Sunday, April 28, 2024
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Surah Yaseen Shareef In Hindi सूरह यासीन इन हिंदी

“Surah Yaseen Shareef In Hindi सूरह यासीन इन हिंदी सूरह यासीन” कुरान (Quran) में एक सूरह है, जो मुस्लिम धर्मग्रंथ क़ुरान का हिस्सा है। यह सूरह खुदा के पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब के वाही (विशेष रूप से खुदा की आवाज़) के रूप में प्रस्तुत की जाती है और यह मक्का में उनकी पैगंबरी कार्यकाल के दौरान उतारी गई थी। “सूरह यासीन” एक महत्वपूर्ण सूरह मानी जाती है और इसे कई ताकिदों के साथ पढ़ने का प्रथा है, क्योंकि यह कुरान की रूहानी मर्यादा और गहराई को उजागर करने में मदद करता है। इसमें मनुष्य की मृत्यु और पुनर्जन्म की बातें दिलाई गई हैं,






Surah Yaseen Shareef In Hindi सूरह यासीन इन हिंदी साथ ही यह इस्लामी विश्वासों और मान्यताओं को प्रकट करने में भी मदद करती है। कुरान की अनुवादित रूपरेखा के अनुसार, “सूरह यासीन” के शुरुआती कुछ आयातों में इन्सान की ज़िन्दगी की मान्यताओं को खोजने और सोचने की प्रेरणा दी गई है, Surah Yaseen Shareef In Hindi सूरह यासीन इन हिंदी जिनमें खुदा की महत्वपूर्णता और सत्यता का विचार किया गया है। इसके बाद, इस सूरह में मनुष्य के पुनर्जन्म और मृत्यु की विचारधारा को स्पष्ट किया गया है, जिसमें दुनियावी जीवन के पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं का संकेत दिया गया है। Surah Yaseen Shareef In Hindi सूरह यासीन इन हिंदी

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Surah Yaseen Shareef In Hindi सूरह यासीन इन हिंदी

  1. यासीन
  2. वल कुर आनिल हकीम
  3. इन्नका लमिनल मुरसलीन
  4. अला सिरातिम मुस्तकीम
  5. तनजीलल अजीज़िर रहीम
  6. लितुन ज़िरा कौमम मा उनज़िरा आबाउहुम फहुम गाफिलून
  7. लकद हक कल कौलु अला अकसरिहिम फहुम ला युअ’मिनून
  8. इन्ना जअल्ना फी अअ’ना किहिम अगलालन फहिया इलल अजक़ानि फहुम मुक़महून
  9. जअल्ना मिम बैनि ऐदी हिम सद्दव वमिन खलफिहिम सद्दन फअग शैनाहुम फहुम ला युबसिरून
  10. वसवाउन अलैहिम अअनजर तहुम अम लम तुनजिरहुम ला युअ’मिनून
  11. इन्नमा तुन्ज़िरू मनित तब अज़ ज़िकरा व खशियर रहमान बिल्गैब फबश्शिर हु बिमग फिरतिव व अजरिन करीम
  12. इन्ना नहनु नुहयिल मौता वनकतुबु मा क़द्दमु व आसारहुम वकुल्ला शयइन अहसैनाहु फी इमामिम मुबीन



  13. वज़ रिब लहुम मसलन असहाबल करयह इज़ जा अहल मुरसळून
  14. इज़ अरसलना इलयहिमुस नैनि फकज जबूहुमा फ अज़ ज़ज्ना बिसा लिसिन फकालू इन्ना इलैकुम मुरसळून
  15. कालू मा अन्तुम इल्ला बशरुम मिसळूना वमा अनजलर रहमानु मिन शय इन इन अन्तुम इल्ला तकज़िबुन
  16. क़ालू रब्बुना यअ’लमु इन्ना इलैकुम लमुरसळून
  17. वमा अलैना इल्लल बलागुल मुबीन
  18. कालू इन्ना ततैयरना बिकुम लइल लम तनतहू लनरजु मन्नकूम वला यमस सन्नकुम मिन्ना अज़ाबुन अलीम
  19. कालू ताइरुकुम म अकुम अइन ज़ुक्किरतुम बल अन्तुम क़ौमूम मुस रिफून
  20. व जा अमिन अक्सल मदीनति रजुलुय यसआ काला या कौमित त्तबिउल मुरसलीन
  21. इत तबिऊ मल ला यस अलुकुम अजरौ वहुम मुहतदून
  22. वमालिया ला अअ’बुदुल लज़ी फतरनी व इलैहि तुरजऊन
  23. अ अत्तखिज़ु मिन दुनिही आलिहतन इय युरिदनिर रहमानु बिजुर रिल ला तुगनि अन्नी शफ़ा अतुहुम शय अव वला यूनकिजून
  24. इन्नी इज़ल लफी ज़लालिम मुबीन
  25. इन्नी आमन्तु बिरब बिकुम फसमऊन
  26. कीलद खुलिल जन्नह काल यालैत क़ौमिय यअ’लमून
  27. बिमा गफरली रब्बी व जअलनी मिनल मुकरमीन
  28. वमा अन्ज़लना अला क़ौमिही मिन बअ’दिही मिन जुन्दिम मिनस समाइ वमा कुन्ना मुनजलीन
  29. इन कानत इल्ला सैहतौ वाहिदतन फइज़ा हुम् खामिदून
  30. या हसरतन अलल इबाद मा यअ’तीहिम मिर रसूलिन इल्ला कानू बिही यस तहज़िउन
  31. अलम यरौ कम अहलकना क़ब्लहुम मिनल कुरूनि अन्नहुम इलैहिम ला यर जिउन
  32. वइन कुल्लुल लम्मा जमीउल लदैना मुह्ज़रून
  33. व आयतुल लहुमूल अरज़ुल मैतह अह ययनाहा व अखरजना मिन्हा हब्बन फमिनहु यअ कुलून
  34. व जअलना फीहा जन्नातिम मिन नखीलिव व अअ’नाबिव व फज्जरना फीहा मिनल उयून
  35. लियअ’ कुलु मिन समरिही वमा अमिलत हु अयदीहिम अफला यशकुरून
  36. सुब्हानल लज़ी ख़लक़ल अज़वाज कुल्लहा मिम मा तुमबितुल अरज़ू वमिन अनफुसिहिम वमिम मा ला यअलमून
  37. व आयतुल लहुमूल लैल नसलखु मिन्हुन नहारा फइज़ा हुम् मुजलिमून
  38. वश शमसु तजरि लिमुस्त कररिल लहा ज़ालिका तक़्दी रूल अज़ीज़िल अलीम
  39. वल कमर कद्दरनाहु मनाज़िला हत्ता आद कल उरजुनिल क़दीम
  40. लश शम्सु यमबगी लहा अन तुद रिकल कमरा वलल लैलु साबिकुन नहार वकुल्लुन फी फलकिय यसबहून
  41. व आयतुल लहुम अन्ना हमलना ज़ुररिय यतहूम फिल फुल्किल मशहून
  42. व खलकना लहुम मिम मिस्लिही मा यरकबून
  43. व इन नशअ नुगरिक हुम फला सरीखा लहुम वाला हुम युन्क़जून
  44. इल्ला रहमतम मिन्ना व मताअन इलाहीन
  45. व इजा कीला लहुमुत तकू मा बैना ऐदीकुम वमा खल्फकुम लअल्लकुम तुरहमून
  46. वमा तअ’तीहिम मिन आयतिम मिन आयाति रब्बिहिम इल्ला कानू अन्हा मुअ रिजीन
  47. व इज़ा कीला लहुम अन्फिकू मिम्मा रजका कुमुल लाहु क़ालल लज़ीना कफरू लिल लज़ीना आमनू अनुत इमू मल लौ यशाऊल लाहू अत अमह इन अन्तुम इल्ला फ़ी ज़लालिम मुबीन
  48. व यकूलूना मता हाज़ल व’अदू इन कुनतुम सादिक़ीन
  49. मा यन ज़ुरूना इल्ला सैहतव व़ाहिदतन तअ खुज़ुहुम वहुम यखिस सिमून
  50. फला यस्ता तीऊना तौ सियतव वला इला अहलिहिम यरजिऊन
  51. व नुफ़िखा फिस सूरि फ़इज़ा हुम मिनल अज्दासि इला रब्बिहिम यन्सिलून
  52. कालू या वय्लना मम ब असना मिम मरक़दिना हाज़ा मा व अदर रहमानु व सदकल मुरसलून
  53. इन कानत इल्ला सयहतव वहिदतन फ़ इज़ा हुम जमीउल लदैना मुहज़रून
  54. फल यौम ला तुज्लमु नफ्सून शय अव वला तुज्ज़व्ना इल्ला बिमा कुंतुम तअ’लमून
  55. इन्न अस हाबल जन्न्तिल यौमा फ़ी शुगुलिन फाकिहून
  56. हुम व अज्वा जुहूम फ़ी ज़िलालिन अलल अराइकि मुत्तकिऊन
  57. लहुम फ़ीहा फाकिहतुव वलहुम मा यद् दऊन
  58. सलामुन कौलम मिर रब्बिर रहीम
  59. वम ताज़ुल यौमा अय्युहल मुजरिमून
  60. अलम अअ’हद इलैकुम या बनी आदम अल्ला तअ’बुदुश शैतान इन्नहू लकुम अदुववुम मुबीन
  61. व अनिअ बुदूनी हज़ा सिरातुम मुस्तक़ीम
  62. व लक़द अज़ल्ला मिन्कुम जिबिल्लन कसीरा अफलम तकूनू तअकिलून
  63. हाज़िही जहन्नमुल लती कुन्तुम तूअदून
  64. इस्लौहल यौमा बिमा कुन्तुम तक्फुरून
  65. अल यौमा नाख्तिमु अल अफ्वा हिहिम व तुकल लिमुना अयदीहिम व तशहदू अरजु लुहुम बिमा कानू यक्सिबून
  66. व लौ नशाउ लता मसना अला अअ’युनिहिम फ़स तबकुस सिराता फ अन्ना युबसिरून
  67. व लौ नशाउ ल मसखना हुम अला मका नतिहिम फमस तताऊ मुजिय यौ वला यर जिऊन
  68. वमन नुअम मिरहु नुनक किसहु फिल खल्क अफला यअ’ किलून
  69. वमा अल्लम नाहुश शिअ’रा वमा यम्बगी लह इन हुवा इल्ला जिक रुव वकुर आनुम मुबीन
  70. लियुन जिरा मन काना हय्यव व यहिक क़ल कौलु अलल काफ़िरीन
  71. अव लम यरव अन्ना खलक्ना लहुम मिम्मा अमिलत अय्दीना अन आमन फहुम लहा मालिकून
  72. व ज़ल लल नाहा लहुम फ मिन्हा रकू बुहुम व मिन्हा यअ’कुलून
  73. व लहुम फ़ीहा मनाफ़िउ व मशारिबु अफला यश्कुरून
  74. वत तखजू मिन दूनिल लाहि आलिहतल लअल्लहुम युन्सरून
  75. ला यस्ता तीऊना नस रहुम वहुम लहुम जुन्दुम मुह्ज़रून
  76. फला यह्ज़ुन्का क़व्लुहुम इन्ना नअ’लमु मा युसिर रूना वमा युअ’लिनून
  77. अव लम यरल इंसानु अन्ना खलक्नाहू मिन नुत्फ़तिन फ़ इज़ा हुवा खासीमुम मुबीन
  78. व ज़रबा लना मसलव व नसिया खल्कह काला मय युहयिल इजामा व हिय रमीम
  79. कुल युहयीहल लज़ी अनश अहा अव्वला मर्रह वहुवा बिकुलली खल किन अलीम
  80. अल्लज़ी जअला लकुम मिनश शजरिल अख्ज़रि नारन फ़ इज़ा अन्तुम मिन्हु तूकिदून
  81. अवा लैसल लज़ी खलक़स समावाती वल अरज़ा बिक़ादिरिन अला य यख्लुक़ा मिस्लहुम बला वहुवल खल्लाकुल अलीम
  82. इन्नमा अमरुहू इज़ा अरादा शय अन अय यकूला लहू कुन फयकून
  83. फसुब हानल लज़ी बियदिही मलकूतु कुल्ली शय इव व इलैहि तुरज उन

सूरह यासीन शरीफ़ का तर्जुमा

  1. यासीन
  2. क़ुराने हकीम की क़सम
  3. इस में कोई शक नहीं कि आप अल्लाह के पैगम्बरों में से हैं
  4. सीधे रस्ते पर हैं
  5. ये कुरान उस ज़ात की तरफ से उतारा जा रहा है जो ज़बरदस्त भी है रहम फरमाने वाला भी है
  6. ताकि आप उस कौम को ख़बरदार कर दें जिन के बाप दादा को ख़बरदार नहीं किया गया तो वो ग़फलत में पड़े हुए थे
  7. हक़ीक़त ये है कि उन में से अक्सर लोगों के बारे में बात हो पूरी हो चुकी है इसलिए वो ईमान नहीं लाते
  8. हम ने उनकी गर्दनों में तौक डाल रखे हैं फिर वो थोडियों तक हैं तो उनके सर अकड़े पड़े हैं
  9. और हम ने एक आड़ उनके आगे खड़ी कर दी है और एक आड़ उनके पीछे खड़ी कर दी है और इसी तरह उन्हें हर तरफ से ढांक लिया है इसलिए उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता
  10. उनके लिए दोनों बातें बराबर हैं चाहे तुम उन्हें ख़बरदार करो या ख़बरदार न करो वो ईमान नहीं लायेंगे
  11. तुम तो सिर्फ ऐसे शख्स को ख़बरदार कर सकते हो जो नसीहत पर चले और खुदाए रहमान को देखे बगैर उस से डरे, चुनान्चे ऐसे शख्स को तुम मगफिरत और बा इज्ज़त अज्र की खुशखबरी सुना दो
  12. यक़ीनन हम हम ही मुर्दों को जिंदा करेंगे, और जो कुछ अमल उन्होंने आगे भेजे हैं हम उनको भी लिखते जाते हैं और उनके कामों के के जो असरात हैं उनको भी और हर चीज़ एक खुली किताब में हम ने गिन गिन कर रखी है
  13. और आप उनके सामने गाँव वालों की मिसाल दीजिये जब रसूल उनके पास पहुंचे थे
  14. जब हम ने उनके पास (शुरू में) दो रसूल भेजे तो उन्होंने दोनों को झुटलाया तो हम ने तीसरे के ज़रिये उनको क़ुव्वत दी तो उन सब ने कहा हम को तुम्हारी तरफ़ रसूल बना कर भेजा गया है
  15. वो लोग कहने लगे तुम तो हमारे ही जैसे इंसान हो, खुदाए रहमान ने कोई चीज़ उतारी नहीं है तुम लोग सरासर झूट बोल रहे हो
  16. उन रसूलों ने कहा हमारा परवरदिगार खूब जानता है कि हमें वाक़ई तुम्हारे पास रसूल बना कर भेजा गया है
  17. और हमारी ज़िम्मेदारी तो सिर्फ इतनी है कि साफ़ साफ़ पैग़ाम पहुंचा दें
  18. बस्ती वालों ने कहा  हम तो तुम लोगों को मनहूस समझते हैं, अगर तुम बाज़ न आये तो हम तुमको पत्थर मार मार कर हालाक कर देंगे और हमारी जानिब से तुम को दर्दनाक तकलीफ़ पहुंचेगी
  19. रसूलों ने कहा  तुम्हारी नहूसत खुद तुम्हारे साथ लगी हुई है, क्या ये बातें इस लिए कर रहे हो कि तुम्हें नसीहत की बात पहुंचाई गयी है ? असल बात ये है कि तुम खुद हद से गुज़रे हुए लोग हो
  20. और शहर के किनारे से एक आदमी दौड़ता हुआ आया बोला, ए मेरी कौम रसूलों का कहा मान लो
  21. उन लोगों का कहा मान लो जो तुम से कोई उजरत नहीं मांग रहे, और सही रास्ते पर हैं
  22. आखिर मैं क्यूँ उस ज़ात की इबादत न करूं, जिस ने मुझे पैदा फ़रमाया, और उसी की तरफ तुम सब लौटाए जाओगे
  23. क्या मैं उसके अलावा ऐसे माबूद बना लूं कि अगर रहमान मुझे नुकसान पहुँचाने का इरादा कर ले तो न उनकी सिफ़ारिश मेरे कुछ काम आ सकेगी और न वो मुझे बचा सकेंगे
  24. अगर मैंने ऐसा किया तो मैं खुली हुई गुमराही में जा पडूंगा
  25. मैं तो तुम्हारे रब पर ईमान ला चुका हूं इसलिए मेरी बात सुन लो







  26. (मगर जो लोग कुफ्र पर अड़े हुए थे उन्होंने उस ईमान लाने वाले को शहीद कर दिया चुनांचे खुदा की तरफ से) उसको हुक्म फरमाया गया कि तुम जन्नत में दाखिल हो जाओ (वह कहने लगे) काश  मेरी कौम को यह बात मालूम हो जाती
  27. कि मेरे रब ने मुझे माफ कर दिया है और मुझको बा इज्ज़त बन्दों में शामिल फरमा लिया है
  28. हमने उसके बाद उसकी कौम पर आसमान से कोई लश्कर नहीं भेजा और ना हमें इसकी जरूरत थी
  29. वह तो सिर्फ एक सख्त आवाज थी, फिर उसी लम्हे वह सब बुझ कर रह गए
  30. अफसोस मेरे उन बंदों पर कि जब उनके पास कोई रसूल आता तो वह उसका मजाक उड़ाते
  31. क्या उन्होंने गौर नहीं किया कि हमने उनसे पहले कितनी नस्लों को हलाक कर दिया वह उनके पास वापस नहीं आ सकते
  32. और यकीनन सब के सब हमारे पास हाजिर कर दिए जाएंगे और
  33. उनके लिए एक निशानी यह बंजर जमीन भी है हमने उसको जिंदा कर दिया और उसमें से अनाज निकाला तो वह उससे खाते हैं
  34. और हमने उसमें खजूरों और अंगूरों के बागात पैदा किये और उस ज़मीन में चश्मे जारी कर दिए
  35. ताकि लोग उसके फल खाएं और ये फ़ल उनके हाथों के बनाये हुए नहीं हैं, फिर भी वह ऐसा नहीं मानते
  36. अल्लाह की ज़ात पाक है जिसने सबके जोड़े पैदा किए जमीन की पैदावार में भी और खुद इंसानों में और कितनी ऐसी चीजों में जिसको वह जानते ही नहीं
  37. और उनके लिए एक निशानी रात भी है दिन को हम उससे हटा लेते हैं बस वह यकायक अंधेरे में रह जाते हैं
  38. और सूरज अपने ठिकाने की तरफ चला जा रहा है, यह उस जात का मुकर्रर किया हुआ (निजाम) है जो बेहद ताकतवर और बड़ा ही बाखबर है
  39. चांद के लिए भी हमने मंजिलें मुकर्रर कर दी यहां तक कि वह सूखी हुई पुरानी टहनी की तरह हो जाता है
  40. ना सूरज की मजाल है कि वह चांद को आ पकड़े और ना रात दिन से पहले आ सकती है, सब के सब एक मदार में तैर रहे हैं
  41. उनके लिए एक निशानी यह भी है कि हमने उनकी नस्ल को भरी हुई कश्ती में सवार कर लिया
  42. और हमने उनके लिए कश्ती की तरह की और चीजें भी पैदा की हैं जिन पर वह सवार होते हैं
  43. और अगर हम चाहे तो उनको गर्क़ कर (डुबो) दें फिर ना उनकी फरियाद पर कोई पहुंचने वाला हो और ना वह निकाले जा सकें
  44. मगर यह सिर्फ हमारी मेहरबानी है और एक वक्त तक के लिए फायदा मुहैया करना है
  45. और जब उनसे कहा जाता है अज़ाब  से डरो, जो तुम्हारे सामने और पीछे हैं, तो शायद तुम पर रहम किया जाए (तो वह उसकी कोई परवाह नहीं करते)
  46. और जब भी उनके पास उनके परवरदिगार की निशानियां में से कोई निशानी आती है तो वह उसे मुंह फेर लेते हैं
  47. और जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाह तआला ने तुमको जो कुछ अता फ़रमाया है उसमें से खर्च करो तो ईमान न लाने वाले मुसलमानों से कहते हैं : क्या हम उन लोगों को खिलाएं, जिन को खिलाना अल्लाह को मंजूर होता तो खुद ही खिला देते ? तुम लोग खुली हुई गुमराही में पड़े हुए हो
  48. और वह लोग कहते हैं अगर तुम सच्चे हो (तो बताओ कि) यह वादा कब पूरा होगा ?
  49. वह लोग बस एक सख्त आवाज़ का इंतजार कर रहे हैं, जो उनको इस हालत में आ पकड़ेगी कि वह लड़ झगड़ रहे होंगे
  50. फिर ना तो वह कोई वसीयत कर सकेंगे और ना अपने घरवालों की तरफ जा सकेंगे
  51. और सूर फूंका जाएगा तो वह सब क़बरों से निकलकर अपने परवरदिगार की तरफ दौड़ पड़ेंगे
  52. कहेंगे : हाय हमारी बदनसीबी हमको हमारी क़बरों से किस ने उठा दिया ? यही है वह वाकिया जिसका बेहद मेहरबान (खुदा) ने वादा फरमाया था, और अल्लाह के पैग़म्बरों ने सच ही कहा था
  53. बस यह एक सख्त आवाज होगी, फिर एक ही दम सब के सब हमारे सामने हाजिर कर दिए जाएंगे
  54. फिर उस दिन किसी शख्स के साथ जरा भी नाइंसाफी नहीं होगी और तुमको तुम्हारे आमाल का पूरा पूरा बदला दिया जाएगा
  55. यक़ीनन जन्नत वाले लोग उस दिन मज़े उड़ाने में लगे होंगे
  56. वह और उनकी बीवियां साये में टेक लगाए हुए मसेहरियों पर बैठे होंगे
  57. उनके लिए जन्नत में मेवे भी होंगे और वह सारी चीजें भी जो वह मांगेंगे
  58. (सबसे अहम् इनआम यह है कि) उनको मेहरबान परवरदिगार की तरफ से सलाम फरमाया जाएगा
  59. और ( अल्लाह तआला फरमाएंगे:) ए गुनहगारों ! आज तुम अलग हो जाओ
  60. ए आदम की औलाद ! क्या मैंने तुमको ताकीद नहीं की थी कि तुम शैतान की इबादत न करो कि वह तुम्हारा खुला हुआ दुश्मन है
  61. और यह कि तुम मेरी ही इबादत करना यही सीधा रास्ता है
  62. और शैतान तो तुम में से बहुत से लोगों को गुमराह कर चुका है तो क्या तुम अक्ल नहीं रखते थे ?
  63. यही वह दोजख़ ( जहन्नम ) है जिससे तुम्हें डराया जा रहा था
  64. आज अपने कुफ्र करने की वजह से उस में दाखिल हो जाओ
  65. आज हम उनके मुंह पर मुहर लगा देंगे, और उनकी हरकतों के बारे में उनके हाथ हम से बात करेंगे और उनके पांव गवाही देंगे
  66. अगर हम चाहें तो उनकी आंखों को सपाट कर दें, फिर यह रास्ते की तरफ दौड़ें, तो कहां देख पाएंगे ?
  67. और अगर हम चाहें तो उनकी अपनी जगह पर बैठे बैठे उनकी सूरतें इस तरह मस्ख कर दें कि यह न आगे बढ़ सकें और न पीछे लौट सकें
  68. जिस शख्स को हम लंबी उम्र देते हैं उसकी पैदाइश को उलट देते हैं फिर भी क्या वो अक्ल से काम नहीं लेते
  69. और हम ने (अपने) उन (पैगंबर) को ना शायरी सिखाई है, और ना यह बात उनके शायाने शान है यह तो बस एक नसीहत की बात है और ऐसा कुरान जो हक़ीक़त खोल खोल कर बयान करता है
  70. ताकि ऐसे शख्स को खबरदार कर दें जो (क़ल्ब और रूह के एतबार से) जिंदा हो और ताकि ईमान लाने वालों पर हुज्जत पूरी हो जाए
  71. क्या उन्होंने देखा नहीं कि जो चीजें हमने अपने हाथों से बनाई हैं उनमें से यह भी है कि हमने उनके लिए चौपाये पैदा कर दिए और ये उनके मालिक बने हुए हैं
  72. और हमने उन चौपायों को उनके काबू में कर दिया है चुनांचे उनमें से कुछ वो हैं जो उनकी सवारी बने हुए हैं और कुछ वो हैं जिन्हें ये खाते हैं
  73. उनको उन चौपायों से और भी फ़ायदे हासिल होते हैं और जानवरों में पीने की चीजें भी है तो क्या फिर भी यह शुक्र अदा नहीं करते
  74. उन लोगों ने अल्लाह के सिवा दूसरे माबूद बना लिए हैं कि शायद उनकी मदद की जाए
  75. (हालाँकि) उन में ये ताक़त ही नहीं है कि वह उनकी मदद कर सकें, बल्कि वो उन के लिए एक ऐसा (मुख़ालिफ़) लश्कर बनेंगे जिसे (क़यामत में उनके सामने) हाज़िर कर लिया जायेगा
  76. आप उनकी बातों से ग़मगीन ना हों, वह जो कुछ छुपाते हैं और जो कुछ जाहिर करते हैं वह सब हमें मालूम है
  77. क्या इंसान ने गौर नहीं किया कि हमने तो उसको नुत्फे से पैदा किया, फिर वह खुला हुआ झगड़ालू हो गया ?
  78. वह हमारे लिए मिसालें बयान करने लगा और अपनी पैदाइश को भूल गया, वह कहने लगा : जो हड्डियां गल चुकी है, उनको (दोबारा) कौन जिंदा करेगा
  79. आप कह दीजिए : वही जिंदा करेगा जिसने उसको पहली दफा पैदा किया था और वह सब (चीजों को) पैदा करना जानता है
  80. जिस ने तुम्हारे लिए सब्ज़ दरख़्त से आग पैदा कर दी है फिर तुम उससे (आग) सुलगाते हो
  81. क्या वह ज़ात जिसने आसमानों को और जमीन को पैदा किया है, इन (इंसानों) के जैसा पैदा नहीं कर सकती ? क्यों नहीं ? वह जरूर पैदा कर सकता है, वह खूब पैदा करने वाला और खूब जानने वाला है
  82. उसकी शान यह है कि जब वह किसी चीज का इरादा करता है तो उसको हुक्म फरमाता है हो जा, तो वह हो जाती है
  83. गर्ज़ कि वो ज़ात पाक है जिसके हाथों में हर चीज की हुकूमत है और उसी की तरफ तुम को लौट कर जाना है।

Q:- सूरह यासीन कब पढ़ना चाहिए?

  • जुम्मा के दिन: कुछ मुस्लिम जमातें या मादरिसों में, सूरह यासीन को जुम्मा के दिन ख़ास तौर पर पढ़ने की प्रथा है।
  • रोज़ाना: कई लोग रोज़ाना या एक सबेरे के समय सूरह यासीन को पढ़ते हैं।
  • मौत के बाद: बहुत सी मान्यताएँ हैं कि सूरह यासीन को मौत के बाद बार-बार पढ़ने से मृत्यु के बाद की आत्मा को आराम मिलता है और उसकी राहत होती है।
  • बीमारियों में: कुछ लोग बीमारी से गुजर रहे होते हैं, तो उन्हें सूरह यासीन को पढ़कर उनके लिए दुआ करने का अवसर मिलता है।

Q:- सूरह यासीन का क्या मतलब है?

सूरह यासीन” कुरान की 36वीं सूरह है और यह एक महत्वपूर्ण सूरह है जिसमें विभिन्न आयातों के माध्यम से आध्यात्मिक संदेश और सिखाए गए हैं। इस सूरह का मतलब यदि आप आयात 1 में देखें, तो यह बताता है:

“यासीन।”

इसके अलावा, यदि हम सूरह यासीन के आयातों को समझें, तो यह इस्लामी आध्यात्मिक प्रतिक्रिया और संदेश को प्रकट करता है, जिसमें मौत, पुनर्जन्म, आखिरत, दावत, धर्म, और ईश्वरीय शक्तियों की चर्चा की गई है।

सूरह यासीन के माध्यम से ब्रह्माण्ड के सृजनात्मकता, ईश्वर की महत्वपूर्णता, और मनुष्य के लिए आध्यात्मिक मार्ग की महत्वपूर्णता पर विचार किए जाते हैं। इसे एक प्रकार की दावत (आह्वान) भी माना जा सकता है जो लोगों को अच्छे काम करने और ईश्वरीय दिशा में अपने मार्ग की ओर प्रोत्साहित करता है।

इस सूरह में व्यक्त की गई कई कहानियाँ और उपमाएं भी हैं, जो आध्यात्मिक संदेश को सार्थकता देने में मदद करती हैं। सूरह यासीन को पढ़कर लोग अपने जीवन में अच्छाई, सच्चाई, और आध्यात्मिक विकास की दिशा में प्रेरित होते है












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