Friday, May 3, 2024
Homeजानकारियाँकैसे करे आप भी रमा एकादशी का व्रत कथा 2023 How to...

कैसे करे आप भी रमा एकादशी का व्रत कथा 2023 How to do Rama Ekadashi fast Katha in hindi

रमा एकादशी का व्रत कथा-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको रमा एकादशी के बारे में बताने जा रहा हु हिन्दू धर्म के उपवास में एकादशी का महत्व अधिक हैं. सभी एकादशी का विधान स्वयम श्री कृष्ण ने पांडू पुत्रो से कहा हैं. एकादशी मनुष्य को कर्मो से मुक्ति देती हैं. प्रति वर्ष 24 एकादशी आती हैं जिस वर्ष अधिक मास होता हैं उस वर्ष 26 एकादशी होती हैं. सभी एकादशी का महत्व,पौराणिक कथा एवम सार हैं.

रमा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और यह व्रत उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस व्रत का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत ऊँचा माना जाता है, और यह साल में दो बार मनाया जाता है – चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) के कृष्ण पक्ष की एकादशी और कार्तिक मास (अक्टूबर-नवम्बर) की एकादशी।

यहां रमा एकादशी का व्रत कथा है:

कथा:

रमा एकादशी का व्रत कथा-कहानी का प्रारंभ होता है अतीत में एक गांव में एक ब्राह्मण ब्राह्मण नामक नामक ब्राह्मण रहता था, जिसका नाम धनपति था। धनपति ब्राह्मण अत्यंत भक्तिभाव से भगवान विष्णु की पूजा करते थे, लेकिन उनका पुत्र नामक अत्यधिक लापरवाह और भोजनमें बहुत अत्यधिक लोभी था।

एक बार, धनपति ब्राह्मण ने अपने पुत्र को भगवान की पूजा करने के लिए अपने साथ नहीं ले जाने की अनुमति दी। पुत्र ने इस पर उसकी बुराई कर दी और उसने अपने पिता को घर से बाहर निकाल दिया।

Rama Ekadashi Vrat 2019 Name of This Ekadashi Is on Goddess Lakshmi | रमा  एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मीजी भी होती है प्रसन्न -  Dainik Bhaskar

दुखी होकर धनपति ब्राह्मण ने अपने दोस्त के घर जाकर आश्रय लिया, जिन्होंने उसे रमा एकादशी का महत्व बताया। धनपति ब्राह्मण ने आश्रय ग्रहण करने के बाद उसी दिन व्रत रखने का निर्णय लिया।

रमा एकादशी के दिन, धनपति ब्राह्मण ने उपवास करते समय भगवान विष्णु की पूजा की और उनके चरणों में अपनी पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ अर्चना की। व्रत के बाद, वह भगवान का ध्यान करते हुए रात को सो गए।

अगले दिन, धनपति ब्राह्मण अपने पुत्र को अपने साथ घर ले गए और उन्होंने अपने पुत्र को उनकी अनगिनत गुणों और भगवान के आशीर्वादों के बारे में बताया। पुत्र ने अपने दोषों के लिए क्षमा मांगी और उन्होंने भी व्रत का पालन करने का निर्णय लिया।

इस प्रकार, रमा एकादशी के व्रत के माध्यम से धनपति ब्राह्मण ने अपने पुत्र को सही मार्ग पर लाने में सफलता पाई और उन्होंने भगवान के आशीर्वाद को प्राप्त किया।

रमा एकादशी का व्रत कथा-रमा एकादशी के दिन, भक्ति और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए व्रत करन

रमा एकादशी कब मनाई जाती हैं

उत्तरी भारत के कैलेंडर के अनुसार रमा एकादशी कार्तिक माह में आती है, जबकि तमिल कैलेंडर में ये पुरातास्सी महीने में आती है. आंध्रप्रदेश, कर्नाटका, गुजरात एवं महाराष्ट्र में रमा एकादशी अश्वायूज महीने में आती है. देश के कुछ हिस्सों में ये आश्विन महीने में भी मनाई जाती है. रमा एकादशी दिवाली के त्यौहार के चार दिन पहले आती है. रमा एकादशी को रम्भा एकादशी या कार्तिक कृष्ण एकादशी भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि रमा एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के पाप धुल जाते है.

यह कार्तिक माह की एकादशी है, जिसका महत्व अधिक माना जाता हैं. यह एकादशी कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी हैं. वर्ष 2023 में यह 8 नवंबर को मनाई जाएगी. कार्तिक माह का महत्व होता है, इसलिए इस ग्यारस का महत्व भी अधिक माना जाता हैं.

एकादशी तिथि शुरू 8 नवंबर
एकादशी तिथि ख़त्म 9 नवंबर

 

रमा एकादशी उपवास पूजा विधि

रमा एकादशी के दिन उपवास रखना मुख्य होता है. इसका उपवास एकादशी के एक पहले दशमी से शुरू हो जाता है. दशमी के दिन श्रद्धालु सूर्योदय के पहले सात्विक खाना ही खाते है.

एकादशी के दिन कुछ भी नहीं खाया जाता है.

रमा एकादशी का व्रत कथा-उपवास के तोड़ने की विधि को पराना कहते है, जो द्वादशी के दिन होती है.

जो लोग उपवास नहीं रखते है, वे लोग भी एकादशी के दिन चावल और उससे बने पदार्थ का सेवन नहीं करते है.

एकादशी के दिन जल्दी उठकर स्नान करते है. इस दिन श्रद्धालु विष्णु भगवान की पूजा आराधना करते है. फल, फूल, धूप, अगरवत्ती से विष्णु जी की पूजा करते है. स्पेशल भोग भगवान को चढ़ाया जाता है.

इस दिन विष्णु जी को मुख्य रूप से तुलसी पत्ती चढ़ाई जाती है, तुलसी का विशेष महत्त्व होता है, इससे सारे पाप माफ़ होते है.

विष्णु जी की आरती के बाद सबको प्रसाद वितरित करते है.

रमा, देवी लक्ष्मी का दूसरा नाम है. इसलिए इस एकादशी में भगवान् विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की भी पूजा आराधना की जाती है. इससे जीवन में सुख समृद्धि, स्वास्थ्य और खुशीयां आती है.

एकादशी के दिन लोग घर में सुंदर कांड, भजन कीर्तन करवाते है. इस दिन भगवत गीता को पढना को अच्छा मानते है.

रमा एकादशी व्रत कथा

रमा एकादशी का व्रत कथा-इसका विस्तार युधिष्ठिर के आग्रह पर श्री कृष्ण ने किया. कृष्ण ने कहा यह पापो से मुक्त करती हैं इसकी कथा सुने

पौराणिक युग में मुचुकुंद नामक प्रतापी राजा थे, इनकी एक सुंदर कन्या थी, जिसका नाम चन्द्रभागा था. इनका विवाह राजा चन्द्रसेन के बेटे शोभन के साथ किया गया. शोभन शारीरिक रूप से अत्यंत दुर्बल था. वह एक समय भी बिना अन्न के नहीं रह सकता था.

रमा एकादशी का व्रत कथा-एक बार दोनों मुचुकुंद राजा के राज्य में गये. उसी दौरान रमा एकादशी व्रत की तिथी थी. चन्द्रभागा को यह सुन चिंता हो गई, क्यूंकि उसके पिता के राज्य में एकादशी के दिन पशु भी अन्न, घास आदि नही खा सकते, तो मनुष्य की तो बात ही अलग हैं. उसने यह बात अपने पति शोभन से कही और कहा अगर आपको कुछ खाना हैं, तो इस राज्य से दूर किसी अन्य राज्य में जाकर भोजन ग्रहण करना होगा. पूरी बात सुनकर शोभन ने निर्णय लिया कि वह रमा एकादशी का व्रत करेंगे, इसके बाद ईश्वर पर छोड़ देंगे.

एकादशी का व्रत प्रारम्भ हुआ. शोभन का व्रत बहुत कठिनाई से बीत रहा था, व्रत होते होते रात बीत ग,ई लेकिन अगले सूर्योदय तक शोभन के प्राण नही बचे. विधि विधान के साथ उनकी अंतेष्टि की गई और उनके बाद उनकी पत्नी चन्द्रभागा अपने पिता के घर ही रहने लगी.उसने अपना पूरा मन पूजा पाठ में लगाया और विधि के साथ एकादशी का व्रत किया.

दूसरी तरफ शोभन को एकादशी व्रत करने का पूण्य मिलता हैं और वो मरने के बाद एक बहुत भव्य देवपुर का राजा बनता हैं, जिसमे असीमित धन और एश्वर्य हैं. एक दिन सोम शर्मा नामक ब्रह्माण्ड उस देवपुर के पास से गुजरता हैं और शोभन को देख पहचान लेता हैं और उससे पूछता हैं कि कैसे यह सब एश्वर्य प्राप्त हुआ. तब शोभन उसे बताता हैं कि यह सब रमा एकादशी का प्रताप हैं, लेकिन यह सब अस्थिर हैं कृपा कर मुझे इसे स्थिर करने का उपाय बताये. शोभन की पूरी बात सुन सोम शर्मा उससे विदा लेकर शोभन की पत्नी से मिलने जाते हैं और शोभन के देवपुर का सत्य बताते हैं. चन्द्रभागा यह सुन बहुत खुश होती हैं और सोम शर्मा से कहती हैं कि आप मुझे अपने पति से मिलादो. इससे आपको भी पुण्य मिलेगा. तब सोम शर्मा उसे बताते हैं कि यह सब एश्वर्य अस्थिर हैं. तब चन्द्रभागा कहती हैं कि वो अपने पुण्यो से इस सब को स्थिर कर देगी.

सोम शर्मा अपने मन्त्रो एवम ज्ञान के द्वारा चन्द्रभागा को दिव्य बनाते हैं और शोभन के पास भेजते हैं. शोभन पत्नी को देख बहुत खुश होता हैं. तब चन्द्रभागा उससे कहती हैं मैंने पिछले आठ वर्षो से नियमित ग्यारस का व्रत किया हैं. मेरे उन सब जीवन भर के पुण्यो का फल मैं आपको अर्पित करती हूँ. उसके ऐसा करते ही देव नगरी का एश्वर्य स्थिर हो जाता हैं.और सभी आनंद से रहने लगते हैं.

रमा एकादशी का व्रत कथा-इस प्रकार रमा एकादशी का महत्व पुराणों में बताया गया हैं. इसके पालन से जीवन की दुर्बलता कम होती हैं, जीवन पापमुक्त होता हैं.

Also Read:- 

RELATED ARTICLES
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Most Popular