Sunday, April 28, 2024
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वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा एवम पूजा विधि 2023

वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा एवम पूजा विधि 2023- “वैकुण्ठ चतुर्दशी” एक हिन्दू त्योहार है जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार भारत में मुख्य रूप से विष्णु भगवान की पूजा और भक्ति का पर्व है। इस दिन भगवान विष्णु के अवतार परम पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के वैकुण्ठ लोक में प्रवेश की खुशी में उनकी पूजा की जाती है। वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन विष्णु मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उपस्थित रहती है। लोग विष्णु भगवान के चरणों में जल चढ़ाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। इसके अलावा, भगवान की कथाएँ सुनी जाती हैं, भजन-कीर्तन किए जाते हैं और भक्तों में उनकी भक्ति की भावना को जीवंत किया जाता है। वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व वैदिक पुराणों में वर्णित है और इसे विशेष आदर और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार नवम्बर या दिसंबर महीने में पड़ता है। यह त्योहार हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के महत्वपूर्ण अवतार श्रीकृष्ण की विशेष उपासना और भक्ति का एक माध्यम है। Vaikuntha Chaturdashi Vrat

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वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा

वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा एवम पूजा विधि 2023  “वैकुण्ठ चतुर्दशी” की कथा महाभारत के “पद्म पुराण” में वर्णित है। यह कथा भगवान श्रीकृष्ण और भक्त एकलव्य के बीच की गहरी भक्ति की कहानी है। कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण वर्षा ऋतु के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को द्वारका नगरी में वैकुण्ठ द्वार पर स्थित रहते थे। इस दिन वे अपने पूरे अवतारी रूप में प्रकट होते हैं और विष्णु भक्तों का स्वागत करते हैं। इसी दिन, एकलव्य नामक युवक द्वारका नगरी में आया। वह श्रीकृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और श्रद्धा भाव से भरा हुआ था। वह अपनी भक्ति के चलते उनकी मूर्ति के सामने पहुँच गया और अपने निष्ठा और श्रद्धा की प्रतीक्षा में थमा रह गया।  श्रीकृष्ण ने एकलव्य के दिल में उसकी सच्ची भक्ति को महसूस किया और उन्होंने अपनी मूर्ति के सामने प्रकट होकर एकलव्य को दर्शन दिलाया। एकलव्य बहुत खुश हुआ और उनकी पूजा की। फिर उनके दिल में विशेष आकांक्षा उत्पन्न हुई कि वह श्रीकृष्ण के चरणों को अपने गुरु की मान्यता देकर अर्पित करे।

एकलव्य ने अपने गुरु की मान्यता देने के लिए अपने दायें थूथन को काट दिया और उसे श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया। इसके साथ ही, वह अपनी आदर्श प्रतिनिधि गुरु की भावनाओं के प्रति उपहार की भावना से उनकी मूर्ति की दिशा में एक गीली मिट्टी की छाया भी बना दी। श्रीकृष्ण ने एकलव्य के प्रति इस उपहार के समर्थन में उनकी प्रतिभा को मान्यता दी और उन्हें अपने परम भक्त के रूप में स्वीकार किया। इसके परिणामस्वरूप, एकलव्य का उपहार भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के साथ बन गया और उनकी भक्ति ने उन्हें विशेष आनंद प्रदान किया।

कब मनाई जाती हैं वैकुण्ड चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi Vrat Date)

वैकुण्ठ चतुर्दशी” का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। कार्तिक मास हिन्दू पंचांग के अनुसार अक्टूबर या नवम्बर महीने में पड़ता है, इसलिए वैकुण्ठ चतुर्दशी भी उसी समय पर मनाई जाती है। तिथि वर्षानुसार बदल सकती है, इसलिए आपको वर्तमान वर्ष के हिन्दू पंचांग की जांच करके सटीक तिथि की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।

वैकुण्ठ चतुर्दशी में कब है 2023

चतुर्दशी तिथि शुरू 25 नवम्बर को 17:22 बजे से
चतुर्दशी तिथि ख़त्म 26 नवम्बर को 15:53 बजे तक

कैसे मनाई जाती हैं वैकुण्ठ चतुर्दश – (Vaikuntha Chaturdashi Vrat Celebration

इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा और आराधना की जाती है। विष्णु भगवान के मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ जुटती है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कुछ लोग वैकुण्ठ चतुर्दशी को उपवास रखते हैं और भगवान की पूजा के बाद उपवासी आहार परिग्रहण करते हैं।

  • इस दिन भगवान विष्णु की महिमा की गाथाएँ और भजन-कीर्तन किए जाते हैं। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी इस दिन की आदर्श परंपरा में है।
  • इस दिन भक्तों में भगवान की कथाएँ सुनाई जाती हैं और सत्संग का आयोजन किया जाता है, जिसमें धार्मिक विचार-विमर्श किया जाता है।
  • इस दिन दान करने और दया बढ़ाने का भी महत्व होता है। कुछ जगहों पर धर्मिक परिक्रमा का आयोजन किया जाता है, जिसमें मंदिरों की परिक्रमा की जाती है और धार्मिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। Vaikuntha Chaturdashi In Hindi

महाराष्ट्र में वैकुण्ठ चतुर्दशी – Vaikuntha Chaturdashi Vrat In Maharastra

महाराष्ट्र में “वैकुण्ठ चतुर्दशी” को “तुलशी विवाह” नाम से भी जाना जाता है और यह त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की वैकुण्ठ द्वार में प्रवेश की खुशी में उनकी पूजा और भक्ति की जाती है।तुलशी विवाह का त्योहार उद्यापन के साथ शुरू होता है, जिसमें भगवान विष्णु की मूर्ति को तुलसी के पौधे के साथ विवाहित किया जाता है। तुलसी को भगवान की पत्नी माना जाता है और उसकी पूजा विशेष आदर से की जाती है। तुलसी विवाह के दिन, लोग अपने घरों में तुलसी के पौधे की सजाकर उनकी पूजा और आराधना करते हैं। पूजा में तुलसी की पत्रिका, सुपारी, दूर्वा, नारियल, चावल, पंचामृत, धूप, दीप आदि का उपयोग किया जाता है। भगवान की मूर्ति के साथ तुलसी के पौधे की पूजा करते समय तुलसी की कथा भी सुनाई जाती है।

तुलसी विवाह के त्योहार के दौरान महाराष्ट्र में लोग विभिन्न प्रकार के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जिनमें भजन-कीर्तन, कथाएँ, भक्तिगीत आदि शामिल होते हैं। यह त्योहार महाराष्ट्र में विशेष आदर और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है और लोग इस दिन भगवान की पूजा-अर्चना करके उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।

वैकुंठ चतुर्दशी पूजा कैसे करें?

  • पूजा पूर्व दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए।
  • शिव और विष्णु की पूजा करें. देवताओं को समर्पित सरल मंत्रों का जाप करें।
  • गाय का घी और केसर मिलाकर उससे दीपक जलाएं।
  • इस्तेमाल की जाने वाली अगरबत्ती चंदन की होनी चाहिए।
  • भगवान को केसर अर्पित करना चाहिए।
  • चढ़ाया हुआ फूल कमल का होना चाहिए।
  • प्रसाद या भोग मक्के से बनाना चाहिए. मुख्य रूप से मक्के के आटे की खीर का भोग लगाया जाता है.
  • जल, सुगंधित जल (अत्तर), चीनी और दही से अभिषेक करना चाहिए।
  • इस दिन जिस मंत्र का जाप किया जाता है वह है: ॐ ह्रीं ॐ हरिणाक्षाय नमः शिवाय॥
  • पूजा करने का आदर्श समय निशिता काल है – आधी रात जब चतुर्दशी तिथि मौजूद होती है।

FAQ

Q : वैकुण्ठ चतुर्दशी कब होती है ?

कार्तिक चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी होती है.

Q : वैकुण्ठ चतुर्दशी 2023 में कब है ?

25 नवंबर

Q : वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन क्या करना चाहिए ?

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