हीलो दोस्तों आज मैं अंजलि आप सब को वेदव्यास के बारे में बताऊँगी महाभारत ग्रंथ के रचयिता,अट्ठारहपुराण,श्रीमद्भागवत और मानव जाती को अनगिनत रचनाओं का भंडार देने वाले ‘वेद व्यास’ को भगवान का रूप माना जाता है ।
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वेदव्यास जीवन परिचय
वेदव्यास जीवन परिचय-वेद व्यास का पूरा नाम कृष्णद्वैपायन है लेकिन वेदों की रचना करने के बाद वेदों में उन्हें वेद व्यास के नाम से ही जाना जाने लगा।्उनके द्वारा रची गई श्रीमद्भागवत भी उनके महान ग्रंथ महाभारत का ही हिस्सा है.
वेदव्यास जीवन परिचय-आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
वेदव्यास जीवन परिचय-यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन महर्षि व्यास जी का जन्मदिन है।
वेदव्यास जीवन परिचय-उन्होंने चारों वेदों की रचना की। इस कारण उनका नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।
वेदव्यास जीवन परिचय-भारतवर्ष में कई विद्वान हुए, किन्तु महर्षि वेदव्यास प्रथम विद्वान थे, जिन्होंने सनातन धर्म के चारों वेदों की व्याख्या की।
वेदव्यास जीवन परिचय-महर्षि वेदव्यास को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है।
वेदव्यास जीवन परिचय-गुरु की महिमा अपरंपार है। गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। गुरु को भगवान से भी ऊपर दर्जा दिया गया है।
वेदव्यास जीवन परिचय-गुरु को ब्रह्म कहा गया है, जिस प्रकार से वह जीव का सर्जन करते हैं, ठीक उसी प्रकार से गुरु शिष्य का सर्जन करते हैं।
वेदव्यास जीवन परिचय-महर्षि वेदव्यास जी को भगवान विष्णु का अंश-अवतार माना जाता है।
वेदव्यास जीवन परिचय-ऐसा कहा जाता है कि वे द्वापरयुग में इस ब्रह्मांड में सभी वैदिक ज्ञान को लिखित शब्दों के रूप में रखने और इसे सभी के लिए उपलब्ध कराने के लिए पृथ्वी पर आए थे।
वेदव्यास जीवन परिचय-वेद व्यास से पहले वैदिक ज्ञान केवल बोले गए शब्दों के रूप में मौजूद था।
वेदव्यास जीवन परिचय-वह पांडवों और कौरवों के दादा थे।
वेदव्यास जीवन परिचय-उन्हें वेद व्यास कहा जाता है क्योंकि उन्होंने वेदों के मूल संस्करण को चार भागों में विभाजित किया था; वेद व्यास का शाब्दिक अर्थ है ‘वेदों का विभक्त’।
वेदव्यास जीवन परिचय-क्योंकि वेद व्यास ने वेदों को विभाजित कर दिया था, इसलिए लोगों के लिए इसे समझना आसान हो गया। इस प्रकार दिव्य ज्ञान सभी को उपलब्ध कराया गया।
वव्यास का जीवन इतिहास रोचक है। महान महाकाव्य महाभारत के रचयिता वेद व्यास सनातन धर्म के प्रथम और महान आचार्य थे।
वह वेदों को वर्गीकृत करने, 18 पुराणों को लिखने और महान महाभारत का पाठ करने के लिए जिम्मेदार है।
वास्तव में, महाभारत को अक्सर पांचवां वेद कहा जाता है। सबसे महत्वपूर्ण और सबसे गौरवशाली खंड भगवद गीता है, जो युद्ध के मैदान में भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को सुनाई गई शिक्षा है।
महाभारत के अलावा, उन्होंने हिंदू दर्शन पर उनके सबसे छोटे धर्मशास्त्रों में से एक ब्रह्मसूत्र भी लिखा।
कहा जाता है कि वेद व्यास अमर हैं वेद व्यास का जीवन आधुनिक समय में सभी के लिए एक उदाहरण है कि कैसे निस्वार्थ होना चाहिए और निर्वाण प्राप्त करने के लिए अपने आप को पूरी तरह से भगवान को समर्पित करना चाहिए।
प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर वेदों के विभाग प्रस्तुत करते हैं।
पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य, चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए।
इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए।
इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विभाजन किया गया। उन्होने ही अट्ठारह पुराणों की भी रचना की, ऐसा माना जाता है।
वेदव्यास यह व्यास मुनि तथा पाराशर इत्यादि नामों से भी जाने जाते है। वह पराशर मुनि के पुत्र थे, अत: व्यास ‘पाराशर’ नाम से भी जाने जाते है
समय-समय पर वेदों का विभाजन किस प्रकार से हुआ, इसके लिए यह एक उदाहरण प्रस्तुत है। कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास ने ब्रह्मा की प्रेरणा से चार शिष्यों को चार वेद पढ़ाये-
1.मुनि पैल को ॠग्वेद
2.वैशम्पायन को यजुर्वेद
3.जैमिनि को सामवेद तथा
4.सुमंतु को अथर्ववेद पढ़ाया।
व्यास का अर्थ
व्यास का अर्थ है ‘संपादक’। यह उपाधि अनेक पुराने ग्रन्थकारों को प्रदान की गयी है, किन्तु विशेषकर वेदव्यास उपाधि वेदों को व्यवस्थित रूप प्रदान करने वाले उन महर्षि को दी गयी है जो चिरंजीव होने के कारण ‘आश्वत’ कहलाते हैं।
यही नाम महाभारत के संकलनकर्ता, वेदान्तदर्शन के स्थापनकर्ता तथा पुराणों के व्यवस्थापक को भी दिया गया है। ये सभी व्यक्ति वेदव्यास कहे गये है।
विद्वानों में इस बात पर मतभेद है कि ये सभी एक ही व्यक्ति थे अथवा विभिन्न। भारतीय परम्परा इन सबको एक ही व्यक्ति मानती है।
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार महर्षि व्यास त्रिकालज्ञ थे तथा उन्होंने दिव्य दृष्टि से देख कर जान लिया कि कलियुग में धर्म क्षीण हो जायेगा।
धर्म के क्षीण होने के कारण मनुष्य नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु हो जायगा। एक विशाल वेद का सांगोपांग अध्ययन उनके सामर्थ्य से बाहर हो जायेगा।
इसीलिये महर्षि व्यास ने वेद का चार भागों में विभाजन कर दिया जिससे कि कम बुद्धि एवं कम स्मरणशक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें।
व्यास जी ने उनका नाम रखा – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। वेदों का विभाजन करने के कारण ही व्यास जी वेद व्यास के नाम से विख्यात हुये।
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को क्रमशः अपने शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमन्तुमुनि को पढ़ाया।
वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ तथा शुष्क होने के कारण वेद व्यास ने पाँचवे वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिनमें वेद के ज्ञान को रोचक कथाओं के रूप में बताया गया है।
पुराणों को उन्होंने अपने शिष्य रोम हर्षण को पढ़ाया। व्यास जी के शिष्यों ने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उन वेदों की अनेक शाखाएँ और उप शाखाएँ बना दीं।
व्यास जी ने महाभारत की रचना की। जिसमें पाण्डवों की उत्पत्ति से लेकर स्वर्गगमन तक की कथा है। एक लाख श्लोकों के कारण इसे शतसाहस्रीसं हिता भी कहते हैं।
कुछ लोग इसे पंचम वेद भी कहते हैं। इसी महाग्रंथ के कारण से ही वेदव्यास जी प्रसिद्ध हैं| इनके मस्तिष्क की अप्रतिहत प्रतिभा से आज तक हमारे धार्मिक जीवन और विश्वासो का प्रत्येक अंग प्रभावित है।
नाम- | महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास |
जन्म- | 3000 ई. पू. आषाढ पूर्णिमा |
जन्म स्थान- | यमुना तट |
माता | सत्यवती |
पिता | पराशर ऋषि |
पत्नी | वाटिका |
करीब 5000 साल पहले उनका जन्म तानाही जिले के दमौली में हुआ था, जो अब नेपाल में स्थित है। जिस प्राचीन गुफा में उन्होंने महाभारत लिखा था वह आज भी नेपाल में मौजूद है। उनके पिता का नाम पराशर ऋषि था और उनकी माता सत्यवती थीं।
उन्होंने अपने शिष्यों को वेदों का अध्ययन पूरी भक्ति और समर्पण के साथ करवाया। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत 18वां पुराण है जिसे वेद व्यास ने लिखा था।
उनके चार प्रसिद्ध पुत्र थे, जिनके नाम पांडु, धृतराष्ट्र, विदुर और सुखदेव था, वेद व्यास ने वासुदेव और सनकादिक जैसे महान संतों से ज्ञान प्राप्त किया और उनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य नारायण या परमात्मा को प्राप्त करना था।
महर्षि वेदव्यास का रंग पीला था जिसके कारण उन्हें भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता था। उनका जन्म यमुना नदी में एक द्वीप पर हुआ था और इसलिए, उन्हें द्वैपायन भी कहा जाता था। वे वेदव्यास के नाम से भी जाने जाते थे क्योंकि उन्होंने वेदों के लिए विभिन्न ग्रंथ लिखे थे।
महर्षि वेदव्यास जी कि जन्म कथा:
वेदव्यास जीवन परिचय-वेद व्यास का जन्म ऋषि पाराशर और मछुआरे काली के घर हुआ था। काली को सत्यवती के नाम से भी जाना जाता है, जिन्होंने बाद में राजा शांतनु से विवाह किया।
ऋषि पाराशर ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि उनके जाते ही एक पुत्र का जन्म होगा जो दुनिया का शिक्षक बनेगा और वेदों को विभाजित करेगा |
जैसे ही बच्चे का जन्म हुआ, वह बड़ा हुआ और उसने अपनी माँ से कहा उसकी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि जब भी उन्हें जरूरत होगी वह उनकी मदद के लिए आगे आएंगे।
महर्षि वेदव्यास का कार्यक्षेत्र:
वेदव्यास जीवन परिचय-महाभारत के रचयिता वेद व्यास थे, वे न केवल लेखक थे बल्कि महाभारत के साक्षी भी थे। उनके कारण ही महाभारत जैसा ग्रंथ कि रचना हुयी। वेद व्यास महाभारत, भगवद गीता और 18 पुराणों के लेखक हैं और उन्होंने वेदों का संकलन भी किया।
ऐसा कहा जाता है कि महर्षि वेद व्यास जी ने महाभारत और पुराणों को लिखने में भगवान गणेश से मदद मांगी थी, महर्षि वेद व्यास ने पूरी महाभारत और 18 पुराणों का वर्णन किया था, इस दौरान भगवान गणेश ने सब कुछ लिखा।
वेदों का ज्ञान:
वेदव्यास जीवन परिचय-उन्हें भगवान विष्णु का अंश-अवतार माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वे द्वापरयुग में इस ब्रह्मांड में सभी वैदिक ज्ञान को लिखित शब्दों के रूप में रखने और सभी को उपलब्ध कराने के लिए पृथ्वी पर आए थे।
वेद व्यास से पहले, वैदिक ज्ञान केवल बोले गए शब्दों के रूप में मौजूद था, क्योंकि वेद व्यास ने वेदों को विभाजित कर दिया था, इसलिए लोगों के लिए इसे समझना आसान हो गया।
इस तरह सभी को दिव्य ज्ञान उपलब्ध कराया गया। यह अभी भी स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है कि क्या वेद व्यास ने वेदों को स्वयं विभाजित किया था या यह कार्य उन्होंने विद्वानों के एक समूह की मदद से किया था |
संत व्यास एक महान विद्वान थे और उन्हें अपार ज्ञान था। उन्हें वेद व्यास के रूप में जाना जाता था क्योंकि उन्होंने वेदों में और भी बहुत कुछ जोड़ा था।
महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्यों पेल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमंतमुनि को चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद) की व्याख्या की।
उन्होंने पुराणों को पांचवें वेद के रूप में लिखा जिसमें उन्होंने कहानियों और घटनाओं की मदद से हर चीज को आसान भाषा में समझाया।
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