Monday, April 29, 2024
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आद्या काली जयंती कब है पूजा विधि | Adya Kali Jayanti Puja Vidhi in Hindi

आद्या काली जयंती कब है –हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको आद्या काली जयंती के बारे में बताने जा रहा हूँ। आद्य काली जयंती के दिन काली पूजा की जाती हैं और इसे श्यामा पूजा और महानिशा पूजा के नाम से भी जाना जाता हैं. चूँकि माता काली को भारत के बंगाल क्षेत्र में बहुत माना जाता हैं, अतः मुख्यतः इसी क्षेत्र में यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं. इस क्षेत्र के अलावा इस त्यौहार को ओड़िसा, बिहार और असम में भी बहुत महत्व प्राप्त हैं, इसीलिए यहाँ भी इस त्यौहार की धूम देखने लायक होती हैं. यह त्यौहार हिन्दुओं के सबसे बड़े त्यौहार ‘दीपावली’ के साथ ही आता हैं. एक ओर जहाँ बंगाली, उड़िया और असमी लोग माता काली का पूजन करते हैं, तो वहीँ दूसरी ओर देश के अन्य क्षेत्रों में ‘धन की देवी लक्ष्मी’ की पूजा अर्चना की जाती हैं.  दीपावली त्यौहार निबंध, पूजा विधि, शायरी को पढने के लिए यहाँ क्लिक करें.



आद्या काली जयंती 2023 (Adya Kali Jayanti in Hindi)

त्यौहार का नाम आद्य काली जयंती
शुरुआत 17वीं सदी में नवद्वीप के राजा कृष्णचंद्र ने प्रारंभ की.
अन्य नाम श्यामा पूजा और महानिशा पूजा
महत्व हिन्दू देवी माँ काली को समर्पित
समय हिन्दू वर्ष के कार्तिक माह की अमावस्या के बाद [New Moon Day of the Hindu month Kartik]
दिनांक 12 नवंबर
त्यौहार मनाने के मुख्य स्थान बंगाल, ओड़िसा, बिहार और असम
मुख्य पूजा काली पूजा
अन्य पूजाएँ तीन पूजाएँ -:

 

दीपान्विता पूजा [वर्ष में एक बार],

रटंती काली पूजा और

फलाहरिणी काली पूजा.

मनाने की विधी दो विधियाँ -:

 

तांत्रिक विधी,

सामान्य विधी.

प्रसिद्ध मंदिर कलकत्ता का कालीघाट मंदिर और दक्षिणेश्वर काली मंदिर और गुवाहाटी का कामख्या देवी मंदिर
अन्य आकर्षण पशु बलि [Animal Sacrifice]



आद्या काली जयंती कब मनाई जाती है

यह त्यौहार हिन्दू धर्म की ‘देवी काली’ को समर्पित हैं. यह त्यौहार हिन्दू वर्ष के कार्तिक माह की अमावस्या के बाद मनाया जाता हैं.

आद्या काली जयंती 2023 में कब है

आद्य काली जयंती इस साल 12 नवंबर को है. इसी दिन माता काली की पूजा की जाती है.

आद्य काली जयंती कहां मनाई जाती है

आद्य काली जयंती कब है –आद्य काली पूजा भारत देश के विभिन्न क्षेत्र में मनाई जाती है, इसे अलग अलग नाम से जाना जाता है. तमिलनाडु में इसे मिनाक्षी अम्मान के नाम से जानते है, गुजरात में ये अम्बा देवी के नाम से प्रसिध्य है, जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी एवं केरला में अत्तुकू अम्मा नाम से जाना जाता है. इनका नाम आद्य काली बहुत फेमस और प्रतीकात्मक है. इसका मतलब होता है, अत्याधिक अँधेरा. इस अथक अंधकार से प्रकाश उत्पन्न होता है, और जिसमें से सब कुछ नया, प्रकाशमय हो जाता है.

काली पूजा का इतिहास

काली पूजा का यह त्यौहार बहुत पुराना नहीं हैं. इस त्यौहार की शुरुआत 17वीं सदी में हुई. बलराम द्वारा रचित ‘कालिका मंगलकाव्य’ नामक एक भक्तिपूर्ण रचना [Devotional text] में माँ काली को समर्पित इस त्यौहार की बात कही गयी हैं. 18वीं सदी में इस त्यौहार को बंगाल क्षेत्र में पहचान मिली और इसे नवद्वीप के राजा कृष्णचंद्र ने प्रारंभ किया था. काली पूजा ने 19वीं सदी तक आते आते प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी और राजा कृष्णचंद्र के पोते [Grandson] ईश्वरचंद्र ने इसे बहुत बड़े पैमाने पर मनाने की प्रथा प्रारंभ की. अब बंगाल क्षेत्र में इसका महत्व ‘दुर्गा पूजा’ के समान ही हैं. नवरात्री नव दुर्गा रूप नाम महत्व कथा पूजन विधि जानने के लिए पढ़े.

महानिशा पूजा  विस्तृत वर्णन

आद्य काली जयंती कब है –महानिशा पूजा भारत और नेपाल में मिथिला क्षेत्र के मैथिली लोगों द्वारा की जाती हैं और काली पूजा में भक्तजन माता काली की पूजा ‘दुर्गा पूजा’ के समान ही करते हैं. भक्तों द्वारा माता काली की मिट्टी की मूर्ति की स्थापना की जाती हैं, इसके लिए पंडाल आदि सजाये जाते हैं और यहाँ माता की पूजा की जाती हैं. इस पूजा में तांत्रिक अनुष्ठान  भी किये जाते हैं और मंत्र, आदि पढ़े जाते हैं.

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आद्या काली पूजा विधि

इस पूजा में निम्न लिखित सामग्री की आवश्यकता होती हैं -:

  • लाल फूल,
  • खोपड़ी के अंदर किसी पशु का खून,
  • मिठाई, चावल,
  • मसूर [Lentil],
  • मछली [Fish] और
  • मांस [Meat], आदि.

ये सभी सामान माता काली को चढ़ाया जाता हैं.

पूजा की विधि Kali Puja Procedure

पूजा करने वाले व्यक्ति [Worshiper] को पूरी रात, बल्कि सुबह तक ध्यान करना [Meditate] होता हैं. इसके अलावा घरों में सामान्य रूप से पूजा की जाती हैं. उपरोक्त प्रकार से तांत्रिक विधी नहीं अपनाई जाती.

रीति – रिवाजों के अनुसार माता काली का श्रंगार किया जाता हैं और माता के इस रूप को ‘आद्य शक्ति काली’ कहा जाता हैं.




इस त्यौहार के दौरान सामान्यतः काली पूजा के दिन ही पशु बलि दी जाती हैं. यह त्यौहार कलकत्ता और गुवाहाटी के श्मशान [Cremation ground] पर मनाया जाता हैं, यहाँ मनाने की वजह ये हैं कि ऐसी मान्यता हैं कि माँ काली इन दोनों स्थानों पर निवास करती हैं.

जो पंडाल लगाये जाते हैं, उनमें माता काली और भगवान शिव के चित्र लगाये जाते हैं, इनके अलावा अन्य देवी – देवताओं के चित्र भी लगाये जाते हैं.

भक्तगण जगराता [रात भर जागकर] करके माता की भक्ति करते हैं. काली पूजा के समय जादू के शो और आतिशबाजी भी होती हैं.

इस दिन कलकत्ता के कालीघाट मंदिर और गुवाहाटी के कामख्या देवी मंदिर में माता काली की माँ लक्ष्मी के समान ही पूजा अर्चना की जाती हैं.

इस दिन हजारों श्रद्धालुओं द्वारा माता के दर्शन के लिए मंदिर आते हैं और पशु बलि [Animal Sacrifice] देते हैं.

इसके अलावा कलकत्ता में माँ काली का एक और प्रसिद्ध मंदिर हैं –‘दक्षिणेश्वर काली मंदिर’, यहाँ भी यह त्यौहार मनाया जाता हैं.

इस मंदिर की एक और खास बात यह हैं कि यहाँ महान काली भक्त रामकृष्ण परमहंस पुजारी [Priest] थे, जिन्हें स्वामी विवेकानंद ने अपना गुरु बनाया था, स्वामी विवेकानंद जीवन, अनमोल वचन को यहाँ पढ़ें. रामकृष्ण परमहंस जीवन परिचय को यहाँ पढ़ें.

समय के साथ पूजा के तौर तरीकों में थोड़ा बदलाव आया हैं,परन्तु वर्ष में एक बार होने वाली प्रसिद्ध ‘दीपान्विता पूजा’ बड़े ही हर्षोल्लास के साथ की जाती हैं.

इसके अलावा अन्य दो मान्यता प्राप्त पूजा में शामिल हैं -: रटंती काली पूजा और फलाहरिणी काली पूजा.

रटंती काली पूजा -: यह पूजा हिन्दू वर्ष की माघ माह की कृष्ण चतुर्दशी को संपन्न की जाती हैं.

फलाहरिणी काली पूजा -: यह पूजा बंगाली कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या के दिन की जाती हैं.

इस प्रकार माता काली के भक्त यह आद्य काली जयंती नामक त्यौहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं और माँ काली का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

FAQ

Q : आद्य काली जयंती कब आती है?

Ans : कार्तिक मास की अमावस्या को

Q : आद्य काली जयंती 2023 में कब है?

Ans : 12 नवंबर

Q : आद्य काली की पूजा विधि क्या है?

Ans : अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरह से पूजा की जाती है.

Q : आद्य काली का त्यौहार सबसे ज्यादा कहां मनाया जाता है?

Ans : बंगाल में

Q : बंगाल में दीवाली के दिन किस देवी की पूजा की जाती है?

Ans : माता काली की

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