ईद उल-फितर पर शायरी-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको ईद उल-फितर के बार में बताने जा रहा हु। ईद उल-फितर मुसलमानो का सबसे बड़ा त्यौहार है, रमजान के महीने में सभी मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते है, इसके अंत में एक महीने के कठिन उपवास के बाद, यह दिन बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस का अर्थ है खुशी. ईद उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता हैं
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ईद उल-फितर कैसे मानाते है
ईद उल-फितर पर शायरी-रमजान के खत्म होने पर, चाँद के दीदार के बाद यह पवित्र दिन आता है . मुस्लिम कैलेंडर के अनुसार यह पर्व दसवे महीने में आता है. इस महीने को शव्वाल कहां जाता है, और इसके प्रथम दिन यह त्यौहार होता है, जो कि तीन दिनों तक मनाया जाता है.
रमजान के पुरे महीने में कठिन उपवास रखने के बाद जब चाँद दिखाई देता है तो हर किसी के मन में एक उत्साह की लहर दौड़ जाती है .
इस दिन मुस्लिम जल्दी उठ कर नहा कर नए कपडे पहनते है . नमाज अदा की जाती है घर में सजावट की जाती है .
हर घर में पकवान और मिठाई बनाई जाती है , मुस्लिमों की खास“सिवेया“ इस दिन हर घर में बनाई जाती है . इस दिन कोई व्यक्ति भूखा नहीं रहता .
ईद के दिन सभी अपने रिश्तेदार और दोस्तों के घर मिलने जाते है . एक दुसरे से गले मिलते है. सभी बड़े अपने से छोटे को उपहार या धन देते है जिसे “ईदी” कहा जाता है .
इस दिन हर व्यक्ति अपने गिले शिकवे भूल कर प्रेम का आदान प्रदान करते है . यह प्यार सहानुभूति और भाईचारे का पर्व है. कई जगहों पर ईद के मेले भी आयोजित किये जाते है .
इस दिन हर स्तर के मुसलमान को खुश देखा जाता है , गरीब हो या अमीर सभी एकजुट हो कर उत्साह से इस पर्व को मनाते है .
इसदिन सभी अपनी शक्ति के अनुसार दान करते है इस दिन किये गए दान को “जकात उल फितर” कहा जाता है .
रमजान कब और क्यों मनाया जाता है
ईद उल-फितर पर शायरी-मुस्लिम केलेंडर के नोवे महीने में रमजान का महिना माना जाता है. मुस्लिम समुदाय इसे पवित्र मानते हुए इसमें सारे नियमों का पालन करता है.
ऐसा माना जाता है रमजान के महीने में रोजा रखने से आत्मा शुद्ध होती है, और रोजा रखने वालोँ के लिए जन्नत के दरवाजें खुलते है.
इस महीने सभी मुस्लिम एक नियमित जीवन जीते है और नमाज कर प्रर्थना करते है. यह रमजान का 30 दिनों का महीना 3 बराबर भागों में विभाजित है, प्रत्येक भाग में 10 दिन शामिल है.
रमजान का महिना केवल इबादत के लिए ही नही, बल्कि अपनी बुरी आदतों को काबू में करना भी सिखाता है.
इस महीने सभी मुस्लिम उपवास रखते है जिसे रोजा कहते है , इस महीने सभी मुस्लिम सूर्योदय के पूर्व में आहार लेते है और सूर्योदय होने से सूर्यास्त तक अन्न जल ग्रहण नही करते है, सूर्यास्त के बाद ही आहार और पानी ग्रहण करते है.
रमजान में रोजा की शुरुआत होने पर खाने की बात करना और इसका विचार करना भी पाप है. रोजा इख्तयार कर अगर कोई झूठ बोलता है गाली देता है , तो उसका रोज़ा टूट जाता है.
रमजान का महीना त्याग और बलिदान का महीना माना जाता है इस महिने में दान किया जाता है, जो भी अच्छे कार्य किए जाते है, उसका कही गुना पुण्य प्राप्त होता है.
इस महीने में शराब का सेवन करना वर्जित है. शारीरिक सम्बन्ध बनाना और किसी स्त्री पुरुष को गलत नजर से देखना भी मना है.
इस पवित्र महीने में हर मुस्लिम पवित्र और आदर्श जीवन जीता है, सभी कुरान पड़ते है और नमाज करते है.
यह पर्व त्याग बलिदान और आत्मसयंम की प्रेरणा देता है. जब व्यक्ति अन्न जल ग्रहण नही करता है तब उसे इसका महत्त्व पता चलता है. जब व्यक्ति त्याग करता है तो उपर उठता है और उसकी आत्मा पवित्र होती है.
ईद उल-फितर का इतिहास
इस्लाम धर्म में एक अच्छा इंसान होने के लिए केवल इस्लाम धर्म का होना ही काफी नही है , इस धर्म में 5 नियमो का पालन करना अनिवार्य है – ईमान, नमाज अदा करना, हज की यात्रा , रोजा और जकात .
ईद उल-फितर पर शायरी-अरब में पैगम्बर हजरत मोहम्मद ने देखा यहाँ हर व्यक्ति एक दुसरे से दूर हो रहा है, पूरा अरब गरीब और मिर दो भागो में बट गया है , तब सभी को एकजुट करने के लिए मोहम्मद साहब ने विचार किया और सभी को एक नियम का पालन करने को कहा, जिसका नाम रोजा रखा , उन्होंने कहा पुरे दिन हम कुछ भी नही खाएगे और पानी की एक बूंद भी ग्रहण नही करेगे , कोई भी पकवान हो हमें उसका त्याग करना है . उनका कहना था इससे सभी में त्याग और बलिदान की भावना जाग्रत होगी , एक दुसरे के दुःख को महसूस किया जा सकेगा , और सभी के मन में सदभावना आएगी .
उन्होंने जकात उल फितर का रास्ता बताया, सभी ने इसका पालन किया इससे अपने से पिछड़े लोगो को दान कर उन्हें मदद प्राप्त हुई .
ईद उल-फितर से जुडी अन्य बातें
ईद उल-फितर पर शायरी-पहली बार यह दिन 624 ईस्वी में मनाया गया था . पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र के साथ युद्ध किया, और इस युद्ध में पैगम्बर हजरत मोहम्मद की जीत हुई, इस ख़ुशी में पहली बार ईद उल फितर त्यौहार मनाया गया.
अरब में त्योहारों का उल्लेख करने के साथ कुछ महत्वपूर्ण दिन का निर्धारण किया गया , इसमें शाव्वल के महीने के पहले दिन चाँद देख कर यह त्यौहार मनाया जाता है.
रमजान के 29 या 30 दिन के कठिन उपवास के ख़त्म होने के बाद यह दिन आता है , प्रेम और सद्भावना के साथ सभी एक साथ मिलकर सभी मुस्लिम यह त्योहार मनाते है, नमाज अदा करते है दान करते है , एक दुसरे से गले मिलकर उपहार देते है .
इस दिन हर मुस्लिम का फर्ज होता है कि वो अपने शक्ति से जितना भी बन सके उतना जरुरतमंदों को दान करे . इस दिन सभी अल्लाह से रहमत , अपनी गलतियों के लिए माफ़ी , बरकत की दुआ करते है .
दुआ करते है की सभी लोगों को उनके रोजो का उचित फल मिले और अल्लाह उन्हें जन्नत की राह पर सजदा करे
ईद मुबारक हिंदी शायरी
हर ख्वाइश हो मंज़ूर-ए-खुदा
मिले हर कदम पर रज़ा-ए-खुदा
फ़ना हो लब्ज़-ए-गम यही हैं दुआ
बरसती रहे सदा रहमत-ए-खुदा
लेकर आये हैं नया नजराना
कहने को दिल का नया फ़साना
मुबारक हो तुमको ये ईद हमारी
सारी आरज़ू हो पूरी तुम्हारी
मौका हैं खास
कहदे दिल के ज़स्बात
गीले शिकवे भुलाकर
सभी को ईद मुबारक
ज़न्नत से नज़राना भेजा हैं
खुशियों का ख़जाना भेजा हैं
कुबूल फ़रमायें दिल की दुआ हैं
ईद मुबारक का फ़रमान भेजा हैं
तारो से आसमा में खिली रहे बहार
चाँद के जैसा पाक हो सभी का प्यार
होता रहे युहीं अपनों से दीदार
मुबारक हो तुमकों ईद का त्यौहार
मुबारक मौका हैं करो खुदा की इबादत
खुशियों से भरी ये जिंदगी रहे सलामत
अदा करे हर फ़र्ज़ खुदा की रहमत में
पाक दिल युही सजदा करें रमज़ान के महे में.|
मुस्कुराते रहो जैसे खिला हुआ फूल
गमो की बेला जाये तुमको भूल
ऐसे ही प्रेम की चलती रहे रीत
इसी दुआ के साथ मुबारक हो ईद
अल्लाह की करते हैं तहे दिल इबादत
दुश्मन हो या दोस्त रखे सभी को सलामत
कुबूल फ़रमाय से शायरी का नज़राना
ईदी चाहिये तो घर जरुर आना
ऐ दोस्त तेरे पास होते तो गले लगाते
दूर ही सही फिर हम वो रस्म निभायेंगे
गले तो नहीं पर शायरी सुनायेंगे
ईद मुबारक हो मुबारक ज़ोर- ज़ोर से चिल्लायेंगे
बचपन में मिलते थे पुरे रमज़ान
अम्मी की दी सेहरी से करते थे शुरुवात
धूम धड़का होता था दोस्तों के साथ
आज भी हैं याद ईद की हर एक रात
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