इस्लाम में रोजा क्यों रखा जाता है- रोजा रखना इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। यह ईश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और भक्ति का प्रतीक है। रोजा रखने से आत्म-संयम और अनुशासन विकसित होता है। यह हमें अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना सिखाता है।
इस्लाम में रोजा क्यों रखा जाता है?- रोजा हमें उन लोगों के प्रति कृतज्ञ बनाता है जो गरीब हैं और जिनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है। रोजा हमें क्षमा करने और दूसरों के प्रति दयालु होने के लिए प्रेरित करता है।
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रोज़ा रखने के तरीके
- सूर्योदय से पहले सहरी करना
- सूर्यास्त के बाद इफ्तार करना
- दिन भर भूख और प्यास से बचना
- झूठ बोलने, गाली देने, और बुरे विचारों से दूर रहना
- नमाज पढ़ना और कुरान का अवलोकन करना
- दान और परोपकार करना
इस्लाम में रोजा क्यों रखा जाता है?- रोज़ा रखना मुस्लिम धर्म के पांच स्तंभों में से एक है। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जो आत्म-संयम, अनुशासन, आभार, कृतज्ञता, सहानुभूति, और आध्यात्मिक शुद्धि को बढ़ावा देता है.
मुस्लिम धर्म में रोजा क्यों रखते हैं
इस्लाम में रोजा क्यों रखा जाता है- रमजान की शुरुआत हिजरी सन 2 में हुई थी। पैगंबर मोहम्मद साहब मक्का से मदीना हिजरत (प्रवास) कर मदीना पहुंचे थे। मदीना में रहते हुए उन्हें अल्लाह की तरफ से रमजान के महीने में रोजा रखने का हुक्म दिया गया।
हालांकि, रोजा रखने की परंपरा इस्लाम से पहले भी मौजूद थी। यहूदी, ईसाई और हिंदू धर्म में भी रोजा रखने का विधान है।
रमजान का महीना मुसलमानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस महीने में मुसलमान रोजा रखते हैं, नमाज पढ़ते हैं, कुरान का पाठ करते हैं और दान करते हैं। रमजान का महीना आत्म-संयम, कृतज्ञता, आध्यात्मिकता और दान का महीना है।
रमजान के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- रमजान का महीना चांद के दिखने पर शुरू होता है और चांद के दिखने पर ही खत्म होता है।
- रमजान का महीना हर साल 10-11 दिन पहले शुरू होता है, क्योंकि हिजरी कैलेंडर चंद्र कैलेंडर पर आधारित होता है।
- दुनिया भर में मुसलमान रमजान का महीना बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं।
पहले रमजान में 30 दिनों का उपवास रखा गया था, लेकिन बाद में 9वें महीने रमजान में 29 या 30 दिनों का उपवास रखने का हुक्म दिया गया।
रोजा कौन रख सकता है?
रोजा रखने के लिए व्यक्ति का बालिग होना जरूरी है। लड़कों के लिए 15 साल और लड़कियों के लिए 9 साल की उम्र बालिगता की मानी जाती है।
रोजा रखने के लिए व्यक्ति का होश में होना जरूरी है। यदि कोई व्यक्ति बेहोश है या मानसिक रूप से विक्षिप्त है, तो उसे रोजा नहीं रखना चाहिए।
रोजा रखने के लिए व्यक्ति में रोजा रखने की ताकत होनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति बीमार है या कमजोर है और रोजा रखने से उसकी जान को खतरा हो सकता है, तो उसे रोजा नहीं रखना चाहिए। रोजा रखने के लिए पुरुष या महिला होना जरूरी है।
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क्या हम बिना सहरी के रोजा कर सकते हैं?
बिना सहरी के रोजा रख सकते हैं। सहरी खाना सुन्नत है, लेकिन यह ज़रूरी नहीं है। यदि किसी की नीयत रोज़ा रखने की है और सहरी के वक़्त उसकी आंख न खुले, तो वह बिना सहरी खाये रोज़ा रख सकता है।
सहरी के फायदे
इस्लाम में रोजा क्यों रखा जाता है?- सहरी खाने से पूरे दिन ऊर्जा बनी रहती है। सहरी खाने से कमजोरी और थकान महसूस नहीं होती है। सहरी खाने से शरीर को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं।