बलिप्रतिप्रदा कौन थे –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित मोहित है आज में आपको बलिप्रतिप्रदा के बारे में बताने जा रहा हु।बलिप्रतिप्रदा या बलिपद्यामी का त्यौहार दीवाली के दुसरे दिन, गोवर्धन के साथ मनाया जाता है. यह त्यौहार मुख्य रूप से महाराष्ट्र, उत्तरभारत और कर्नाटका में मनाया जाता है.
गोवर्धन पूजा में गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है, जबकि बलिप्रतिप्रदा में राक्षसों के राजा बलि की पूजा करते है. बलि प्रतिप्रदा की पूजा महाराज बलि के प्रथ्वी में आगमन की ख़ुशी में होती है. दक्षिण भारत में राजा बलि की पूजा ओणम के समय होती है, जबकि भारत के अन्य हिस्सों में ये बलि प्रतिप्रदा के रूप मनाते है ओणम और बलि प्रतिप्रदा की पूजा एक जैसे ही होती है
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कब मनाया जाता है बलि प्रतिप्रदा
बलि प्रतिप्रदा का त्यौहार अक्टूबर, नवम्बर के समय आता है. हिन्दू कैलेंडर के कार्तिक माह के पहले दिन, जो प्रतिप्रदा का भी पहला दिन होता है, उस दिन बलि प्रतिप्रदा का त्यौहार मनाते है. इसे आकाशदीप भी कहते है. पश्चिमी भारत में, यह त्यौहार विक्रम संवत् कैलेंडर के पहले दिन मनाया जाता है. गुजरात में यह नए साल के रूप में मनाया जाता है, साथ ही इस दिन से नए विक्रम संवंत साल की शुरुवात होती है.
बलि प्रतिप्रदा पूजा तारीख | 14 नवंबर 2023 |
बलि प्रतिप्रदा पूजा प्रातःकाल मुहूर्त | 06:43 से 08:52 तक (2 घंटे 9 min) |
बलि प्रतिप्रदा मनाने का तरीका, पूजा विधि
बलि प्रतिप्रदा के मनाने का तरीका हर प्रदेश का अलग होता है. आमतौर पर इस त्यौहार के दिन हिन्दू लोग एक दुसरे के घर जाते है, उपहार का आदान प्रदान करते है, कहते है ऐसा करने से राजा बलि और भगवान खुश होते है
इस दिन सबसे पहले जल्दी उठकर परिवार के सभी सदस्य तेल लगाकर स्नान करते है, इसे तेल स्नान कहते है. कहते है ऐसा करने से शरीर की बाहरी अशुद्धि के अलावा मन की भी सफाई होती है. इसके बाद नए कपड़े पहने जाते है, जो अनिवार्य होता है.
क्या है बलिप्रतिप्रदा कथा महत्व-घर की महिलाएं, लड़कियां मिलकर घर के आँगन और मुख्य द्वार में रंगोली डालती है. इस रंगोली को चावल के आटे से बनाया जाता है.
इसके बाद राजा बलि और उनकी पत्नी विन्ध्यावली की पूजा की जाती है. प्रतीकात्मक रूप से इस दिन मिट्टी या गोबर से सात किले रूप की आकृति बनाई जाती है.
शाम के समय घरों को बहुत सारे दिये लाइट से सजाया जाता है. मंदिरों में भी विशेष आयोजन होता है, दिये से सुंदर सजावट की जाती है.
इस दिन लोग राजा बलि को याद करते है, और भगवान् से प्राथना करते है कि प्रथ्वी पर जल्द से जल्द राजा बलि का राज्य आये.
बलिप्रतिप्रदा कौन थे –उत्तरी भारत में इस दिन एक अलग ही प्रथा चलती है. इस दिन वहां जुएँ का खेल होता है, जिसे पचिकालू कहते है. इससे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. कहते है इस दिन भगवान् शिव और माता पार्वती यह खेल खेलते है, जिसमें माता पार्वती जीत जाती है. इसके बाद शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिके अपनी माता पार्वती के साथ इस खेल को खेलते है, जिसमें वे माता पार्वती को हरा देते है. इसके बाद माता पार्वती के पुत्र गणेश, अपने भाई के साथ यह खेल खेलते है. गणेश जी पासों का यह खेल अपने भाई कार्तिके से जीत जाते है. समय के साथ अब बदलाव आ चूका है, अब लोग बलि प्रतिप्रदा के दिन ताश का खेल पुरे परिवार के साथ खेलते है.
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महाराष्ट्र में इस दिन को पड़वा भी कहते है, वहां पर भी राजा बलि की पूजा करते है. इस दिन पति अपनी पत्नियों को गिफ्ट्स देते है.
तमिलनाडु और कर्नाटक में कृषक समुदाय इस त्यौहार को मनाते है. इस दिन वहां और लोग केदारगौरी व्रतं, गौ पूजा, गौरम्मा पूजा करते है. वहां पर इस दिन गौ माता की पूजा करने से पहले गौशाला को अच्छे से साफ किया जाता है.
इस दिन वहां गोबर से राजा बलि की प्रतिमा बनाते है. इसके लिए सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर कोलम या रंगोली बनाई जाती है. इसके बाद उसके उपर गोबर से त्रिभुज आकर की आकृति बनाते है, जो बलि की प्रतिमा होती है. इसके बाद इसे गेंदे के फूल से सजाते है और फिर इनकी पूजा की जाती है.
बलि प्रतिप्रदा से जुड़ी कथा
बलिप्रतिप्रदा कौन थे –हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार बलि नाम का एक दैत्य राजा हुआ करता है, उसकी बहादुरी के चर्चे समस्त प्रथ्वी में थे. ये दैत्य राजा भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था. ये दैत्य होते हुए भी, बहुत उदार और दयालु था. इस राजा के राज्य की समस्त प्रजा अपने राजा से बहुत खुश थी. राजा धर्म और न्याय के लिए हमेशा खड़े रहता था. बलि अजेय माना जाता था, वो कहता था उसे कोई नहीं हरा सकता. भगवान् का उपासक होने के बावजूद उसकी ये बात में अभिमान और गुमान झलकता था. इस राजा का ये स्वभाव विष्णु के सच्चे भक्तों को पसंद नहीं था, मुख्य रूप से सभी देवी देवताओं को. सभी देवी देवताओं को दैत्य राजा की लोकप्रियता से ईर्ष्या होती थी. तब सभी देवी देवता मिलकर विष्णु के पास जाकर मदद मांगते है
विष्णु जी प्रथ्वी पर एक बार फिर अवतरित होते है. विष्णु जी बलि को नष्ट करने के लिए वामन अवतार में आते है. विष्णु जी ने धरती पर दस अवतार लिए थे, वामन उनका पांचवा अवतार था. ये बुराई को नष्ट करने, सुख, समृधि, शांति के लिए धरती पर आये थे. वामन एक बौने ब्राह्मण थे, जो बलि राजा के पास भिक्षा मांगने जाते है. राजा बलि के राज्य में उस दिन अश्वमेव यज्ञ चल रहा होता है.
यह यज्ञ अगर पूरा हो जाता तो राजा बलि को हराना इस दुनिया में किसी के लिए भी मुमकिन नहीं होता. इतने बड़े मौके पर बलि के राज्य में आये, ब्राह्मण को राजा बलि पुरे सादर सत्कार के साथ बुलाकर अथिति सत्कार में लग जाते है. राजा बलि वामन से पूछते है कि वे उनकी सेवा किस प्रकार कर सकते है, उन्हें क्या चाहिए. तब विष्णु के रूप वामन राजा से बोलते है कि उन्हें ज्यादा कुछ नहीं बस तीन विगा जमीन चाहिए. बलि ये सुन तुरंत तैयार हो जाता है, क्यूंकि उसके पास किसी बात की कमी नहीं होती है, धरती पाताल सभी उसके होते है, और अगर अश्व्मेव यज्ञ पूरा हो जाता है तो देवलोक में भी राजा बलि का राज्य हो जाता
बलिप्रतिप्रदा कौन थे –राजा बलि वामन ने पहला डग रखने को बोलते है. जिसके बाद वामन अपने विशाल, विश्वरूप में आ जाते है, जिसे देख सभी अचंभित हो जाते है. वामन पहला कदम बढ़ाते है, जिसके नीचे समस्त ब्रह्मांड, अन्तरिक्ष आ जाता है, इसके बाद दुसरे कदम में समस्त धरती समा जाती है. वामन के पास तीसरा डग रखने के लिए कोई जगह ही नहीं बचती है, तब बलि अपना सर उनके सामने रखते है, ताकि वामन को दी गई उनकी प्रतिज्ञा पूरी हो सके. वामन के इस रूप को देख बलि समझ जाते है कि ये विष्णु की ही लीला है.
विष्णु बलि को पाताललोक में रहने को बोलते है. बलि भगवान् विष्णु से प्राथना करते है कि उन्हें एक ऐसा दिन दिया जाये जब वे अपने लोगों, अपनी प्रजा के पास आकर उन्हें देख सकें. बलि प्रतिप्रदा का दिन राजा बलि का धरती पर आने का दिन ही मानते है (दक्षिण भारत में ओणम के दिन माना जाता है कि राजा बलि धरती पर आये है) यह दिन अन्धियारे पर उजाले का प्रतिक माना जाता है. विष्णु जी बलि को ये भी बोलते है कि वे सदा उनके आध्यात्मिक गुरु रहेंगें. इसके साथ ही वे बोलते है कि बलि अगले इंद्र होंगें, पुरंदर वर्तमान इंद्र है. ओणम त्यौहार निबंध, कहानी एवं पूजा विधि के बारे में यहाँ पढ़ें
बलिप्रतिप्रदा कौन थे –इस कथा के अलावा ये भी कहा जाता है कि बलि को जब विष्णु जी पाताललोक भेज देते है, तब उनके दादा पहलाद (विष्णु जी के सबसे बड़े भक्त) विष्णु जी से विनम्र करते है कि बलि को पाताललोक का राजा बना दिया जाये. विष्णु जी अपने सबसे प्रिय भक्त की ये बात मान जाते है और बलि को पाताललोक का राजा घोषित करते है. इसके साथ ही वे उन्हें धरती पर एक दिन आने की अनुमति भी देते है.
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