रामलीला के मेलों में झूले ही झूले – हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको रामलीला में झूले कहा लग रहे है उसके बारे में बताने जा रहा हूँ 16 अक्टूबर से नवरात्रि है जो 24 अक्टूबर को समाप्त होगी। इस बीच दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में मेले भी खूब लगेंगे। रामलीला का भी आयोजन होगा। इसके लिए खास तैयारी भी की जा रही है।
नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर में 15 से 25 अक्टूबर के बीच रामलीलाएं आयोजित होंगी। रामलीलाओं में आकर्षण का केंद्र भव्य मेले भी होते हैं। इन मेलों में छोटे-बड़े झूले लगते हैं। बच्चों से लेकर बड़ों में झूलों के प्रति क्रेज होता है। यही वजह है कि काफी लोग झूलों का आनंद लेने के लिए रामलीलाओं का सालभर इंतजार करते हैं। दिल्ली में करीब 150 रामलीलाओं में छोटे-बड़े झूले लगते हैं। दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड से झूले लाए जाते हैं। रामलीला शुरू होने के हफ्तेभर पहले ग्राउंड पर झूले इंस्टॉल होने लगते हैं।
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झूलों के मालिक महीनों पहले से काम शुरू कर देते हैं। अपने झूलों की रंगाई-पुताई में अच्छा खासा पैसा खर्च करते हैं, ताकि दिन की रौशनी और रात की लाइट में झूले की चमक-दमक खूबसूरत लगे। झूले मालिक प्रवीण गोदारा ने बताया कि इस साल पीतमपुरा, पटपड़गंज, गाजियाबाद के घंटाघर और लुधियाना में झूले लगा रहे हैं। साल में कहीं न कहीं किसी न किसी उत्सव पर झूले लगाते हैं। बच्चों से लेकर महिलाओं और पुरुषों में झूलों का लुत्फ उठाने का क्रेज रहता है। इन मेलों की वजह से हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब समेत अन्य राज्यों के झूले वाले दिल्ली में इकट्ठा होकर काम करते हैं। प्रवीण ने कहा कि दिल्ली में शाम 6 बजे से झूले चलने शुरू हो जाते हैं, जो रात 11:30 बजे तक चलते हैं। झूलों में सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाती है। सिविक एजेंसी एनओसी देती है। फिर भी झूलों के फोर मैन रोजाना राइडिंग से 2 घंटे पहले नट बोल्ट चेक कर लेते हैं।
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मेले का राजा जाइंट व्हिल
किसी भी मेले का राजा जाइंट व्हील होता है। प्रवीण ने बताया कि ये सबसे ऊंचा और देखने में बड़ा होता है। दूर से दिखाई देता है। हर कोई इसमें बैठकर आनंद उठाना चाहता है। इसके बाद कॉलम बस झूले पर भी लोग राइड करना पसंद करते हैं। आज की तारीख में शायद ही कोई मेला हो, जहां जाइंट व्हील और कॉलमबस नहीं हो। भले उनके साइज छोटे-बड़े हो सकते हैं। फिर ब्रेक डांस, चांद तारा, स्केटिंग कार, टॉय ट्रेन, टॉवर, रेंजर, बच्चों की मिनी राइड और मिक्की माउस जैसे कई झूले मेलों में लगते हैं।
कब कहां झूलों का मेला
रामलीला के मेलों में झूले ही झूले – वर्ष में कभी न कभी कहीं न कहीं मेला लगता रहता है। इसमें झूले भी मूव होते रहते हैं। प्रवीण ने बताया कि दिल्ली-एनसीआर में दशहरे, पंजाब में माघी मेला, हरियाणा में गीता जयंती, भोपाल में भोपाल उत्सव, उदयपुर और गंगा नगर में दीपावली मेले में झूले लगते हैं। यदि फेस्टिवल नहीं होते हैं, तो शहरों में नुमाइश लगावा कर झूले लगा देते हैं। इससे झूलों से जुड़े लोगों का परिवार पलता है। 15 से 25 दिनों तक झूलों का अच्छा बिजनेस चलता है।
बस मौसम रहे मेहरबान
रामलीला के मेलों में झूले ही झूले – हमारे झूले अशोक विहार की रामलीलाओं समेत दिल्ली-एनसीआर में होने वाले कई मेलों में लग रहे हैं। इस बार बस मौसम मेहरबान रहना चाहिए। अभी न ज्यादा गर्मी और न ज्यादा सर्दी का सीजन है। बारिश की आशंका भी नहीं है। पिछले साल दिल्ली में एक-दो दिन बारिश पड़ गई थी। जहां समय पर मिट्टी भराव नहीं हो पाया, वहां कीचड़ से काम चौपट रहा। किसी भी रामलीला में 15 से 25 तरह के झूले होते हैं। हर झूले और लोकेशन के हिसाब से राइड फीस होती है। कई लोग दशहरे, शनिवार या रविवार पर राइड चार्ज बढ़ा देते हैं, जो कि ठीक नहीं है। बहुत से परिवार ऐसे होते हैं, जो आर्थिक तौर पर मजबूत नहीं होते हैं। वो दशहरे पर छुट्टी के दिन ही निकल पाते हैं। झूले मनोरंजन के लिए होते हैं। यदि कोई महंगा या अनाप-शनाप चार्ज वसूली की वजह से नहीं झूल पाए, तो यह ठीक नहीं है। पहले दिन जो शुल्क तय करते हैं, वही हर दिन होना चाहिए।
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