Friday, April 26, 2024
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सरबत खालसा क्या है,अमृतसर में सरबत खालसा की शुरुआत

नमस्कार दोस्तों आज में आपको बताने वाली हूँ की सरबत खालसा क्या है, जैसा की हालही में अमृतपाल सिंह ने सरबत खालसा की मांग की है क्या आप लोग जानते है इसके पीछे का क्या कारण है, अमृतपाल सिंह ने सरबत खालसा की मांग क्यों की ? 14 अप्रैल को बैसाखी पर सरबत खालसा बुलाने की अपील की है. अमृतपाल सिंह ने कहा, “अहमद शाह अब्दाली द्वारा सिखों का नरसंहार करने के बाद सरबत खालसा का आयोजन किया गया, जिसमें सभी शामिल हुए. एक भी सिख पीछे नहीं रहा. अगर हमें पंजाब को बचाना है, तो हमें सरबत खालसा में हिस्सा लेना होगा. तो ऐसे में आपको लिए भी यह जानना जरुरी है की क्या है आखिरकार सरबत खालसा क्या है



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सरबत खालसा क्या है,

सरबत खालसा एक सिख समुदाय का एक प्रतीक है जो भारत और अन्य देशों में पाया जाता है। सरबत खालसा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – “सरबत” जो सभी के लिए होता है और “खालसा” जो ईश्वर के भक्तों को संबोधित करता है। 



सिखों के धर्म में, सरबत खालसा एक उच्च स्तर का सामाजिक समूह है जो सभी लोगों को समान ढंग से देखता है और इसका मुख्य उद्देश्य समाज की सेवा करना होता है। सरबत खालसा अपने सदस्यों को समाज की सेवा करने के लिए प्रेरित करता है और सिख समुदाय में सद्भाव और एकता को बढ़ावा देता है।

सरबत खालसा आम तौर पर सिख गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा बनाई गई थी जो सिख समुदाय के भक्तों को सशक्त और समृद्ध बनाने के लिए बनाई गई थी।

सरबत खालसा की स्थापना

चलिए यह जान ,लिया की सरबत खालसा क्या है अब जानते है की सरबत खालसा की स्थापना कब और कैसे हुई – सरबत खालसा की स्थापना 1699 ईसा में गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा की गई थी। उन्होंने अपने गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद सिख समुदाय को एक मजबूत और एकजुट बनाने के लिए सरबत खालसा का गठन किया था।

सरबत खालसा एक समूह है जो सिख समुदाय के सभी सदस्यों को एक छत तले लाने का उद्देश्य रखता है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सरबत खालसा के लिए सभी सिखों को एक ही रूप में श्रीमान और सिंघ बनने का आह्वान किया था। उन्होंने सरबत खालसा की स्थापना करके सिख समुदाय को आतंकवाद, उत्पीड़न, और अन्य अत्याचारों से लड़ने के लिए एक मजबूत सेना का गठन किया था। 



इसके अलावा, सरबत खालसा का मुख्य उद्देश्य सिखों के लिए एक सामाजिक समुदाय बनाना भी था। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सरबत खालसा के अंतर्गत सभी सिखों को समान अधिकार देने का भी आह्वान किया था।

सरबत खालसा का इतिहास

सरबत खालसा का इतिहास की बात करे तो इसका इतिहास काफी ऐतिहासिक है  सरबत खालसा का इतिहास सिख धर्म के गुरुओं के जीवन से जुड़ा हुआ है। यह समूह गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा बनाया गया था जो सिख समुदाय को शक्तिशाली बनाने के लिए एक संघ की आवश्यकता महसूस करते हुए इसे बनाया था।



गुरु गोबिंद सिंह जी ने सरबत खालसा को खास रूप से उन सिखों के लिए बनाया था जो समाज की नींव होते हुए भी असमंजस में थे। सरबत खालसा एक समूह के रूप में उन्हें समाज के भीतर एक समान अधिकार देने के लिए बनाया गया था।

सरबत खालसा का एक महत्वपूर्ण अधिनियम यह था कि समूह के सदस्यों को बिना किसी भेदभाव के संगठित किया जाएगा। सिख समुदाय के अलावा, समूह के सदस्यों में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग भी थे।

सरबत खालसा की बुनियाद गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ईस्वी में अमृतसर में मनाई गई “खालसा पुरब” के समय पड़ी थी।



अमृतसर में सरबत खालसा की शुरुआत

सरबत खालसा अमृतसर, पंजाब के एक सिख समुदाय थे, जो 1699 ईस्वी में गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा स्थापित किया गया था। उन्होंने सिखों के बीच समानता और एकता को बढ़ावा देने के लिए इसे बनाया था। सरबत खालसा शब्द का अर्थ होता है ‘सारे सिख’ या ‘समस्त सिखों का समुदाय’।







यह समुदाय अमृतसर में खालसा फोर्ट के पास एक समूह के रूप में शुरू हुआ था। गुरु गोबिंद सिंह ने उन सभी सिखों को बुलाया जो उनके समुदाय में सदस्य थे और उन्हें अपने आप को उनके समुदाय के लिए विनम्रता से समर्पित करने के लिए कहा। उन्होंने सभी सिखों से एक बर्तन में मिठाई डालने को कहा और उसे ‘अमृत’ के रूप में जाना जाता है। इससे पहले गुरु जी ने सिखों के साथ खून का धर्म अनुसरण करने के लिए उन्हें खालसा बनने की भी योजना बताई थी।

इस अमृत के रस का सेवन करने से पहले गुरु गोबिंद सिंह ने सभी सिखों से एक समानता भाव और एकता का वचन लिया।

सरबत खालसा का संकट

सरबत खालसा एक सिख समुदाय है जो समाज में समानता, न्याय और सद्भाव के लिए लड़ता है। इस समुदाय का संकट अक्सर उस समय होता है जब उन्हें अपने आप को सुरक्षित नहीं समझा जाता है या जब उन्हें दूसरों द्वारा अनुचित तरीके से निशाना बनाया जाता है।

सरबत खालसा का सबसे बड़ा संकट 1984 में हुआ था, जब दलित सिख नेता जर्नैल सिंह भिंडरांवाले और उनके समर्थकों को दिल्ली में होने वाले एक संघर्ष के दौरान मार दिया गया था। इस हमले में बहुत से सिखों की जानें जान गईं और अमृतसर साहमने का मंदिर, जहां सरबत खालसा अपने संगठन कार्य करता था, उन्हें घेर लिया गया था। 







इसके अलावा, सरबत खालसा ने पंजाब में भी उग्र संघर्ष किया है, जिसमें उन्हें निशाना बनाने वाले बहुत से हमलों का सामना करना पड़ा है। इनमें से कुछ हमले हिंदू और सिख धर्म के बीच हुए आपसी विवादों के कारण हुए थे।

सरबत खालसा और गुरमाता

सरबत खालसा और गुरमाता दोनों सिख समुदायों के महत्वपूर्ण संगठन हैं। सरबत खालसा एक संघर्ष समूह है, जो सिख समुदाय की आवाज को उठाता है और समाज में समानता, न्याय और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। वे सिख समुदाय के लिए बहुत सारे कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जैसे कि समुदाय के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास से संबंधित कार्यक्रम।

दूसरी ओर, गुरमाता एक सिख धर्म से जुड़ी संस्था है, जो सिख धर्म में महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ती है। यह संस्था सिख महिलाओं को अधिकारों, स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य मुद्दों से संबंधित जागरूक करती है। गुरमाता का मुख्य उद्देश्य सिख महिलाओं के दायित्वों और सम्मान को प्रतिबद्धता से संरक्षित रखना है। 







यद्यपि सरबत खालसा और गुरमाता दोनों सिख समुदायों में सक्रिय हैं, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य और कार्यक्षेत्र अलग-अलग है। सरबत खालसा लड़ाई के समूह के रूप मानते है

अमृतपाल सिंह ने सरबत खालसा की मांग क्यों की ?

सरबत खालसा सिखों की सभा कहा जाता है. इसमें सिख समुदाय से जुड़े कई मुद्दों पर विचार विमर्श किया करते हैं.और इसकी शुरुआत सोलहवीं शताब्दी में ही हुई थी. सालों तक साल में दो बार सिख समुदाय सरबत खालसा में शामिल होते रहे हैं. और उस कुछ समय पहले हालांकि 19वीं सदी में महाराजा रणजीत सिंह ने इस परंपरा को खत्म कर दिया था.

करीब दो सौ साल बाद सन् 1986 में स्वर्ण मंदिर में सरबस खालसा फिर से बुलाया गया. यह उस समय की बात थी जब पंजाब में खालिस्तान की मांग हो थी और चारों तरफ अशांति फैली हुई थी. इसी दौरान सिखों के शासन की मांग की गई. इस सभा में दूसरे देशों के सिख भी वहाँ पहुंच चुके है।
और ऐसा समझा और कहा जा रहा है कि साल 1986 में स्वर्ण मंदिर में सरबस

खालसा जिस मकसद से बुलाया गया था, अमृतपाल सिंह वही मकसद से एक बार फिर से पंजाब में वही कहल मचाना है








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