Tuesday, April 30, 2024
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फुलेरा दुज त्यौहार 2024 का महत्व- Phulera Dooj Festival 2024 Significance in Hindi

फुलेरा दुज त्यौहार 2024 का महत्व, कब है, उपाय (Phulera Dooj Festival 2024 Significance in Hindi) (Kab hai, Date)

फुलेरा दुज त्यौहार 2024 का महत्व: फुलेरा दुज एक हिंदू त्यौहार है जो हर साल फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार भारत के उत्तरी राज्यों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में मनाया जाता है। फुलेरा दुज को “फूलों का त्यौहार” भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन लोग एक-दूसरे को फूल भेंट करते हैं।

फुलेरा दुज त्यौहार 2024

फुलेरा दुज का त्यौहार भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी से जुड़ा है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने राधा से पहली बार मुलाकात की थी। भगवान कृष्ण ने राधा को फूल भेंट किए और राधा ने भगवान कृष्ण को अपना जीवनसाथी माना। फुलेरा दुज के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। वे मंदिरों में जाकर भगवान कृष्ण और राधा की पूजा करते हैं। पूजा के बाद वे एक-दूसरे को फूल भेंट करते हैं और मिठाई बांटते हैं। इस दिन लोग तरह-तरह के पकवान भी बनाते हैं और दोस्तों और परिवार के साथ मिलकर खाते हैं। फुलेरा दुज एक खुशी और उत्सव का त्यौहार है। यह त्यौहार प्रेम, भाईचारे और सद्भाव का प्रतीक है। यह त्यौहार लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें खुशी और आनंद देता है। Phulera Dooj Festival 2024 Significance in Hindi

फुलेरा दूज 2024 में कब हैं (Phulera Dooj Festival 2024 Date and timing)

सूर्योदय March 12, 6:42 AM
सूर्यास्त March 12, 6:31 PM
द्वितीया तिथि का समय March 11, 10:45 AM – March 12, 07:13 AM

 

फुलेरा दुज त्यौहार का महत्व (Phulera Dooj Festival Mahatva in Hindi)

फुलेरा दुज एक हिंदू त्यौहार है जो हर साल फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्यौहार भारत के उत्तरी राज्यों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में मनाया जाता है। फुलेरा दुज को “फूलों का त्यौहार” भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन लोग एक-दूसरे को फूल भेंट करते हैं।

फुलेरा दुज का त्यौहार भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी से जुड़ा है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने राधा से पहली बार मुलाकात की थी। भगवान कृष्ण ने राधा को फूल भेंट किए और राधा ने भगवान कृष्ण को अपना जीवनसाथी माना। फुलेरा दुज के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। वे मंदिरों में जाकर भगवान कृष्ण और राधा की पूजा करते हैं। पूजा के बाद वे एक-दूसरे को फूल भेंट करते हैं और मिठाई बांटते हैं। इस दिन लोग तरह-तरह के पकवान भी बनाते हैं और दोस्तों और परिवार के साथ मिलकर खाते हैं। फुलेरा दुज एक खुशी और उत्सव का त्यौहार है। यह त्यौहार प्रेम, भाईचारे और सद्भाव का प्रतीक है। यह त्यौहार लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें खुशी और आनंद देता है। Phulera Dooj Festival 2024 Significance in Hindi

  • यह त्यौहार भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी को याद दिलाता है।
  • यह त्यौहार प्रेम, भाईचारे और सद्भाव का प्रतीक है।
  • यह त्यौहार लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें खुशी और आनंद देता है।
  • यह त्यौहार भारत के उत्तरी राज्यों की संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है।

फुलेरा दूज कैसे मनाया जाता हैं ? (How to celebrate Phulera Dooj Festival)

“फुलेरा दूज” हिन्दी कैलेंडर में होने वाले एक पर्व का नाम है जो वसंत ऋतु में मनाया जाता है। यह पर्व होली के दिनों के आस-पास मनाया जाता है और यह भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। फुलेरा दूज पर होली का खेल खासकर रंगों के साथ खेलकर मनाया जाता है। लोग एक-दूसरे पर विभिन्न रंगों को लगाते हैं और एक-दूसरे के साथ खेलते हैं। फुलेरा दूज को परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताकर मनाया जा सकता है। लोग आपसी मिलनसर में आकर खुशियों का पार्ट बना सकते हैं। इस खास मौके पर मिठाइयों का विशेष तौर पर सेवन किया जाता है। गुजिया, मालपुआ, दही वड़े आदि को बनाकर खाया जाता है।गाने और नृत्य के माध्यम से भी फुलेरा दूज का उत्सव मनाया जा सकता है। लोग मिलकर आपसी गाने गाते हैं और नृत्य करते है

फुलेरा दूज की कथा

कृष्ण भगवान वृंदावन में नन्दगोप के यशोदा माता के पास नंदनी ग्राम आए। एक दिन वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही उनके दिल में खेलने की खुशी बढ़ गई। वसंत ऋतु में नाच-गाने और खेलने का माहौल बढ़ जाता है। एक दिन, भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों से मिलकर खेलने का प्रस्ताव दिया। गोपियाँ उत्सुकता से खुशी से झूमने लगीं और उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ रंग-फेंक के खेल की शुरुआत की। गोपियाँ ने अपने हाथों में रंग लिए और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के चेहरे पर रंग फेंक दिया। भगवान श्रीकृष्ण भी उनके पीछे दौड़ते हुए रंग फेंकते और खेलते। इस खेल में गोपियाँ और श्रीकृष्ण का मन बिलकुल खो जाता है और वे एक-दूसरे के साथ रंग-खेल का आनंद लेते हैं। यह खेल कई घंटों तक चलता रहता है, और इस दौरान गोपियाँ और भगवान श्रीकृष्ण के बीच में प्यार और आत्मीयता की भावना स्थायी हो जाती है। इसे “फूलेरादूज” के त्यौहार के रूप में मनाने का प्रसिद्ध परंपरिक रूप है। यह कथा भगवान श्रीकृष्ण की खेलने की नाटकीय लीला को दर्शाती है और फूलेरादूज के महत्व को बढ़ाती है, जो समाज में एकता, बंधुत्व और खुशहाली की भावना को संवारने में मदद करता है।

Q: फुलेरा दूज के पीछे की कहानी क्या है?

फाल्गुन माह के दूसरे दिन फुलेरा दूज पर भगवान कृष्ण ने होली खेलना शुरू किया था।

Q: क्या फुलेरा दूज पर राधा कृष्ण का विवाह हुआ था?

वार्षिक रूप से, यह दिव्य विवाह फुलेरा दूज के अवसर पर मनाया जाता है
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