रक्षाबंधन की कहानी-Raksha Bandhan ki Kahani – एक बार की बात है, एक अनोखे गाँव में, दो भाई-बहन, रवि और माया रहते थे। वे बहुत करीब थे और एक विशेष बंधन साझा करते थे जो उनके आस-पास के सभी लोगों पर स्पष्ट था। बड़ा भाई रवि एक बहादुर और देखभाल करने वाला युवक था, जबकि छोटी बहन माया जीवन और स्नेह से भरपूर थी। वे अविभाज्य थे, और एक-दूसरे के प्रति उनके प्यार की कोई सीमा नहीं थी।
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रक्षाबंधन की कहानी-Raksha Bandhan ki Kahani 2023
हर साल, रक्षा बंधन का त्यौहार आता है, अपने साथ भाई-बहन के रिश्ते का जश्न लेकर आता है। रक्षा बंधन एक खूबसूरत भारतीय त्योहार है जो भाइयों और बहनों के बीच प्यार और सुरक्षा का प्रतीक है। इस दिन, बहनें अपने भाइयों की कलाई पर “राखी” नामक एक पवित्र धागा बांधती हैं, जबकि भाई, बदले में, जीवन भर अपनी बहनों की रक्षा और देखभाल करने का वादा करते हैं।
जैसे-जैसे त्योहार नजदीक आया, माया रवि की कलाई पर राखी बांधने के लिए उत्साहित हो गई। उन्होंने रंग-बिरंगे धागों और मोतियों से एक खूबसूरत राखी बनाने में कई दिन बिताए और इसे बनाने में अपना सारा प्यार डाला। रक्षाबंधन की सुबह पूरा गांव उत्सव की तैयारियों से गुलजार रहा।
रक्षाबंधन की कहानी-Raksha Bandhan ki Kahani – माया ने मंदिर जाकर अपने भाई की सलामती और खुशी के लिए प्रार्थना की। वह रवि की कलाई पर राखी बांधने के पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। हालाँकि, उस वर्ष कुछ असामान्य घटित हुआ। डाकुओं का एक समूह गाँव में परेशानी पैदा कर रहा था और ग्रामीणों की चिंता बढ़ती जा रही थी।
आसन्न खतरे से अनजान माया रवि के पास पहुंची, जो खेतों में जाने की तैयारी कर रहा था। उसने प्यार से उसकी कलाई पर राखी बांधी और आंखों में खुशी के आंसू भरकर बोली, “भाई, मुझसे वादा करो कि तुम हमेशा मेरी रक्षा करोगे, चाहे कुछ भी हो जाए।” रक्षाबंधन की कहानी एवं चर्चित कथाएं
रवि ने गर्मजोशी से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मेरी प्यारी बहन, तुम्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। जब तक मैं जीवित हूं, तुम्हें कभी कोई नुकसान नहीं होगा। मैं हमेशा तुम्हारे लिए खड़ा रहूंगा।”
रवि की कलाई पर सुरक्षित रूप से बंधी राखी के साथ, उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया, जिससे उनके प्यार और सुरक्षा का बंधन मजबूत हुआ। उन्हें इस बात का जरा भी अंदाज़ा नहीं था कि ख़तरा बस कोने में ही छिपा है।
जैसे ही रवि खेतों की ओर गया, डाकुओं ने, जो गांव पर नज़र रख रहे थे, उसी दिन हमला करने का फैसला किया। वे दुर्भावनापूर्ण इरादे से गांव में पहुंचे, जिससे ग्रामीण दहशत में आ गए। माया सहित सभी के दिलों में डर बैठ गया।
आसन्न खतरे के बारे में सुनकर, माया यह विचार सहन नहीं कर सकी कि उसकी वजह से उसके भाई को नुकसान होगा। उसकी रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित होकर उसने एक योजना बनाई। साहस और त्वरित सोच के साथ, उसने ग्रामीणों को एकजुट किया और उनके घरों की रक्षा के लिए एक रणनीति तैयार की।
जैसे ही डाकू गाँव के पास पहुँचे, उन्हें एकजुट ग्रामीणों के तीव्र प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। माया और अन्य लोगों द्वारा दिखाए गए साहस ने रवि को प्रेरित किया, जो खेतों से लौटकर लड़ाई में शामिल हो गए। उन्होंने मिलकर डाकुओं को खदेड़ दिया और उन्हें खदेड़ दिया।
गाँव खुशियाँ मना रहा था, अपने भाई-बहनों, रवि और माया की बहादुरी के लिए आभारी था। उनके बंधन और एक-दूसरे के प्रति प्यार ने न केवल उन्हें नुकसान से बचाया था बल्कि पूरे गांव को भी बचाया था।
उस दिन के बाद से, रवि और माया के रक्षा बंधन समारोह का गहरा महत्व हो गया। यह उनके अटूट प्रेम, साहस और एक-दूसरे की रक्षा करने की भक्ति की याद दिलाता है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। गांव ने उन्हें नायकों के रूप में सम्मानित किया और हर साल नए उत्साह के साथ रक्षा बंधन मनाने की कसम खाई।
रक्षाबंधन की कहानी-Raksha Bandhan ki Kahani – और इसलिए, रवि और माया के असाधारण रक्षाबंधन की कहानी ग्रामीणों के दिलों में बस गई, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रही, जो भाई-बहनों के बीच स्थायी बंधन और प्रेम और सुरक्षा की शक्ति का प्रतीक है। रक्षाबंधन की कहानी एवं चर्चित कथाएं
लक्ष्मी और विष्णु की कथा
रक्षाबंधन की कहानी-Raksha Bandhan ki Kahani – लक्ष्मी और विष्णु की कथा भारतीय पौराणिक कथाओं में से एक है जो हिंदू धर्म में प्रसिद्ध है। यह कथा भगवान विष्णु की विभिन्न अवतारों में उनकी पत्नी लक्ष्मी के साथ जुड़ी हुई है। विभिन्न पौराणिक काल में इस कथा के विविध रूपों को लोगों ने सुना और पूजा का प्रतीक माना है। एक प्रसिद्ध लक्ष्मी और विष्णु की कथा है जो वामन अवतार (वामन विष्णु) से जुड़ी हुई है
कथा के अनुसार, दैत्य राजा बलि बहुत शक्तिशाली था और विश्व पर अधिकार करने की योजना बना रहा था। देवताओं को इस बात का चिंता था कि बलि की विशाल सेना उन्हें महासमर्थी बना सकती है। इसलिए, देवताओं ने भगवान विष्णु की मदद मांगी। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और छोटे से ब्राह्मण बच्चे के रूप में प्रकट हुए। वामन भ्रामण के समय राजा बलि एक यज्ञ का आयोजन कर रहे थे और दान देने के लिए उन्हें ब्राह्मणों का दर्शन करने की इच्छा थी।
वामन ब्राह्मण के रूप में उस यज्ञ में पहुंचा और राजा बलि ने उसे विशेष सम्मान दिया। तभी वामन ब्राह्मण ने राजा बलि से विशेष भिक्षा मांगी। वामन ब्राह्मण के प्रकट होने के कारण, बलि ने उसे कुछ भी देने को तैयार हो गया।
फिर वामन ब्राह्मण ने अपने अस्त्र-शस्त्र के साथ बलि को विराट रूप धारण कर लिया और चला दिया। वामन ने एक ही कदम में ब्रह्मांड के तीन लोकों का अधिपति बन लिया। राजा बलि ने इसके बाद अपने भाई वामन को पहचाना और उसे प्रशस्त किया। भगवान विष्णु ने बलि को धन्यवाद दिया और उन्हें अपनी राजसत्ता का अधिकारी बनाया। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार के माध्यम से राजा बलि की रक्षा की और उसे धन्यवाद दिया। इस कथा के कारण रक्षाबंधन पर्व को भी विशेष रूप से वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है।
राजा पोरस और सिकंदर की कहानी
पोरस और सिकंदर के बीच की दोस्ती एक मशहूर कहानी है जिसे इतिहासकारों ने उल्लेख किया है। सिकंदर और पोरस दोनों ही बड़े-बड़े शासक थे और उन्हें एक दूसरे के सामने शक्तिशाली राजा के रूप में जाना जाता था। वे दोनों ही अपने राज्यों के समृद्धता, शक्ति और बल के लिए जाने जाते थे।
हालांकि, सिकंदर ने भारत में अपनी विजयों के बाद पोरस से मुलाकात की और दोनों ने दोस्ती की शुरुआत की। अन्ततः, पोरस ने सिकंदर को एक बहुमूल्य तोहफा दिया जो एक रत्नाकर मुखौटा था। सिकंदर ने उसे अपने हथियारों में जोड़ा और अपनी जंग के वक्त उसे पहना था। बाद में, जब सिकंदर का सेनापति पोरस के साथ लड़ने के लिए भेजा गया था, तब उन्होंने देखा कि वह रत्नाकर मुखौटा पहन रहा है। पोरस के सेनाप Read More
रक्षाबंधन की शुरुआत कैसे हुई
रक्षाबंधन की कहानी-Raksha Bandhan ki Kahani – रक्षाबंधन भारतीय पर्वों में से एक है, जो भाई-बहन के प्रेम और सम्मान का उत्सव है। रक्षाबंधन का शायद ही निश्चित रूप से इतिहास ज्ञात हो, लेकिन इसका प्रारंभ विभिन्न प्रकारों में प्राचीन समय से होता आया है। प्राचीन काल में, विभिन्न क्षेत्रों में रक्षाबंधन का अनुसरण किया गया था। इसमें भाई अपनी बहन को सुरक्षा और समृद्धि की कामना के साथ विशेष बंधन बांधता था और बहन भाई को बधाई देती थीं। इस पर्व का मूल अर्थ “रक्षा” और “बंधन” है, जिससे भाई बहन के प्रेम और आपसी सम्मान को दर्शाया जाता है।
रक्षाबंधन की कहानी-Raksha Bandhan ki Kahani – हिन्दू मिथकों में एक प्रसिद्ध कथा है जो रक्षाबंधन के पावन पर्व की उत्पत्ति के पीछे है। इसमें कहा जाता है कि भगवान विष्णु के वामन अवतार के द्वारा बलीराजा का वध किया गया था। बलीराजा की पत्नी विंध्यावती बहन समझी जाती थीं और उसने विष्णु वामन की प्रत्याशा को अपने भाई बलीराजा को बंधन बांधकर माँगा था कि वह अपने भाई को रक्षा करें। विष्णु वामन ने इसे मान लिया और उसने बलीराजा को स्वर्ग से पुनः जीवित कर दिया था। इसी प्रकार से रक्षाबंधन का पर्व आज तक चलता आया है और भाई बहन के प्रेम का प्रतीक बना हुआ है। रक्षाबंधन का पर्व भारत और नेपाल के अलावा अन्य भारतीय देशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व के दिन भाईयों को बहनें विशेष रूप से तैयारी करती हैं और उन्हें राखी बांधकर उनके लिए आरती करती हैं। भाई भी उन्हें उपहार देते हैं और बहनें उनके सुरक्षा, शुभकामनाएं और लंबे जीवन की कामना करती हैं। इस पर्व का संबंध प्यार, सम्मान और भाई-बहन के प्रेम से होता है और यह इस विशेष रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है।
रक्षाबंधन का महत्व
रक्षाबंधन की कहानी-Raksha Bandhan ki Kahani – रक्षाबंधन एक महत्वपूर्ण भारतीय पर्व है जो भाई-बहन के प्रेम, सम्मान, और सम्बन्ध का प्रतीक है। यह पर्व भाई-बहन के बीच एक विशेष बंधन का अवसर प्रदान करता है रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम को प्रतीकता करता है। भाई-बहन के बीच इस पर्व के माध्यम से प्रेम और सम्मान की भावना को स्पष्ट किया जाता है। इसे अनूठा और अनमोल रिश्ता माना जाता है जो जीवन भर चलने वाला होता है। “रक्षाबंधन” शब्द खुद में ही भाई के बहन की रक्षा करने का अर्थ है। भाई अपनी बहन के प्रति रक्षा भावना को प्रदर्शित करता है और उसे संरक्षित महसूस कराता है। रक्षाबंधन भाई-बहन के सम्बन्धों को मजबूत बनाता है। इस दिन को मनाने से भाई बहन एक-दूसरे के प्रति अधिक समर्थ होते हैं और खुद को अपने परिवार का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।
भाई बहन के बीच इस दिन को मनाने से आदर और सम्मान की भावना जगाई जाती है। यह एक दूसरे के प्रति सम्मान का एक विशेष तरीका है और परिवार के माहौल में सामंजस्य और सौहार्द बनाए रखने में मदद करता है।
रक्षाबंधन की कहानी- रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है जो परंपरागत रूप से पीढ़ी से पीढ़ी तक चलता आया है। इसे परिवार के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक के रूप में माना जाता है जो परिवार के सदस्यों को एकजुट करता है। रक्षाबंधन भाई-बहन के आपसी समर्थन का एक प्रतीक भी है। यह एक दूसरे के सफलता के लिए प्रेरित करता है और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है। रक्षाबंधन की कहानी
रक्षाबंधन किसका प्रतीक है?
रक्षाबंधन की कहानी- रक्षाबंधन का प्रतीक “राखी” (Rakhi) होता है। राखी एक प्रकार का धागा होता है जो भाई की कलाई पर बांधा जाता है। यह धागा भाई-बहन के प्रेम और सम्मान के प्रतीक के रूप में बनाया जाता है।
राखी विभिन्न रूपों और डिज़ाइनों में आती है, जिनमें धागा रक्त रंग का या सोने की धातु से बना हो सकता है। इसमें मोती, जरीदार, धागे से नक्काशी, और चांदी के आभूषण शामिल हो सकते हैं। रक्षाबंधन के दिन, बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उन्हें आशीर्वाद देती हैं और भाई उसे उपहार देते हैं।
राखी के इस धागे को भाई अपनी हृदय की अटूट भावना के साथ धारण करता है, और वादा करता है कि वह अपनी बहन की सुरक्षा और समृद्धि का पूरा ध्यान रखेगा। इस प्रकार, राखी भाई-बहन के आपसी प्रेम और सम्मान का प्रतीक बनती है और उनके बीच एक मजबूत रिश्ते को प्रत्यक्ष करती है।
राखी का वास्तविक अर्थ क्या है?
रक्षाबंधन की कहानी-Raksha Bandhan ki Kahani – राखी का वास्तविक अर्थ “रक्षा” या “सुरक्षा” है। शब्द “राखी” संस्कृत शब्द “रक्षिका” से आया है, जिसका मतलब होता है “रक्षा करनेवाली” या “सुरक्षा देनेवाली”। रक्षाबंधन या राखी के पर्व के द्वारा भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वचन देता है और उसे सुरक्षित रखने का प्रत्याशा करता है।
इस पर्व के दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती हैं और उसे अपनी प्रेम और सम्मान का अभिवादन करती हैं। भाई भी इस मौके पर उपहार देते हैं और उसे अपने समर्थन का भरोसा दिलाते हैं। रक्षाबंधन के दिन भाई-बहन के बीच एक विशेष बंधन का त्योहार मनाया जाता है जो उनके प्रेम और सम्मान का प्रतीक होता है।
यह पर्व हिंदू कैलेंडर के श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और इसे भारत और नेपाल के अलावा अन्य भारतीय देशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है।
FAQ
Q : रक्षाबंधन का त्यौहार कब मनाया जाता है ?
श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन
Q : राखी 2023 में कितनी तारीख को है ?
23 अगस्त
Q : इस साल राखी बंधने का शुभ मुहूर्त कितने बजे का है ?
30 अगस्त को सुबह 10:58 बजे से 31 अगस्त को रात 7:05 बजे तक
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