Sunday, April 28, 2024
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इस बार की ठण्ड पर कविता Winter Poem Kavita Shayari in Hindi

इस बार की ठण्ड पर कविता-हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको ठण्ड पर कविता के बारे मेबटने जा रहा हु। हर साल आती हैं और हर हम यही कहते हैं इस बार बहुत हैं ठंडी के कई रूप हैं जितना मुश्किल होता हैं काम करना उतना ही मौसम सुहाना हो जाता हैं | रंग बिरंगे स्वेटर पहनकर सभी रंगीन लगने लगते हैं | गरम-गरम कड़क चाय जब हाथो पर मिलती हैं देने वालों का दिल कायल हो जाता हैं | जैसी भी होती हैं पर याद बहुत आती है | बचपन में स्कूल जाना होमवर्क ना होने पर हाथ पर जो पड़ती थी वो यादें बहुत हँसाती हैं | उस वक्त ऐसा लगता था ये टीचर इन्सान नहीं हैं या कभी स्टूडेंट नहीं था और आज ऑफिस में जब बॉस फटकार लगाता हैं जब याद आता हैं कि यही तो टीचर हमें सिखाता था |अपनी हैं कुछ ऐसे लम्हे ही कैद किये हैं

ठण्ड पर कविता शायरी

कविता : कड़कड़ाती आई ठंडी

किट किट करके बजते दांत

सर्दी में जम जाते हाथ

ऊनी स्वेटर भाये तन को

गरम चाय ललचाये मन को

सन-सनी हवा खीजवाती हैं

भीनी-भीनी धूप बस याद आती हैं

दिल दुखाते रोजमर्रा के काम

मन कहे रजाई में घूसकर करें आराम

पर घड़ी शोर मचाती हैं

सबकों ठंडी में भगाती हैं

दिन चढ़े भी गहरा अँधेरा

चारो तरफ घना हैं कोहरा

लगता हैं बादल मिलने आते हैं

ठंडी का  मल्हार गाते जाते हैं ||

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सभी मौसम होते हैं खास

ठण्ड की हैं कुछ अलग ही बात

गरम गरम चाय और पकौड़े हो

तो क्या बात क्या बात

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ठण्ड में ना करता नहाने का मन

सुस्ताय सुस्ताय घुमे सबका तन

पर मौसम सुहाना लगता हैं

जब ठंड में अलाव सिकता हैं

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रंगो की हरियाली छाई हैं

बाजारों में ताजी सब्जियाँ आई हैं

मेवे के बनते हैं लड्डू घरों में

हर ठण्ड सब सेहत बनाइये

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कप कप करके ठंडी बजती

ओस की बुँदे घास पर सजती

कोहरा सजता हैं बड़ा दमदार

पहाड़ों पर सजता सदाबहार

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बारिश बीती ठण्ड आई

मेरी नानी की हालत कड़कड़ाई

ओढ़ कर बैठी हैं कम्बल रजाई

बंदर टोपा लगाकर वो शरमाई

काँपती आवाज में बोलती हैं

ओ बेटा जरा आईना तो ला

जचे नहीं अगर उनको मुखड़ा

तो ठंड जाये भाड़ में वो फेंके उतारकर टोपा

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दिन ढलता हैं अब जल्दी जल्दी

राते हो जाती हैं लंबी लंबी

नाक से पानी टपकता हैं

सुबह बिस्तर छोड़ना बहुत अखरता हैं

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दिसम्बर की बहारों में

मौसम सुहाना लगता हैं

लेकिन आ जाये एग्जाम डेट

तो हर एक पल रुआंसा सा लगता हैं

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ठंडी में जुदाई बहुत तड़पाती हैं

तेरी याद हर पल सताती हैं

क्यूँ चली जाती हैं मायके

तेरे बिन नींद नहीं आती हैं |

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अलाव जलाकर बैठे हैं

देखो कैसे ऐंठे हैं

हम कह रहे थे जरा सी पिलो

रम नहीं भाई चाय की चुस्की ले लो

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दिन कब ढल जाये पता ना चले

रात की गहराई में हम आसमां तले

इक्कट्ठी करके ढेर सारी लकड़ी

अलाव जला कर सब अन्ताक्षरी खेले

क अ ग म सब गा गये हैं आज

ऐसा सजाया हैं ठण्ड का साज

हर साल बीते ऐसी ही शीत की छुट्टियाँ

जब मिल बैठे भाई बहन और सखा सखियाँ

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ठण्ड में निखरता रूप निराला

गोरा गोरा सुंदर प्यारा प्यारा

खाओ मस्त मस्त हरा साग

बनाओ सेहत यही हैं सुन्दरता का राज

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टमाटर सूप के बिना ठण्ड हैं बेसुआदी

मन को भाते हैं बस रजाई और गादी

सनसनाती हवाये लुभाती हैं

पर नहाने में नानी याद आती हैं

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रोज सुबह उठकर आता हैं एक ही ख्याल

पूरी ठंड पूछती खुद से एक ही सवाल

नहाऊ या नहीं बहुत ठण्ड हैं आज

ठंडी लहर प्लीज सताओ ना आज

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ठण्ड में साँसों से हैं धुँआ निकलता

भीनी भीनी धुप में जन्मो का सुख हैं मिलता

चाय का प्याल भी खूब अपना सा लगता हैं

अलाओ की गर्मी में ही मौसम जचता हैं

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ठण्ड में शादी का हैं अलग ही मजा

होती हैं यह लड़कियों के लिये सजा

चाहे क्यूँ न डाल दे कोई ठंडा पानी

इतराना ना भूलेंगी ये जानी

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सनसनी हवाये चलती हैं

ठंड में बस धुप ही अपनी लगती हैं

अखरता हैं रोज रोज नहाना

पर सहता हैं यह सारा जमाना

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आसमां से टपकती ये ओंस की बुँदे

गीली घास पर चमकती ये ओंस की बुँदे

हीरे मोती सी सजती हैं धरती

शीत ऋतू में सुहानी सी दमकती

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ये ठण्ड ऐसी कड़कड़ाती हैं

मेरे पिय से मुझे मिलाती हैं

याद आजाते हैं वो बीते दिन

जब कटती थी राते तुम बिन

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ठंड में वो होस्टल के दिन याद आते हैं

जब कॉफ़ी पिने हम सब साथ जाते थे

दुबक कर बैठ जाते हैं एक गाड़ी पर चार

रातो में एक रजाई में घुस जाते थे यार

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ठंड में कॉफ़ी की चुस्कियाँ याद आती हैं

नुक्ड़ की वो कुल्हड़ चाय याद आती हैं

गरमा गरम नूडल्स का मजा भी होता हैं खास

अब यारों के बजाये सताता हैं खडूस बॉस

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सर्दी में जब जाती हैं नाक

ठंडे पड़ जाते हैं पैर और हाथ

फिर माँ के नुस्खे ही काम आते हैं

हल्दी के दूध के प्याले ही याद आते हैं

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वो बचपन की ठण्ड बहुत सुहानी थी

जब चलती हमारी मनमानी थी

जो चाहते वो मिल जाता था

सरदर्द का बहाना सब करवा जाता था

जब चाहो तब मम्मा पास बैठ जाती थी

दादी भी आते जाते हाल चाल पूछ जाती थी

स्कूल जाना न जाना केवल हम पर था

खाने में क्या हैं खाना वो भी पूछा जाता था

लेकिन ये जवानी बहुत सताती हैं

ठण्ड हो या गर्मी रोज ऑफिस दिखाती हैं

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जब भी कड़कड़ाती थी ठंडी

रोम रोम कांप जाता था

झट से रजाई में लिपट जाया करती थी

आज ससुराल में मुझे मायका याद आता हैं

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ठंड में रहता हैं सूरज का इन्तजार

जब बिछती हैं धूप तब आती हैं आँगन में बहार

चूल्हे पर सिकती हैं ज्वार की रोटी

खा खाकर मैं हो जाती थी मोटी

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ठण्ड की शादी में अक्सर लड़कियां

कुछ तूफानी कर जाती हैं

चाहे कितना ही गिर क्यूँ ना जाये पारा

वो बन ठन कर ही शादी में जाती हैं

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ठण्ड पर लिखी यह सभी शायरी आप अपने दोस्तों से शेयर कर सकते हैं | यह सभी मेरे दिल के बहुत करीब हैं | उम्मीद हैं आपको भी पसंद आई होंगी | अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में जरुर छोड़े |

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