Thursday, May 2, 2024
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महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रनाएँ Mahaveer Prasad Biography hindi

महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रनाएँ-इस पोस्ट में आपको आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के जीवन परिचय, साहित्यक परिचय एवं उनकी भाषा शैली के बारे में बताया गया है।

महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रनाएँ रामसहाय द्विवेदी सेना में नौकरी करते थे। आर्थिक दशा अत्यन्त दयनीय थी। इस कारण पढ़ने-लिखने की उचित व्यवस्था नहीं हो सकी। पहले घर पर ही संस्कृत पढ़ते रहे, बाद में रायबरेली, फतेहपुर तथा उन्‍नाव के स्कूलों में पढ़े, परन्तु निर्धनता ने पढ़ाई छोड़ने के लिए विवश कर दिया।




महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रनाएँ द्विवेदी जी पढ़ाई छोड़कर बम्बई चले गये। वहाँ तार का काम सीखा। तत्पश्चात्‌ जी०आई०पी० रेलवे में 22 रु० मासिक की नौकरी कर ली। अपने कठोर परिश्रम तथा ईमानदारी के कारण इनकी निरन्तर पदोन्नति होती गयी। धीरे-धीरे ये 150 रु० मासिक पाने वाले हैड क्लर्क बन गये। नौकरी करते हुए भी आपने अध्ययन जारी रखा। संस्कृत, अंग्रेजी तथा मराठी का-भी इन्होंने गहरा ज्ञान प्राप्त कर लिया। उर्दू और गुजराती में भी अच्छी गति हो गयी। बम्बई से इनका तबादला झाँसी हो गया। द्विवेदी जी स्वाभिमानी व्यक्ति थे। अचानक एक अधिकारी से झगड़ा हो जाने पर नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया। इसके पश्चात्‌ आजीवन हिन्दी साहित्य की सेवा में लगे रहे।


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महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रनाएँ  द्विवेदी जी का व्यक्तित्व और कृतित्व, दोनों ही इतने प्रभावपूर्ण थे कि उस युग के सभी साहित्यकारों पर उनका प्रभाव था। वे युग-प्रवर्तक के रूप में प्रतिष्ठित हुए। हिन्दी साहित्य में वह युग (द्विवेदी युग) नाम से प्रसिद्ध हुआ। सन्‌ 1938 ई० (पौष कृष्णा 30 सं० 1995 वि०) में यह महान्‌ साहित्यकार जगत्‌ को शोकमग्न छोड़कर परलोक सिधार गया।

आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी की जीवनी (Mahavir Prasad Dwivedi Biography In Hindi)

नाम महावीरप्रसाद द्विवेदी
जन्म तिथि 15 मई 1864
जन्म स्थान दौलतपुर, रायबरेली (भारत)
मृत्यु तिथि 21 दिसम्बर 1938
मृत्यु स्थान रायबरेली (भारत)
आयु (मृत्यु के समय) 74 वर्ष
राष्ट्रीयता भारतीय
व्यवसाय कवि और लेखक
काल/अवधि आधुनिक काल और द्विवेदी युग
विधा कहानी और उपन्यास
विषय निबंध, आलोचना और कविता
भाषा संस्कृत, हिंदी, अंग्रेज़ी, मराठी और गुजराती
पिता का नाम पं॰ रामसहाय दुबे



रचनाएँ संकलन, सम्पत्तिशास्त्र, अद्भुत आलाप, अतीत-स्मृति, वाग्विलास, जल-चिकित्सा आदि।

महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनाएं

(क) मौलिक रचनाएँ-अद्भुत-आलाप, रसज्ञ रंजन-साहित्य-सीकर, विचित्र-चित्रण, कालिदास की निरंकुशता, हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, साहित्य सन्दर्भ आदि।

(ख) अनूदित रचनाएँ- रघुवंश, हिन्दी महाभारत, कुमारसम्भव, बेकन विचारमाला, किरातार्जुनीय शिक्षा एवं स्वाधीनता, वेणी संहार तथा गंगा लहरी आदि आपकी प्रसिद्ध अनूदित रचनायें हैं।

महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रनाएँ द्विवेदी जी ने मुख्यतया तीन प्रकार के लेख लिखे हैं-(1) परिचयात्मक, (2) आलोचनात्मक, तथा (3) गवेषणात्मक।

विषय के अनुसार इनकी शैली के भी तीन मुख्य रूप हैं–

  1. परिचयात्मक-शैली– द्विवेदी जी ने शिक्षा और समाजशास्त्र आदि विषयों पर अनेक निबन्धों की रचना की है। इन निबन्धों में परिचयात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। इस शैली में भाषा सरल, स्वाभाविक तथा वाक्य छोटे-छोटे हैं। यह द्विवेदी जी की सरलतम शैली है।
  2. आलोचनात्मक-शैली– द्विवेदी जी ने मनमाने ढंग पर लिखने वाले कवि-लेखकों तथा उनकी कृतियों की कटु आलोचना की है। उनके आलोचनात्मक निबन्धों की भाषा गम्भीर और संयत है तथा शैली ओजपूर्ण है। यह शैली अति सरल, सुगम और व्यावहारिक है। निम्नलिखित उदाहरण देखिए-
  3. गवेषणात्मक शैली– यह द्विवेदी जी की विशेष शैली है। वे जब किसी गम्भीर विषय को भी साधारण लोगों को समझाने के लिए लिखते हैं तो अति सरल भाषा और छोटे-छोटे वाक्‍यों का प्रयोग करते हैं। जब विद्वानों के लिए कोई बात लिखते हैं तो भाषा गम्भीर और शुद्ध हिन्दी होती है। वाक्य भी अपेक्षाकृत लम्बे हो जाते हैं। ‘साहित्य की महत्ता’ निबन्ध से इस शैली का एक उदाहरण प्रस्तुत है–

“ज्ञानराशि के संचित कोष का ही नाम साहित्य है। सब तरह के भावों को प्रकट करने की योग्यता रखने वाली और निर्दोष होने पर भी यदि कोई भाषा अपना निज का साहित्य नहीं रखती है तो वह रूपवती भिखारिन के समान कदापि आदरणीय नहीं हो सकती।”




इन तीनों प्रकार की शैलियों के अतिरिक्त भावात्मक तथा व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग भी द्विवेदी जी के निबन्धों में पाया जाता है। इनकी भावात्मक शैली में विचारों की सरस अभिव्यक्ति, अलंकृत तथा कोमलकान्त पदावली का प्रयोग देखने को मिलता है। व्यंग्यात्मक शैली में शब्दों का चुलबुलापन तथा वाक्यों में सरलता पायी जाती है। एक उदाहरण प्रस्तुत है-

“अच्छा, हंस रहते कहाँ हैं और खाते क्या हैं? हंस बहुत करके इसी देश में पाये जाते हैं। उनका सबसे प्रिय स्थान मानसरोवर है…… यदि हंस दूध पीते हैं तो उनको मिलता कहाँ है? मानसरोवर में उन्होंने गायें या भैंसे तो पाल नहीं रखीं और न हिन्दुस्तान के किसी तालाब या नदी में उनके दूध पीने की सम्भावना है।”




महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रनाएँ संक्षेप में हम कह सकते है कि द्विवेदी जी एक महान शैलीकार थे। उनकी शैली में उनका व्यक्तित्व झलकता है। गद्य की शैली तथा भाषा का परिमार्जन कर उन्होंने एक युग-निर्माता का कार्य किया था।


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FAQ

Q. हजारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा शैली कौन सी थी?

Ans. द्विवेदी जी की भाषा सरल और प्रांजल है। व्यक्तित्व- व्यंजकता और आत्मपरकता उनकी शैली की विशेषता है।

Q. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की भाषा क्या है?

Ans. संस्कृत, ब्रजभाषा और खड़ी बोली में स्फुट काव्य-रचना से साहित्य-साधना का आरम्भ करने वाले महावीर प्रसाद द्विवेदी

Q. महावीर प्रसाद द्विवेदी का मुख्य योगदान क्या रहा?

Ans. साहित्यिक योगदान: महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कविता, गद्य, कहानियां, नाटक और उपन्यास आदि के क्षेत्र में अपना योगदान दिया। उनकी कविताएं उत्कृष्ट साहित्यिक भावनाओं और समाज के मुद्दों पर विचार को प्रकट करती थीं।

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