गोस्वामी तुलसी दास जयंती-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको गोस्वामी तुलसी दास के बारे में बताने जा रहा हु। तुलसीदास के दोहे हिंदी में लिखे गये हैं इन्हें पढ़े एवम जीवन के ज्ञान को समझे. गोस्वामी तुलसीदास एक महान कवि, एवं संत थे, जोकि हिन्दू पुराण एवं ग्रन्थ की बहुत अच्छी समझ रखते थे. गोस्वामी तुलसी दास एक महान गुरु के तौर पर पूजे जाते है. तुलसीदास जी को भगवान् राम के जीवन पर आधारिक ‘रामचरितमानस’ के रचियता के तौर पर जाना जाता है, उन्होंने इस महान ग्रन्थ को अवधि में लिखा था. तुलसीदास जी अपने आप को महान गुरु वाल्मीकि जी का पुनर्जन्म का रूप बताते थे, वाल्मीकि जी ने सबसे पहले रामायण को संस्कृत में लिखा था. वाल्मीकि की रामायण को समझना लोगों के लिए आसान नहीं था. तुलसीदास जी ने जब इसे अवधि में लिखा तो ये सभी लोगों तक पहुंची और लोग इसकी महत्ता को एवं भगवान् राम के जीवन को करीब से जान पाए. तुलसीदास जी ने भगवान् राम के महान भक्त हनुमान जी की हनुमान चालीसा की रचना भी की थी.
गोस्वामी तुलसी दास जयंती-तुलसीदास जी के जन्म से जुड़े राज सही तौर पर आज भी सबके सामने नहीं आये है. कुछ लोग इनका जन्म 1532 बताते है, तो कुछ 1589. वैसे तथ्यों की मानें तो इनका जन्म सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन हुआ था. इनके जन्म स्थान के तौर पर सात जगह बताई जाती है, उनमें से एक है – राजापुर (चित्रकूट), उत्तरप्रदेश. उत्तरप्रदेश सरकार ने इसे अधिकारिक तौर पर तुलसीदास जी का जन्म स्थान घोषित किया है. इसके अलावा सोरो, हाजीपुर, तारी की ओर से भी तुलसीदास जी की जन्मभूमि कहा जाता है.
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तुलसीदास जी का परिवार
तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम शुक्ल दुबे था, एवं उनकी माता का नाम हुलसी था. कुछ भविष्य पुराण में इनके पिता का नाम श्रीधर लिखा हुआ है. बचपन में इनका नाम तुलसीराम व रामबोला हुआ करता था. तुलसीदास जी की जाति को लेकर भी बहुत से कयास है, कुछ लोग कहते है वे सर्युपरीन ब्राहमण थे, कुछ लोगों के हिसाब से वे कान्यकुब्ज, तो कुछ कहते थे वे सनाढ्य ब्राह्मण थे. कुछ इन्हें शुक्ल ब्राह्मण व सरबरिया ब्राह्मण भी कहते है.
तुलसीदास जी का शुरूआती जीवन
गोस्वामी तुलसी दास जयंती-लीजेंड तुलसीदास जी अपनी माँ के गर्भ में 12 महीने तक रहे थे, उसके बाद जब उनका जन्म हुआ था, तब उनके मुख में पुरे 32 दांत भी थे. उस समय उनके स्वास्थ्य और शरीर को देखकर लगता था कि वे 5 साल के लड़के है. जन्म के दौरान तुलसीदास जी रोये भी नहीं थे, बल्कि राम राम का नाम लेते हुए उनका जन्म हुआ था. यही से उनका नाम रामबोला पड़ा था. जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ था, तब पंचाग के हिसाब से मूल लगे हुए थे. इसका मतलब बच्चे के पिता पर खतरा होता है. इसके निवारण के लिए उन्होंने तुलसीदास जी को दासी चुनिया के साथ भेज दिया था. चुनिया तुलसीदास जी को हरिपुर गाँव ले जाती है, जहाँ वो उन्हें पांच साल तक रखती है. इसके बाद चुनिया की मृत्यु हो जाती है. इस दौरान उनके माता पिता से भी उनका कोई सम्बन्ध नहीं होता है. इस तरह तुलसीदास जी अनाथ हो गए, उस समय तुलसीदास जी को अपना पेट भरने के लिए भीख मांगनी पड़ती थी
तुलसीदास जी शिक्षा एवं गुरु
गोस्वामी तुलसी दास जयंती-पांच साल की उम्र में ही जब तुलसीदास जी अपना पेट भरने के लिए दर दर भटकते थे, तब नरहरिदास जी ने उन्हें गोद ले लिया. वे एक रामानंद के मठवासी थे, उन्हें रामानंद जी का चौथा शिष्य कहा जाता है. यहाँ तुलसीदास जी ने सन्यासी का वेश धारण कर वैरागी की दीक्षा ले ली, यहीं उन्हें तुलसीदास नाम मिला. तुलसीदास जी जब 7 साल के हुए, तब गुरु नरहरिदास के द्वारा उनका उपनयन (उपाकर्म) किया गया. उपाकर्म व्रत के बारे में यहाँ जानें. तुलसीदास जी ने अपनी शिक्षा अयोध्या से शुरू की. कुछ समय बाद गुरु उन्हें वराह क्षेत्र में ले गए, यहाँ उनके गुरु ने उन्हें पहली बार रामायण सुनाई. इसके बाद वे बार बार रामायण सुनने लगे, जिससे उन्हें धीरे-धीरे यह समझ में आने लगी.
कुछ समय बाद तुलसीदास जी वाराणसी चले गए, और वहां उन्होंने हिन्दू दर्शन के स्कूल में गुरु शेष सनातना से संस्कृत व्याकरण, चारों वेद, 6 वेदांग एवं ज्योतिष के बारे में शिक्षा ली. वे यहाँ 15-16 साल तक रहे. शेष सनातना, नरहरिदास के मित्र हुआ करते थे, जो साहित्य एवं दर्शनशास्त्र के विद्वान हुआ करते थे. शिक्षा पूरी करने के बाद तुलसीदास अपने गुरु शेष सनातना से आज्ञा लेकर अपने जन्मस्थान राजापुर आ गए. यहाँ उन्हें पता चला, उनके माता पिता दोनों अब नहीं रहे. यहाँ उन्होंने अपने माता पिता का श्राद्ध किया, और अपने पैतृक घर में रहने लगे. वे अब चित्रकूट में रामायण की कथा सबको सुनाया करते थे.
तुलसीदास का विवाह
गोस्वामी तुलसी दास जयंती-तुलसीदास जी की शादी को लेकर 2 तरह की बातें होती है. कुछ कहते है, तुलसीदास जी की शादी रत्नावली से 1583 में हुई थी. रत्नावली दीनबंधु पाठक की बेटी थी, जो भारद्वाज ब्राहमण थी. इनका एक बेटा हुआ था तारक, जो कम उम्र में ही चल बसा था. तुलसीदास जी अपनी पत्नी रत्नावली से बहुत प्रेम करते थे. एक बार रत्नावली अपने भाई के साथ अपने पिता के घर गई. तुलसीदास जी जब उनसे मिलने के लिए गए, तब उनकी पत्नी रत्नावली ने उनसे कुछ ऐसा कहा कि उन्होंने सन्यासी बनने का निर्णय ले लिया. उसके बाद उन्होंने इन बाहरी शारीरिक चीजों का त्याग कर मोक्ष की प्राप्ति के लिए भगवान् की शरण ले ली. तुलसीदास जी प्रयाग गए और वहां साधू का रूप धारण कर लिया. तब रत्नावली भी मन ही मन अपने आप को कोसने लगी कि यह उसने क्या कह दिया.
कुछ लोग का मानना है कि तुलसीदास जी बचपन से साधू रहे है, साथ ही वे हनुमान भक्त रहे है, इसका मतलब है कि उन्होंने कभी शादी नहीं की होगी.
सन्यासी के रूप में तुलसीदास
सांसारिक चीजों को त्याग कर तुलसीदास जी ने अधिकतर समय वाराणसी, प्रयाग, अयोध्या एवं चित्रकूट में बिताया था. 14 सालों तक वे भारत देश के अलग अलग जगह में गए, और वहां लोगों को शिक्षा दी, साथ ही साधू संतों से मिलकर खुद भी शिक्षा ग्रहण की.
तुलसीदास जी को हुए हनुमान एवं राम दर्शन
तुलसीदास जी ने अपनी कई रचना में ये लिखा है कि उन्होंने हनुमान व राम जी के दर्शन किये है. इसके बारे में विस्तार से उनकी रचना ‘भक्तिरसबोधिनी’ में पढ़ा जा सकता है. तुलसीदास जी को पहले वाराणसी में हनुमान के दर्शन हुए थे, जहाँ आज संकटमोचन मंदिर का निर्माण हुआ था. कहते है हनुमान जी ने ही तुलसीदास जी की रामचरितमानस लिखने में मदद की थी. हनुमान जी से दर्शन के दौरान तुलसीदास जी ने पूछा मुझे रामचन्द्र के दर्शन कैसे होंगे, तब उन्होंने उन्हें चित्रकूट जाने को कहा.
गोस्वामी तुलसी दास जयंती-इसके बाद तुलसीदास चित्रकूट के रामघाट में रहने लगे. तुलसीदास जी अपनी रचना में व्याख्या करते है कि किस तरह उन्हें भगवान् राम के दर्शन हुए. चित्रकूट में रहने के दौरान 2 बार उन्हें दर्शन हुए, लेकिन तुलसीदास जी भगवान् राम को नहीं पहचान पाए. तीसरी बार जब राम बाल रूप में उनके सामने आये तब हनुमान जी ने उन्हें इशारा दिया, और वे समझ गए. इस घटना के बारे में उन्होंने ‘विनायकपत्रिका’ में लिखा है
तुलसीदास जी ने अपने जीवन में बहुत से चमत्कारी कार्य भी किये है. उन्होंने बहुत से लोगों की बीमारी ठीक की, और लोगों को मृत्यु से बचाया था. तुलसीदास जी के चमत्कारी कार्य और उनकी बुद्धिमानी को मुगल साम्राज्य के महान शासक अकबर भी मानते थे. अकबर और तुलसीदास अच्छे मित्र बन गए, और अकबर ने अपने पुरे राज्य में ये घोषणा की थी कि कोई तुलसीदास जी को परेशान न करे.
तुलसीदास जी ने अपनी ज़िन्दगी का अधिकांश समय उत्तरप्रदेश के गंगा किनारे बसे वाराणसी शहर में बिताया था. वर्तमान में वाराणसी में इनके नाम पर तुलसी घाट का निर्माण हुआ है. वे भारत में हिंदी भाषा के महान कवियों में से एक है, उन्हें विश्व में साहित्य के विख्याता के रूप में जाना जाता है. तुलसीदास जी के महान कार्यों के चलते आज भारत में कला एवं संस्कृति को एक अलग रूप मिला है. तुलसीदास जी ने ही रामायण पर आधारित रामलीला प्रोग्राम की शुरुआत की थी और आज भी उनके द्वारा शुरू किये गए प्रोग्राम रामलीला भारतीय संगीत को प्रसिद्धी प्राप्त है, आज ये टीवी सीरीज के रूप में दर्शको का मनोरंजन करते है.
तुलसीदास जी की मृत्यु
गोस्वामी तुलसी दास जयंती-तुलसीदास जी की मृत्यु विक्रम संवत 1680 में सावन महीने में वाराणसी के अस्सी घाट में हुई थी. इनके जन्म की तरह इनकी मृत्यु में भी लोगों का एक मत नहीं है. इसके बारे में भी सब अलग अलग दिन बताते है. सावन महीने का महत्व
तुलसीदास जी की रचनाएँ
तुलसीदास जी की 12 रचनाएँ बहुत अधिक प्रसिद्ध है. भाषा के अनुसार इन्हें 2 ग्रुप में बांटा गया है–
अवधी – रामचरितमानस, रामलला नहछू, बरवाई रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल और रामाज्ञ प्रश्न.
ब्रज – कृष्ण गीतावली, गीतावली, साहित्य रत्न, दोहावली, वैराग्य संधिपनी और विनायक पत्रिका.
इस 12 के अलावा 4 और रचनाएँ है जो तुलसीदास जी द्वारा रचित है, जिन्हें विशेष स्थान प्राप्त है वे है
हनुमान चालीसा
हनुमान अष्टक
हनुमान बाहुक
तुलसी सतसई
तुलसीदास जयंती
जी का जन्म सावन माह में शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन हुआ था. इसी दिन को तुलसीदास जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस बार ये 12 अगस्त 2024 दिन सोमवार को है. यह उनकी 523 वीं जन्मतिथि है. कवि सम्राट गोस्वामी तुलसीदास जी ने दुनिया भर को अनमोल ग्रन्थ दिए है.
तुलसीदास जयंती मनाने का तरीका
गोस्वामी तुलसी दास जयंती-तुलसीदास जयंती को मनाने के लिए स्कूलों में अनेक कार्यक्रम होते है. सरकार भी नगर में इसे मनाने के लिए कार्यक्रम करती है. इंटर स्कूल प्रतियोगितायें होती है, जिसमें रामायण के दोहे की अन्ताक्षरी, वाद-विवाद, गायन, निबद्ध, दोहे लिखने की प्रतियोगिता होती है. जगह-जगह मंदिरों में रामायण का पाठ करवाया जाता है. इस दिन ब्राह्मणों को भोजन भी कराया जाता है.
गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे एवं उनके हिंदी अर्थ
‘तुलसी’ जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ।
तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।
कवी तुलसी दास जी कहते हैं जो दूसरों की बुराई कर खुद प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं वो खुद अपनी प्रतिष्ठा खो देते हैं. ऐसे व्यक्ति के मुँह पर ऐसी कालिक पुतेगी जो कितना भी कोशिश करे कभी नहीं मिटेगी.
तनु गुन धन महिमा धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान।
तुलसी जिअत बिडम्बना, परिनामहु गत जान।।
तन की सुन्दरता, सद्गुण, धन, सम्मान और धर्म आदि के बिना भी जिनको अभिमान हैं ऐसे लोगो का जीवन ही दुविधाओं से भरा हुआ हैं जिसका परिणाम बुरा ही होता हैं
बचन बेष क्या जानिए, मनमलीन नर नारि।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि।।
वाणी की मधुरता और वस्त्रों की सुन्दरता से किसी भी पुरुष अथवा नारि के मन के विचारों को जाना नहीं जा सकता. क्यूंकि मन से मैले सुपनखा, मरीचि, पूतना और दस सर वाले रावण के वस्त्र सुन्दर थे.
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार.
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर.|
तुलसीदासजी कहते हैं कि जो व्यक्ति मन के अन्दर और बाहर दोनों और उजाला चाहते हैं तब उन्हें अपने द्वार अर्थात मुख पर एवम देहलीज अर्थात जिव्हा पर प्रभु राम के नाम का दीपक जलाना होगा.
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु.
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास.|
राम का नाम कल्प वृक्ष की तरह अमर कर देने वाला मुक्ति का मार्ग हैं जिसके स्मरण मात्र से तुलसीदास सा तुच्छ तुलसी के समान पवित्र हो गया.
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर.
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि.|
तुलसी दास जी कहते हैं सुन्दर आवरण को देख कर केवल मुर्ख ही नहीं बुद्धिमान भी चकमा खा जाते हैं.जैसे मोर की वाणी कितनी मधुर होती हैं लेकिन उसका आहार सांप हैं.
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु.
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु.|
शूरवीर युद्ध में अपना परिचय कर्मो के द्वारा देते हैं उन्हें खुद का बखान करने की आवश्यक्ता नहीं होती और जो अपने कौशल का बखान शब्धो से करते हैं वे कायर होते हैं.
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि.
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि.|
जो मनुष्य शरण में आये मनुष्य को अपने निजी स्वार्थ के लिए छोड़ देते हैं वे पाप के भागी होते हैं. उनके दर्शन मात्र से बचना चाहिए.
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान.
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण.|
तुलसी दास जी कहते हैं धर्म का मूल भाव ही दया हैं इसलिए कभी दया नहीं त्यागनी चाहिए. और अहम का भाव ही पाप का मूल अर्थात जड़ होती हैं.
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि.
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि.|
जो मनुष्य सच्चे गुरु के आदेश अथवा सीख का पालन नहीं करता| वह अंत में अपने नुकसान को लेकर बहुत पछताता हैं.
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक.
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक.|
तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया शरीर के मुख के सामान होता हैं जिस तरह एक मुख भोजन करके पुरे शरीर का ध्यान रखता हैं उसी प्रकार परिवार का मुखिया सभी सदस्यों का ध्यान रखता हैं