कुरान सूरा 33 की आयत 37 और 50 में ऐसा क्या लिखा है- कुछ लोगों का मानना है कि इन आयतों में महिलाओं के अधिकारों का हनन किया गया है। वे तर्क देते हैं कि इन आयतों में मुहम्मद को अपनी बेटी से शादी करने और अपनी पत्नियों के साथ मनमाना व्यवहार करने की अनुमति दी गई है। हालांकि, अन्य लोगों का मानना है कि इन आयतों का उद्देश्य महिलाओं को सम्मान और सुरक्षा प्रदान करना है। वे तर्क देते हैं कि इन आयतों में मुहम्मद को अपनी बेटी से शादी करने के लिए मजबूर नहीं किया गया था, और उन्हें अपनी पत्नियों के साथ न्याय करने का आदेश दिया गया था।
कुरान सूरा 33 की आयत 37 और 50 में ऐसा क्या लिखा है- इस आयत में, अल्लाह मुहम्मद को अपनी पत्नियों के साथ न्याय करने का आदेश दे रहा है। यह आयत इस बात पर भी जोर देती है कि मुसलमानों को अपने किए का हिसाब अल्लाह से देना होगा।
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सूरा 33, आयत 37
और जब आप उस शख़्स से कह रहे थे जिस पर अल्लाह ने इनाम किया था और आपने भी इनाम किया था, “अपनी बीवी को अपने पास रखो और अल्लाह से डर और अपने दिल में छुपा रखो जो अल्लाह प्रकट करने वाला है और लोगों से डर, जबकि अल्लाह ही तुम्हारा हक़दार है कि उससे डरना चाहिए।” तो जब ज़ैद ने उससे अपनी बात पूरी कर ली, तो हमने आपको उससे शादी कर दी ताकि मुसलमानों पर कोई हर्ज न हो कि उनकी बहूओं से निकाह करें जब वे उनकी पत्नियों से तलाक दे दें, और अल्लाह का हुक्म पूरा हो जाए।
सूरा 33, आयत 50
ऐ नबी, हमने आपकी पत्नियों को जो मेहर दी है, वह आपकी जायदाद में से है। तो आप उनसे जो चाहें कर सकते हैं। लेकिन यह उचित है कि आप न्याय करें, भले ही आप अपने दिल में कोई कशमकश महसूस करें। अल्लाह को अपने किए का हिसाब देने से डरना चाहिए।
सूरा 33:37
وَإِذْ تَقُولُ لِلَّذِي أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِ وَأَنْعَمْتَ عَلَيْهِ امْسِكْ عَلَيْكَ زَوْجَكَ وَاتَّقِ اللَّهَ وَتُخْفِي فِي نَفْسِكَ مَا اللَّهُ مُبْدِيهِ وَتَخْشَى النَّاسَ وَاللَّهُ أَحَقُّ أَنْ تَخْشَاهُ فَلَمَّا قَضَى زَيْدٌ مِنْهَا وَطَرًا زَوَّجْنٰكَهَا لِكَيْ لَا يَكُونَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ حَرَجٌ فِي أَزْوَاجِ أَدْعِيَاۤىِٕهِمْ إِذَا قَضَوْا مِنْهُنَّ وَطَرًا وَكَانَ أَمْرُ اللَّهِ مَفْعُوْلًا
सूरा 33:50
يَٰٓأَيُّهَا النَّبِيُّ إِنَّا أَحْلَلْنَا لَكَ أَزْوَٰجَكَ اللَّٰتِيٓ أَتَيْتَ بِهِنَّ وَمَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ مِمَّآ أَفَاءَ اللَّهُ عَلَيْكَ وَبَنَاتِ عَمِّكَ وَبَنَاتِ عَمَّاتِكَ وَبَنَاتِ خَالِكَ وَبَنَاتِ خَالَاتِكَ اللَّٰتِي هَاجَرْنَ مَعَكَ وَامْرَأَةً مُؤْمِنَةً إِنْ وَهَبَتْ نَفْسَهَا لِلنَّبِيِّ إِنْ أَرَادَ النَّبِيُّ أَنْ يَسْتَنْكِحَهَا خَالِصَةً لَكَ مِنْ دُونِ الْمُؤْمِنِينَ ۗ قَدْ عَلِمْنَا مَا فَرَضْنَا عَلَيْهِمْ فِي أَزْوَٰجِهِمْ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ لِكَيْلَ يَكُونَ عَلَيْكَ حَرَجٌ ۗ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا
कुरान सूरा 33 की आयत 37 और 50 में ऐसा क्या लिखा है
कुरान का पहला शब्द क्या है?
सबसे पहली आयात ‘बिस्मिल्लाह अर्रहमान-अर्रहीम‘ (अल्लाह के नाम से शुरूआत जो अत्यंत दयालु और कृपालु है )