Thursday, May 2, 2024
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क्या सद्गुरु एक वास्तविक गुरु हैं – Sadhguru a real guru in hindi

क्या सद्गुरु एक वास्तविक गुरु हैं-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको जग्गी वासुदेव ( सद्गुरु ) के बारे में बताने जा रहा हूँ सद्गुरु एक आध्यात्मिक या धार्मिक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गुरु का एक प्रामाणिक शैली का नाम हो सकता है। सामान्य रूप से, सद्गुरु का अर्थ एक गुरु को सूचित करता है जो अपने शिष्यों को आध्यात्मिक जीवन में मार्गदर्शन देने में सक्षम होता है और उन्हें आत्मा के महत्व का बोझ समझाता है।

जग्गी वासुदेव को कैसे हुआ था आध्यात्मिक अनुभव?

सद्गुरु के रूप में व्यक्ति के जीवन और उनके आध्यात्मिक अद्यतन में विशेष गुण और ज्ञान होता है। उनका मुख्य उद्देश्य अपने शिष्यों को आत्मा के अंदर की अद्वितीयता का अनुभव कराना होता है। वे अपने शिष्यों के मार्ग में आनेवाली समस्याओं और चुनौतियों को समझते हैं और उन्हें उनसे निकलने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।



इसके साथ ही, सद्गुरु का अर्थ आध्यात्मिक साधना में सहायक भी हो सकता है, और वे अपने शिष्यों को ध्यान, मेधा, और आध्यात्मिक साधना की विधियों का सिखाते हैं। सद्गुरु की भूम

जब हम अपने मौजूदा और आत्मा की गहराइयों को समझने की तलाश में होते हैं, तो यह सवाल प्राकृतिक है। आत्मा के और अपने आप के असली स्वरूप की खोज कभी-कभी समय के साथ हो सकती है और यह अचानक हो सकता है, जैसे कि आपने सही समय पर एक अद्वितीय अनुभव किया है। इस अनुभव में, आप अपने असली स्वरूप को अधिक साफ़ रूप से देख सकते हैं और आपके सवालों के जवाब आपको स्वयं ही प्राप्त होते हैं।

यह अनुभव आपके जीवन के किसी भी समय हो सकता है, और यह आपके आसपास के पर्यावरण में हो सकता है। यह आपकी आत्मा के साथ गहरी जुड़ने और समझने का समय होता है और इसमें कोई नियोजन नहीं होता। यह आत्मा के साथ एक अद्वितीय संवाद का समय हो सकता है, जिसमें आप अपने आत्मा के अनंत ज्ञान का अनुभव करते हैं।

इस प्रकार की अनुभूति आध्यात्मिक ग्रोथ और समझ का महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकती है और इसे एक शांत, ध्यानपूर्ण पर्यावरण में ढूंढ़ने की कोशिश की जा सकती है।

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क्या सद्गुरु एक वास्तविक गुरु हैं-सद्गुरु जग्गी वासुदेव का आत्म-साक्षात्कार अद्भुत और गहरा था, जो चट्टान पर बैठकर हुआ। चट्टान को वे चिंतन चट्टान के नाम से जानते हैं, जिसे उन्होंने अपने आत्म-अन्वेषण के माध्यम से प्राप्त किया। यह किसी के जीवन के महत्वपूर्ण क्षण होते हैं, जब उन्होंने अपने आत्मा के सवालों के उत्तर खोजने का साहस किया।

चिंतन चट्टान की जगह सद्गुरु जी के जीवन में अद्वितीय एक पल था, जब उन्होंने आत्मा के रहस्यों का पता लगाया। इस प्रकार के अनुभव आत्मा के महत्वपूर्ण अध्यात्मिक साधना के हिस्से हो सकते हैं और व्यक्ति के जीवन में अद्वितीय मानसिक और आत्मिक परिवर्तन का कारण बन सकते हैं।

उस अनुभव के बारे में क्या कहना है सद्गुरु का

मैसूर से करीब 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है चामुंडा हिल्स, जिन पर चामुंडेश्वरी देवी का मंदिर स्थित है, और इस हिल्स को इसी देवी के नाम से जाना जाता है। यहां से आप पूरे शहर के दृश्य को देख सकते हैं। इस पहाड़ पर एक परंपरा है, जिसका उल्लेख सद्गुरु अपनी पुस्तक ‘इनर इंजीनियरिंग: एक योगीज गाइड टू जॉय’ में किया है। वह कहते हैं कि मैसूर में, चामुंडा हिल्स का दर्शन जरूरी है, चाहे आपके पास कोई काम हो या नहीं। यह जगह प्यार के लिए भी सबसे अच्छी है, और जब किसी का दिल टूटता है, तो भी यहां आकर आराम मिलता है।

कहते हैं कि भारत भूमी कभी संत महात्माओं से खाली नहीं रहती,यह हमेशा संत-महात्माओं को जन्म देती रहती हैं। वे जन्म लेते हैं और सामान्य मनुष्यों को हीनता दीनता से ऊपर उठाकर अपने गौरवमय अस्तित्व का बोध कराते हैं। आज भारत जहां आधुनिकीकरण की होड़ में अंधा होकर दौड़ रहा है वहीं सद्गुरु जग्गी वासुदेवजी जैसे संतपुरुषों भी इस समाज में हैं जो अपने अंदर की गहराइयों में छुपी भगवत सत्ता की खोज कर रहे हैं और जनमानस में भी इसकी ज्योति जगा रहे हैं। कलियुग के इतने जोरदार प्रवाह में भी धारा के विपरीत तैरते हुए सबको पवित्रता का अनुभव करा रहे रहस्यदर्शी सद्गुरु का जन्म मैसूर में 3 सितंबर 1957 की रात 11 बजकर 54 मिनट पर एक संपन्न परिवार में हुआ था।

वृषभ लग्न की इनकी कुंडली में मन के कारक ग्रह चंद्रमा गूढ रहस्य के स्थान अष्टम भाव में बैठे हैं। विशेष बात यह है कि वह चंद्रमा नैसर्गिक धर्म राशि धनु राशि में बैठा है। यही वजह है कि सद्गुरु जग्गी वासुदेव धार्मिक जगत के गूढ़ रहस्यों की तलाश में रहते हैं। नकी कुंडली में चंद्रमा संपर्क स्थान यानी तृतीय भाव का स्वामी होकर अष्टम भाव की रहस्यमयता में लिप्त होकर वाणी स्थान यानी द्वितीय भाव को देख रहा है। जिसने इको मधुर वाणी से अध्यात्म के रहस्य को प्रकट करने की क्षमता दी है।


क्या महसूस किया था सद्गुरु ने?

सद्गुरु जग्गी वासुदेव बचपन से ही अत्यंत साहसी हैं। कुछ खाने पीने की सामग्री साथ में रखकर निर्जन जंगलों में घुमन्तु की तरह विचरण करते रहते जब-तक कि साथ में लिया खाना समाप्त नहीं होता। जहरीले सांपों के साथ रहना और उन्हीं के बीच रात को सो जाना, मैसूर की चामुंडा पहाड़ी से सड़क का रास्ता छोड़कर सीधी ढलान से उबड़-खाबड़ पहाडी होते हुए तेज गति से मोटरसाइकिल चलाते हुए नीचे उतरना, ऐसे कारनामे उनके लिए सांस लेने जैसे सहज रहे है। जंगलों पहाड़ों पर विचरण करने का स्वभाव रखने वाले सिंह राशि में दशानाथ शुक्र, राजसिक सूर्य और साहस के कारक मंगल के साथ इनकी कुंडली में बैठे हैं जिन्होंने इन्हें बचपन से ही आत्मनिर्भर ,जीवन के प्रति खुला दृष्टिकोण रखने वाले और निडर बनाया है।इंग्लिश लिटरेचर में उत्तीर्ण होने के बाद सद्गुरु ने आज उनकी छवि के विपरीत दिखने वाला पोल्ट्री फार्म का व्यवसाय शुरू किया। साथ में ईंट भट्ठा और पार्टनरशिप में ठेकेदारी का काम भी शुरू किया था। सब बढ़िया चल रहा था, उम्मीद से कहीं बढ़कर सब सही चल रहा था। सद्गुरु के शब्दों में “जैसे सूरज मेरी ही चारों ओर घूम रहा हो इतनी सफलता सहजता से उन्हें उन व्यवसायों में मिली। दशमांश कुंडली का लग्नेश चंद्रमा लाभ भाव में उच्च का होकर व्यापार के कारक बुध के साथ बैठा है और साझेदारी में व्यापार करने वाले सप्तम भाव के स्वामी शनि महाराज की सप्तम दृष्टि भी है। यह ग्रह संयोजन उनके व्यावसायिक उत्कर्ष और उसके स्वरूप की व्याख्या करता है।

जग्गी वासुदेवजी के जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा था और फिर एक दिन चामुंडा की पहाडी पर सब कुछ मैं ही हूं का बोध उनको हुआ। जैसे कि श्रीमद्भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं “येन सर्वमिदं ततम्।” इस सारे चराचर में मै ही व्याप्त हूं! अपनी सर्वव्यापकता का यह बोध जो पूरे 5 घंटे तक रहा सद्गुरु को 1982 के सितंबर की 23 तारीख को दोपहर को हुआ था। तब उनकी जन्म कुंडली में नवम भाव में स्थित मकर राशि का लग्न पूर्व क्षितिज पर उदित हुआ था। और प्रत्यंतर दशा थी अष्टमेश गुरु कि जो कि विशांश कुंडली के लग्नेश होकर पूर्व जन्म में की गई साधना स्थान यानी पंचम भाव में बैठकर अचानक साधना सिद्धि का मार्ग उनके लिए खोल दिया।

क्या सद्गुरु एक वास्तविक गुरु हैं-उस समय इनकी अंतर्दशा शनि की थी जो कि इनकी कुंडली में नवमांश के अष्टमेश हैं और दशा चंद्रमा की थी जो विशांश के अष्टमेश है और जन्म कुंडली के अष्टम भाव में बैठे हैं। अष्टम भाव गूढ रहस्य के साथ ही साथ मोक्ष त्रिकोणों में से एक मोक्ष त्रिकोण भाव भी है। साक्षात्कार के छह माह बाद अपनी व्यावसायिक गतिविधियां छोड़कर फिर सद्गुरु योगा क्लास लेने लग ‌ग‌ए।




इसी समय उनकी मुलाकात विजयकुमारी से हुई, फिर उसी से उनकी शादी 1984 में चंद्रमा की दशा में हुई। चंद्रमा इनकी कुंडली में नवमांश कुंडली में परिवार वृद्धि के स्थान यानी द्वितीय भाव का स्वामी है और लग्न कुंडली के द्वितीय भाव को देख भी रहा है। योग और ध्यान को सुचारू रूप से चलाने के लिए 1993 में सद्गुरु ने ईशा फाउंडेशन की स्थापना कि जो कि आज विशाल रूप ले चुका है। आश्रम की स्थापना 1993 में हुई जब उनकी मंगल की दशा चल रही थी। मंगल जन्मांग में निर्माण के स्थान चतुर्थ भाव में बैठे हैं और चतुर्थांश कुंडली के लग्नेश होकर सप्तम भाव में बैठकर लग्न को देख भी रहे हैं।

उस अहसास के बाद कैसे बदल गए जग्गी वासुदेव?

क्या सद्गुरु एक वास्तविक गुरु हैं-मंगल के बाद राहु की दशा सद्गुरू को मिली जिसने उनको अपने कार्य में प्रगति और ख्याति दी क्योंकि राहु जन्म कुंडली के छठे भाव में और चंद्र से एकादश भाव में बैठे हैं यह दोनों ही भाव राहु के लिए सर्वोत्कृष्ट भाव है। ऐसे में इनकी ख्याति और प्रसिद्धि बढ़ती गई। आज दुनिया भर में लोग सद्गुरु को जानते हैं। वह योग और ध्यान का प्रचार-प्रसार सारी दुनिया में कर रहे है। सद्गुरु आज भारत के अग्रगामी संत हैं। आने वाली शनि की दशा उनके आध्यात्मिक कार्यों को ज्यादा से ज्यादा सफलता देने वाली होगी पर उनको अपने स्वास्थ्य का ध्यान भी रखना होगा क्योंकि शनि महाराज त्रिशांश कुंडली के द्वादशेश होकर लग्न में बैठे हैं और नवमांश कुंडली में अष्टमेश होकर छठे भाव में बैठे हैं। जो इनकी सेहत के लिए ठीक नहीं है।

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