Monday, April 29, 2024
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किसने किया 1942 भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण | Bharat Chhodo Andolan Ke Karan in hindi

किसने किया 1942 भारत छोड़ो आन्दोल-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको भारत छोड़ो आन्दोलन के बारे में बताने जा रहा हु। भारतवर्ष एक लम्बे समय तक अंग्रेजों के अधीन रहा है. अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी पाने के लिए कई क्रांतिकारियों को अपनी जान तक की क़ीमत चुकानी पड़ी है. इस स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए कई तरह की क्रांतियाँ हुईं, जिसमें असंख्य देशवासी शामिल होते रहे. ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ भी उसी तरह की क्रांतियों में एक है, जो महात्मा गाँधी के नेतृत्व में हुआ था. इस आन्दोलन से अंग्रेजों का शासन कमजोर पड़ गया था और अंग्रेजों को इस बात का एह्साह हो गया था कि वे भारत में अब अधिक समय तक नहीं रह पायेंगे. भारत छोड़ो आन्दोलन का विशेष वर्णन निम्नलिखित है.

भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत

किसने किया 1942 भारत छोड़ो आन्दोल-भारत छोड़ो आन्दोलन सर्वभारतीय कांग्रेस कमिटी के बॉम्बे सेशन द्वारा आरम्भ किया गया था, जिसके मुख्य सुत्राधार महात्मा गाँधी थे. इसका आरम्भ 8 अगस्त सन 1942 में हुआ था और इसी समय द्वीतीय विश्वयुद्ध भी चल रहा था. महात्मा गाँधी ने इसी आन्दोलन के एक भाषण में देश्वासियों को ‘करो या मरो’ का सन्देश दिया था. इस आन्दोलन का मुख्य लक्ष्य भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराना था. इस समय देश में कुछ ऐसे लोग भी थे, जो भारत छोड़ो आन्दोलन का समर्थन नहीं कर रहे थे. मुस्लिम लीग, इंडियन इम्पीरियल पुलिस, ब्रिटिश इंडियन आर्मी और बहुत से ऐसे व्यापारी जिन्हें द्वितीय युद्ध की वजह से बहुत अधिक लाभ प्राप्त हो रहा था, इन सभी ने भारत छोड़ो आन्दोलन को अपना समर्थन नहीं दिया

किसने किया 1942 भारत छोड़ो आन्दोल-इस समय कई युवा आज़ाद हिन्द फौज़ और नेता जी सुभाष चंद बोस के विचारों से प्रभावित थे. इन युवाओं ने भी भारत छोड़ो आन्दोलन में अधिक हिस्सा नहीं लिया. इस समय भारत छोड़ो आन्दोलन को अमेरिका का समर्थन प्राप्त हुआ और वहाँ के तात्कालिक राष्ट्रपति फ्रेंक्लिन डी रोसवैल्ट ने यूनाइटेड किंगडम के तात्कालिक प्रधानमन्त्री विस्टन चर्चिल को इस बात पर मजबूर किया कि वे भारतवासियों की मांगों को पूरी करें. इस समय ब्रिटिश सरकार ने हालाँकि भारत को तात्कालिक रूप से आज़ादी देने से मना कर दिय

द्वितीय विश्वयुद्ध और भारत की सहभागिता

किसने किया 1942 भारत छोड़ो आन्दोल-वर्ष 1939 में कई भारतीय राष्ट्रवादियों को इस बात का क्रोध था कि भारत को बिन वजह ही दुसरे विश्वयुद्द में शामिल किया गया है. दरअसल इस समय भारत के गवर्नर जनरल लार्ड लिनलिथगो था, जिसने भारत की मर्ज़ी जाने बिना ही दुसरे विश्व युद्द में भारत को शामिल कर दिया. मुस्लिम लीग इस युद्ध में भारत के शामिल होने का समर्थन कर रहा था, किन्तु उसी जगह कांग्रेस इस मुद्दे पे दो भागों में बंट गया. युद्द के समय कांग्रेस के वर्किंग कमिटी की बैठक में यह तय किया गया कि फासीवाद के ख़िलाफ़ लड़ने में भारत का योगदान रहेगा, किन्तु इस पर भारत को भी आज़ादी मिलनी चाहिए. हालाँकि अहिंसात्मक विचारों से प्रभावित होने की वजह से महात्मा गाँधी ने इसका समर्थन नहीं किया. महात्मा गाँधी किसी भी तरह से युद्ध में शामिल नही होना चाहते थे. इस वजह से इस समय भारतीय नेताओं में मतभेद चलता रहा.

क्रिप्स मिशन

मार्च 1942 में स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स ने एक विशेष योजना बनायी, जिसका वर्णन नीचे किया जा रहा है.

क्रिप्स मिशन पहली बार हुआ था, जिसके अंतर्गत ब्रिटिश सरकार ने भारत को डोमिनियन का अधिकार दिया.

भारतीयों को इस मिशन के अंतर्गत अपना संविधान बनाने का मौक़ा दिया गया.

क्रिप्स मिशन हालाँकि कांग्रेस, मुस्लिम लीग आदि को संतुष्ट करने के लिए लाया गया था, अतः इसे इन सभी के द्वारा ठुकरा दिया गया.

महात्मा गाँधी एक अखंड भारत चाहते थे वहीँ दूसरी तरफ मुस्लिम लीग के लोग एक अलग देश पकिस्तान के नाम से चाहते थे. कांग्रेस भारत की मिलिट्री पर पूरा अधिकार चाहती थी और इनका कहना था कि ‘एक ग़ुलाम देश किसी भी तरह से आगे नहीं बढ़ सकता है.’

मुस्लिम लीग के अनुसार क्रिप्स मिशन में मुस्लिमों को न्यूनतम अधिकार दिया गया था.

हिन्दू महासभा ने पकिस्तान के चर्चे की वजह से इसे नकार दिया.

क्रिप्स मिशन के फेल होने का सबसे बड़ा कारण था कि इसमें सत्ता के हस्तानान्तरण की कोई भी शर्त स्पष्ट नहीं थी. इसी के साथ इसे भारत की सभी राजनीतिक संस्थानों ने भी ठुकरा दिया था.

भारत छोड़ो आन्दोलन के विशेष प्रभाव

किसने किया 1942 भारत छोड़ो आन्दोल-वर्ष 1939 में जब भारत को जर्मनी और ब्रिटेन के युद्ध के मध्य लाया गया तो कांग्रेस द्वारा यह प्रस्ताव लाया गया कि भारत तब तक इसमें शामिल नहीं होगा जब तक यहाँ के नेताओं से बात नहीं होगी. महात्मा गाँधी को इस बात पर सख्त ऐतराज़ था. उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार से भारत के लोगो के लिए रोटी की मांग की गयी थी, किन्तु ब्रिटेन सरकार इसे पत्थर दे रही है. इस आन्दोलन के विशेष कारक निम्नलिखित हैं.

यह सविनय अवज्ञा आन्दोलन का ही एक अंश था, जिसे महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह का नाम दिया था. सर्वभारतीय कांग्रेस कमिटी द्वारा आरम्भ किये गए

इस आन्दोलन में कई कांग्रेस नेताओं को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जेल में डाल दिया

गया. एक समय के लिए भारत में कांग्रेस पर बैन भी लगा दिया था. इस तरह से यह आन्दोलन कांग्रेस दल के लिए एक महत्वपूर्ण आन्दोलन सिद्ध हुआ.

इन नेताओं के जेल में जाने पर आम लोगों ने कई सरकारी संपात्तियों को क्षति पहुंचानी शुरू की. इनमे सबसे अधिक क्षति पुलिस स्टेशन, लॉ कोर्ट और रेल सेवा को पहुंचाई गयी.,

इस आन्दोलन में ब्रिटिश सरकार को मुस्लिमों और कम्युनिस्टो का समर्थन प्राप्त था.

भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध

किसने किया 1942 भारत छोड़ो आन्दोल-भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध देश की ही कई अन्य राजनीतिक संस्थाएं कर रही थी. इनमे मुख्य संस्थाएं थीं मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी तथा प्रिन्सली राज्य. सभी का विशिष्ट वर्णन नीचे किया जा रहा है.

मुस्लिम लीग: मुस्लिम लीग का कहना था कि यदि तात्कालिक समय में ब्रिटिश भारत को इसी हाल में छोड़ के चली जाती है और भारत आज़ाद हो जाता है, तो मुस्लिमो को हिन्दूओं के अधीन हो जाना पड़ेगा. मुस्लिम हिन्दुओं द्वारा दबा दिए जायेंगे. मुहम्मद अली जिन्ना ने गाँधी के सभी विचारों को मानने से इनकार कर दिया और इस समय एक बड़ी संख्या में मुस्लिमों ने अंग्रेजों का साथ दिया. मीडिया हिन्दू मुस्लिम भावनाओं के साथ खेल रही है के बारे में यहाँ पढ़ें.

हिन्दू महासभा: हिन्दू राष्ट्रवादियों ने भी इस आन्दोलान का खुल कर विरोध किया और औपचारीक तौर पर किसी भी तरह का समर्थन नहीं दिया. इन्हें भारत के विभाजन से परेशानी थी और ये एकछत्र अखंड भारत चाहते थे. इस संगठन के अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर, श्यामाप्रसाद मुख़र्जी आदि ने महात्मा गाँधी के विचारों के साथ से इनकार कर दिया और हिन्दू महासभा उनका साथ देने से पीछे हट गयी.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी इस आन्दोलन में अपनी सहभागिता दर्ज नहीं कराई. इस समय भारत में ब्रिटिश सरकार ने कम्युनिस्ट पार्टी पर बैन लगा रखी थी. कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों ने अपनी पार्टी से बैन हटाने और सोवियत यूनियन को जर्मनी के विरुद्ध युद्द में मदद करने के लिए ब्रिटेन सरकार की मदद की और बाद में ब्रिटिश सरकार ने कम्युनिस्ट पार्टी से देश में बैन हटा दिया.

रियासतों द्वारा: देशी रियासतों द्वारा भी इस आन्दोलन में भाग नहीं लिया गया. बल्कि इन्होने ब्रिटिश सरकार की मदद तक की.

किसने किया 1942 भारत छोड़ो आन्दोल-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भी भारत छोड़ो आन्दोलन को समर्थन नहीं दिया गया. भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्सा न लेने की वजह से इस संस्था को आम लोगों द्वारा तथा स्वयं इसके कुछ नेताओं द्वारा संघ को एक नाराजगी की नज़र से देखा जाने लगा. भारत छोड़ो आन्दोलन भारत से ब्रिटिश सत्ता को हटा कर आज़ादी लाने के लिये था, किन्तु इसी समय संघ का कोई भी योग्दान भारत की आज़ादी की लड़ाई में नहीं देखने को मिल पा रहा था. अतः लोगों में नाराजगी होनी आम बात थी.

भारतीय राष्ट्रवादियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी तरह की सुविधा प्राप्त नहीं थी. हालाँकि अमेरिका भारत की आज़ादी का समर्थन कर रहा था, किन्तु जब चर्चिल द्वारा अमेरिका को त्यागपत्र देने की धमकी दी गयी, तो अमेरिका ने सख्ती कम की और चुप रहना ही सही समझा. इस तरह से समय समय पर अमेरिका ने ब्रिटेन और भारतीय दोनो को उलझाए रखा.

स्थानीय लोगों का आक्रोश

किसने किया 1942 भारत छोड़ो आन्दोल-ब्रिटिश सरकार को भारत- वर्मा सीमा पर जापानी सेनाओं का विरोध झेलना पड़ रहा था. इस समय गाँधी समेत कई कांग्रेसी नेताओं को पकड़ कर ब्रिटिश शासन ने जेल में डाल दिया. सभी अग्रसर नेताओं को जेल में डाल देने पर उस समय के युवा कांग्रेस नेता अरुणा असफ अली ने एआईसीसी सेशन की अध्यक्षता की और 9 अगस्त को झंडा फहराया. इसके बाद कांग्रेस पार्टी पर पाबंदी लगा दी गयी. कांग्रेसी नेताओं पर इनती ज्यातियों को देख कर लोगों के दिलों में इनके प्रति सहानुभूति की भावना आने लगी. हालाँकि इस समय कोई ऐसा नेता नहीं था जो ब्रिटिश हुकूमत के इन फैसलों का विरोध कर सके किन्तु जल्द ही ख़ुद ब ख़ुद आम लोग सड़क पर आये और अपने विरोध दर्ज कराया. विशेष नेतृत्व न होने की वजह से ही लोगों का विरोध कहीं कहीं हिंसक रूप भी लेने लगा था.

भारत छोड़ो आन्दोलन की समाप्ति

वर्ष 1944 से भारत पुनः शांति पथ पर अग्रसर हुआ, किन्तु अब कांग्रेस के नेतृत्व का प्रभाव कम हो गया था. इस आन्दोलन को भारत के अधिकतर राजनीतिक संस्थाओं का समर्थन न प्राप्त होने की वजह से यह फ़ैल हो गया और एक समय तक कांग्रेस तथा महात्मा गाँधी को इसकी आलोचना झेलनी पड़ी.

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