कवि गंगादास जीवन परिचय हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है में आज आपको गंगा दास के बारे में बताने जा रहा हु। जो की महान संत में से एक थे। गंगा दास (१८२३- १९१३) अपने समय के प्रसिद्ध सन्त थे।
कवि गंगादास जीवन परिचय उनके शिष्यों की संख्या भी काफी थी। भारत के सभी धार्मिक स्थलों की यात्रा करके वे अन्त में गढ़मुक्तेश्वर, जिला – गाजियाबाद में रहने लगे थे। महान दार्शनिक, भावुक भक्त, उदासी महात्मा और एक महाकावि के रूप में भी इन्हें काफी ख्याति मिली थी। उनके अनेक शिष्य जैसे – चेतराम, बालूराम, दयाराम, मोतीराम, मोहनलाल आदि उनके पद गा-गाकर लोगों को सुनाया करते थे। अनेक विद्वान उन्हें खड़ी बोली का प्रथम कवि मानते हैं
कवि गंगादास जीवन परिचय महात्मा गंगा दास का जन्म दिल्ली-मुरादाबाद मार्ग पर स्थित बाबूगढ़ छावनी के निकट रसूलपुर ग्राम में सन् १८२३ ई. की बसन्त पंचमी को हुआ था। इनके पिता चौधरी सुखीराम सिंह एक बड़े जमींदार थे। इनकी माता का नाम दारवा कौर था, जो हरियाणा के बल्लभगढ़ के निकट स्थित दयालपुर की रहने वाली थीं। संत गंगा दास के बचपन का नाम गंगाबख्श था। अल्पायु में ही इनके माता-पिता का देहान्त हो गया था। माता की मृत्यु के पश्चात इन्हें संसार से विरक्ति हो गई। अन्तत: ११ वर्ष की आयु में इन्होंने घर छोड़ दिया था। बाद में ये संत विष्णु दास उदासीन से दीक्षा लेकर गंगाबख्श से गंगा दास बन गए। Ganga Das Biography In Hindi
कवि गंगादास जीवन परिचय- संत जी का जन्म मुंडेर गोत्र के सिख जाट परिवार में हुआ। संत जी के पूर्वज 1783 दिल्ली फतेह के बाद पंजाब के अमृतसर जिले के मांडला नमक स्थान से आकर मेरठ मंडल में रहने लगे थे। मेरठ मंडल में आकर इनके परिवार की १५ पीढ़ियाँ बीत चुकी हैं। इनकी पारिवारिक स्थिति अत्यन्त सम्भ्रांत थी। उस समय इस परिवार के पास ६०० एकड़ जमीन थी। बचपन में बालक गंगा दास बहुत साफ़ सुथरे रहते थे और तनिक सी मिटटी लगने पर रोने लगते थे। इस आदत के कारण लोग व्यंग से इनको भगतजी कहते थे। यह कौन जनता था कि यह बालक एक दिन महान महात्मा बनेगा।
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चमत्कारिक व्यक्तित्व संपादित करें
कवि गंगादास जीवन परिचय- संत गंगा दास जी ग्राम ललाने में सेठ हरलाल की हवेली में कुछ दिन रुके थे। उन्ही दिनों सेठ के घर कुख्यात दस्यु झंडा गुजर ने डाका डाला था। संत गंगा दास के हस्तक्षेप करने पर झंडा गुजर ने लालाजी के आभूषण लोटा दिए तथा संत जी के पैर छूकर माफ़ी मांगी थी। सेठ कशी राम के कोई संतान न थी संत गंगा दास की सेवा से संतान प्राप्ति की बात भी काफी प्रचलित है। Ganga Das Biography In Hindi
कवि गंगादास जीवन परिचय- संत गंगा दास जी ने काशी में २० वर्षों तक रहकर वेदांत, व्याकरण, गीता, महाभारत, रामायण, रामचरित मानस, अद्वैत कौस्तुम तथा मुक्तावली आदि दार्शनिक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। संत जी ने जिला मुरादाबाद उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और राजस्थान में भी भ्रमण किया था। बक्सर के निकट फतापुर ग्राम में ये १९ वर्षों तक रहे और चौधरी रकम सिंह और पंडित चिरंजीव लाल को क्रमश हिन्दी और संस्कृत व्याकरण पढ़ाई की थी। यहाँ इनके अनेक शिष्य रहते थे जिनमें जियाकौर नमक शिष्या को भी यहीं दीक्षित किया गया था। संध्या के समय संत जी गाँव से बाहर बाग़ के कुंए पर बैठकर बंशी बजाया करते थे। कहते हैं ये बंशी इतनी मधुर बजाते थे कि वहां विशाल जनसमूह और सैंकडों मयूर भी इकट्ठे हो जाते थे।
कवि गंगादास जीवन परिचय- काशी से लौटने के पश्चात् ये अपने ग्राम में काफी दिन तक रहे। यहाँ ये साधू वेश में अलग कुटिया बनाकर रहते थे। सन १९१७ में ये अपने घोडे पर चढ़कर आसपास के संतों से मिलते थे। दिल्ली दरबार को देखने जब संत जी अपने घोडे पर चढ़कर दिल्ली पहुंचे तो प्रबंधकों ने इस भव्य वक्तित्व से प्रभावित होकर इनको किसी रियासत का राजा समझ कर आगे की कुर्शियों पर बिठाने लगे. परन्तु महात्मा जी ने अवगत कराया कि वे तो एक साधू हैं। अपने जीवन के अन्तिम २५-२६ वर्षों तक ये गढ़मुक्तेश्वर में रहे। ये समाधी लगाते थे। एक बार अपने शिष्य दयाराम से कोटड़ी का ताला लगवाया तथा एक मास बाद बाहर आए। इस घटना से इनकी ख्याति बहत फ़ैल गई। इनका कद लंबा और हष्ट-पुष्ट था। इनका चेहरा लालिमा से दहकता था। भक्त जी आजीवन ब्रह्मचारी रहे।
अन्तिम समय संपादित करें
कवि गंगादास जीवन परिचय- संत गंगा दास ने संवत १९७० तदनुसार सन १९१३ भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को प्रात ६ बजे अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया था। जन्माष्टमी के दिन प्राण त्यागने से पहले इन्होने कुटुम्बियों को आदेश दिया कि मेरा शव गंगा में प्रवहित कर देना, मेरे इस स्थान की कोई भी वस्तु घर मत ले जाना क्योंकि यह सब दान माल की है। लेटे हुए ही उन्होंने यह आदेश दिया था। फ़िर वहां से सबको बाहर जाने के लिए कहा. सबके बाहर जाने के बाद वे शीघ्रता से उठकर बैठ गए। पदमासन लगाया और ब्रह्मलीन हो गए। अब वह स्थान जहाँ महात्मा जी का आश्रम था उदासी साधू बुद्धा सिंह द्वारा डॉ राम मनोहर लोहिया कालिज को दान में दे दिया गया है। Ganga Das Biography In Hindi
हिन्दी साहित्य में योगदान संपादित करें
कवि गंगादास जीवन परिचय- इस महान संत-कवि ने ९० वर्ष की अवधि में लगभग ५० काव्य-ग्रन्थों और अनेक स्फुट निर्गुण पदों की रचना की। इनमें से ४५ काव्य ग्रन्थ और लगभग ३००० स्फुट पद प्राप्त हो चुके हैं। इनमें से २५ कथा काव्य और शेष मुक्तक हैं। १९१३ ई. में जन्माष्टमी को प्रात: ६ बजे वे व्रह्मलीन हुए। उनकी इच्छानुसार इनके शिष्यों ने उनका पार्थिव शरीर परम-पावनी गंगा में प्रवाहित कर दिया। ज्ञान, भक्ति और काव्य की दृष्टि से संत-कवि गंगा दास का व्यक्तित्व अनूठा सामने आता है। परन्तु इनका काव्य अनुपलब्ध होने के कारण हिन्दी साहित्य में इनका उल्लेख नहीं हो पाया। कई विद्वानों ने तो इन्हें खड़ी बोली हिन्दी साहित्य का भीष्म पितामह कहा है।
संत गंगा दास द्वारा रचित काव्य पर कु्छ विद्वानों के मत
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी– हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका के अतिरिक्त संत काव्य की सौन्दर्य दृष्टि और कला पर संत गंगा दास का काव्य सुंदर प्रकास डालता है।
- डॉ रामकुमार वर्मा– ज्ञान भक्ति और काव्य की दृष्टि से संत कवि गंगा दास विशेष प्रतिभावान रहे है परन्तु इनका काव्य अनुपलब्ध होने के कारण हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनका उल्लेख नहीं हो सका था।
- डॉ गोपीनाथ तिवारी– जब भारतेंदु और ग्रियर्सन प्रभृति विद्वान खड़ी बोली को हिन्दी काव्य रचना के लिए अनुपयुक्त मान रहे थे उससे पहले केवल संत गंगादास अनेक सुंदर छंदों और वृत्रों द्वारा खड़ी बोली के कलापूर्ण और सुंदर काव्य की अनेक रचनाएं प्रस्तुत कर चुके थे।
- डॉ विजयेन्द्र स्नातक– संत कवि गंगादास का काव्य भारतेंदु पूर्व खड़ी बोली हिन्दी काव्य का उच्चतम निर्देशन है और हिन्दी साहित्य के इतिहास की अनेक पुराणी मान्यताओं के परिवर्तन का स्पष्ट उद्घोष भी करता है।
गंगा दास जी के दोहेसंपादित करें
- दोहा:- ६४ ॥ श्री गंगा दास जी
- बाराह रूप के दरश हो निशि बासर मोहिं जान।
- गंगा दास है नाम मम तुम से कहूँ बखान॥
॥ श्री गंगा दास जी ॥ कवित संपादित करें
- झूलत कदम तरे मदन गोपाल लाल,
- बाल हैं बिशाल झुकि झोंकनि झुलावती। १।
- कोई सखी गावती बजावती रिझावती,
- घुमड़ि घुमड़ि घटा घेरि घेरि आवती। २।
- परत फुहार सुकुमार के बदन पर,
- बसन सुरंग रंग अंग छबि छावती। ३।
- कहैं गंगादास रितु सावन स्वहावन है,
- पावन पुनित लखि रीझि कै मनावती। ४।
संत गंगा दास की कुण्डलियाँ संपादित करें
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- बोए पेड़ बबूल के, खाना चाहे दाख।
- ये गुन मत परकट करे, मनके मन में राख।।
- मनके मन में राख, मनोरथ झूठे तेरे।
- ये आगम के कथन, कदी फिरते ना फेरे।।
- गंगादास कह मूढ़ समय बीती जब रोए।
- दाख कहाँ से खाए पेड़ कीकर के बोए।।
- माया मेरे हरी की, हरें हरी भगवान।
- भगत जगत में जो फंसे, करें बरी भगवान।।
- करें बरी भगवान, भाग से भगवत अपने।
- इसे दीनदयाल हरी-हर चाहियें अपने।।
- गंगादास परकास भया मोह-तिमिर मिटाया।
- संत भए आनंद ज्ञान से तर गए माया।।
- अन्तर नहीं भगवान में, राम कहो चाहे संत।
- एक अंग तन संग में, रहे अनादि अनंत।।
- रहे अनादि अनंत, सिद्ध गुरु साधक चेले।
- तब हो गया अभेद भेद सतगुरु से लेले।।
- गंगादास ऐ आप ओई मंत्री अर मंतर।
- राम-संत के बीच कड़ी रहता ना अन्तर।।
- जो पर के अवगुण लखै, अपने राखै गूढ़।
- सो भगवत के चोर हैं, मंदमति जड़ मूढ़।।
- मंदमति जड़ मूढ़ करें, निंदा जो पर की।
- बाहर भरमते फिरें डगर भूले निज घर की।।
- गंगादास बेगुरु पते पाये ना घर के।
- ओ पगले हैं आप पाप देखें जो पर के।।
- गाओ जो कुछ वेद ने गाया, गाना सार।
- जिसे ब्रह्म आगम कहें, सो सागर आधार।।
- सो सागर आधार लहर परपंच पिछानो।
- फेन बुदबुद नाम जुडे होने से मानो।।
- गंगादास कहें नाम-रूप सब ब्रह्म लखाओ।
- अस्ति, भाति, प्रिय, एक सदा उनके गुन गाओ।।
- संत गंगा दास की ओर कुण्डलियाँ पढने के लिए बाहरी कड़ियाँ देखिये.
FAQ
Q. बाबा गंगा दास कौन है?
Ans. महाकवि बाबा गंगा दास, भारतीय साहित्य के श्रेष्ठ कवियों में से एक थे। उनका जन्म 1823 ईस्वी में राजपीपड़ा जिले, राजस्थान में हुआ था और उनका निधन 1883 ईस्वी में हुआ था। उनका असली नाम ‘रतन सिंह’ था, लेकिन उन्हें ‘बाबा गंगा दास’ के नाम से प्रसिद्धि मिली थी।
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