भगवान परशुराम का जीवन परिचय – दोस्तों आज हम भगवान परशुराम के बारे में जानने जा रहे है। उनसे जुडी कुछ रोचक तथ्य भी जानेगे। मेरा नाम है विशाल सिंह तोह आइये यह लेख शुरू करते है ।
भगवान परशुराम का जीवन परिचय – परशुराम जी, भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे और उन्हें शिव जी से एक फरसा (कुल्हाड़ी रुपी हथियार) वरदान के रूप में प्राप्त था। यही कारण है की उनका नाम परशुराम है। शिवजी ने उन्हें युद्ध कौशल की शिक्षाभि प्राप्त है। उनके पिता श्री नाम ऋषि जमदग्नी व माता श्री का नाम रेणुका देवी था |जब वे छोटे थे तभी से वे एक गहन शिक्षार्थी थे और वह सदैव अपने पिता ऋषि जमदग्नी की आज्ञा मानते थे। परशुराम जी सबसे पहले योद्धा ब्राह्मण था यही कारण है की उन्हें ब्रह्मक्षत्रिया (दोनों ब्राह्मण और क्षत्रिय का अर्थ योद्धा कहा जाता है)| उनकी माता रेणुका देवी जी क्षत्रिय थीं।
परशुराम का जन्म प्राचीन काल में कन्नौज के राजा गाधि के सत्यवती नाम की सुन्दर पुत्री थी। राजा ने अपनी पुत्री का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ करवाया। सत्यवती के विवाह में भृगु ऋषि ने अपनी पुत्रवधू एक वरदान दिया। सत्यवती ने अपनी माँ के लिए पुत्र की कामना का आशीर्वाद माँगा। इस पर ऋषि ने उनको दो चरु पात्र दिए और कहा की तुम और तुम्हारी माँ ऋतु स्नान करने के बाद तुम्हारी माँ को पीपल का आलिंगन करना है और तुमको गूलर आलिंगन करना है। उसके बाद दिए हुए चरुओं का अलग अलग सेवन करना है। यह देख सत्यवती ने अपना चारु अणि पुत्री के चारु से बदल लिया और सेवन कर लिया जिसका पता ऋषि को चल गया
भगवान परशुराम हिन्दू पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण चरित्र माने जाते हैं। उनका जन्म ब्रह्माजी के सातवें अवतार के रूप में माना जाता है। परशुराम भगवान विष्णु के एक अवतार माने जाते हैं।
श्रीपद परशुराम का कथा महाभारत, भगवत पुराण, विष्णु पुराण, रामायण, भगवद्गीता आदि पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से मिलता है। उनके पिता का नाम जमदग्नि था और माता का नाम रेणुका था। परशुराम ने अनेक महान कार्य किए और उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए कई युद्धों में भाग लिया। उनकी विशेष पहचान उसकी परशु (एक प्रकार की कुल्हाड़ी) से जुड़ी हुई है, जिसका उपयोग उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए किया।
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परशुराम का जीवन पर्याप्त रूप में विवरणित किया गया है और उनकी कथाएँ पौराणिक साहित्य में उपलब्ध हैं।
उन्होंने सतयवती को बुलाया और बोलै की तुम्हारी माँ ने चल से तुम्हे दिया हुआ चारु खा लिया है। इसके कारणवाश तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा व्यवहार रखेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होने के बावजूद ब्राह्मण का व्यवहार रखेगी। यह सुनकर सत्यवती ने ऋषि भृगु से विनती करी की कृपया कर मेरे पुत्र का व्यवहार ब्राह्मण जैसा ही रखें, चाहे मेरे पौत्र का आचरण क्षत्रिय जैसा कर दें। यह सुन भृगु ने उन्हें यह वरदान दे दिया|
कुछ समय बाद सत्यवती के पुत्र हुआ जिसका नाम जमदग्नि रखा गया। जमदग्नि बहुत तेजस्वी थे। जब वे बड़े हुए उनका विवाह रेणुकादेवी जी से हुआ जो की प्रसेनजित की पुत्री थी। रेणुकादेवी के पाँच पुत्र हुए जिनमे शामिल थे, रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्वानस और परशुराम। परशुराम उनके पांचवे पुत्र थे|
परशुराम का नाम उनके धनुष और परशु (कुल्हाड़ी) का प्रयोग करने के लिए प्रसिद्ध है, और वे एक अद्वितीय धनुषधारी थे। उनके पिता का नाम जमदग्नि था और माता का नाम रेणुका था। परशुराम का जीवन धर्म और कर्म के प्रतीक के रूप में माना जाता है, और वे ब्राह्मणों के प्रति बड़े स्नेहभाव से आदर करते थे।
एक महत्वपूर्ण कथा में, परशुराम ने अपने अक्का-भविष्य के लिए माता के उपरांत माता की आज्ञा का पालन करने के लिए अपने ही पिता को मार दिया था, और इसके बाद वे अपने जीवन को तपस्या और यज्ञ के लिए समर्पित कर दिया था।
परशुराम का जीवन भारतीय पौराणिक साहित्य में महत्वपूर्ण है, और उन्हें एक महान योद्धा, गुरु, और धर्मिक आदर्श के रूप में प्रशंसा किया जाता है।
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परशुराम की प्रतिज्ञा
भगवान परशुराम का जीवन परिचय – एक बार राजा कार्तवीय सहस्त्रग्नन अपनी सेना के साथ आये परशुराम के पिता की जादुई गाय कामधेनू नामक चोरी करने का प्रयास किया| इस बात को सुनकर उन्हें बहुत गुस्सा आया और यही कारण, उन्होंने उसकी पूरी सेना और राजा कार्तवीरिया को मार दिया। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए, सहस्त्रग्नन के पुत्र ने परशुराम की अनुपस्थिति में जमदग्नी वध कर दिया| यह जानकार वे और क्रोधित हुए और उन्होंने राजा और उसके के सभी पुत्रों को मार दिया और धरती पर क्षत्रियो का 21 बार विनाश कर दिया|
गुरु परशुराम की विशेषतायें
परशुराम का जीवन परिचय – परशुराम ने जी ने अपनी अद्भुत शस्त्र विद्या से समकालीन कई गुणवान षिष्यों को युद्ध कला में पारंगत किया. उनके सबसे योग्य शिष्य गंगापुत्र भीष्म रहे जिन्हें पूरा भारत आदर की दृष्टि से देखता है. इसके अलावा द्रोण और कर्ण भी उनके शिष्य थे. भगवान परशुराम का उल्लेख दोनो महान भारतीय महाकाव्यों रामायण और गीता में मिलता है. तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में उनके और लक्ष्मण के बीच हुआ संवाद बहुत पठनीय और लोकप्रिय है. परशुराम जी की पूजा पूरे भारत में होती है. हर वर्ग उनको पूजनीय मानता है. एक मान्यता के अनुसार भारत के ज्यादातर गांव परशुराम जी ने ही बसाए थे. पूरे उत्तर भारत से लेकर गोवा, केरल और तमिलनाडु तक आपको Parshuram की प्रतिमा के दर्शन होंगे.
तोह इसी के साथ में ये लेख समाप्त करता हूँ।
धन्यवाद
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