दिवाली वाले दिन जुआ क्यों –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको दिवाली वाले दिन जुआ क्यों खेला जाता है उसके बारे में बताने जा रहा हूँ दिवाली की रात को महानिशा की रात मानी जाती है और यह रात शगुन भरी होती है। इस रात में पूजन के समय माता लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। Why is gambling played on Diwali in hindi दिवाली की रात जुआ खेलना हार-जीत का संकेत माना जाता है। मान्यता है कि इस रात को जो जुए में जीतता है, सालभर उसका भाग्य साथ देता है।
दिवाली की रात लक्ष्मी पूजन के समय कई तरह की मान्यताएं निभाई जाती हैं। हर समाज अपने मुताबिक लक्ष्मी पूजन करता है और परंपराओं को निभाता है लेकिन सभी उद्देश्य लक्ष्मी गणेश पूजन ही होता है। ज्यादातर घरों में लक्ष्मी पूजन के बाद जुआ या पत्ते खेलते हैं, उनके अनुसार, ऐसा करना शुभ माना जाता है। जुआ खेलने का मुख्य लक्ष्य सालभर भाग्य की परीक्षा करना है।
हालांकि जुआ खेलना सामाजिक बुराई है और सरकार ने इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा रहा है क्योंकि जुआ खेलने से जीवन के सभी क्षेत्र में नुकसान ही होता है। लेकिन दिवाली की रात जुआ खेलने की परंपरा रही है। आइए जानते हैं जुआ खेलने के लाभ और नुकसान…
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महादेव और माता पार्वती ने खेला था चौसर
दिवाली वाले दिन जुआ क्यों दिवाली की रात जुआ खेलना इसलिए शुभ माना जाता है क्योंकि कार्तिक मास की रात में भगवान शिव और माता पार्वती ने चौसर खेला था। इस खेल में भगवान महादेव हार गए थे, तभी से दिवाली की रात जुआ खेलने की परंपरा शुरू हुई। हालांकि इस बारे में किसी ग्रंथ में कोई तथ्य नहीं है, यह केवल धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है।
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जुआ को लेकर है मान्यता
दिवाली की रात को महानिशा की रात मानी जाती है और यह रात शगुन भरी होती है। इस रात में पूजन के समय माता लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। दिवाली की रात जुआ खेलना हार-जीत का संकेत माना जाता है। मान्यता है कि इस रात को जो जुए में जीतता है, सालभर उसका भाग्य साथ देता है। Why is gambling played on Diwali in hindi वहीं हारने पर धन हानि का संकेत माना जाता है। दीपावली की रात जुआ शगुन के तौर पर खेला जाता है। एक सर्वे में मिली जानकारी के अनुसार, जुआरी सबसे पहले दिवाली की रात जुआ खेलते हैं और फिर धीरे-धीरे उनको लत लग जाती है। इसलिए इस खेल का अपने ऊपर कोई प्रभाव ना पड़ने दें।
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देवताओं को भी जुआ से हुआ है नुकसान
दिवाली वाले दिन जुआ क्यों कुछ लोग दिवाली की रात जुआ खेलना इसलिए अशुभ मानते हैं क्योंकि ऐसा करने से घर की सुख-शांति के साथ लक्ष्मी भी चली जाती है। महाभारत में युधिष्ठिर ने जुआ खेलकर यही ज्ञान दिया था, यह एक विनाशकारी नशा है। इससे हमेशा के लिए दूर ही रहने में भलाई है। इस विनाशकारी खेल से ना केवल इंसानों को बल्कि देवताओं को भी भयंकर समस्याओं का सामना करना पड़ा है। बलराम ने भी जुआ खेला था, जिसमें वह हार गए और सभा में अपमानित होना पड़ा। जुआ की वजह से ही महाभारत का युद्ध हुआ था।
इसलिए नुकसान दायक है जुआ
जुआ लोभ से जन्मी एक कुरीति है। उसके पोषण के लिए ही ऐसी असत्य और भ्रामक अवधारणाएं फैलाई जाती हैं, जिसकी ना ही कोई आध्यात्मिक बुनियाद है न तांत्रिक आधार है, न ही कोई सामाजिक सरोकार। इस जगत में हर शय परिवर्तनशील है। यहां तक कि आपका रूप, रंग, हैसियत, पद, प्रतिष्ठा और धन भी। धन की स्वामिनी लक्ष्मी को भी चंचला कहा गया है, इसलिए धन को स्थायी समझने का खयाल एक भूल है। धन को द्यूत से अर्जित करने का खयाल योग्य, कर्मठ और उद्यमियों का नहीं, अकर्मण्य, अयोग्यों और आलसियों का है।
दीपावली की रात में क्या मारण प्रयोग से होता शत्रु का नाश होता है?
दिवाली वाले दिन जुआ क्यों –शत्रु के उन्मूलन का यह विचार महज हमारी कामनाओं का प्रतिबिंब है। यह एक कल्पना है, जिसके सूत्र हमारी नीयत, मंशा और विचारों में गुंथे हुए हैं। जिस प्रकार बबूल के वृक्ष पर आम के फल नहीं उगते, वैसे ही नकारात्मक बीजों से सकारात्मक फलों की प्राप्ति नहीं हो सकती। शत्रुओं को नहीं शत्रुता को मिटाना ही कारगर है और शत्रुता को नष्ट करने के लिए क्षमा से बेहतर कोई उपाय नहीं है। हम जो भी करेंगे, वह लौट कर हम पर ही आएगा। अत: दीपावली की महानिशा जो अमावस्या के अंधकार को भी जगमगाने की क्षमता रखती है, उसमें मारण प्रयोग की बात सोचना अज्ञानता भी है और भारी भूल भी।