गोपाल दास नीरज ग़ज़लें – हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको गोपालदास नीरज के बारे में बताने जा रहा हु। उत्तर प्रदेश राज्य में यमुना नदी पर एक सुंदर शहर बसा है जिसका नाम इटावा है। एक समय ऐसा भी था जब इटावा को लोग इष्टिकापुर नाम से जानते थे। Gopaldas Neeraj Biography In Hindi
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें -इटावा का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इटावा शहर में खूब सारी ईंट मिलती है। यमुना, चंबल, क्वारी, सिंध, पहुज यह सारी नदियां इसी शहर में बहती है। यह बहुत प्रसिद्ध शहर है।हमारे धार्मिक ग्रंथ जैसे कि महाभारत और रामायण में भी इस शहर का जिक्र मिलता है। यह शहर कई प्रसिद्ध लोगों का जन्म स्थान रहा है। इन प्रसिद्ध लोगों में भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री जाकिर हुसैन का नाम सबसे ऊंचा रहा है।गंगा किनारे हमारा घर हुआ करता था और घर में बेहद गरीबी थी। जो लोग गंगा नदी में 5 पैसे, 10 पैसे फेंकते थे, हम बच्चे गोता लगाकर उन्हें निकालकर इकठ्ठा करते थे और इसी जमा पूंजी से घर का चूल्हा जलता था। इस कथन को पढ़कर मेरा मन भावुक हो उठा। क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह किसका कथन हो सकता है? यहां पर बात हो रही है भारत के हिन्दी साहित्यकार और शिक्षक गोपालदास नीरज की। ऊपर बताया गया यह कथन गोपाल दास नीरज ने एक इंटरव्यू में बोला था। मैंने इस पोस्ट की शुरुआत उनके जन्म स्थान इटावा से ही की है।
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें -फूलों के रंग से दिल की कलम से तुझको लिखी रोज़ पाती। कैसे बताऊँ किस किस तरह सेपल पल मुझे तू सताती तेरे ही सपने लेकर के सोया तेरी ही यादों में जागा तेरे खयालों में उलझा रहा यूँ जैसे के माला में धागा हाँ बादल बिजली चंदन पानी जैसा अपना प्यार लेना होगा जनम हमें कई कई बार।
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें -प्रेम पुजारी फिल्म का यह गाना सुनकर मेरा मन खुश हो उठता है। पता नहीं क्यों पर मैं बचपन के दिनों में चली जाती हूँ। इस प्रसिद्ध गाने को लिखने का श्रेय गोपालदास नीरज को ही जाता है। गोपाल दास नीरज भारत के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक गिने जाते हैं।
पूरा नाम | गोपालदास सक्सैना ‘नीरज’ |
जन्म | 4 जनवरी 1924, पुरावली, इटावा, उत्तरप्रदेश |
मृत्यु | 19 जुलाई, 2018, दिल्ली |
पिता का नाम | बाबू ब्रजकिशोर |
माता का नाम | ज्ञात नहीं |
पत्नी का नाम | सावित्री देवी सक्सेना, मनोरमा शर्मा |
बेटे का नाम | मिलन प्रभात गुंजन |
देश का नाम | भारत |
व्यवसाय | लेखक, कवि और गीतकार |
प्रमुख रचनाएं | दर्द दिया है, प्राण गीत, दो गीत, नदी किनारे, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, नीरज की गीतीकाएँ, नीरज की पाती, लहर पुकारे, बादलों से सलाम लेता हूँ, मुक्तक, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, कुछ दोहे नीरज के |
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गोपालदास नीरज का बचपन
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें -इटावा के पुरावली गाँव में 4 जनवरी को बाबू ब्रज किशोर सक्सेना के घर एक नन्हें मेहमान ने दस्तक दी। घर पर सभी बहुत ज्यादा खुश हुए। सभी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। सभी बहुत खुश हुए। इस बच्चे का नाम रखा गया नीरज सक्सेना। लेकिन यह खुशी तब कम हो गई जब उसके पिता का साया उसके सिर पर से उठ गया। यही नीरज सक्सेना ही आगे चलकर गोपालदास नीरज कहलाए।
गोपालदास नीरज की शिक्षा
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें-गोपालदास नीरज ने सबसे पहले अपने घर पर ही रहकर पढ़ाई शुरू की। फिर जब वह बड़े हुए तो उनका दाखिला एटा जिले की एक हाई स्कूल में करवाया गया। क्योंकि उनको पता था कि उनके घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी इसलिए उन्होंने मन लगाकर पढ़ाई की।
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें -वह पढ़ाई में बिल्कुल भी नहीं हारे। यही एक कारण था कि उन्होंने हाई स्कूल को प्रथम श्रेणी में पास किया। उनकी पढ़ाई करने की लालसा इतनी ज्यादा थी कि उन्होंने कॉलेज में प्रवेश पाने के लिए पहले नौकरी की और वही पैसे अपने कॉलेज में भी लगाए। साल 1949 में उनकी इण्टरमीडिएट पूरी हो गई थी। फिर उन्होंने लग्न के साथ बी०ए० और एम०ए० भी पूरी कर ली।
गोपालदास नीरज का विवाह
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें -गोपालदास नीरज का विवाह कब हुआ यह तो पता नहीं। लेकिन उनका विवाह बड़ा ही रोचक रहा। कहते हैं कि गोपालदास जब कॉलेज के दिनों में थे तो इनको इश्क का बुखार चढ़ गया था। वह एक लड़की से बेहद प्यार करने लगे थे। वह लड़की भी नीरज से उतना ही प्यार करती थी।
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें -वह दोनों शादी करना चाहते थे। लेकिन शायद घरवालों को यह बात बिल्कुल भी रास नहीं आई। वह इस शादी के खिलाफ थे। आखिरकार हुआ यह कि नीरज और उस लड़की को अलग होना पड़ा। और ऐसे में उनका ब्रेकउप हो गया। फिर नीरज के घरवालों ने उसकी शादी सावित्री देवी सक्सेना से करवा दी। इस शादी से उनको तीन बच्चे भी हुए। शशांक प्रभाकर, कुंदनिका शर्मा और मिलान प्रभात Gopaldas Neeraj Biography In Hindi
गोपालदास नीरज का करियर
गोपालदास नीरज का करियर बड़ा ही शानदार रहा। उनकी सबसे पहली नौकरी इटावा के कचहरी में एक टाइपिस्ट के तौर पर थी। टाइपिस्ट की नौकरी छोड़ने के बाद में उनको सिनेमा घर की एक दुकान पर काम मिला। बाद में दिल्ली में उनको सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी मिल गई।
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें -फिर इस नौकरी को छोड़कर वह एक कॉलेज में हिंदी प्रवक्ता बन गए। जैसे ही उन्होंने यह नौकरी छोड़ी उन्होंने धर्म समाज कॉलेज में हिंदी विभाग के प्राध्यापक के पद को ग्रहण कर लिया। उनके जीवन में एक सुनहरा मोड़ तब आया जब फिल्मी जगत से उनको काम मिला।Gopaldas Neeraj Biography In Hindi
फिर वह मुंबई चले गए और वहां पर फिल्म के निर्माताओं के लिए गाने लिखने लग गए। उनके द्वारा लिखे गए प्रसिद्ध गीत है – पैसे की पहचान है यहाँ, कारवां गुजर गया, जीवन की बगिया, ऐ भाई जरा देख के चलो, लिखे जो ख़त तुझे, रंगीला रे, दिल आज शायर है, आज मदहोश हुआ जाए रे, बस यहीं अपराध मैं हर बार, देखती ही रहो आज दर्पण आदि।
गोपालदास नीरज की कविता संग्रह
1944: संघर्ष, 1946: अन्तर्ध्वनि, 1948: विभावरी, 1951: प्राणगीत, 1956: दर्द दिया है, 1957: बादर बरस गयो, 1958: मुक्तकी, 1958: दो गीत, 1958: नीरज की पाती, 1959: गीत भी अगीत भी, 1963: आसावरी, 1963: नदी किनारे, 1963: लहर पुकारे, 1964: कारवाँ गुजर गया, 1970: फिर दीप जलेगा, 1972: तुम्हारे लिये, 1987: नीरज की गीतिकाएँ। Gopaldas Neeraj Biography In Hindi
गोपाल दास नीरज की ग़ज़लें
- जितनी भारी गठरी होगी…
जितना कम सामान रहेगा। उतना सफ़र आसान रहेगा। जितनी भारी गठरी होगी। उतना तू हैरान रहेगा। उससे मिलना नामुमक़िन है। जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा। हाथ मिलें और दिल न मिलें। ऐसे में नुक़सान रहेगा। जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं। मुश्क़िल में इन्सान रहेगा‘। नीरज’ तो कल यहाँ न होगा। उसका गीत-विधान रहेगा।
- सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा…
तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा। सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा। वो जिस्म ही था जो भटका किया ज़माने में, हृदय तो मेरा हमेशा तेरी डगर में रहा। तू ढूँढ़ता था जिसे जा के बृज के गोकुल में, वो श्याम तो किसी मीरा की चश्मे-तर में रहा। वो और ही थे जिन्हें थी ख़बर सितारों की, मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा। हज़ारों रत्न थे उस जौहरी की झोली में, उसे कुछ भी न मिला जो अगर-मगर में रहा।
- मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई…
अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई। मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई। आप मत पूछिये क्या हम पे ‘सफ़र में गुज़री? आज तक हमसे हमारी न मुलाकात हुई। हर गलत मोड़ पे टोका है किसी ने मुझको एक आवाज़ तेरी जब से मेरे साथ हुई। मैंने सोचा कि मेरे देश की हालत क्या है एक क़ातिल से तभी मेरी मुलाक़ात हुई।
- तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था…
दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था। तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था। इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में, खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था। मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में, कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त न था।
पुरस्कार एवं सम्मा
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें -विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार पद्म श्री सम्मान (1991), भारत सरकार यश भारती एवं एक लाख रुपये का पुरस्कार (1994), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ पद्म भूषण सम्मान (2007), भारत सरकार।
फिल्म फेयर अवार्ड
1970: काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चन्दा और बिजली)1971: बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ (फ़िल्म: पहचान)1972: ए भाई! ज़रा देख के चलो (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर)।
गोपालदास नीरज कितने लोकप्रिय थे
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें -गोपालदास नीरज अपने समय के बेहतरीन कवि और लेखक थे। वह अपने समय के एक सर्वश्रेष्ठ कलाकार थे। उनके बोलने और लिखने की शैली से लोग बहुत ज्यादा प्रभावित होते थे। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके समय के शानदार लेखकों ने उनकी तारीफों के कसीदे पढ़े थे।
बौद्ध भिक्षु और लेखक भदन्त आनन्द कौसल्यायन ने एक बार कहा था कि गोपालदास हिंदी साहित्य के अश्वघोष के समान है। यही नहीं महान कवि दिनकर जी ने गोपालदास को हिंदी की वीणा माना था। दिनकर जी ने कहा कि जैसे वीणा मधुर संगीत छोड़ती है ठीक उसी प्रकार गोपालदास नीरज भी अपने लिखने की मधुर शैली से सभी को प्रभावित कर देते हैं। लोगों को उनकी किताबें पढ़नी अच्छी लगती थी। उनकी किताबों की मांग थी।
इसी के चलते ही उनकी कई किताबों को गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी, रूसी आदि भाषाओं में अनुवादित किया गया था। नीरज द्वारा लिखे गए फिल्मी गीत भी लोगों द्वारा खूब सराहे गए। एक दौर ऐसा था जब नीरज के फिल्मी गाने जब रेडियो पर चलते थे तो सुनने वाले लोग खुशी से झूम उठते थे।
गोपालदास नीरज का निधन
गोपाल दास नीरज ग़ज़लें -गोपालदास नीरज ने अपने पूरे जीवन में उल्लेखनीय काम किए थे।उनकी लिखने की जो शैली थी वह बहुत अच्छी थी। लोग इनके द्वारा लिखे हुए गाने और कविताएं को लोग खूब पसंद किया करते थे। उनकी लिखने की जो शैली थी वह बहुत ही सरल थी। वह कविताओं की भाषा को कभी भी तोड़ मरोड़ के नहीं लिखना चाहते थे। उनकी कविताएं स्पष्ट होती थी। वह ही एक ऐसे लेखक थे जिन्होंने शिक्षा और साहित्य में भारत सरकार द्वारा दो बार पुरस्कार हासिल किए थे।आखिरकार 19 जुलाई 2018 को वह दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। अंतिम दिनों में उनका इलाज दिल्ली के एम्स में चल रहा था।
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