अरुंधति रॉय का जीवन परिचय-हेलो दोस्तों मैं अंजलि आज आप सब को अरुंधति रॉय जी के बारे में बताएँगे
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अरुंधति रॉय का जीवन परिचय
अरुंधति रॉय का जीवन परिचय-अरुंधति राय अंग्रेजी की सुप्रसिद्ध लेखिका और समाजसेवी हैं। अरुंधति राय अंग्रेजी की सुप्रसिद्ध लेखिका हैं, जिन्होंने कुछेक फ़िल्मों में भी काम किया है। “द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स” के लिये बुकर पुरस्कार प्राप्त अरुंधति राय ने लेखन के अलावा नर्मदा बचाओ आंदोलन समेत भारत के दूसरे जनांदोलनों में भी हिस्सा लिया है। कश्मीर को लेकर उनके विवादास्पद बयानों के कारण वे पिछले कुछ समय से चर्चा में हैं।
शिलौंग में 24 नवम्बर 1961 को जन्मी अरुंधति राय ने अपने जीवन के शुरुवाती दिन केरल में गुज़ारे। उसके बाद उन्होंने आर्किटेक्ट की पढ़ाई दिल्ली से की। अपने करियर की शुरुवात उन्होंने अभिनय से की। मैसी साहब फिल्म में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई। इसके अलावा कई फिल्मों के लिये पटकथायों भी उन्होंने लिखीं। जिनमें In Which Annie Gives It Those Ones (1989), Electric Moon (1992) को खासी सराहना मिली। १९९७ में जब उन्हें उपन्यास गॉड ऑफ स्माल थिंग्स के लिये बुकर पुरस्कार मिला तो साहित्य जगत का ध्यान उनकी ओर गया।
अरुंधति ने पुरस्कृत फिल्म मैसी साहिब में एक गाँव की लड़की की भूमिका निभाई थी और अरुंधति ने व्हिच ऐनी गिव्स इट दोज वन्स और इलेक्ट्रिक मून के लिए पटकथा की भी रचना की। जब वर्ष 1996 में अरुंधति रॉय की पुस्तक द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स प्रकाशित हुई, तो वह रातों रात एक सेलिब्रिटी बन गईं। द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स की सफलता के बाद रॉय के कई निबंध प्रकाशित हुए और उन्होंने सामाजिक मामलों के लिए भी काम किया।
अरुंधति रॉय संयुक्त राज्य अमेरिका की नई-साम्राज्यवादी नीतियों की एक मुखर आलोचक रही हैं और उन्होंने भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम की आलोचना की है। अरुंधति रॉय ने द इंड ऑफ इमेजिनेशन (1998) नामक पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्होंने भारत सरकार की परमाणु नीतियों की आलोचना की है। जून 2005 में अरुंधती रॉय ने ईराक के वर्ल्ड ट्रिब्यूनल में भी सहभागिता निभाई।
1997 में उनके उपन्यास दी गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स को मैन बुकर प्राइज मिला। साथ ही इस किताब को ‘न्यू यॉर्क टाइम्स नोटेबल बुक्स ऑफ़ दी इयर 1997’ में भी शामिल किया गया। जब अरुंधती की दी गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स का प्रकाशन किया गया तब अरुंधती रॉय बुरी तरह से किसी दुसरे विवाद में उलझी हुई थी। रॉय ने फिल्मो में भी काम किया था। उनके दुसरे पति फिल्मनिर्माता प्रदीप किशन ने उन्हें फिल्म मेसी साब में छोटा सा रोल दिया था।
इसके बाद अरुंधती ने बहुत से टेलीविज़न सीरीज जैसे भारतीय स्वतंत्रता अभियान और दो फिल्म, एनी और इलेक्ट्रिक मून के लिए लिखने का काम भी किया है। रॉय ने बहुत से सामाजिक और पर्यावरणीय अभियानों में भाग लिया है। आम आदमी की तरफ से मानवों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ निडर होकर आवाज उठाने हिम्मत को देखकर उन्हें 2002 में लंनन कल्चरल फ्रीडम अवार्ड और 2004 में सिडनी पीस प्राइज और 2006 में साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया।
1994 में अरुंधती राय को बहुत ध्यान मिला जब उन्होंने फूलन देवी के आधार पर शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्विन की आलोचना की। उन्होंने अपनी फिल्म समीक्षा में “द ग्रेट इंडियन रैप ट्रिक” नामक फिल्म को निंदा किया। इसके अलावा, उन्होंने इस तथ्य की निंदा की जीवित बलात्कार पीड़ित की सहमति के बिना घटना को फिर से बनाया गया था।
साथ ही, उन्होंने फूलन देवी के जीवन को गलत तरीके से प्रस्तुत करने और बहुत आंशिक तस्वीर स्केच करने के लिए कपूर पे आरोप लगाया। अपने बहुत प्रशंसित उपन्यास के बाद, रॉय ने फिर से एक पटकथा लेखक के रूप में काम करना शुरू किया और “द बानियन ट्री” और वृत्तचित्र “डीएएम / एजीई: ए फिल्म विद अरुंधती रॉय” (2002) जैसे टेलीविज़न धारावाहिकों के लिए लिखा। 2007 की शुरुआत में, रॉय ने घोषणा की कि वह अपने दूसरे उपन्यास पर काम करना शुरू कर देगी।
शिक्षा
अरुंधति रॉय का जीवन परिचय-अरुंधति ने केरल के अयमनम में रहती थीं। शुरुआती शिक्षा अपनी मां के स्कूल, जिसका नाम कॉर्पस क्रिस्टी था, से ली। बाद में दिल्ली आकर आर्किटेक्ट की पढ़ाई पूरी की।
16 साल में छोड़ दिया था घर
अरुंधति रॉय का जीवन परिचय-अरुंधति राय ने 16 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया था और दिल्ली आकर रहने लगीं। अरुंधति ने एक इंटरव्यू में खुद बताया था कि उन्होंने खाली बोतले बेचकर पैसे जुटाए थे। उन्हें अपनी पढ़ाई के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। जब जाकर उनका दिल्ली स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर में दाखिला हुआ।
लेखिका अरुंधति का करियर
अरुंधति रॉय का जीवन परिचय-अरुंधति ने अपने करियर के शुरुआती दिनों में अभिनय भी किया। मैसी साहब नाम की फिल्म में अरुंधति लीड रोल में रहीं। इसके बाद अरुंधति ने कई फिल्मों के लिए पटकथाएं लिखीं। अरुंधति राय पर अपने परिवार, खासकर माता पिता का गहरा असर रहा। यही वजह है कि अरुंधति की एक किताब में उन बातों का जिक्र था, जो दो साल की उम्र में उनके साथ घटित हुईं थीं। उन्होंने इस बारे में कहा था, ‘मुझे खुद याद नहीं है कि मैंने उन घटनाओं के बारे में कैसे लिख दिया। शायद वो घटनाएं मेरे मस्तिष्क में एकत्र हो गई हों और सही वक्त पर बाहर आ गई हों।
अरुंधती के दिल्ली वापिस आने के बाद उन्हें नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ अर्बन अफेयर्स में अच्छा पद मिला। 1984 में उनकी मुलाकात स्वतंत्र फिल्मनिर्माता प्रदीप कृष्ण से हुई, जिन्होंने अरुंधति को फिल्म मेसी साहिब में गड़ेरिया का किरदार दिया था। इसके बाद भारतीय स्वतंत्रता अभियान पर आधारित टेलीविज़न सीरीज में और दो फिल्म एनी और इलेक्ट्रिक मून में भी वे साथ में दिखे। इसके बाद फ़िल्मी दुनिया से मोहभंग कर अरुंधती बहुत सी जगह पर जॉब करने लगी और कुछ समय तक तो उन्होंने एरोबिक्स की क्लासेज भी ली।
अरुंधति राय की किताब
अरुंधति रॉय का जीवन परिचय-उपन्यासकार अरुंधति ने ‘इन विच एनी गिव्स इट दोज़ वंस (1989), इलेक्ट्रिक मून (1992) और गॉड ऑफ स्माल थिंग्स जैसे उपन्यास लिखे
सामाजिक कार्य
अरुंधति रॉय का जीवन परिचय-इसके बाद अरुंधती ने बहुत से सामाजिक और पर्यावरणीय अभियानों में भाग लिया है। आम आदमी की तरफ से मानवों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ निडर होकर आवाज उठाने हिम्मत को देखकर उन्हें 2002 में लंनन कल्चरल फ्रीडम अवार्ड और 2004 में सिडनी पीस प्राइज और 2006 में साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया।
विवाद
अरुंधति रॉय का जीवन परिचय-अरुंधति शेखर कपूर की मशहूर फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ पर फूलन देवी के बारे में लिखे अपने लेख के कारण विवादों में भी शामिल हुईं, जिसमें उन्होंने शेखर कपूर पर यह आरोप लगाया था कि इस फिल्म में उन्होंने फूलन देवी के शोषण और उनके जीवन से संबंधित घटनाओं को गलत तरीके से प्रस्तुत किया है। वर्ष 2002 में अरुंधति को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अदालत का तिरस्कार करने का दोषी ठहराया गया था और साथ ही साथ उन्हें 2000 रुपये के जुर्माने के साथ-साथ एक दिन के कारावास की सजा भी सुनाई गई थी।
पुरस्कार
अरुंधति रॉय का जीवन परिचय-2002 में लंनन कल्चरल फ्रीडम अवार्ड 2004 में सिडनी शांति पुरस्कार 2006 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया
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