शुक्राचार्य का इतिहास – हेलो दोस्तों मैं अंजलि आज आप को शुक्राचार्य के बारे में बताऊँगी
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शुक्राचार्य का इतिहास
शुक्राचार्य का इतिहास –शुक्राचार्य दैत्य गुरु थे। उनके वह भृगु ऋषि और हिरण कश्यप की पुत्री दिव्या की संतान थे। शुक्राचार्य का बचपन का नाम “उशना” था। शुक्राचार्य को “एकाक्ष” भी कहा जाता है। राजा बलि को सचेत करने के लिए शुक्राचार्य जल पात्र की टोटी में बैठ गए थे।
शुक्राचार्य का इतिहास –राजा बलि ने सींक को जल में डालकर देखना चाहा कि इसमें क्या है। इसी दौरान शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई थी इसलिए उन्हें एकाक्ष भी कहते हैं।
शुक्राचार्य का इतिहास उन्होंने शिव की आराधना करके मृत संजीवनी विद्या प्राप्त कर ली। इस विद्या से शुक्राचार्य ने कई बार राक्षसों को जीवित किया और अनेक बार देवताओं से युद्ध जीता। शुक्राचार्य ने बार्हस्पत्य शास्त्र की रचना की जिसमें 1000 अध्याय हैं।
शुक्राचार्य का इतिहास- शुक्राचार्य की दो पत्नियां थी जिनका नाम जयंती और गो था। असुरों के गुरु होने के कारण इन्हें असुराचार्य भी कहते हैं।
शुक्राचार्य कैसे बने दैत्य गुरु?
शुक्राचार्य का इतिहास –शुक्राचार्य ने अंगीरस ऋषि को अपना शिष्य बनाया था परंतु वे अपने पुत्र बृहस्पति और शुक्राचार्य में भेदभाव करने लगे। इससे शुक्राचार्य क्रुद्ध हो गए और उन्होंने स्वयं को असुरों का गुरु बना दिया।
शुक्राचार्य का इतिहास –बृहस्पति देवताओं के गुरु बन गए। शुक्राचार्य और बृहस्पति में सदैव प्रतिस्पर्धा होती रहती थी। शुक्राचार्य ने भगवान शिव को अपना गुरु मान लिया।
असुरों के गुरु शुक्राचार्य के बारे में कुछ विशेष बातें
दैत्य गुरु शुक्राचार्य के विषय में कुछ आश्चर्यजनक तथ्य –
शुक्राचार्य का इतिहास –मत्स्य पुराण के अनुसार शुक्राचार्य का वर्ण श्वेत है। इनका वाहन रथ है जिसमे 8 घोड़े हैं। इनका शस्त्र आयुध दंड है। शुक्र वृष और तुला राशि के स्वामी हैं। इन की महादशा 20 वर्ष की होती है। शुक्राचार्य के सिर पर सुंदर मुकुट होता है। गले में माला है। वे श्वेत कमल पर विराजमान रहते हैं। उनके चार हाथों में दंड, वरदमुद्रा, रुद्राक्ष की माला और पात्र सुशोभित रहती है।
शुक्राचार्य का इतिहास –महाभारत के अनुसार शुक्राचार्य रसों, मन्त्रो और औषधियों के स्वामी हैं। शुक्राचार्य ने अपना पूरा जीवन तप और साधना करने में लगाया था। अपनी सारी संपत्ति अपने असुर शिष्यों को दे दी थी।
शुक्राचार्य को नीति शास्त्र का जन्मदाता भी कहा जाता है। शुक्र नीति को महत्वपूर्ण समझा जाता है। इनके पुत्र शंद और अमर्क हिरण कश्यप के यहां अध्ययन करते थे।
शुक्राचार्य को महत्वपूर्ण स्थान मिला है। शुक्र ग्रह वीर्य से संबंधित है। वीर्य का संबंध जन्म से है। शुक्राचार्य शुक्र ग्रह बनकर तीनों लोकों का कल्याण करते हैं
ब्रह्मा की सभा में ये ग्रह बनकर उपस्थित होते हैं। शुक्र ग्रह वर्षा रोकने वाले ग्रहों को शांत करता है और वर्षा करने में मदद करता है। वर्षा होने पर पृथ्वी पर नया जीवन शुरू होता है। मनुष्य और जीव जंतुओं को शान्ति, संतोष और भोजन मिलता है।
इंद्राणी और देवराज इंद्र इन के अधीन देवता है।
शुक्राचार्य का इतिहास –असुरों के कल्याण के लिए शुक्राचार्य ने भगवान शंकर की लंबी साधना की थी। भगवान शंकर ने इन्हें वरदान दिया कि “तुम युद्ध में देवताओं को पराजित कर दोगे और तुम्हें कोई पराजित नहीं कर पाएगा। न ही तुम्हें कोई मार सकेगा” भगवान शंकर ने शुक्राचार्य को मृत संजीवनी विद्या दी। इस विद्या की मदद से वह किसी भी मृत असुर को जीवित कर सकते थे।
भगवान शंकर ने उन्हें धन विभाग का अध्यक्ष भी बना दिया था। शुक्राचार्य लोक और परलोक की सभी संपत्तियों के स्वामी बन गए थे।
शुक्राचार्य का इतिहास –एक बार शुक्राचार्य ने देवताओं के खजांची कुबेर के साथ छल करके देवताओं का सारा धन लूट लिया। कुबेर ने इसकी शिकायत भगवान शिव से की। शिव ने क्रोध में आकर शुक्राचार्य को निगल लिया। हजारों दिव्य वर्षों तक शुक्राचार्य शिव के गर्भ में रहे। जब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ तो उन्होंने शिव के गर्भ में रहकर ही उनकी आराधना शुरू कर दी।
प्रसन्न होकर भगवान शिव ने वीर्य रूप में शुक्राचार्य को बाहर निकाला। तब से उन्हें रूद्र पुत्र शुक्राचार्य कहा जाता है। देवी पार्वती ने भी उन्हें अपना पुत्र माना है। इसलिए शुक्राचार्य को “उशना” के नाम से भी जाना जाता है।
दैत्य गुरु शुक्राचार्य शुक्राचार्य की प्रमुख नीतियां
शुक्राचार्य का इतिहास –शुक्राचार्य ने कहा था कि शुक्राचार्य ने उपदेश दिया था कि सोच समझकर ही मित्र बनाना चाहिए। अच्छे मित्र बनाने पर व्यक्ति अच्छा बनता है, जबकि बुरे मित्र बनाने पर बुरे गुण प्राप्त होते हैं। इसलिए किसी को मित्र बनाने से पहले उसके गुण दोषों को देख लेना चाहिए। बुरे लोगों से मित्रता नहीं करनी चाहिए।अन्न देवता के समान होता है। अन्न को खाकर ही मनुष्य जीवित रहता है। इसलिए सभी को अन्न का सम्मान करना चाहिए। अपमान नहीं करना चाहिए। जो लोग अन्न का अपमान करते हैं उन्हें भोजन नसीब नहीं होता है।
शुक्राचार्य का इतिहास –शुक्राचार्य ने धर्म पर चलने का उपदेश दिया था। सभी लोगों को धर्म का सम्मान करना चाहिए। हर दिन पूजा पाठ करनी चाहिए। इससे सभी कामों में सफलता मिलती है, कष्ट दूर होते है। जो लोग अधर्मी है उनसे दूर रहना
चाहिए। धर्म पर चलकर ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
शुक्राचार्य का इतिहास –शुक्राचार्य ने उपदेश दिया था कि किसी पर सीमित मात्रा में ही विश्वास करना चाहिए। किसी पर बहुत अधिक विश्वास करने से एक दिन विश्वासघात मिलता है और व्यक्ति को कष्ट पहुंचता है।
शुक्राचार्य का इतिहास –शुक्राचार्य ने यह उपदेश दिया था कि लोगों को भविष्य के बारे में सोचना चाहिए और योजनाएं बनानी चाहिए। परंतु आज के कामों को कल करना बुद्धिमानी नहीं है। जो लोग अपने कामों को टालते रहते हैं वह जीवन में कभी सफल नहीं होते। दूरदर्शी बनना चाहिए पर दीर्घ सूत्री (कामों को टालने वाला) नहीं बनना चाहिए।
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