुआ. इस दौरान कई सारे मंदिर बनाये गये.
  • पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य: दक्कन के एक बहुत बड़े भाग में पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य का शासन रहा है. इनका शासन काल 10 वीं से 12 वीं सदी के आस पास का रहा है. इनके शासन काल में कई बड़े शाही परिवार जैसे होयसला, सुना, देवगिरी के यादव आदि चालुक्य शासकों के अधीन थे, और 12 वीं सदी में चालुक्य के पतन के बाद इन्हें आज़ादी प्राप्त हुई. मध्य कर्नाटक के इस वंश के दौरान कई भवनों का निर्माण कराया गया. इनमें कुछ विख्यात नाम कासिविस्वेस्वर मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर, कल्लेश्वर मंदिर, महादेव मंदिर आदि हैं

भारतीय इतिहास का मध्यकालीन एवं प्रारंभिक आधुनिक कालक्रम

भारत का इतिहास- भारत में मुस्लिमों का प्रवेश : 712 ई में मुहम्मद बिन कासिम ने सिन्धु घाटी के मैदानी इलाकों पर अधिकार कर लिया और उमय्यद वंश की स्थापना की. यहाँ से मुस्लिम राजाओं का आगमन भारत में शुरू होता है. ग्याराह वीं सदी के आसपास भारत की उत्तरी पश्चिमी हिस्से में महमूद गजनी ने लगातार 17 बार आक्रमण किया, किन्तु सफलता प्राप्त नहीं हुई. इस क्षेत्र में इसका स्थायी राज्य कायम नहीं हो सका.

भारत का इतिहास- मुग़ल काल : मुग़ल वंश की स्थापना बाबर ने इब्राहिम लोदी को हरा कर की थी. इस वंश का शासनकाल 1526 ई से शुरू होकर 1857 तक रहा. हालाँकि इस समय के बीच साल 1540 से 1554 का समय इनके शासन काल में नहीं माना जाता है. इस दौरान इनका साम्राज्य सुर साम्राज्य का अधिपत्य रहा. इस वंश का सबसे सफ़ल राजा अकबर था, जिसके समय में भारत में धार्मिक विभिन्नता होते हुए भी शांति थी. इनके समय में तात्कालिक राजपूत राजाओं और मराठों से इनके बहुत युद्ध हुए. इन युद्दों में पानीपत का प्रथम युद्ध, खानवा का युद्ध, हल्दीघाटी का युद्ध आदि मशहूर हैं. इन युद्धों में राजपूतों की हार पर मुग़ल शासकों से ख़ुद को बचाने के लिए इनकी स्त्रियाँ जौहर व्रत का पलान करती थीं, जिसके अंतर्गत यदि युद्ध भूमि से राजा की मृत्यु की खबर आई तो रानियाँ जलती आग में कूद जाती थीं. मुग़ल सल्तनत के समय भारत में विशेष तरह के वास्तुकला का अविर्भाव हुआ, जिसका उदाहरण ताजमहल, लाल किला, इमामबाडा आदि से पाया जा सकता है. इस समय की औप्चारिक भाषा पर्सियन हो गयी, किन्तु आम लोगों में उर्दू हिन्दुतानी भाषा के रूप में प्रचलित हुआ. इस वंश के अंतिम राजा बहादुर शाह द्वितीय थे.

भारत का इतिहास- भक्ति आन्दोलन : भारतीय इतिहास में भक्ति आन्दोलन का बहुत बड़ा महत्व है. इस आन्दोलन का मुख्य समाज से कुरीतियों को दूर करना और लोगों में आध्यात्म स्थापित करना था. इस आन्दोलन में कई बड़े ईश्वर भक्त और समाज सुधारक जैसे कबीर, अल्लामा प्रभु, नानक, रामानंद, एकनाथ, कनकदास, तुकाराम, वल्लभ आचार्य, मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु आदि ने भाग लिया. इस समय साहित्य का बहुत विकास हुआ. इस समय सगुन और निर्गुण भक्ति दोनों का खूब प्रसार हुआ. इस आन्दोलन से भारतीय समाज से कई सामाजिक कुरीतियों को हटाया गया. समाज में व्याप्त जातिवाद, धर्म भेद तथा अन्य धार्मिक कुरीतियों को दूर करने के लिए इन संतों ने कविताओं के माध्यम से लोगों तक अपनी बात पहुंचाई.

भारत में यूरोपीय शक्ति का आगमन : साल 1498 वास्को डा गामा ने सबसे पहले यूरोप और भारत के बीच का समुद्री रास्ता ढूँढा. इस रास्ते से पुर्तगाली भारत से व्यवसायिक सम्बन्ध बनाने लगे तथा गोवा, दमन, दीउ और मुंबई को अपना व्यापारिक केंद्र बनाना शुरू किया. इसके बाद भारत में डचों का आगमन हुआ. इन्होने मालाबार में अपने बंदरगाहों के निर्माण किये. भारत की आतंरिक कमजोरी ने डचों और अंग्रेजों को यहाँ की राजनीति में दखल देने का मौक़ा दिया. साल 1617 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को जहाँगीर ने भारत के साथ व्यापार करने की छूट दे दी. इसके बाद के साल में अंग्रेजों की संख्या और शक्ति भारत में बढती गयी. अंग्रेजों ने यहाँ के राजाओं की विभिन्न कमजोरियों का फायदा उठा कर भारत के एक बहुत बड़े हिस्से पर आना कब्जा जमा लिया. साल 1757 में पलासी के युद्ध में नवाब सिराजउद्धोला को हार मिली. धीरे धीरे अन्य युद्दों जैसे आंग्ल- मैसूर युद्ध, आँग्ल- मराठा युद्ध, सिख- आँग्ल युद्द आदि में सफलता प्राप्त करते हुए ब्रिटिश देश भर में फैलते गये. इन्होंने कलकत्ता को अपनी राजधानी बनाया.

भारतीय इतिहास का आधुनिक काम और स्वतंत्रता

1857 का विद्रोह : सन 1857 में होने वाले विद्रोह का भारत में एक गंभीर ऐतिहासिक महत्व है. देश से अंग्रेजों को भगाने के लिए देश के विभिन्न राज्यों के नवाबों ने इस विद्रोह में हिस्सा लिया. हालाँकि यह विद्रोह पूरी तरह से न तो योजनाबद्ध था और न ही भारतीय सिपाहियों के पास आधुनिक हथियार थे. अतः कठिन परिश्रम के बाद भी भारतीय सेना ब्रिटिश सेना के आधुनिक हथियारों के सामने टिक न सकीं और यह विद्रोह पूरी तरह से निष्फल हो गया. इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की शक्ति में वृद्धि हुई और ब्रिटिश सरकार हर वक़्त यथा संभव लोगों को दबाने की कोशिश करने लगी ताकि किसी भी तरह से ऐसा आन्दोलन दुबारा न हो सके.

ब्रिटिश राज: ब्रिटिश राज का समय काल साल 1858 से भारत की आजादी तक का रहा. साल 1880 से 1920 तक देश की अर्थव्यवस्था में प्रतिवर्ष 1% की वृद्धि होती रही. इसी के साथ जनसंख्या में भी प्रतिवर्ष 1% की वृद्धि होती रही. इसी समय भारत में रेल तंत्र की स्थापना हुई, जो कि उस समय विश्व भर का चौथा सबसे बड़ा रेल तंत्र था. इस समय भारतीय लोगों पर ब्रिटिश लोगों का अत्याचार बढ़ता जा रहा था. बंगाल की एकता को देखते हुए साल 1905 में लार्ड कर्ज़न ने बंगाल को दो भागों में विभक्त कर दिया. हालाँकि 6 वर्ष बाद सन 1911 मे बंगाल पुनः एक साथ हो गया. इसी समय कई धर्म आधारित संगठन बनाए गए. ऐसे संगठन भारतीय धर्मो के आपसी मतभेद के कारण बने. अखिल भारतीय हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मुस्लिम लीग, शिरोमणि अकाली दल आदि का गठन इन्हीं दशकों में हुआ.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम: भारतीय स्वतंत्रता संगाम में कई लोगों ने हिस्सा लिया. इस संग्राम में कुछ लोग सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चल कर, अहिंसात्मक आन्दोलन के सहारे भारत को स्वतंत्रता दिलाने की कोशिश में थे और कुछ सशस्त्र क्रान्ति को आज़ादी का सीधा मार्ग मानते थे. महात्मा गाँधी अपनी सत्यागृह से विभिन्न तरह के आन्दोलन जैसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोडो आन्दोलन, दांडी मार्च आदि के सहारे ब्रिटिश को भारत से निकालना चाहते थे, किन्तु दूसरी तरफ सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, सुभाष चन्द्र बोस, बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव आदि क्रांतिकारी की आज़ादी का माध्यम अगल था. जलियांवाला बाग़ काण्ड के बाद ब्रिटिश शासन से लोगों का भरोसा उठ गया था और लोग किसी भी क़ीमत पर आज़ादी चाहते थे. अतः ये सभी क्रांतिकारी सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपना रहे थे.

भारत का इतिहास- स्वतंत्रता और विभाजन : दोनों तरह की क्रांतियों से भयभीत हो कर ब्रिटिश भारत छोड़ने पर मजबूर हो गया, किन्तु जाने से पहले मुस्लिम लीग की मांग पर भारत को दो भागों में विभक्त कर दिया, और एक नया देश पाकिस्तान के नाम से बना. 15 अगस्त सन 1947 को भारत ब्रिटिश सरकार से पूरी तरह आज़ाद हो गया. अब भारत के तात्कालिक नेता यहाँ पर अपनी अर्थव्यवस्था बना सकते थे. भारत वासियों में एक बार फिर से आज़ादी की लहर दौड़ गयी. सन 26 जनवरी 1950 को भारत के लिए संविधान जारी हुआ और देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई. अतः 15 अगस्त और 26 जनवरी ये दोनो दिन इस देश में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते है, और इस दिन उन सभी देश भक्तों के बलिदानों को याद करते हैं, जिन्होंने हम भारतवासियों को आज़ादी दिलाई

Read also :-

 

RELATED ARTICLES
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Most Popular