Sunday, April 28, 2024
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शिरडी साईं बाबा की जीवन परिचय Shirdi Sai Baba Biography in hindi

शिरडी साईं बाबा की जीवन परिचय-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको शिरडी साईं बाबा की जीवन के बारे में बताने जा रहा हूँ शिरडी साईं बाबा, भारतीय भक्ति आंदोलन के महान संत और आराध्य देवता माने जाते हैं। वे एक अद्वितीय व्यक्ति थे जो महाराष्ट्र के शिरडी गाँव में रहते थे और उनके चमत्कारों और दयाशीलता की कहानियाँ आज भी लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध हैं।

शिरडी साईं बाबा का जन्म

साईं बाबा का जन्म 28 सितंबर, 1836 ई. में हुआ था लेकिन उनके जन्म स्थान और जन्म के संदर्भ में अभी तक मतभेद है। लेकिन अनुमान लगाया जाता है कि साईं बाबा का जीवन काल 1838 से 1918 के बीच का है। अधिकांश विवरणों के अनुसार बाबा एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और बाद में एक सूफी फकीर द्वारा गोद ले लिए गए थे। आगे चलकर उन्होंने स्वयं को एक हिंदू गुरु का शिष्य बताया। लगभग 1898 साईं बाबा पश्चिम भारतीय राज्य महाराष्ट्र के गांव शिरडी में आकर रहने लगे और वहीं पर वे आजीवन तक रहे। साईं बाबा शिरडी के एक निर्जन मस्जिद में रहे जहां पर कुछ सूफी परंपराओं के पुराने रिवाजों के अनुसार वह धूनी रमाते थे। साईं बाबा मुस्लिम टोपी पहनते थे। उस मस्जिद का नाम उन्होंने ‘द्वारकामाई’ रखा था, जो निश्चित रूप से एक हिंदू नाम था। कहा जाता है कि साईं बाबा को पुराणों, भगवतगीता और हिंदू दर्शन की विभिन्न शाखाओं का अच्छा ज्ञान था।

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बाबा के नाम की उत्पत्ति ‘साईं ‘शब्द से हुई थी, जो मुसलमानों के द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाला फारसी का शब्द है जिसका अर्थ होता है पूज्य व्यक्ति और बाबा ‘पिता’ के लिए एक हिंदी शब्द है।

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अनुयायी

शिरडी साईं बाबा की जीवन परिचय-साईं बाबा एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु और फकीर थे जिन्होंने धर्म की सीमाओं में कभी नहीं बंधे रहे। वास्तव में उनके अनुयायियों में हिंदू और मुस्लिमों की संख्या बराबर थी। श्रद्धा और सबुरी यही उनके विचार दर्शन का सार था साईं बाबा का मानना था कि कोई भी इंसान अपार धैर्य और सच्ची श्रद्धा की भावना रखकर ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है। सबका मालिक एक है वाक्य से साईं बाबा ने संपूर्ण जगत को सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वरूप का साक्षात्कार करवाया था। बाबा ने मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताया और कई ऐसे चमत्कार किए, जिनसे लोग उन्हें भगवान की उपाधि देने लगे। आज भी शिरडी साईं बाबा के भक्तों की संख्या लाखों करोड़ों में  भी नहीं आंकी जा सकती ।

आगमन

16 वर्ष की अवस्था में साईं बाबा महाराष्ट्र के अहमदनगर के शिरडी गांव में पहुंचे, और अपने जीवन की अंतिम सांस तक उसी स्थान पर रहे। शुरुआत में कई लोग उन्हें पागल बताकर उनकी अवमानना करते थे लेकिन शादी के अंत तक उनके समूह को प्रदेश और चमत्कारों से आकर्षित होकर हिंदू और मुस्लिमों की एक बड़ी संख्या उनकी अनुयाई बन गई।  कुछ लोगों का मानना है कि साईं के पास अद्भुत दिव्य शक्ति थी, जिनके सहारे वे लोगों की मदद करते थे। लेकिन साईं बाबा ने कभी भी इस बात को नहीं स्वीकारा। साईं बाबा हमेशा साधारण फकीर की वेशभूषा में रहते थे। जमीन पर सोते थे। और भीख मांग कर अपना गुजारा करते थे।  कहते हैं कि उनकी आंखों में एक दिव्य चमक थी जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती थी। साईं बाबा का एक ही लक्ष्य था लोगों में ईश्वर के प्रति विश्वास पैदा करना।

बाबा के द्वारा दी गई शिक्षा

शिरडी साईं बाबा की जीवन परिचय-साईं बाबा ने सदैव माता पिता, बुजुर्गों, गुरुजनों और बड़ों का सम्मान करने की सीख दी। साईं का कहना था कि ऐसा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिससे हम जीवन की हर मुश्किल से पार निकल जाते हैं।

साईंके सिद्धांतों में दया और विश्वास अनंत निर्मित है।  उनके अनुसार अगर इन दोनों को अपने जीवन में लाया जाए तभी भक्ति का अनुराग मिलता है।

शिरडी साईं बाबा जी का यह कहना था कि जो व्यक्ति गरीब और लाचार ओं की मदद करता है भगवान स्वयं उसकी मदद करते हैं।

साईं हमेशा कहते थे की जाति, समाज, भेदभाव को भगवान ने नहीं बल्कि इंसानों ने बनाया है।  ऊपर वाले की नजर में कोई ऊंचा या नीचा नहीं है। इसलिए जो कार्य स्वयं भगवान को पसंद नहीं है उसे इंसानों को भी नहीं करना चाहिए। अर्थात  जाति, धर्म, समाज, से जो बातों में ना प्रेम से रहे और गरीब और लाचारों की मदद करें, यही सबसे बड़ी पूजा है।

साईं ने लोगों में मानवता के प्रति सम्मान का भाव पैदा करने के लिए संदेश दिए हैं कि किसी धर्म की अवहेलना नहीं करें। उन्होंने कहा है कि सर्वधर्म सम्मान करते हुए मानवता की सेवा करनी चाहिए. क्योंकि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है ।



बाबा ने यह संदेश भी दिया कि हमेशा श्रद्धा, विश्वास और सबूरी के साथ जीवन  बीताना चाहिए।

साईं बाबा ने हर जाति और धर्म के लोगों को एकता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने सदा ही सभी से एक ही बात कही कि सबका मालिक एक है।

साईं ने जाति धर्म समुदायों इत्यादि बातों में ना पढ़कर आपसी मतभेद को दूर करके आपस में प्रेम और मेल-जोल से रहना चाहिए। यह साईं बाबा के सबसे बड़ी शिक्षा और संदेश है।

उपदेश

साईं बाबा के उपदेश अक्सर विरोधाभासी चित्रण के रूप में होते थे और उस में हिंदुओं तथा मुसलमानों को जकड़ने वाली कट्टर औपचारिकता के प्रति तिरस्कार तथा साथ ही गरीब रोगियों के प्रति सहानुभूति प्रतिबिंबित होती थी। शिरडी एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और उपासनी बाबा और मेहर बाबा जैसी अध्यात्मिक हस्तियां साईं बाबा के उपदेशों की मान्यता देती है।

साईं बाबा के द्वारा दिए गए अनमोल वचन

आने वाला जीवन तभी खूबसूरत हो सकता है जब तुम ईश्वर के साथ पूर्ण नेक नियत से जीना सीख जाओगे।

मनुष्य अपने स्वाद के तृप्ति के लिए प्रकृति में उपलब्ध खाद्य पदार्थों में बदलाव जाता है जिससे उनमें निहित जीवन के बहुत सारे अंत को प्राप्त होते हैं।

साईं बाबा का कहना था कि तुम अपने आप को कमल के फूल की तरह बनाओ जो कीचड़ में जन्म लेने पर भी अपने अंदर जल की उपस्थिति से प्रभावित होकर भी जीवित रहता है और सूर्य के प्रकाश में अपनी पंखुड़ियों को खोल देता है।

मनुष्य अनुभव के माध्यम से ही सीखता है और अध्यात्मिक पत्र कई प्रकार के अनुभवों से भरा है। उसे कई कठिनाइयों और मुश्किलों का सामना करना होगा, और वह सारे अनुभव जो उसे प्रोत्साहित करने और सफाई की प्रक्रिया पूरा करने के लिए जरूरी है


जीवन एक गीत है, इसे गाओ। जीवन एक खेल है, इसे खेलो। जीवन एक चुनौती है, इसका सामना करो। जीवन एक सपना है, इसे अनुभव करो। जीवन एक यज्ञ है, इसे पेश करो और जीवन प्यार है, इसका आनंद लो.

मृत्यु

साईं बाबा अपनी घोषणा के अनुसार 15 अक्टूबर 1918 को विजयादशमी के विजय-मुहूर्त में शारीरिक सीमा का उल्लंघन कर निजधाम प्रस्थान कर गए। इस प्रकार विजयादशमी उनकी महासमाधि के रूप में बनाया गया।

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