अरुणा आसफ़ अली जीवन परिचय – Biography of Aruna Asaf Ali in Hindi Jivani हेलो दोस्तों मेरा नाम मोहित है आज में आपको अरुणा आसफ़ अली जीवन के बारे में बताने जा रहा हु।
अरुणा आसफ़ अली जीवन परिचय-अरुणा आसफ़ अली भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्हें 1942 मे भारत छोडो आंदोलन के दौरान मुंबई के गोवालीया मैदान मे कांग्रेस का झंडा फहराने के लिये हमेशा याद किया जाता है। स्वतंत्रता के बाद भी वह राजनीती में हिस्सा लेती रही और 1958 में दिल्ली की मेयर बनी। 1960 में उन्होंने सफलतापूर्वक मीडिया पब्लिशिंग हाउस की स्थापना की। Aruna Asaf Ali के या योगदान को देखते हुए 1997 में उन्हें भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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अरुणा आसफ़ अली जीवन परिचय।
नाम | अरुणा आसफ अली (Aruna Asaf Ali) |
जन्म की तारीख | 16 जुलाई |
जन्म स्थान | कालका, पंजाब, ब्रिटिश भारत |
निधन तिथि | 29 जुलाई |
माता व पिता का नाम | अम्बालिका देवी / उपेंद्रनाथ गांगुली
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उपलब्धि | 1964 – संयुक्त राष्ट्रसंघ महासभा की प्रथम महिला अध्यक्ष |
पेशा / देश | महिला / स्वतंत्रता सेनानी / भारत |
अरुणा आसफ़ अली जीवन परिचय अरुणा जी का जन्म बंगाली परिवार में 16 जुलाई सन 1909 ई. को हरियाणा, तत्कालीन पंजाब के ‘कालका’ नामक स्थान में हुआ था। इनका परिवार जाति से ब्राह्मण था। इनका नाम ‘अरुणा गांगुली’ था। अरुणा जी ने स्कूली शिक्षा नैनीताल में प्राप्त की थी। नैनीताल में इनके पिता का होटल था। यह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। लाहौर और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गई और कोलकाता के ‘गोखले मेमोरियल कॉलेज’ में अध्यापन कार्य करने लगीं।
अरुणा आसफ़ अली जीवन परिचय अरुणा जी ने 1930, 1932 और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय जेल की सज़ाएँ भोगीं। उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ॰ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का अधिक प्रभाव पड़ा। इसी कारण 1942 ई. के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। गांधी जी आदि नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद मुम्बई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे प्रमुख महिला थीं। फिर गुप्त रूप से उन कांग्रेसजनों का पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर रह सके थे।
राजनीतिक और सामाजिक जीवन
अरुणा आसफ़ अली जीवन परिचय-परतंत्रता में भारत की दुर्दशा और अंग्रेज़ों के अत्याचार देखकर विवाह के उपरांत श्रीमती अरुणा आसफ़ अली स्वतंत्रता-संग्राम में सक्रिय भाग लेने लगीं। उन्होंने महात्मा गांधी और मौलाना अबुल क़लाम आज़ाद की सभाओं में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। वह इन दोनों नेताओं के संपर्क में आईं और उनके साथ कर्मठता, से राजनीति में भाग लेने लगीं, वे फिर लोकनायक जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और अच्युत पटवर्द्धन के साथ कांग्रेस ‘सोशलिस्ट पार्टी’ से संबद्ध हो गईं।
अरुणा आसफ़ अली जीवन परिचय-चूंकि आसफ अली स्वतंत्रता संग्राम से पूरी तरह से जुड़े हुए थे इसीलिये शादी के उपरांत अरुणा आसफ अली भी उनके साथ इस मुहीम में जुड़ गयीं । वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान उन्होंने सार्वजनिक सभाओं को सम्बोधित किया और जुलूस निकाला। ब्रिटिश सरकार नेउन पर आवारा होने का आरोप लगाया और उन्हें एक साल जेल की सजा सुनाई। गांधी-इर्विन समझौते के अंतर्गत सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया, पर अरुणा को मुक्त नहीं किया गया। परन्तु जब उनके पक्ष में एक जन आंदोलन हुआ तब ब्रिटिश सरकार को उन्हें छोड़ना पड़ा।
अरुणा आसफ़ अली जीवन परिचय-उन्हें 1932 में पुनः बंदी बना लिया गया और तिहाड़ जेल में रखा गया। तिहाड़ जेल में राजनैतिक कैदियों के साथ हो रहे बुरे बर्ताव के विरोध में उन्होंने भूख हड़ताल की। उनके विरोध के कारण ही हालात में कुछ सुधार हुआ। लेकिन वह स्वयं अम्बाला के एकांत कारावास में चली गयीं। रिहा होने के बाद उन्हें 10 साल के लिए राष्ट्रीय आंदोलन से अलग कर दिया गया। वर्ष 1942 में उन्होंने अपने पति के साथ बॉम्बे के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया जहाँ पर 8 अगस्त को ऐतिहासिक ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ। प्रस्ताव पारित होने के एक दिन बाद जब कांग्रेस के नेताओं को गिरफ्तार किया गया तब अरुणा ने बॉम्बे के गौलिया टैंक मैदान में ध्वजारोहण कर आंदोलन की अध्यक्षता की। उन्होंने आंदोलन में एक नया जोश भर दिया। वह भारत छोड़ो आंदोलन में पूर्ण रूप से सक्रिय हो गईं और गिरफ़्तारी सेबचने के लिए भूमिगत हो गईं। उनकी संपत्ति को सरकार द्वारा जब्त करके बेच दिया गया। सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए 5000 रुपए की घोषणा भी की। इस बीच वह बीमार पड़ गईं और यह सुनकर गांधी जी ने उन्हें समर्पण करने की सलाहदी।
अरुणा आसफ़ अली जेल यात्रा
अरुणा आसफ़ अली जीवन परिचय-अरुणा जी ने 1930, 1932 और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय जेल की सज़ाएँ भोगीं। उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का अधिक प्रभाव पड़ा। इसी कारण 1942 ई. के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। गांधी जी आदि नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद मुम्बई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे प्रमुख महिला थीं। फिर गुप्त रूप से उन कांग्रेसजनों का पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर रह सके थे। मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली आदि में घूम-घूमकर, पर पुलिस की पकड़ से बचकर लोगों में नव जागृति लाने का प्रयत्न किया। लेकिन 1942 से 1946 तक देश भर में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ में नहीं आईं। 1946 में जब उनके नाम का वारंट रद्द हुआ, तभी वे प्रकट हुईं। सारी सम्पत्ति जब्त करने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया।
अरुणा आसफ़ अली निधन
अरुणा आसफ़ अली जीवन परिचय-अरुणा आसफ़ अली वृद्धावस्था में बहुत शांत और गंभीर स्वभाव की हो गई थीं। उनकी आत्मीयता और स्नेह को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वास्तव में वे महान् देशभक्त थीं। वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ़ अली 87 वर्ष की आयु में दिनांक 29 जुलाई, सन् 1996 को इस संसार को छोड़कर सदैव के लिए दूर-बहुत दूर चली गईं। उनकी सुकीर्ति आज भी अमर है।
FAQ
Q. अरुणा आसफ अली क्यों प्रसिद्ध है?
Ans. उन्हे 1942 में भारत छोडो आंदोलन के दौरान, मुंबई के गोवालीया मैदान में कांग्रेस का झंडा फ्हराने के लिये हमेशा याद किया जाता है।
Q. अरुणा आसफ अली की मृत्यु कब हुई थी?
Q. अरुणा आसफ अली कौन से आंदोलन से संबंधित है?
Ans. साल 1942 मे भारत छोडो आंदोलन से संबंधित है.
Q. भारत छोड़ो आंदोलन के नेता कौन हैं?
Ans. मोहनदास करमचंद गांधी ने ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन शुरू किया।
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