डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवन परिचय व अनमोल वचन ( Dr Sarvepalli Radhakrishnan biography and Quotes in hindi)
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डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवन परिचय Dr Sarvepalli Radhakrishnan biography Hindi
पूरा नाम | डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
धर्म | हिन्दू |
जन्म | 5 सितम्बर 1888 |
जन्म स्थान | तिरुमनी गाँव, मद्रास |
माता-पिता | सिताम्मा, सर्वपल्ली विरास्वामी |
विवाह | सिवाकमु (1904) |
बच्चे | 5 बेटी, 1 बेटा |
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवन परिचय: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे। वे एक प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक भी थे। उनका जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी में हुआ था। उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। डॉ. राधाकृष्णन ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने शिक्षा को एक व्यापक प्रक्रिया के रूप में देखा, जो केवल ज्ञान प्रदान करने तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यक्ति के सर्वांगीण विकास का भी मार्ग प्रशस्त करती है। उनके अनुसार, शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति को एक सभ्य और जिम्मेदार नागरिक बनाना है। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने पर जोर दिया।
डॉ. राधाकृष्णन ने भारत के राष्ट्रपति के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने भारत को एक लोकतांत्रिक देश के रूप में विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी मजबूत किया।
डॉ. राधाकृष्णन की शिक्षा के क्षेत्र
- शिक्षा का केन्द्र विद्यार्थी होना चाहिए।
- शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के सर्वांगीण विकास करना होना चाहिए।
- शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान और कौशल प्रदान करनी चाहिए।
- शिक्षा व्यक्ति को एक सभ्य और जिम्मेदार नागरिक बनानी चाहिए।
- शिक्षा राष्ट्रीय एकता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देनी चाहिए।
डॉ. राधाकृष्णन की शिक्षा के क्षेत्र में की गई सेवाओं के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनका जन्मदिन भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवन परिचय Dr Sarvepalli Radhakrishnan biography Hindi
डॉ. राधाकृष्णन के कुछ प्रमुख कार्यों
- उन्होंने “द इंडियन फिलॉसफी” और “द मिस्टिक एंड द मैन ऑफ साइंस” जैसी प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं।
- उन्होंने भारत में कई विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने भारत के राष्ट्रपति के रूप में शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सुधार किए।
- डॉ. राधाकृष्णन एक महान शिक्षाविद, दार्शनिक और समाज सुधारक थे। उनकी शिक्षा के क्षेत्र में की गई सेवाएं भारत के लिए अमूल्य हैं।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की शिक्षा (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Education) –
- प्रारंभिक शिक्षा: तिरुमनी में स्थानीय स्कूल में।
- माध्यमिक शिक्षा: तिरुपति के लुथरन मिशन स्कूल में।
- उच्च शिक्षा: मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से दर्शनशास्त्र में एम.ए. (1906) और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में डी.लिट. (1916)।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवन परिचय: डॉ. राधाकृष्णन जी ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गृहनगर तिरुमनी में प्राप्त की। माध्यमिक शिक्षा के लिए वे तिरुपति के लुथरन मिशन स्कूल गए। 1904 में, उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में दर्शनशास्त्र में प्रवेश लिया। 1906 में, उन्होंने दर्शनशास्त्र में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। 1909 में, डॉ. राधाकृष्णन जी ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। 1916 में, उन्होंने दर्शनशास्त्र में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त की। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में, उन्होंने दर्शनशास्त्र के प्रसिद्ध प्रोफेसर एफ.एच. ब्रैडले से शिक्षा प्राप्त की।
डॉ. राधाकृष्णन जी एक प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्होंने अपनी शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने शोध प्रबंध में भारतीय दर्शन पर महत्वपूर्ण कार्य किया। डॉ. राधाकृष्णन जी की शिक्षा ने उन्हें एक महान दार्शनिक और शिक्षाविद बनने में मदद की। उनकी शिक्षा के क्षेत्र में की गई सेवाओं के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनका जन्मदिन भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के करियर की शुरुवात –
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की। 1909 में, उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के व्याख्याता के रूप में नियुक्ति प्राप्त की। 1916 में, उन्हें मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में पदोन्नत किया गया। डॉ. राधाकृष्णन जी एक उत्कृष्ट शिक्षक थे। उन्होंने अपने छात्रों को भारतीय दर्शन के महत्व के बारे में सिखाया। उन्होंने छात्रों को स्वतंत्र विचार करने और अपने स्वयं के दर्शन विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया।
1921 में, डॉ. राधाकृष्णन जी को मद्रास विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने इस पद पर 1936 तक कार्य किया। इस दौरान, उन्होंने विश्वविद्यालय के विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने विश्वविद्यालय में कई नए विभागों और कार्यक्रमों की स्थापना की। उन्होंने विश्वविद्यालय के अनुसंधान कार्य को भी बढ़ावा दिया।
1939 में, डॉ. राधाकृष्णन जी को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने इस पद पर 1948 तक कार्य किया। इस दौरान, उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डॉ. राधाकृष्णन जी ने अपने करियर के दौरान कई अन्य महत्वपूर्ण पदों पर भी कार्य किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।
डॉ. राधाकृष्णन जी एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और समाज सुधारक थे। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी शिक्षा के क्षेत्र में की गई सेवाओं के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनका जन्मदिन भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
डॉ. राधाकृष्णन जी के करियर की शुरुआत
- उन्होंने 1909 में मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के व्याख्याता के रूप में नियुक्ति प्राप्त की।
- वे एक उत्कृष्ट शिक्षक थे और उन्होंने अपने छात्रों को भारतीय दर्शन के महत्व के बारे में सिखाया।
- 1921 में, उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया।
- 1939 में, उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया।
उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनकी शिक्षा के क्षेत्र में की गई सेवाओं के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
डॉ.राधाकृष्णन को मिले सम्मान व अवार्ड (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Awards)–
- 1954 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
- 1962 से, उनके जन्मदिन 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- 1968 में, उन्हें साहित्य अकादमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया।
- 1975 में, उन्हें अहिंसा को बढ़ावा देने और ईश्वर के एक सामान्य सत्य को व्यक्त करने के लिए टेम्पलटन पुरस्कार मिला।
डॉ. राधाकृष्णन को 1933 से 1937 तक लगातार पांच बार साहित्य में नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। उन्हें 1939 और 1940 में भी इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था।
डॉ. राधाकृष्णन को कई अन्य सम्मान और अवार्ड
- ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ लॉज (डी.एल) की मानद उपाधि (1926)
- मद्रास विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ साइंस (डी.एससी) की मानद उपाधि (1931)
- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (डी.फिल.) की मानद उपाधि (1936)
- कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ लॉज (डी.एल) की मानद उपाधि (1937)
- ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ लेटर्स (डी.लिट.) की मानद उपाधि (1947)
डॉ. राधाकृष्णन एक महान शिक्षाविद, दार्शनिक और समाज सुधारक थे। उन्हें मिले सम्मान और अवार्ड उनकी उपलब्धियों और योगदानों को दर्शाते हैं। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवन परिचय
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Death)-
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का निधन 17 अप्रैल, 1975 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ। वे 86 वर्ष के थे। उनकी मृत्यु दिल की बीमारी के कारण हुई थी।
डॉ. राधाकृष्णन जी की मृत्यु भारत के लिए एक बड़ी क्षति थी। उन्होंने भारत को एक महान देश बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी शिक्षा के क्षेत्र में की गई सेवाओं के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनका जन्मदिन भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन जी की मृत्यु के बाद, उन्हें भारत के राजकीय सम्मान के साथ सम्मानित किया गया। उन्हें राजकीय अंतिम संस्कार दिया गया और उन्हें नई दिल्ली के राजघाट पर दफनाया गया।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनमोल वचन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Quotes)
शिक्षक व्यक्ति ज्ञान के प्रेरणास्त्रोत होते हैं।”
“विद्या ददाति विनयं”
“सपने वो नहीं जो हम सोते वक्त देखते हैं, सपने तो वो हैं जो हमें सोने नहीं देते।”
“सिखाने वाले को सदैव श्रद्धान्जलि दीजिए, अगर आपका शिक्षक आपकी श्रद्धान्जलि की प्रतीक्षा करें तो वह सच्चे शिक्षक हैं।”
“जीवन का अर्थ विकास है, न केवल व्यक्तिगत विकास बल्कि भाषाओं, विचारों, विज्ञानों और साहित्य के क्षेत्र में सामाजिक विकास भी।”
“मानवता में सबसे बड़ा यग्य त्याग है, सबसे बड़ा त्याग धर्म है, सबसे बड़ा धर्म सच्चाई है, सबसे बड़ी सच्चाई अहिंसा है।”
“जीवन में सफलता के लिए असफलता का सामर्थ्य होना आवश्यक है।”
“हमें स्वयं को बदलने की क्षमता रखनी चाहिए, क्योंकि हम जितने बड़े होते जाते हैं, हमें बदलने की जरूरत बढ़ती जाती है।”
“जीवन का तात्पर्य सीखना है, न केवल जीना।”
“कर्म करो, फल की इच्छा ना करो।”
FAQ
Q: राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा क्या है?
विद्यार्थी में नैतिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, व्यावसायिक आदि मूल्यों का संचरण करने का प्रयास करना चाहिए
Q; डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है?
समाज में शिक्षकों के महत्व को पहचानने के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है
Q: डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत रत्न कब मिला
1954