जयाप्रदा का जीवन परिचय-हेलो दोस्तों मेरा न मोहति है आज में आपको जयाप्रदा जी के बारे में बाटने जा रहा हूँ आप लोगो मेसे काफी लोग को इनके बारे में पता होगा और काफी सारे लोग इन्हे जानते भी होंगे परन्तु यहाँ कुछ लोग ऐसे भी है जो इनके बारे में नहीं जानते और इनके बारे में जानना चाहते ह। तोह आज में उनलोगो को जयाप्रदा जी के बारे में बताउंगी। में पूरी कोशिश करुँगी जिससे आप लोगो को हमारी दी गयी जानकारिया अच्छी लगे।
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जयाप्रदाकीजीवनी परिचय
जयाप्रदा का जीवन परिचय-भारत के आन्ध्र प्रदेश राज्य में स्थित राजमण्ड्री के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में जयाप्रदा जी का जन्म हुआ था। इन्हे लोग ललिता रानी बुलाया करते थे। उनके पिता जी का नाम कृष्णा था और उनकी माता का नाम नीलवाणी था। उनके पिताजी का एक तेलगु फिल्म इंडस्ट्री था। उनकी माँ की बहुत काम उम्र में मृत्यु हो चुकी थी और उन्हें संगीत कक्षाओं में दाखिल कर दिया था।
जयाप्रदा की करिअर
जब जयाप्रदा जी १४ साल की थी तब उन्होंने स्कूल के वार्षिक समारोह पर स्कूल की तरफ से एक नृत्य प्रदर्शन किया था। वहा सरे दर्शको में एक फ़िल्म निर्देशक भी शामिल थे। उन्होंने जयाप्रदा जी का नृत्य देखने के बार उनसे एक तेलुगु फिल्म में एक तीन मिनट के गाने पर नृत्य करवाया, उस फिल्म का नाम ‘भूमिकोसम’ है। जयाप्रदा जी थोड़ी हिचकिचाईं,परन्तु उनके परिवार ने उन्हें प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए काफी प्रोत्साहित किया।
जयाप्रदा का जीवन परिचय-उन्हें फ़िल्म में अपने काम के लिए केवल 10 रुपए दिए गए थे, पर उन्हें उसके बाद और भी बड़े मौक़े मिले, जब फ़िल्म के उन तीन मिनटों के अंश को तेलुगू फ़िल्म उद्योग की प्रमुख हस्तियों को दिखाया गया तब उनके सामने प्रस्तावों की बाड़ आगयी। बड़े फ़िल्म निर्माताओं ने उनके सामने अपनी विशेष दर्जे की फ़िल्मों में भूमिकाओं की पेशकश की लिए उन्होंने स्वीकार कर लिया। साल 1976 में हिट की तिकड़ी के साथ, वह एक बड़ी स्टार बन गईं: के. बालचंदर की अंतुलेनी कथा, जिसमें उनके नाटकीय कौशल को समेटा गया; के. विश्वनाथ की सिरी सिरी मुव्वा, जिसमें उन्होंने शानदार नृत्य कौशल वाली एक मूक लड़की की भूमिका निभाई और सीता की शीर्षक भूमिका में बड़े बजट वाली पौराणिक फ़िल्म सीता कल्याणम्, जिसने उनकी बहुमुखी प्रतिभा की पुष्टि की। साल 1977 में उन्होंने अडवी रामुडु में अभिनय किया था, जिसने बॉक्स ऑफ़िस के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और स्थाई रूप से उन्हें एक स्टार का दर्जा दिया गया। जयाप्रदा तथा सह-अभिनेता N.T. रामराव पर फ़िल्माया गया गीत “आरेसुकोबोई पारेसुकुन्नानु” जनता के बीच ज़बरदस्त हिट साबित हुआ था। उन्होंने तेलुगू फ़िल्मों से बाहर निकल कर, तमिल, मलयालम और कन्नड़ फ़िल्मों में भी अभिनय करना शुरू किया और उनकी इन सब भाषाओं की फिल्मे भी हिट रही।
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जयाप्रदा की बॉलीवुड करिअर
विश्वनाथ ने फ़िल्म सिरी सिरी मुव्वा (साल 1976) का पुनर्निर्माण हिंदी में सरगम शीर्षक से किया और साल 1979 में जयाप्रदा जी को बॉलीवुड से परिचित कराया गया। उनकी यह फ़िल्म ज़बरदस्त हिट हुई और वे रातों रात वहां भी सुपरस्टार बन गईं।
उन्होंने बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पहला फ़िल्मफ़ेयर नामांकन अर्जित किया। लेकिन अपनी सफलता को भुना नहीं सकीं, क्योंकि वे हिंदी नहीं बोल सकती थीं। इसके तीन साल बाद निर्देशक के, विश्वनाथ ने हिट फ़िल्म ‘कामचोर’ (साल 1982) के ज़रिए हिंदी फ़िल्मों में दुबारा प्रवेश कराया गया, जहां पहली बार वे धाराप्रवाह हिन्दी बोलती नज़र आईं जो लोगो को भी बड़ा पसंद आया। अब वे लगातार हिन्दी फ़िल्मों में काम करने में सक्षम बनीं और प्रकाश मेहरा की फ़िल्म ‘शराबी’ (साल 1984) में अमिताभ बच्चन की प्रेमिका के रूप में देखि गयी। विश्वनाथ की ‘संजोग’ (साल 1985) में अपनी चुनौतीपूर्ण दोहरी भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में दो और फ़िल्मफ़ेयर अपने नाम अर्जित किया। अपने बॉलीवुड फ़िल्म कॅरिअर के साथ, उन्होंने दक्षिण में के. विश्वनाथ की तेलुगू हिट फ़िल्म ‘सागर संगमम’ (साल 1983) जैसी सराहनीय फ़िल्मों में काम करना जारी रखा। उनके प्रशंसकों में न केवल आम जनता शामिल थीं, बल्कि महान भारतीय निर्देशक सत्यजीत भी थी, जिन्होंने कहा कि वे विश्व की सबसे सुंदर महिलाओं में से एक हैं। हालांकि, उन्होंने बंगाली फ़िल्मों में भी अभिनय किया,
(उन्होंने दावा किया कि रे के मन में उनके साथ एक फ़िल्म बनाने का विचार था, लेकिन उनकी बीमारी और मृत्यु के बाद उनकी यह सहयोग संभव नहीं हो पाया।) जयाप्रदा जी ने न केवल अमिताभ बच्चन और जितेंद्र के साथ सफल जोड़ी बनाई, बल्कि तत्कालीन परदे पर उनकी प्रतिद्वंद्वी श्रीदेवी के साथ भी काम किया, उनके साथ उन्होंने लगभग एक दर्जन फ़िल्मों में अभिनय किया है। उनकी तेलुगू फ़िल्म ‘देवता’ (साल 1982) का, जिसमें उन्होंने दो बहनों की भूमिकाएं निभाईं, जो एक दूसरे के लिए बड़ा बलिदान करती हैं, हिट हिंदी फ़िल्म ‘तोहफ़ा’ (साल 1984) के रूप में पुनर्निर्माण किया गया था। इन फ़िल्मों ने जयाप्रदा को परंपरागत रूढ़िवादी वर्ग के सिनेमाप्रेमियों का चहेता बना दिया गया। यह एक ऐसी छवि थी, जो उस समय अच्छी तरह से उनके काम आई थी, जब उन्होंने एक राजनीतिज्ञ के रूप में अपना नया कॅरिअर शुरू किया था। उन्होंने फ़िल्म ‘आधार’ (साल 2002) में एक अतिथि भूमिका के ज़रिए मराठी फ़िल्म उद्योग में क़दम रखा। अब तक, उन्होंने सात भाषाओं में काम किया है और अपने 30-वर्षीय फ़िल्म करिअर के दौरान 300 फिल्मों को पूरा किया था। साल 2004 में उन्होंने परिपक्व भूमिकाएं निभानी शुरू की। वे चेन्नई में जयाप्रदा थियेटर की मालकिन भी हैं। यह थियेटर उन्ही के नाम पर रखा गयी है।
जयाप्रदा जी की निजी जीवन
साल 1986 में, उन्होंने निर्माता श्रीकांत नाहटा से शादी की, वह पहले से ही चंद्रा के साथ विवाहित थे, और उनके साथ उनके 3 बच्चे भी हुए थे। कहने की ज़रूरत नहीं है, इस शादी के कारन काफी सारे विवाद भी हुए थे, विशेषकर इसलिए कि नाहटा ने अपनी वर्तमान पत्नी को तलाक़ नहीं दिया और अपनी पहली पत्नी के साथ, जयाप्रदा जी से शादी करने के बाद भी बच्चे पैदा किए। जयाप्रदा जी और श्रीकांत के कोई बच्चे नहीं हैं, लेकिन जयाप्रदा जी ने संतान की इच्छा व्यक्त की है। जयाप्रदा जी और उनके पति की पहली पत्नी, दोनों, स्नेहपूर्ण तरीक़े से पति साझा करने के लिए सहमत हो गए थे। और यह सब बिलकुल सच है।
जयाप्रदा जी को मिले गए फिल्मी पुरस्कार
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- लाइफ़टाइम एचीवमेंट अवार्ड – दक्षिण (साल 2007)
- सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री – सरगम (साल 1979)
- सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री – शराबी (साल 1984)
- सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री – संजोग (साल 1985)
- जयाप्रदा जी को मिले गए अन्य पुरस्कार
- अंतुलेनी कथा के लिए नंदी सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार
- कला सरस्वती पुरस्कार
- किन्नेर सावित्री पुरस्कार
- राजीव गांधी पुरस्कार
- नरगिस दत्त स्वर्ण पदक
- शकुंतला कला रत्नम् पुरस्कार
- उत्तम कुमार पुरस्कार
- उत्तम लेखक के लिए कलाकार पुरस्कार (साल 2005)
- ANR उपलब्धि पुरस्कार (साल 2008)
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