Wednesday, May 1, 2024
Homeपरिचयप्रसिद्ध कवि अमीर की प्रमुख रचनाएँ Amir Khusrow Biography In Hindi

प्रसिद्ध कवि अमीर की प्रमुख रचनाएँ Amir Khusrow Biography In Hindi

प्रसिद्ध कवि अमीर की प्रमुख रचनाएँ हेलो दोस्तों मेरा नाम पारुल है और आज में आपलोगो को बताने जारही हु इनके बारे में। मुझे पता है की आप लोगो मेसे काफी लोग होंगे जिनको इनके बारे में पता होगा परन्तु यहाँ कुछ लोग ऐसे भी है जो इन्हे नहीं जानते आज में उन लोगो को इनके बारे में बताने जारही हूँ।

प्रसिद्ध कवि अमीर की प्रमुख रचनाएँ अबुल हसन अमीर खुसरो करीब चौदहवीं सदी के एक प्रमुख कवि (शायर), गायक और संगीतकार थे वह दिल्ली के पास रहते थे। हिन्दुस्तानी खड़ीबोली का पहला लोकप्रिय कवि अमीर खुसरो को माना जाता है। वह अपनी पहेलियों और मुकरियों के दुयारा जाने जाते हैं। सबसे पहले हिन्दवी का उल्लेख उन्होंने अपनी भाषा में किया था। वह एक फारसी के कवि भी थे। उनको दिल्ली सल्तनत का आश्रय भी मिला हुआ था। उनकी ग्रंथो की सूची लम्बी है। साथ ही इनका इतिहास स्रोत रूप में ज़रूरी है।



अमीर खुसरो का जीवन परिचय 

मध्य एशिया की लाचन जाति के तुर्क सैफुद्दीन के पुत्र अमीर खुसरो का जन्म साल 652ही में एटा उत्तर-प्रदेश के पटियाली नाम की एक जगह में हुआ था। प्रसिद्ध कवि अमीर की प्रमुख रचनाएँ लाचन जाति के तुर्क चंगेज खाँ के आक्रमणों से पीड़ित होकर बलवन १२६६-१२८६ ई के ‘’शरणार्थी के रूप में भारत में आ बसे थे। अमीर खुसरो जी की माँ बलबन के युद्धमंत्री इमादुतुल मुलक की लड़की थी, और एक भारतीय मुसलमान महिला थी। सात साल की उम्र में अमीर खुसरो के पिता की मृत्यु हो गयी।

प्रसिद्ध कवि अमीर की प्रमुख रचनाएँ किशोरावस्था में उन्होंने कविता लिखना शुरू किया और २० साल की उम्र होते-होते वह कवि के रूप में लोग उन्हें जानने लगे। अमीर खुसरो में व्यवहारिक बुद्धि की कमी नहीं थी। सामाजिक जीवन में अमीर खुसरो ने कभी अवहेलना नहीं की। अमीर खुसरो ने अपना पूरा जीवन राज्याश्रय में ही बिताया। राजदरबार में रहते हुए भी अमीर खुसरो ने हमेशा कवि, कलाकार, संगीतज्ञ और सेनिक का कार्य किए।

अमीर ख़ुसरो जी की माँ राजपूत थीं। ये दिल्ली के एक अमीर व्यक्ति अमी इमादुल्मुल्क की बेटी थीं। अमी इमादुल्मुल्क बादशाह बलबन के युद्ध मन्त्री थे। ये राजनीतिक के दवाब के वजह से नए-नए मुसलमान बानी थे। इस्लामिक धर्म अपनाने के बावजूद इनके घर में सारे रीति-रिवाज हिन्दुओं वाले ही थे। अमीर ख़ुसरो के ननिहाल में गाने-बजाने और संगीत का माहौल था। अमीर ख़ुसरो के नाना को पान खाना बोहोत पसंद था। इस पर बाद में अमीर ख़ुसरो ने ‘तम्बोला’ नामक एक मसनवी भी लिखी थी।

इससे मिले-जुले घराने एवं दो परम्पराओं के मेल का असर किशोर अमीर ख़ुसरो पर पड़ा था। वह जीवन में कुछ अलग करना चाहते थे और वाक़ई ऐसा हुआ भी था। अमीर ख़ुसरो के श्याम वर्ण रईस नाना इमादुल्मुल्क और पिता अमीर सैफ़ुद्दीन दोनों ही चिश्तिया सूफ़ी सम्प्रदाय के महान सूफ़ी साधक एवं संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया उर्फ़ सुल्तानुल मशायख के भक्त अथवा मुरीद थे। उनके समस्त परिवार ने औलिया साहब से धर्मदीक्षा भी ली थी।

उस समय अमीर ख़ुसरो केवल सात साल के थे। सात साल की अवस्था में अमीर ख़ुसरो के पिता का मृत्यु हो गया, किन्तु अमीर ख़ुसरो की शिक्षा-दीक्षा में बाधा नहीं आयी। अपने समय के दर्शन तथा विज्ञान में उन्होंने विद्वत्ता प्राप्त की, किन्तु उनकी प्रतिभा बाल्यावस्था में ही काव्योन्मुख थी। किशोरावस्था में उन्होंने कविता लिखना प्रारम्भ किया और 20 साल के होते-होते वे कवि के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे।


WhatsApp Group

Join Now

Telegram Group

Join Now

 

तीन भाइयों में अमीर खुसरो सबसे अधिक तेज दिमाग वाले थे। अपने ग्रंथ गुर्रतल कमाल की भूमिका में अमीर खुसरो ने अपने पिता को उम्मी अर्थात् अनपढ़ कहा है। लेकिन अमीर सैफुद्दीन ने अपने सुपुत्र अमीर खुसरो की शिक्षा-दीक्षा का बहुत अच्छा प्रबंध किया था। अमीर खुसरो की प्राथमिक शिक्षा एक मकतब में हुई। अमीर खुसरो का लेखन बहुत ही सुन्दर था।




प्रसिद्ध कवि अमीर की प्रमुख रचनाएँ खुसरो ने अपने फ़ारसी दीवान तुहफतुसिग्र (छोटी उम्र का तोहफ़ा – ६७१ हिज्री, सन १२७१, १६-१९ वर्ष की आयु) में स्वंय इस बात का ज़िक्र किया है कि उनकी गहन साहित्यिक अभिरुचि और काव्य प्रतिभा देखकर उनके गुरु सादुद्दीन या असदुद्दीन मुहम्मद उन्हें अपने साथ नायब कोतवाल के पास ले गए। वहाँ एक अन्य महान विद्वान ख़वाजा इज्जुद्दीन (अज़ीज़) बैठे थे। गुरु ने इनकी काव्य संगीत प्रतिभा तथा मधुर संगतीमयी वाणी की अत्यंत तारीफ की.

ख्वाजा साहब ने तब अमीर खुसरो से कहा कि बाल, अंडा, तीर और खरबूजा – इन चार बेजोड़, बेमेल और बेतरतीब चीज़ों को एक अशआर में इस्तमाल करे। प्रसिद्ध कवि अमीर की प्रमुख रचनाएँअमीर खुसरो ने तभी इन बातो को सार्थकता से जोड़कर फारसी में एक सद्य रचित कविता सुनाई –
‘हर मूये कि दर दो जुल्फ़ आँ सनम अस्त, सद बैज-ए-अम्बरी बर आँ मूये जम अस्त, चूँ तीर मदाँ रास्त दिलशरा जीरा, चूँ खरपुजा ददांश मियाने शिकम् अस्त।’ अर्थातः उस प्रियतम के बालों में जो तार हैं उनमें से हर एक तार में अम्बर मछली जैसी सुगन्ध वाले सौ-सौ अंडे पिरोए हुए हैं। उस सुन्दरी के हृदय को तीर जैसा सीधा-सादा मत समझो व जानो क्योंकि उसके भीतर खरबूजे जैसे चुभनेवाले दाँत भी मौजूद हैं।

एक समय की बात है। तब अमीर खुसरो गयासुद्दीन तुगलक के दिल्ली दरबार में दरबारी हुआ करते थे। तुगलक खुसरो को तो चाहता था मगर वह हजरत निजामुद्दीन के नाम तक से चिढते था। खुसरो को तुगलक की यही बात नागवार थी। मगर वह कुछ नहीं कर सकता था, बादशाह का मिजाज। बादशाह एक बार कहीं बाहर से दिल्ली लौट रहा थे, तभी चिढक़र उहोने खुसरो से यह बोल दिया कि हजरत निजामुद्दीन को पहले ही आगे जा कर यह संदेस दे दे कि बादशाह के दिल्ली पहुँचने से पहले ही वे दिल्ली छोड क़र चले जाएं। खुसरो को बडी तकलीफ हुई, पर अपने सन्त को यह संदेस कहा और पूछा अब क्या होगा? ” कुछ नहीं खुसरो! तुम घबराओ मत। हनूज दिल्ली दूरअस्त – यानि अभी बहुत दिल्ली दूर है। सचमुच बादशाह के लिये दिल्ली बहुत दूर हो गई। रास्ते में ही एक पडाव के समय वह जिस खेमे में ठहरा था,भयंकर अंधड से वह टूट कर गिर गया और फलस्वरूप उकी मोत हो गई। तभी से यह कहावत ‘अभी दिल्ली दूर है’ पहले अमीर खुसरो की शायरी में आई फिर हिन्दी में जानी जाने लगी।

प्रसिद्ध कवि अमीर की प्रमुख रचनाएँ छह साल तक ये जलालुद्दीन खिलजी और उनके बेटे अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में भी रहे थे। ये तब भी अलाउद्दीन खिलजी के करीब थे जब उसने चित्तौड ग़ढ क़े राजा रत्नसेन की पत्नी पद्मिनी को हासिल करने की ठान ली थी। तब ये उसके दरबार के खुसरु-ए-शायरा के खिताब से सुशोभित थे। इन्होंने पद्मिनी को बल के जोर पर हासिल करने के प्रति अलाउद्दीन खिलजी का नजरिया बदलने की कोशिश की यह कह कर कि ऐसा करने से असली खुशी नहीं हासिल होगी, स्त्री हृदय पर शासन स्नेह से ही किया जा सकता है, वह सच्ची राजपूतानी जान दे देगी और आप उसे हासिल नहीं कर सकेंगे।



कवि अमीर की पहेलियाँ:

  1. गोश्त क्यों न खाया?
    डोम क्यों न गाया?
    उत्तर-गला न था
  2. जूता पहना नहीं
    समोसा खाया नहीं
    उत्तर- तला न था
  3. अनार क्यों न चखा?
    वज़ीर क्यों न रखा?
    उत्तर – दाना न था
    (दाना=बुद्धिमान)
  4. सौदागर चे मे बायद? (सौदागर को क्या चाहिए)
    बूचे (बहरे) को क्या चाहिए?
    उत्तर – दो कान भी, दुकान भी
  5. तिश्नारा चे मे बायद? (प्यासे को क्या चाहिए)
    मिलाप को क्या चाहिए
    उत्तर – चाह (कुआँ भी और प्यार भी)
  6. शिकार ब चे मे बायद करद? (शिकार किस चीज़ से करना चाहिए)
    क़ुव्वते मग़्ज़ को क्या चाहिए? (दिमाग़ी ताक़त को बढ़ाने के लिए क्या चाहिए)
    उत्तर – बा-दाम (जाल के साथ) और बादाम

कवि अमीर की मुकरियाँ:




प्रसिद्ध कवि अमीर की प्रमुख रचनाएँ रात समय वह मेरे आवे। भोर भये वह घर उठि जावे॥
यह अचरज है सबसे न्यारा। ऐ सखि साजन? ना सखि तारा॥
नंगे पाँव फिरन नहिं देत। पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥
पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥
वह आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय॥
मीठे लागें वाके बोल। ऐ सखि साजन? ना सखि ढोल॥
जब माँगू तब जल भरि लावे। मेरे मन की तपन बुझावे॥
मन का भारी तन का छोटा। ऐ सखि साजन? ना सखि लोटा॥
बेर-बेर सोवतहिं जगावे। ना जागूँ तो काटे खावे॥
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की। ऐ सखि साजन? ना सखि मक्खी॥
अमीर खुसरो ने स्वंय अपने गुरुओं के नामों का उल्लेख किया है जिनका उन्होंने अनुसरण किया है अथवा उनका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से इन पर प्रभाव पड़ा है। गज़ल के क्षेत्र में सादी, मसनवी के क्षेत्र में निज़ामी, सूफ़ी और नीति संबंधी काव्यक्षेत्र में खाकानी और सनाई एवं कसीदे के क्षेत्र में कमाल इस्माइल हैं। खुसरो की गज़लें तो भाव और कला की दृष्टि से इतनी उत्तम हैं कि बड़े-बड़े संगीतज्ञ उन्हें गा गा कर लोगों को आनंद विभोर करते थे। उनमें अनेक स्थलों पर उदात्त प्रेम के दर्शन होते हैं। इन सभी काव्यों में काव्य का मनोज्ञ रुप हमें दृष्टिगोचर होता है। खुसरो ने स्वयं अपनी कविता की अनेक स्थलों पर प्रशंसा की है। वे अपने दीवान गुर्रतुल कमाल हिज्री। सन १२९३ ई. तीसरा दीवान ३४-४३ वर्ष, सबसे बड़ा दीवान, इसकी भूमिका काफ़ी बड़ी एवं विस्तृत है। इसमें खुसरो ने अपने जीवन संबंधी बहुत सी रोचक बातें दी हैं, कविता के गुण, अरबी से फ़ारसी कविता की श्रेष्ठता, भारत की फ़ारसी अन्य देशों के मुक़ाबले शुद्ध व श्रेष्ठ हैं, काव्य और छंदों के भेद आदि अनेक बातों पर प्रकाश डाला गया है।
इस दीवान में व मसनवियाँ, बहुत सी रुबाइयाँ, कते, गज़लें, मरसिये, नता और कसीदे हैं। मसनवियों में मिफताहुल फ़तूह बहुत प्रसिद्ध है। मरसियों में खुसरो के बेटे तथा फ़ीरोज़ खिलजी के बड़े लड़के या साहबज़ादे महमूद ख़ानखाना के मरसिए उल्लेखनीय हैं। एक बड़ी नात है जो खाकानी से प्रभावित ज़रुर है पर अपना अनोखा व नया अंदाज लिए है। कसीदों में खुसरो का सबसे अधिक प्रसिद्ध कवि अमीर की प्रमुख रचनाएँ प्रसिद्ध क़सीदा ‘दरियाए अबरार’ (अच्छे लोगों की नदी) इसी में है। इसमें हज़रत निजामुद्दीन औलिया की तारीफ़ है। अन्य कसीदे जलालुद्दीन और अलाउद्दीन खिलजी से संबंधित है।

FAQ

Q. अमीर खुसरो किसका दरबारी कवि था?

Ans. अमीर खुसरो दरबारी कवि बलबन, जलालुद्दीन खिलजी और अलाउद्दीन खिलजी के समकालीन थे।

Q. अमीर खुसरो ने किसकी खोज की?

Ans. अमीर खुसरो एक जनकवि, सूफी शायर और संगीतकार भी थे। आज जिसे हम हिंदुस्तानी संगीत कहते हैं, उसकी रचना में अमीर खुसरो का बहुत बड़ा हाथ है।

Q. अमीर खुसरो ने भारत का वर्णन कैसे किया?

Ans.अमीर खुसरो ने भारत का वर्णन अमीर खुसरो ने भारत को हिन्द कहा। आज भारत को “हिन्दुस्तान” कहा जाता है। मिन्हाज-ए-सिराज ने इस शब्द का प्रयोग राजनीतिक रूप से यह दर्शाने के लिए किया

Q. हिंदुस्तान को अमीर खुसरो ने महान क्यों माना है?

हिंदुस्तान को अमीर खुसरू ने महान माना है, क्योंकि ज्ञान और विविध विद्याओं का यहाँ व्यापक प्रचार हुआ है। हिंदुस्तान के लोग गुणी और हुनरमंद हैं तथा वे तरह-तरह की चीजें बनाना जानते हैं।


WhatsApp Group

Join Now

Telegram Group

Join Now

Read Also :



 

 

RELATED ARTICLES
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Most Popular