Sunday, April 28, 2024
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Semester 5 History Popular Culture Important Questions And Answers In Hindi

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Q:1 लोक रंगमंच के विभिन्न रूपों पर विचार कीजिए ।

Semester 5 History Popular Culture Important Questions And Answers In Hindi- लोक रंगमंच, जिसे लोकनृत्य, लोकनाट्य, या फिर सिर्फ “लोक” भी कहा जाता है, विभिन्न सांस्कृतिक समृद्धि और विविधता का प्रतीक है। यह एक ऐसा मंच है जो लोक साहित्य, लोक संगीत, और लोक नृत्य को साझा करने के लिए बनता है और लोगों को सांस्कृतिक जागरूकता में भागीदार बनाता है। Semester 5 History Popular Culture Important Questions And Answers In Hindi

  1. लोक नृत्य (Folk Dance): यह लोक साहित्य और सांस्कृतिक तत्वों को बोधित करने का एक शानदार तरीका है। विभिन्न क्षेत्रों में लोक नृत्यों की बहुत सारी प्रकारें होती हैं जो उन क्षेत्रों की स्थानीय सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाती हैं।
  2. लोक संगीत (Folk Music): लोक संगीत भी एक महत्वपूर्ण रूप है जो लोक रंगमंच पर प्रदर्शित होता है। यह विभिन्न वाद्य और गायन तकनीकों का आनंद लेता है और अक्सर समृद्धि, प्रेम, और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर आधारित होता है।
  3. लोक नाटक (Folk Drama): इसमें स्थानीय कथाएं, किस्से और दास्तानें होती हैं जो स्थानीय समृद्धि को बढ़ावा देती हैं। लोक नाटक में स्थानीय पहचान और विशेष रूप से वायरमेंट भी शामिल होती हैं।
  4. बाल नृत्य (Children’s Folk Dance): बच्चों के बीच लोक नृत्य भी प्रचलित है, जिसमें वे अपनी समृद्धि और सांस्कृतिक विकास को समर्थन करते हैं। Semester 5 History Popular Culture Important Questions And Answers In Hindi
  5. लोक कथा (Folk Tale): लोक रंगमंच पर अक्सर स्थानीय किस्से और कथाएं प्रस्तुत की जाती हैं, जिनमें स्थानीय चरित्रों, भूत-प्रेत, और स्थानीय रहस्यमय परंपराएं शामिल हो सकती हैं।
  6. लोक नृत्य उत्सव (Folk Dance Festival): विभिन्न स्थानों में लोक नृत्य उत्सवों का आयोजन होता है, जो स्थानीय सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने का एक सुंदर माध्यम है।

लोक रंगमंच के रूपों में से प्रत्येक एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण होता है और यह लोगों को उनकी स्थानीय सांस्कृतिक विरासत से जोड़कर रखता है।

 Q:2 कालिदास के नाटक “विक्रमोर्वशीयम्” के मुख्य कथानक का सबसे प्राचीन स्रोत किस पुस्तक में मिलता है 

“विक्रमोर्वशीयम्” का मुख्य कथानक कालिदास के एक प्रसिद्ध नाटक है, और इसका स्रोत मुख्यतः महाभारत के “उद्योगपर्व” में मिलता है। “उद्योगपर्व” में इस कथा को “उर्वशी और पुरूरवा की कथा” के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

उर्वशी और पुरूरवा की कथा में, अप्सरा उर्वशी और राजा पुरूरवा के बीच होने वाले प्रेम की कहानी है। इस कथा को कालिदास ने अपने नाटक “विक्रमोर्वशीयम्” में अपनी कला और सौंदर्य से सजाकर प्रस्तुत किया है।

महाभारत में उद्योगपर्व का विवरण देवी उर्वशी और महर्षि नरद के बीच हुए यह घटनाक्रमों का विवरण देता है, और यह विषय कालिदास द्वारा उठाया गया है और उसने इसे एक महाकाव्य नाटक में रूपांतरित किया है। Semester 5 History Popular Culture Important Questions And Answers In Hindi

कालिदास ने “विक्रमोर्वशीयम्” में उर्वशी और पुरूरवा के प्रेम के किस्से को अपनी भव्य भाषा और सौंदर्य से रचा है। नाटक में इस कथा को रोमांटिक और आध्यात्मिक पारंपरिक भारतीय साहित्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उर्वशी, एक अप्सरा, और पुरूरवा, एक राजा, के बीच होने वाला प्रेम उर्वशी के शाप के कारण कई बार टूटता है और फिर पुनः मिलता है।

इस प्रेम कथा में रोमांटिक भावनाएं, संवेदना, और दैहिक सौंदर्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं।

नाटक में, कालिदास ने नाट्यशास्त्र के सिद्धांतों का पालन करते हुए उर्वशी और पुरूरवा के बीच हुए संवाद को सुन्दरता से सजाया है। उन्होंने इस प्रेम कहानी को नृत्य, गीत, और रंगमंच के माध्यम से जागरूक किया है।

“विक्रमोर्वशीयम्” में उर्वशी और पुरूरवा के बीच के प्रेम का आध्यात्मिक अंश भी है, जिससे यह कहानी शिक्षाप्रद और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी देखी जा सकती है।

इस प्रकार, “विक्रमोर्वशीयम्” एक उदाहरण है जो कालिदास के कला, सौंदर्य, और साहित्य के प्रति उनके समर्थन को प्रदर्शित करता है और उनकी कला को समृद्धि, संवेदनशीलता, और आध्यात्मिकता के साथ जोड़ता है  History Popular Culture Important Questions And Answers In Hindi

Q:3 आधुनिक नाटकों की शुरुआत में किन विषयों पर अधिक नाटक लिखे गये ?

आधुनिक नाटकों की शुरुआत, यानी 19वीं सदी के आसपास, मुख्यतः विशेष विषयों पर नाटक लिखे गए थे जो समाज, राजनीति, और साहित्य के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास कर रहे थे। इस समय के नाटककारों ने नए और आधुनिक दृष्टिकोण के साथ समसामयिक समस्याओं को उजागर करने का प्रयास किया। यहां कुछ मुख्य विषय हैं

  1. समाजिक असमानता और जातिवाद: आधुनिक नाटककारों ने समाज में हो रही असमानता, जातिवाद, और उन्नति के विषयों पर अपने नाटकों के माध्यम से ध्यान केंद्रित किया।
  2. राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता संग्राम: आधुनिक नाटकों में राष्ट्रवाद, देशप्रेम, और स्वतंत्रता संग्राम के विषयों पर नाटक लिखे गए, जो उस समय के सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों को दर्शाते थे। History Popular Culture Important Questions And Answers 
  3. नारी समस्याएं: आधुनिक नाटकों में नारी समस्याओं पर भी बहुत ध्यान दिया गया, और इसमें समाज में स्त्री की स्थिति, उसकी स्वतंत्रता, और उसके अधिकारों की बहुत चर्चा हुई।
  4. मनोबल और मानसिक स्वास्थ्य: कुछ नाटककारों ने मानसिक स्वास्थ्य और मनोबल के विषयों पर ध्यान केंद्रित किया, जो समाज में मानवाधिकार और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं।
  5. प्रेम और संबंध: आधुनिक नाटकों में सामाजिक और व्यक्तिगत संबंधों, प्रेम और विवाह के विषयों पर भी चर्चा हुई, और इसमें समाज की मान्यता और सार्वजनिक दृष्टिकोण शामिल हुआ।

इन विषयों पर आधुनिक नाटकों के माध्यम से साहित्यिक और सामाजिक सुधार की दिशा में एक नया दौर शुरू हुआ और इसने समाज को जागरूक किया और सुधारने के लिए प्रेरित किया।

 Q:4 स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के दौर में ऐतिहासिक और पौराणिक नाटकों के कथ्य में परिवर्तन के पीछे क्या दृष्टि रही है?

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारतीय नाटक साहित्य में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए जो ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं के कथ्य (कथाओं का पौराणिक रूप) में उत्कृष्ट रहे हैं। यह परिवर्तन सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक परिवर्तनों का परिचय करने का एक साधन भी बना।

  1. सामाजिक परिवर्तन: स्वतंत्रता के बाद, भारतीय समाज में भी बड़े परिवर्तन हुए जो समाज के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास कर रहे थे। नाटककारों ने इस समय के सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों को नाटकों में शामिल किया और लोगों को जागरूक किया।
  2. आधुनिक दृष्टिकोण: स्वतंत्रता के बाद, नाटककारों ने ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं को आधुनिक दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया। वे इन कथाओं को समाज, राजनीति, और मानवीय संबंधों के साथ जोड़ने का प्रयास करते हैं।
  3. भारतीय साहित्य के नाटकीय शैली का परिवर्तन: स्वतंत्रता के बाद, नाटकीय शैली में भी परिवर्तन हुआ। नए नाटकीय रूपों, तकनीकों, और भाषा का प्रयोग हुआ जो आधुनिक दरबारी जीवन और विचारशीलता को दर्शाते हैं।
  4. मुद्दे-निर्धारण: स्वतंत्रता के बाद, नाटककारों ने ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं को अपने नाटकों के माध्यम से भारतीय समाज के मुद्दों और निर्धारणों से जोड़ने का प्रयास किया। इससे नाटकों ने एक नया माध्यम बनाया जिससे लोगों को अपने समय की समस्याओं को समझने में मदद मिली।
  5. नाटकों की भाषा: भाषा में भी परिवर्तन हुआ और नाटकों में अधिक सामाजिक और राजनीतिक वार्ता, जनहित और सार्वजनिक मुद्दों को बढ़ावा दिया गया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, नाटककारों ने ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं को नए और आधुनिक संदर्भ में उत्कृष्ट करने का प्रयास किया, जिससे नाटकों ने समाज को सुधारने और उत्तराधिकारिता को बढ़ावा देने का कार्य किया

Q:5 नाटक और रंगमंच को प्रोत्साहित करने के लिए किस राष्ट्रीय संस्था की स्थापना की गई।

भारत में नाटक और रंगमंच को प्रोत्साहित करने के लिए स्थापित राष्ट्रीय संस्था “सहित्य अकादमी” है। सहित्य अकादमी ने भारतीय साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 1954 में स्थापित की गई थी और इसमें साहित्य, संस्कृति, भाषा, और रंगमंच समेत कई क्षेत्रों के कला और साहित्य को बढ़ावा देने का कार्य किया जाता है।

सहित्य अकादमी ने साहित्य और कला के क्षेत्र में योजनाएं, पुरस्कार और प्रोत्साहन कार्यक्रमों के माध्यम से रंगमंच को भी प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है। इसके अलावा, भारतीय संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में युवाओं को प्रेरित करने और उन्हें समर्पित बनाने के लिए समृद्धि बनाए रखने के लिए भी कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

सहित्य अकादमी के रंगमंच क्षेत्र में योजनाएं और पुरस्कार बहुत से प्रमुख रंगमंच कलाकारों को मिले हैं, जो उन्हें उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए पहचानता हैं। सहित्य अकादमी द्वारा आयोजित जाने वाले रंगमंच सम्मान, सहित्य अकादमी पुरस्कारों का हिस्सा भी है, जिसमें उत्कृष्ट नाटककार, नाटककृति, नाटक निर्देशक और अन्य रंगमंच संबंधित विभागों के कलाकारों को पुरस्कृत किया जाता है।

सहित्य अकादमी के साथ ही, भारत में कई अन्य संस्थाएं भी हैं जो रंगमंच कला को बढ़ावा देने का कार्य कर रही हैं। इनमें से कुछ नाम हैं राष्ट्रीय रंगमंच अकादमी, सर्वकारी रंगमंच संस्थानें, और कई नाटक समूह जो नट्य, नृत्य, और संगीत के माध्यम से साहित्यिक और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने का कार्य कर रहे हैं।

इन संस्थाओं के माध्यम से नाटक, स्थायी रंगमंच प्रदर्शन, शिक्षा, और नाट्य साहित्य के क्षेत्र में योजनाएं आयोजित की जा रही हैं, जो नाटक और रंगमंच कला के प्रेमी और कलाकारों को संतुलित विकास का मौका देने का उद्देश्य रखती हैं

Q:6 जनोन्मुखी नाट्य मंच ने भारतीय रंगमंच को किन-किन रूपों में प्रभावित किया ।

“जनोन्मुखी नाट्य मंच” एक ऐसी रंगमंच शैली है जो लोगों को सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक मुद्दों के प्रति जागरूक करने, समर्थन और आपत्ति जताने, और विभिन्न समस्याओं के लिए समाधान ढूंढने में सहायक है। इसे “जनोन्मुखी” कहा जाता है क्योंकि इसमें लोगों की भावनाओं, राजनीतिक उत्साह, और सामाजिक प्रतिबद्धता को महत्वपूर्ण रूप से शामिल किया जाता है।

  1. सामाजिक सुधार: जनोन्मुखी नाट्य मंच ने विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने का कार्य किया है, जैसे कि जातिवाद, लिंग भेद, समाज में असमानता, और अन्य समस्याएं।
  2. राजनीतिक संवेदनशीलता: इसमें राजनीतिक प्रबंधन, राजनीतिक उत्साह, और समाज में परिवर्तन की भावना को प्रोत्साहित किया जाता है।
  3. लोककथा और नृत्य: जनोन्मुखी नाट्य मंच में लोककथाएं और नृत्य का महत्वपूर्ण स्थान है, जो सामाजिक संदेशों को पहुँचाने का एक प्रभावी तरीका है।
  4. भूगोलिक संदर्भ: यह नाट्य मंच भूगोलिक संदर्भ को भी ध्यान में रखता है और स्थानीय भाषा, सांस्कृतिक परंपराएं, और समस्याएं को प्रमोट करने का प्रयास करता है।

जनोन्मुखी नाट्य मंच ने रंगमंच कला को समर्थन, सजीवता, और सामाजिक परिवर्तन के एक नए दृष्टिकोण से देखने का माध्यम प्रदान किया है। इसने नाटक कला को एक उपयोगी और सकारात्मक सामाजिक टूल में बदलने में मदद की है।

Q:7 भारत में जनोन्मुखी रंगमंच को आंदोलन का रूप देने में किस संस्थान का योगदान था ? इस संस्थान ने यह कार्य कैसे किया ?

भारत में जनोन्मुखी रंगमंच को आंदोलन का रूप देने में “जननाट्य मंच” (Jan Natya Manch) नामक संस्था ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जननाट्य मंच एक स्वतंत्र और सामाजिक रंगमंच संस्था है जो 1973 में दिल्ली में गठित हुई थी। इसे “जनोन्मुखी नाट्य मंच” भी कहा जाता है।

  1. सामाजिक चेतना को जगाना: जननाट्य मंच ने भारतीय समाज में सामाजिक अन्याय, जातिवाद, लिंग भेद, और अन्य समस्याओं पर चर्चा कर सामाजिक चेतना को जगाने का कार्य किया।
  2. सरकारी नाट्य संस्थाओं के खिलाफ: जननाट्य मंच ने सरकारी नाट्य संस्थाओं के खिलाफ भी अपने रंगमंच प्रदर्शनों के माध्यम से आवाज उठाई। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह स्वतंत्र और स्वाधीन रंगमंच के पक्षधर का समर्थन करती है और सरकारी अत्यंत निगरानी रंगमंच पर करती है।
  3. लोकसंगीत और नृत्य का समर्थन: जननाट्य मंच ने अपने प्रदर्शनों में लोकसंगीत, नृत्य, और लोककथा का समर्थन किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि संस्था ने सांस्कृतिक धाराओं को बचाने और बढ़ावा देने का उद्देश्य रखा है।
  4. गाँवों में रंगमंच पहुँचाना: जननाट्य मंच ने अपने प्रदर्शनों को गाँवों और छोटे शहरों में भी पहुँचाया, जिससे रुरल इंडिया के लोगों को नाटक और साहित्य के माध्यम से समस्याओं के प्रति जागरूक किया जा सके।
  5. सामाजिक परिवर्तन के लिए सहयोग: जननाट्य मंच ने सामाजिक परिवर्तन के लिए सार्थक कार्य किया है और अपने रंगमंच प्रदर्शनों के माध्यम से लोगों को उत्तेजना और सकारात्मक क्रियाएं लेने के लिए प्रेरित किया है।

इस रूप में, जननाट्य मंच ने जनोन्मुखी रंगमंच को आंदोलन का एक माध्यम बनाया है, जिससे समाज में सकारात्मक परिवर्तन और सामाजिक न्याय की दिशा में कार्य किया जा सकता है।

Q: 8 1970 के बाद के भारतीय सिनेमा के नायक की क्या विशेषताएं हैं ?

1970 के बाद के भारतीय सिनेमा के नायकों में कई नई और विशेषताएं आईं हैं, जो समाज के बदलते संदर्भों को ध्यान में रखती हैं।

  1. विचारशीलता और आत्मनिर्भरता: इन नायकों में विचारशीलता और आत्मनिर्भरता की भावना बढ़ी। वे अपने आत्मविश्वास, सोच, और कौशल के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं।
  2. कार्यक्षेत्र में विभिन्नता: नए नायक अब विभिन्न कार्यक्षेत्रों से आते हैं, जैसे कि थिएटर, टेलीविजन, और नृत्य, और उनमें से कई ने बॉलीवुड की दुनिया में अपनी पहचान बनाई है।
  3. किरदारों की मानवीयता: इन नायकों के अभिनय में मानवीयता, उदारता, और सजीवता का अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। उनके किरदार सामाजिक मुद्दों और मानवीय दृष्टिकोण से समृद्धि और सहजता को प्रतिष्ठित करते हैं।
  4. रियलिस्टिक प्रस्तुतिकरण: इन नायकों के अभिनय में अब अधिक रियलिस्टिकता दिखाई जाती है। वे किरदारों को मानव स्वभाव और जीवन की असमयता के साथ प्रस्तुत करने के लिए प्रयत्नशील हैं।
  5. महिलाओं के साथ समर्थन: नए नायक अब महिलाओं के साथ साझा कार्य करने के लिए तैयार हैं और उन्हें समर्थन प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं।
  6. सामाजिक समस्याओं पर ध्यान: नायक अब सामाजिक समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जैसे कि जातिवाद, लिंग भेद, और अन्य समस्याएं, और इसके माध्यम से लोगों को जागरूक करने का प्रयास करते हैं।
  7. नायकों का फिजिकल आउटलुक: नए नायकों का फिजिकल आउटलुक भी बदला है, जिसमें स्वस्थ, अच्छे दिखने वाले, और विभिन्न शैलियों के साथ रंगमंच पर उतरने की तैयारी होती है।

इन विशेषताओं के साथ, नए नायक भारतीय सिनेमा में एक नया और विविध संस्कृति ला रहे हैं, जो समृद्धि और विकास की दिशा में है।

Q:9 भारतीय लोकप्रिय सिनेमा में नारी की छवि की मुख्य पहचान क्या क्या है?

  1. पारंपरिक परंपरा की छवि: प्रारंभिक दशकों में, भारतीय सिनेमा में नारी की छवि को पारंपरिक भूमिकाओं में देखा गया, जिसमें वह गृहिणी, पत्नी, और माँ की भूमिका में प्रस्तुत होती थीं। उन्हें सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं के साथ जोड़ा जाता था।
  2. मोडर्न और आत्मनिर्भर छवि: दिनों के साथ, सिनेमा ने नारी की छवि को अधिक मोडर्न और आत्मनिर्भर दृष्टिकोण से देखने लगा है। आधुनिक नायिकाएं अपने कैरियर, आत्मसमर्पण, और स्वतंत्रता के माध्यम से स्वतंत्रता और स्वाधीनता की छवि को प्रस्तुत कर रहीं हैं।
  3. विभिन्न आयुवर्ग की प्रतिस्थापना: हाल के समय में, सिनेमा में विभिन्न आयु समृद्धि की महिलाओं की प्रतिस्थापना देखने को मिल रही है। युवा और उम्रदराज की अभिनेत्रियों ने अपने किरदारों में समझदारी और साहस की छवि बनाई है।
  4. सामाजिक समस्याओं का सामना करना: कुछ सिनेमा ने महिलाओं को उनकी जीवन में उभरी समस्याओं का सामना करने के किरदारों में प्रस्तुत किया है, जैसे कि बलात्कार, उत्पीड़न, और अन्य सामाजिक अन्यायों के साथ। इससे नारी को समाज में एक मजबूत स्थान मिलता है और इन मुद्दों पर चर्चा होती है।
  5. लव और रोमांस के अलावा भी: प्रारंभिक सिनेमा में नायिकाएं अक्सर केवल लव और रोमांस के लिए ही प्रस्तुत की जाती थीं, लेकिन आधुनिक सिनेमा में वे अपने किरदारों के माध्यम से विभिन्न भूमिकाओं में प्रस्तुत हो रही हैं, जैसे कि कामकाजी, नेतृत्व, और अन्य।

इन परिवर्तनों के साथ, भारतीय सिनेमा में नारी की छवि में समृद्धि और विविधता की दिशा में बदलती रही है, जिससे उन्हें समाज में अधिक सकारात्मक और प्रेरणादायक प्रतिष्ठा मिल रही है

Q:-10 भारतीय सिनेमा में विकसित संगीत ने किन स्रोतों से प्रभाव ग्रहण किया?

  1. क्लासिकल संगीत: भारतीय सिनेमा में क्लासिकल संगीत का बहुत बड़ा हिस्सा है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और कर्णाटक संगीत से प्रेरित, और इससे प्रभावित संगीत भारतीय सिनेमा में सुना जाता है। फिल्मों में राग-ताल, शास्त्रीय संगीत के तात्कालिक शैली, और क्लासिकल आलाप-तान का उपयोग होता है।
  2. लोक संगीत और फोल्क संगीत: भारतीय लोक संगीत और फोल्क संगीत ने भी सिनेमा में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। गाँवों और क्षेत्रों के संगीत और नृत्य विधाओं से प्रेरित संगीत सुनने को मिलता है।
  3. भक्ति संगीत: धार्मिक और भक्ति संगीत भी भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। राग-भक्ति संगीत, भजन, और कीर्तन आधारित संगीत फिल्मों में समाहित होता है।
  4. जाज़, ब्लूज़, और विदेशी संगीत: विदेशी संगीत से प्रेरित संगीत भी भारतीय सिनेमा में सुना जाता है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगीत शैलियों का प्रभाव है, जैसे कि जाज़, ब्लूज़, रॉक, पॉप, और डांस म्यूजिक।
  5. फिल्मी संगीत: सिनेमा के अनुसार, फिल्मी संगीत भी एक अलग और विशिष्ट शैली बनाता है। भारतीय सिनेमा की खासियत में से एक है उसकी मेलोडीज़, जो बहुत ही भावनात्मक और आकर्षक होती हैं।

इन स्रोतों से प्रेरित होकर, भारतीय सिनेमा ने विविध और आदर्शवादी संगीत स्थापित किया है, जिसने सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय भावनाओं को सुने और आनुष्ठानिक किया है।

 

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Sana
Sana
4 months ago

very helpful question 😊

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